अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी दोनों सदनों में बहुमत में है फिर भी बजट पारित न हो पाने से सरकारी कामकाज ठप हो गया है। अब यह गतिरोध केवल आर्थिक संकट नहीं रहा, यह ट्रम्प की टकरावभरी राजनीति, जनता के गुस्से और ‘कोई राजा नहीं आंदोलन’(No Kings Movement) जैसे विरोध अभियानों से उपजा लोकतांत्रिक असंतोष बन चुका है
अमेरिका एक बार फिर उस मोड़ पर पहुंच गया है जब दुनिया की सबसे ताकतवर सरकार काम करना बंद कर चुकी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 1 अक्टूबर 2025 को सरकारी ‘शटडाउन’ की घोषणा की जिसके बाद लाखों सरकारी कर्मचारियों को बिना वेतन छुट्टी पर भेज दिया गया। यह वही ट्रम्प हैं जिन्होंने चुनावों में कहा था ‘‘मैं अमेरिका को फिर से महान बना दूंगा।’’ मगर आज वही अमेरिका वित्तीय गतिरोध और राजनीतिक असहमति में जकड़ा हुआ है। सवाल यह उठता है कि जब ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी कांग्रेस के दोनों सदनों, हाउस आॅफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट में बहुमत रखती है तो बजट पारित क्यों नहीं हो पाया? इसका उत्तर अमेरिकी लोकतंत्र की जटिल संरचना और राजनीतिक खींचतान में छिपा है।
दरअसल, अमेरिका में ‘शटडाउन’ कोई नई घटना नहीं है। 1976 में पहली बार राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड के कार्यकाल में सरकार ठप हुई थी। उसके बाद यह परम्परा लगभग हर दशक में दोहराई गई। जिमी कार्टर के समय पांच बार, रोनाल्ड रीगन के दौर में आठ बार, बिल क्लिंटन के शासन में दो बार, बराक ओबामा के कार्यकाल में एक बार और ट्रम्प के पहले कार्यकाल (2018-19) में 35 दिन तक चला सबसे लम्बा शटडाउन हुआ था। लेकिन मौजूदा ठहराव सबसे गम्भीर माना जा रहा है क्योंकि इस बार मामला सिर्फ बजट या नीति तक सीमित नहीं, बल्कि सत्ता की शैली और जन असंतोष से जुड़ गया है।
अमेरिकी संसद यानी कांग्रेस दो सदनों से मिलकर बनी है। हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स में 435 सदस्य होते हैं, जो जनसंख्या के अनुपात में चुने जाते हैं और हर दो वर्ष में पूरा सदन पुनः निर्वाचित होता है। सीनेट (Senate) में 100 सदस्य होते हैं, हर राज्य से दो, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। सीनेटर छह वर्ष के लिए चुने जाते हैं और हर दो वर्ष में एक तिहाई सीटों पर चुनाव होते हैं।
हाउस जनता की नब्ज का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि सीनेट स्थिरता और संतुलन का प्रतीक है। दोनों सदनों की सहमति के बिना कोई भी कानून या बजट पारित नहीं हो सकता।
रिपब्लिकन पार्टी के पास सीनेट में 53 और हाउस में 219 सीटें हैं। लेकिन सीनेट में ‘फिलिबस्टर’ नियम के कारण किसी भी विधेयक को पारित करने के लिए 60 वोटों की जरूरत होती है। इस वजह से रिपब्लिकन बहुमत में होते हुए भी डेमोक्रेट्स की मदद के बिना बजट पारित नहीं करा सके। इस बार असहमति का मुख्य कारण रहा स्वास्थ्य बीमा सब्सिडी (Affordable Care Act) और स्वास्थ्य योजनाओं में कटौती। डेमोक्रेट्स ने इन सामाजिक योजनाओं को बचाने पर जोर दिया, जबकि ट्रम्प प्रशासन इन्हें घटाने पर अड़ा रहा। परिणामस्वरूप बजट विधेयक 55-45 मतों से गिर गया।
