खास पड़ताल
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए लगातार सक्रिय हैं। उन्होंने टोल फ्री नम्बर जारी किया है ताकि आम जनता भ्रष्टाचार की शिकायतें सीधे दर्ज कर सके। लेकिन उनके इन प्रयासों को उन्हीं के नौकरशाह धता बता रहे हैं। डिजास्टर मैनेजमेंट कानून की आड़ में अब सरकारी महकमे ही अवैध खनन को वैधता देने में जुट गए हैं। चम्पावत जिले में रिवर चैनलाइजेशन के नाम पर बिना वन विभाग की स्वीकृति और केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के कार्य शुरू कर दिए गए। ऐसा तब जबकि डीएफओ, हल्द्वानी प्रभाग द्वारा डीएम चम्पावत को लिखित रूप से जानकारी दी गई कि बगैर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग की पूर्वानुमानित नदी में खनन कार्य नहीं कराए जा सकते हैं। कार्य पूर्ण होने के बाद ‘कार्योत्तर स्वीकृति’ के बहाने नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। आपदा प्रबंधन के नाम पर खनन को वैध ठहराने की यह प्रवृत्ति न केवल मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान को कमजोर करती है, बल्कि सरकार की पारदर्शिता और नियम पालन की मंशा पर भी गम्भीर सवाल खड़े करती है
उत्तराखण्ड में खनन क्षेत्र जहां राजस्व का एक बड़ा स्रोत बनकर सरकार की झोली भर रहा है, वहीं खनन के चलते सरकार अक्सर विवादों में भी घिरती नजर आ रही है। खनन विभाग ने 2024-25 के वित्तीय वर्ष में 1100 करोड़ से अधिक का रिकॉर्ड राजस्व अर्जित किया है। उत्तराखण्ड सरकार ने 2024-25 के लिए खनन को राजस्व का लक्ष्य 875 करोड़ रखा था लेकिन खनन विभाग ने लक्ष्य से कहीं अधिक 1100 करोड़ का राजस्व अर्जित किया। खनन निदेशक, राजपाल लेघा का दावा है कि खनन क्षेत्र में पारदर्शिता, तकनीक और कड़े निगरानी तंत्र के चलते ये उपलब्धि हासिल की है। बढ़े खनन राजस्व से पता चलता है कि राज्य में खनन क्षेत्रों का दायरा व्यापक रूप से बढ़ा है। बढ़ते राजस्व से सरकार की झोली तो भर रही है लेकिन इसके साथ ही अवैध खनन के आरोप सरकार का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। विवादों का ये सिलसिला हरिद्वार से शुरू होकर ऊधमसिंह नगर, चम्पावत, बागेश्वर और नैनीताल जनपद तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। अभी पिछले दिनों उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा हरिद्वार जिले में अवैध खनन के आरोपों ने उत्तराखण्ड भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी राजनीति में उबाल ला दिया था। भाजपा का एक बड़ा वर्ग त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस बयान के खिलाफ खड़ा हो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आगे मानो नतमस्तक सा हो गया था। लेकिन इन नेताओं का ये स्टैंड अवैध खनन के आरोपों को थाम नहीं पाया है। उत्तराखण्ड में खनन के आरोप अनायास नहीं हैं। निजी क्षेत्र में अवैध और अवैज्ञानिक तरीके से खनन की शिकायतें निराधार नहीं हैं, लेकिन अब सरकारी विभाग भी अवैध खनन करने के आरोपों की जद में आते दिखाई पड़ने लगे हैं। आपदा के नाम पर अवैध खनन का एक नया खेल उत्तराखण्ड में शुरू हुआ है जिस पर ध्यान कम ही लोगों का गया है। लगता है अधिकारियों को आपदा के नाम पर सब कुछ जायज लगता है और नियम कायदों की परवाह किए बिना को सब कुछ कर लेना चाहते हैं जिसकी इजाजत उन्हें सरकारी नियम व प्रक्रियाएं नहीं देती।

