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इको फ्रेंडली प्लांट ने जगाई उम्मीदें

पर्वतीय क्षेत्र में युवा रोजगार सृजन के जो नए प्रयोग कर रहे हैं उससे रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदें बढ़ी हैं। हिमांशु पंत अपने गांव में पचास लाख की लागत से इको फ्रैंडली प्लांट लगाकर आठ युवाओं को रोजगार दे चुके हैं। उनका लक्ष्य युवाओं को निरंतर रोजगार से जोड़ने का है

विगत दो-तीन बरसों से सूबे के युवाओं की अपने गांव और पहाड़ों के प्रति सोच बदली है। युवाओं ने पहाड़ में रोजगार सृजन की उम्मीदों को जगाया है। वे शहरों में पढ़-लिखकर रोजगार के लिए गांवों का रुख कर रहे हैं। ऐसे ही युवा हिमांशु पंत भी हैं। जिन्होंने रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाये हैं।

कुमाऊं मंडल के सीमांत जनपद पिथौरागढ के बेरीनाग तहसील के बजेत (कालाशिला) गांव के 33 वर्षीय हिमांशु पंत आज सूबे के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। एकाउंटेसी में उच्च डिग्री और बीएड की शिक्षा प्राप्त हिमांशु बचपन से ही कुछ अलग करना चाहते थे। अपनी माटी और पहाड़ से अगाध प्रेम उन्हें हमेशा अपने गांव के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता। पढ़ाई करने के बाद हिमांशु ने रोजगार के लिए लंबा संघर्ष किया। शहरों की खाक छानी। आखिरकार हिमांशु के मन में विचार आया कि दूसरों के यहां नौकरी करने से अच्छा क्यों न अपना काम किया जाए। एक दोस्त ने इको फ्रैंडली बैग तैयार करने के प्लांट का प्रोजेक्ट दिखाया तो हिमांशु को ये बेहद पंसद आया। उन्होंने इस पर काम करने का मन बना लिया और अपने गांव में इंको फ्रैंडली बैग तैयार करने का प्लांट लगाया।

हिमांशु ने अपने प्लांट को ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग नाम दिया। प्लांट में डी-कट, यू-कट बैग के साथ शॉपिंग में प्रयोग होने वाले लूप (फीते) वाले बैग भी तैयार होते हैं। ये बैग पूरी तरह से पॉलीथीन फ्री हैं। जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता है। पांच माह पहले महज दस दुकानों से शुरू हुआ ग्रीन हिमालय इको फ्रैंडली बैग आज बाजार में धूम मचा रहा है जिस कारण शहरों से मांग बढ़ी है। बकौल हिमांशु शुरू-शुरू में केवल बेरीनाग बाजार से ही मांग आती थी। लेकिन अब पिथौरागढ़, बागेश्वर, गरुड़, अल्मोड़ा, चंपावत के साथ साथ हल्द्वानी, उधमसिंहनगर से भी बैग की भारी डिमांड आ रही है। लोग हिमांशु के ग्रीन हिमालय इको फ्रैंडली बैग के मुरीद बन गये हैं।

हिमांशु के ग्रीन हिमालय इको फ्रैंंडली बैग प्लांट लगने के महज पांच महीने में ही आसपास के गांवों के आठ युवाओं को रोजगार मिल रहा है, जबकि अगले छह माह में वह 25 से 30 युवाओं को इससे रोजगार मिलने की उम्मीद है। प्लांट में काम करने वाले युवाओं को छह हजार से 16 हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। ऑपरेटर को छोड़ शेष आठ युवक स्थानीय हैं। कम वेतन वाले युवाओं से पार्ट टाइम काम भी किया जाता है, जिससे उन्हें अच्छा खासा मुनाफा भी होता है।

सीमांत के अपने गांव में हिमांशु की ये पहल लोगों को भा रही है। लोग अब वापस अपने गांवों में आने का मन बना रहे हैं। रोजी-रोटी के खातिर शहर पलायन कर गए युवा वापस अपनी माटी लौटना चाहते हैं। परिणामस्वरूप रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीद भी जगी है। हिमांशु बताते हैं प्लांट लगाने से पहले मन में सवाल था कि काम चलेगा कि नहीं। पिता और छोटे भाइयों ने प्रोत्साहित किया। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत आवेदन करने पर 25 लाख का लोन स्वीकृत हो गया। करीब इतनी ही राशि पिता नारायण पंत के (अस्पताल से सुपरवाइजर पद से) रिटायर्ड होने पर मिली दोनों रकम को मिलाकर जनवरी में प्लांट व प्रिंटिंग मशीन लगा ली।

हिमांशु पंत ने बताया कि बहुत जल्दी वे अपने गांव में खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगायेंगे ताकि गांव में रोजगार सृजन बढ़े। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में राहें खुलें और पहाड़ी उत्पादों को बाजार मिले। रिवर्स माइग्रेशन पर हुई लंबी गुफ्तगु में वे कहते हैं कि हमें पहाड़ां और रोजगार को लेकर अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। पहाड़ां में रहकर बहुत कुछ किया जा सकता है। खासतौर पर रोजगार सृजन को लेकर। आवश्यकता है खुद पर भरोसा करने की। अभी तो एक छोटा प्रयास किया है। मंजिल बहुत दूर है। मैं चाहता हूं कि पहाड़ के गांवों में पसरा सन्नाटा टूट जाय और गांव में रोजगार मिले।

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