रिपब्लिकन पार्टी के भीतर भी खींचतान जारी है। ‘फ्रीडम काॅकस’ नामक कट्टर गुट सरकारी खर्च और घटाने की मांग कर रह है जिससे पार्टी के भीतर ही मतभेद गहराने लगे, नतीजा, 1 अक्टूबर से पूरे अमेरिका में ‘शटडाउन’ लागू हो गया। इसके बाद सरकारी कामकाज ठप पड़ गया। 8 लाख से अधिक कर्मचारी बिना वेतन छुट्टी पर भेजे जा चुके हैं। नेशनल पार्क, म्यूजियम और सरकारी वेबसाइटें बंद हैं। हवाई सेवाओं में देरी और रद्दीकरण की घटनाएं बढ़ रही हैं। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगर यह ठहराव एक महीने तक चला तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को हर सप्ताह लगभग 15 अरब डाॅलर का नुकसान होगा।
ट्रम्प की शैली और जनता की नाराजगी
ट्रम्प के लिए यह शटडाउन केवल प्रशासनिक चुनौती नहीं बल्कि राजनीतिक संकट भी बन गया है। उनकी नेतृत्व शैली जिसमें वे हर मुद्दे को टकराव में बदल देते हैं, अब उन्हीं पर भारी पड़ रही है। सीनेट और हाउस में असहमति के साथ-साथ जनता में भी नाराजगी बढ़ रही है। इसी माह शुरू हुआ ‘नो किंग्स मूवमेंट’ (No Kings Movement) ट्रम्प-विरोध का प्रतीक बन गया है। देशभर के 50 राज्यों में हजारों लोग सड़कों पर उतरे हैं और नारे लगाए, ‘तख्त नहीं, ताज नहीं, राजा नहीं’ (No Thrones. No Crowns. No Kings.) आंदोलन का संदेश स्पष्ट है कि ‘‘अमेरिका को राजा नहीं, जवाबदेह नेता चाहिए।’’
ट्रम्प की आलोचना इस बात के लिए हो रही है कि वे लोकतांत्रिक संस्थाओं को दरकिनार कर स्वयं निर्णय लेने वाले ‘एकल शासक’ की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि ‘नो किंग्स’ आंदोलन ट्रम्प के लिए वही साबित हो सकता है जो वियतनाम युद्ध विरोधी आंदोलन 1970 के दशक में रिचर्ड निक्सन के लिए था, जनता का विश्वास खोने का संकेत।
स्नैप (SNAP) फूड प्रोग्राम बंद
अब यह ठहराव आम लोगों के जीवन पर असर डाल रहा है। अमेरिकी कृषि विभाग ने 26 अक्टूबर 2025 को घोषणा की कि 1 नवम्बर से (Supplemental Nutrition Assistance Program ‘SNAP’) के तहत कोई नया भुगतान नहीं किया जाएगा। यह वही योजना है जिससे हर महीने 4 करोड़ से ज्यादा अमेरिकियों को भोजन सहायता मिलती थी।
कृषि विभाग ने कहा है कि फंड समाप्त हो चुके हैं और ट्रम्प प्रशासन आकस्मिक निधि से पैसा नहीं निकालेगा। डेमोक्रेटिक सांसदों के आग्रह के बावजूद कृषि सचिव ब्रुक रोलिंस ने कहा है कि यह कोष केवल आपदाओं के लिए आरक्षित है। इस फैसले ने निम्न आय वर्ग को गहरी मुसीबत में डाल दिया है। कई राज्यों ने स्थानीय राहत की घोषणा की है लेकिन संघीय सहायता बंद होने के बाद यह लम्बे समय तक सम्भव नहीं।
भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर
अमेरिका का यह शटडाउन और ‘स्नैप’ कार्यक्रम का ठप होना अब वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी असर डाल रहा है। अमेरिकी उपभोग घटने से भारत, चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई निर्यातक देशों के ऑर्डर कम हो सकते हैं। भारतीय आईटी और फार्मा कम्पनियां पहले से प्रोजेक्ट डिले का सामना कर रही हैं। डाॅलर की कमजोरी और शेयर मार्केट में अस्थिरता से विदेशी निवेश पर भी दबाव बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिकी सरकार नवंबर तक वित्तीय संकट से नहीं निकल पाती तो वैश्विक विकास दर में 0.3 प्रतिशत तक की कमी सम्भव है।
भारतीय एनआरआई रेमिटेंस में कमी और H1-B वीजा प्रक्रिया की धीमी गति भारत-अमेरिका संबंधों को भी प्रभावित कर सकती है।
कुल मिलाकर अमेरिका का यह ‘शटडाउन’ अब राजनीतिक जिद से निकला एक लोकतांत्रिक संकट बन चुका है। ट्रम्प की सत्ता शैली और जनता का विरोध, दोनों ने यह साबित कर दिया है कि जब नेता स्वयं को राजा मानने लगता है तो लोकतंत्र अपनी जनता के लिए संघर्ष का मंच बन जाता है। अब अमेरिकी जनता सिर्फ यह सवाल पूछ रही है कि ‘‘क्या यह वही महान अमेरिका है जहां सरकार बंद हो जाए तो जनता को भोजन तक न मिले?’’