बरसात से पूर्व सम्भावित दैवीय आपदा की रोकथाम के नाम पर जिलाधिकारी चम्पावत ने खनन के इस खेल को रोचक बना दिया है। हर कीमत खनन जारी रखने की जिद या बदनीयती के चलते वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करते हुए जिलाधिकारी ने चम्पावत में शारदा नदी में आपदा प्रबंधन की आड़ लेते हुए खनन की इजाजत दे डाली है। ऐसा तब जबकि उन्हें हल्द्वानी वन प्रभाग के डीएफओ दो बार पत्र लिखकर स्पष्ट कर चुके हैं कि आपदा प्रबंधन के लिए कराए जा रहे खनन के लिए भारत सरकार की पूर्व अनुमति जरूरी है। डीएफओ कुंदन कुमार के पत्रों को दरकिनार करते हुए जिलाधिकारी चम्पावत नवनीत पांडे ने न केवल इस प्रकार के खनन जिसे रिवर चैनलाइजेशन कहा जाता है, की अनुमति दे डाली है, बल्कि 9 मई 2025 को जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक में इस विषय पर जो निर्णय लिया गया उसमें भी हेरा-फेरी कर ऐसा जताने का प्रयास किया है, मानो डीएफओ हल्द्वानी ने भारत सरकार से पूर्व अनुमति की बात न कहते हुए भारत सरकार को मात्र सूचित किए जाने की बात कही हो।

गौरतलब है कि चम्पावत जिले में रिवर चैनलाइजेशन/डायवर्जन जैसे कार्य सम्भावित दैवीय आपदा की रोकथाम के नाम पर किए जाने हैं। लेकिन प्रशासन, वन विभाग की आपत्तियों/ सलाह के बाद भी बिना नियमित प्रक्रिया पूरी किए काम कराने पर आमादा है। वन क्षेत्राधिकारी (फॉरेस्ट रेंजर) शारदा ने अपने पत्रांक सं. 1029 दिनांक 10-3-2025 के माध्यम से प्रभागीय वनाधिकारी हल्द्वानी वन प्रभाग (डीएफओ) को अवगत कराया था कि जिला मजिस्ट्रेट/ अध्यक्ष जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा शारदा रेंज के अंतर्गत शारदा नदी के स्नानघाट में चैनलाइजेशन कार्य को आपदा प्रबंधन अधिनियम 2085 की सुसंगत धाराओं के अंतर्गत अनुमति प्रदान की गई है। वन क्षेत्राधिकारी शारदा द्वारा प्रभागीय वनाधिकारी हल्द्वानी वन प्रभाग हल्द्वानी को यह भी अवगत कराया गया कि जिस स्थल पर चैनलाइजेशन को स्वीकृति दी गई है वह स्थल आरक्षित वन शारदा टापू प्रथम बीट, टापू सव 1 के अंतर्गत आता है जो शिवालिक हाथी रिजर्व का भाग है।
आपका यह कहना सही है कि रिजर्व फॉरेस्ट में केंद्र सरकार की अनुमति लेनी आवश्यक है। यह हमारी पॉलिसी भी है रिजर्व फॉरेस्ट के सम्बंध में। लेकिन एक बात और है कि इसमें निकले उपखनिज को व्यवसायिक उपयोग में नहीं लाया जा सकता। जिस राजस्व की भूमि पर ड्रेजिंग की जा रही है उसकी निकासी हो रही है। जिलाधिकारी महोदय की बैठक में सहमति बनी थी कि केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार परमिशन ली जाएगी।
चित्रा जोशी, खनन अधिकारी, चम्पावत
प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) हल्द्वानी कुंदन कुमार ने चम्पावत के जिलाधिकारी को 12 मार्च 2025 के लिखे अपने पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि केंद्रीय वन एवं जलवायु पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वन संरक्षण अधिनियम 1980 तथा यथा संशोधित अधिनियम, 2023 के अंतर्गत स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिनके अनुसार ऐसे किसी भी कार्य के लिए ‘भारत सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक है’ डीएफओ हल्द्वानी कुंदन कुमार ने अपने पत्र में लिखा है कि ‘वन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के अपरिहार्य आपदा- न्यूनीकरण से सम्बंधित प्रस्ताव को जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीटी एमए) की अनुशंसा प्राप्त होने के बाद सम्बंधित प्रभागीय वनाधिकारी द्वारा उक्त प्रस्ताव का परीक्षण किया जाएगा। परीक्षण एवं संस्तुति के पश्चात भारत सरकार की अनुमति आवश्यक है।’ प्रभागीय वनाधिकारी वन प्रभाग हल्द्वानी द्वारा जिलाधिकारी चम्पावत को यह भी अवगत कराया गया कि इसी प्रकार के एक प्रकरण में भारत सरकार द्वारा वर्ष 2024 में हिमाचल प्रदेश के जनपद कुल्लू में रायसन, जिया, छोज, नाला हेतु रिवर ड्रेजिंग के लिए वन भूमि के अस्थाई प्रयोग की अनुमति प्रदान की गई है। इसलिए भारत सरकार से स्वीकृति प्राप्त करने के लिए सम्बंधित कार्यदायी से कार्यदायी संस्था सिंचाई खंड लोहाघाट से प्रस्ताव तैयार करवा जिला आपदा प्रबंधक प्राधिकरण प्रबंधन की अनुशंसा के बाद भारत सरकार की स्वीकृति के लिए भेजने का कष्ट करें। 30 मार्च 2025 को कुंदन कुमार ने दोबारा जिलाधिकारी को इस विषय में पत्र लिखा और स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति जरूरी है। जिलाधिकारी चम्पावत हर कीमत पर खनन के इस खेल को शुरू करने के लिए आमादा थे इसलिए उन्होंने 9 मई 2025 को जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण चम्पावत की एक बैठक बुलाई। इस बैठक में जो निर्णय लिया गया उसमें डीएफओ कुंदन कुमार की आपत्ति को शब्दों में हेर-फेर के जरिए नजरअंदाज कर दिया गया। डीएफओ कुंदन कुमार ने जिलाधिकारी को स्पष्ट रूप से पत्र लिखकर कहा था कि केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक है लेकिन 9 मई 2025 को आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक पत्रावली (जिसकी प्रति ‘दि संडे पोस्ट’ के पास मौजूद है) की बिंदु संख्या 4 में शब्दों की हेर-फेर करते हुए लिखा गया है- ‘बैठक में प्रभागीय वन अधिकारी, हल्द्वानी वन विभाग द्वारा अवगत कराया गया है कि आरक्षित वन क्षेत्र अंतर्गत चिह्नित संवेदनशील क्षेत्रों में रिवर ड्रेसिंग, डायवर्जन चैनलाइजेशन एवं सुरक्षा कार्य करने सहित किसी भी प्रकार के अपरिहार्य आपदा से सम्बंधित प्रस्ताव जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अनुशंसा के उपरांत पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के संज्ञानात्मक प्रेषित किया जाना होगा।’
पूरे उत्तराखण्ड में रिजर्व फॉरेस्ट जहां-जहां हैं, उसके आस-पास जो नदियां हैं और वहां पर जो रिजर्व फॉरेस्ट और राजस्व विभाग की सीमा है, सरकार निजी पट्टे दे रही है। कोई व्यक्ति जिसकी जमीन बह गई है उसे चुगान के नाम पर परमिशन मिलती है लेकिन खनन से जुड़ी जो बड़ी पाटिज़्यां हैं वह उनसे उनका पट्टा लेकर करोड़ों का माल हजम कर रही हैं। पट्टा चुगान के नाम पर दिया है लेकिन काम मशीनों से हो रहा है जो काम दो महीने में होना है वह 10 दिन में पूरा हो जा रहा है। ये लोग रिजवज़् फॉरेस्ट की जमीन को खोद दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इससे कोई अनजान है, सरकार के लोग भी इसमें शामिल हैं। वन विभाग के अधिकारी भी इसमें शामिल है क्योंकि उन्हें अपनी कुर्सी बचानी है। हरिद्वार में कई स्थान ऐसे हैं जहां खनन पट्टों की आड़ में रिजर्व फॉरेस्ट को छीला जा रहा है और रिजर्व फॉरेस्ट के ट्रकों को निकालने के लिए रोड बना दी गई हैं जबकि रिजर्व फॉरेस्ट में तो रोड निकल नहीं सकती। आपदा के नाम पर पूरे प्रदेश में लूट मची हुई है। इन्हें नियमों के विरुद्ध काम करने में भी कोई हिचक नहीं है। रिजर्व फॉरेस्ट, इको सेंसिटिव जोन में भारत सरकार की परमिशन जरूरी है लेकिन इसमें इतनी औपचारिकता है। इतनी रिपोर्ट की जरूरत है कि ये इन्हें पूरा कर नहीं सकते इसलिए वह नियम विरुद्ध काम कर रहे। फिर वह काम वन विकास निगम करेगा लेकिन सरकार के लोग जो सरकार का प्रत्यक्ष रूप से सपोर्ट करते हैं उनकी दुकान चलना मुश्किल है यही वह लोग कर रहे हैं, जिसमें न निगम की जरूरत है, मजदूर की जरूरत है। अधिकारी इनसे यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि यहां पर मत खोदो क्योंकि वो खुद लाखों करोड़ों देकर इस कुर्सी में आए हैं। शारदा रेंज हाथी गलियारे का हिस्सा है तो नंधौर इको सेंसिटिव जोन में आता है। इनमें तो बिना केंद्र सरकार की परमिशन एनजीटी के निर्देशों के विरुद्ध काम कर ही नहीं सकते। किसी को न पर्यावरण के नियमों का पालन करने की चिंता है न पर्यावरण के हितों की।
दिनेश चंद्र पांडे, पयार्वरण विद, देहरादून
इस तरह से जिलाधिकारी चम्पावत ने डीएफओ हल्द्वानी द्वारा स्पष्ट रूप से पूर्व अनुमति लिए जाने की बात को शब्दों में हेर-फेर कर भारत सरकार के संज्ञार्थ सूचित करने की बात कह डाली। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रभागीय वनाधिकारी, वन प्रभाग हल्द्वानी द्वारा जिलाधिकारी चम्पावत को अवगत कराया गया था कि उत्तराखण्ड अधिप्राप्ति नियमावली-2 017 के नियम 41 में दिए प्रावधानों के अनुसार 10 लाख रुपए मूल्य से अधिक के कार्यों को किसी लोक निर्माण संगठन द्वारा ही कराए जाने का निर्देश है। क्योंकि ये सम्भावित आपदा को रोकने के लिए किए जाने वाले कार्य हैं इसलिए इनकी डीपीआर सक्षम तकनीकी विभाग द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन के उपरांत इनका क्रियान्वयन सक्षम नोडल अधिकारी की देखरेख में करवाया जाए। साथ ही डीएफओ कुंदन कुमार ने बहुत स्पष्ट शब्दों में जिलाधिकारी को भेजे अपने पत्र में लिखा कि आरक्षित वन क्षेत्र में कार्य हेतु वन संरक्षण अधिनियम 1980 और यथा संशोधित अधिनियम 2023 के अंतर्गत पर्यावरण, वन और जलवायु पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार के समेकित दिशा-निर्देशों का अनुपालन आवश्यक है। साथ ही ये जानकारी भी दी कि उच्च न्यायालय नैनीताल की जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या 47/2022 के सन्दर्भ में पारित आदेश के अनुसार चैनलाइजेशन/ डायवर्जन के कार्य से उत्पादित उपखनिज को वन क्षेत्रों की सीमा से बाहर अभिवहन नहीं किया जा सकता। इसलिए चैनलाइजेशन/डायवर्जन के कार्य से उत्पादित उपखनिज को सम्बंधित क्षेत्र के दोनों तरफ एकत्र किया जाना आवश्यक है।

इतना ही नहीं बल्कि डीएफओ कुंदन कुमार द्वारा किरोड़ा नाला डाउन साइड में चैनलाइजेशन का कार्य, किरोड़ा नाला वन डिपो के सामने चैनलाइजिंग का कार्य, किरोड़ा नाला थ्वाल खेड़ा में चैनलाइजेशन का कार्य, तहसील पूर्णागिरी टनकपुर में शारदा चुंगी के सामने शारदा नदी में चैनलाइजेशन और डायवर्जन का कार्य के संदर्भ में जिलाधिकारी चम्पावत को अपने पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि हल्द्वानी वन प्रभाग के अंतर्गत आने वाले उक्त कार्य नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य के ईको सेंसिटिव जोन में स्थित हैं और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण, प्रधान पीठ नई दिल्ली द्वारा ओएएनओ 429/2022 रिधिमा पाण्डे बनाम उत्तराखण्ड राज्य एवं अन्य में दिनांक-28 मार्च 2025 को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण क्या आदेश लागू होता है। गौरतलब है कि इस आदेश में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने राज्य सरकार विशेषकर जिलाधिकारी चम्पावत को कड़ी फटकार लगाते हुए चेतावनी तक दी है कि ‘ड्रजिंग और डी-सिल्टिंग की आड़ में खनन गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जा सकती है और विशेष रूप से आरक्षित वन क्षेत्र या ईएसजेड में पर्यावरण कानून का उल्लंघन करते हुए खनन गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जा सकती है और प्रतिवादी (जिला प्रशासन) को उपयुक्त निर्देशों और कानून के प्रावधानों का पालन करना होगा।’ इतना ही नहीं एनजीटी ने मात्र दो पूर्व दिए अपने इस निर्णय में यह भी कहा है कि ‘हम यह भी निर्देश देते हैं कि भविष्य में उत्तराखण्ड राज्य के मुख्य सचिव और खनन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव तथा पर्यावरण एवं वन विभाग यह सुनिश्चित करेंगे कि आरक्षित वन क्षेत्र या पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में पर्यावरण कानून का उल्लंघन करते हुए कोई भी खनन गतिविधि न की जाए और यदि ऐसा कोई उल्लंघन पाया जाता है तो उल्लंघनकर्ता के खिलाफ तत्काल दंडात्मक, निषेधात्मक उपचारात्मक और कठोर कार्रवाई की जाए।’
जो संरक्षित वन क्षेत्र, इको सेंसेटिव जोन और नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के अंतर्गत आते वहां अगर रिवर ड्रेजिंग का कार्य कराया जाता है तो उस कार्य के लिए भी, क्योंकि ये गैरवानिकी कार्य है, उसके लिए जो नियमावली है उसके तहत और केंद्र सरकार का जो सकुर्लर है उसके तहत यह कार्य करवाने से केंद्र सरकार की अनुमति जरूरी है क्योंकि जो वन संरक्षण अधिनियम है उसके तहत कोई भी गैरवानिकी गतिविधि बिना केंद्र सरकार के अनुमति के नहीं की जा सकती, चाहे वह रिवर ड्रेजिंग ही क्यों ना हो। सिर्फ आपदा प्रबंधन के तहत ऐसे कार्य जो आसन्न खतरे के वक्त जैसे बाढ़ आ सकती हो या आ चुकी हो उसे बिना परमिशन ड्रेजिंग कार्य किया जा सकता है। लोगों के जानमाल के खतरे को देखते हुए। लेकिन मानसून पूर्व तैयारी के कार्य क्योंकि वह गैरवानिकी गतिविधियां हैं समय से पूर्व करवा लेने चाहिए परमिशन लेकर। केंद्र सरकार से परमिशन अगर नहीं ली गई है तो वह सरकार के नियमों और वन संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अवैध है।
दुष्यंत मैनाली, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, नैनीताल
इतने पत्राचार और नियमानुसार केंद्र सरकार से अनुमति लेने की सलाह के बावजूद 9 मई 2025 को जिलाधिकारी चम्पावत की अध्यक्षता में हुई जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक में डीएफओ वन प्रभाग हल्द्वानी के बिंदुओं को नकार कर कार्य करवा लिए जाने के बाद (कायोज़्त्तर) स्वीकृति हेतु राज्य आपदा प्राधिकरण के माध्यम से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के संज्ञानार्थ भेजने का अनोखा निर्णय ले लिया गया। इस निर्णय ने अधिकारियों की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जो प्रक्रियागत पालन कार्य शुरू करने से पहले कर लिया जाना चाहिए था उस प्रक्रिया को काम पूर्ण हो जाने के बाद किए जाने से सरकार के दिशा-निर्देशों के मायने क्या रहे? सारे नियमों को धता बता, अपनी सीमाओं से बाहर जाकर आपदा प्रबंधन के नाम पर मनमानी अवैध खनन के वो चोर दरवाजे खोलती है जिससे आपदा प्रबंधन के नाम पर अवैध खनन को वैध ठहराया जा सके।
बहुत कुछ कह जाती है डीएम की खामोशी

जिलाधिकारी चम्पावत ने बार-बार संपर्क करने पर भी न तो बात करना उचित समझा और न ही हमारे प्रश्नों का उत्तर दिया। डीएम को हमारे द्वारा उनके व्हाट्सएप नम्बर पर निम्न प्रश्न पूछे गए थे :
क्या आप स्वीकार करते हैं कि शारदा नदी के जिस क्षेत्र में चैनलाइजेशन की अनुमति दी गई वह आरक्षित वन क्षेत्र और शिवालिक हाथी रिज़र्व का हिस्सा है? यदि हां, तो आपने बिना केंद्रीय स्वीकृति के कैसे कार्य प्रारम्भ कराया?
डीएफओ हल्द्वानी द्वारा बार-बार स्पष्ट करने के बावजूद आपने केंद्र सरकार की ‘पूर्व अनुमति’ की अनदेखी करते हुए कार्य को केवल ‘सूचना प्रेषण’ तक सीमित क्यों कर दिया?
क्या यह सच नहीं है कि आपकी अध्यक्षता में 9 मई 2025 को हुई जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक की कार्यवाही में डीएफओ की ‘पूर्व अनुमति आवश्यक’ टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के 28 मार्च 2025 के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘ड्रेजिंग और डी-सिल्टिंग की आड़ में खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती।’ फिर भी आपने किस अधिकार से इस आदेश की अवहेलना की?
क्या यह तथ्य नहीं है कि आपने 10 लाख रुपए से अधिक के कार्यों को लोक निर्माण संगठन के बजाय अन्य एजेंसियों से कराकर उत्तराखण्ड अधिप्राप्ति नियमावली 2017 के नियम 41 का उल्लंघन किया?
‘कार्य के बाद अनुमति’ (Post & facto approval) को आप किस शासनादेश या केंद्रीय अधिनियम के अंतर्गत वैध ठहराते हैं?
क्या यह सच नहीं कि आपके द्वारा जिन स्थलों पर कार्य कराया गया, वे नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य के इको-सेंसिटिव जोन में आते हैं और इसके लिए अलग से एनवायरमेंट क्लीयरेंस जरूरी है?
क्या यह कार्य किसी प्रभावशाली खनन माफिया के दबाव में किया गया? यदि नहीं, तो बार-बार दी गई वन विभाग की आपत्तियों की अवहेलना का क्या कारण रहा?

