प्रदेश के कृषि और उद्यान मंत्री गणेश जोशी दिल्ली विधानसभा चुनाव में बतौर भाजपा के स्टार प्रचारक गए थे। वहां उन्होंने मतदाताओं के सामने दावा किया था कि दिल्ली में भ्रष्टाचार करने वाले और भ्रष्टाचार की सरकार को जनता उखाड़ कर फेंक देगी। सोशल मीडिया में मंत्री गणेश जोशी के इस चुनावी दावे को लेकर जमकर मजाक बना, उनको ट्रोल किया गया। इसका एक बड़ा कारण यह है कि उत्तराखण्ड में विगत दो वर्ष से भ्रष्टाचार को लेकर जिस तरह के बड़े खुलासे हो रहे हैं उनमें सबसे ज्यादा मामले स्वयं गणेश जोशी के कृषि और उद्यान विभाग के ही सामने आए हैं। यह मामले इतने गम्भीर हैं कि हाईकोर्ट को सीबीआई जांच के आदेश तक जारी करने पड़े। जिसमें एक दर्जन से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ-साथ नर्सरी संचालकों के खिलाफ सीबीआई द्वारा मुकदमा तक दर्ज किया जा चुका है। यह पूरा मामला उद्यान मंत्री गणेश जोशी की हैसियत को भी सामने लाने वाला एक बड़ा उदाहरण है। मंत्री के कई आदेशों को विभागीय अधिकारी शुरू से ही महत्वहीन समझते रहे हैं। विगत दो वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जिसमें मंत्री गणेश जोशी के आदेशों को न सिर्फ ताक पर रखा गया, यहां तक कि विभागीय जांच को भी दबा दिया गया
उत्तराखण्ड में इन दिनों ‘ट्रिपल इंजन’ की सरकार है। यह सरकार भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने का दावा कर रही है। जमीनी हकीकत लेकिन कुछ और ही नजर आती है। सरकार में शामिल कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप हैं। भ्रष्ट विरोधी विशेष न्यायालय मंत्री के खिलाफ मुकदमा शुरू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति का इंतजार कर रही है। यह सहमति लेकिन ‘ट्रिपल इंजन’ के लिए मुद्दा बनता दिखती नहीं। मंत्री जोशी के अधीन उद्यान एवं कृषि मंत्रालय में तमाम आरोपों के बावजूद भ्रष्टाचार का ‘खेला’ खुलकर परवान चढ़ रहा है। विभागीय अधिकारियों की निरंकुशता का आलम यह कि जिस नर्सरी संचालक के खिलाफ सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया था उसी नर्सरी को फिर से उद्यान विभाग द्वारा शीतकालीन फलों के पौधों को किसानों को बांटने का ठेका तक दे दिया। मामला खुलने के बाद अब अपनी खाल बचाने के लिए ठेका निरस्त करके अपने दामन को पाक-साफ करने की कवायद उद्यान विभाग कर रहा है। आरोप लग रहा है कि टेंडर निरस्त करने का काम केवल कागजों में ही किया गया है जबकि किसानों को लाखों रुपए के शीतकालीन पौधों की आपूर्ति करवाई जा चुकी है। स्पष्ट है कि उक्त नर्सरी को विभाग द्वारा फिर से लाखों का भुगतान किए जाने की पटकथा लिखी जाने लगी है।
यह पूरा मामला उद्यान मंत्री गणेश जोशी की हैसियत को भी सामने लाने वाला एक बड़ा उदाहरण है। मंत्री के कई आदेशों को विभागीय अधिकारी शुरू से ही महत्वहीन समझते रहे हैं। विगत दो वर्षों में ऐसे कई मामले समाने आ चुके हैं जिसमें मंत्री गणेश जोशी के आदेशों को न सिर्फ ताक पर रखा गया, विभागीय जांच के आदेशों को भी दबा दिया गया। पिछले माह रुद्रप्रयाग जिले में कागजी नींबू पौधों की आपूर्ति में किए गए घोटाले के सामने आने के बाद मंत्री के आदेशों का पालन करने में अधिकारियों को दो माह लग गए लेकिन घोटाले में शामिल नर्सरी को फिर से फलों की पौध की आपूर्ति का टेंडर तुरंत जारी कर दिया गया। जबकि मंत्री के आदेश उक्त नर्सरी को काली सूची में डाले जाने थे।
उद्यान विभाग को अब भ्रष्टाचार का समुद्र माना जाने लगा है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से चली आ रही लूट-खसोट पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी अनवरत चलती रही जिसमें कई बार करोड़ों के घपले सामने आते रहे लेकिन कभी कोई कार्यवाही नहीं की गई। वर्ष 2023 में उद्यान विभाग में हुए करोड़ों के घोटाले पर पहली बार हाईकोर्ट नैनीताल द्वारा रोक लगाने का प्रयास किया गया और इस बड़े घोटाले की जांच के लिए सीबीआई को मामला सौंपा गया। सीबीआई द्वारा उद्यान घोटाले में पूर्व निदेशक हरमिंदर सिंह बबेजा सहित पंद्रह नामजद अधिकारियों और नर्सरियों से जुड़े लोगों के खिलाफ तीन मुकदमें दर्ज कर पूर्व निदेशक और सम्बंधित 25 लोगों से पूछताछ की है। जांच में पाया गया है कि प्रदेश के नर्सरी एक्ट को ताक पर रखकर नर्सरी के लाइसेंस जारी किए गए हैं, साथ ही बाहरी राज्यों से ज्यादा रेट पर फलदार पोैधों को खरीदा गया है जिसमें करोड़ों की सब्सिडी भी दी गई है।
सीबीआई की इसी जांच के दायरे में देहरादून जिले की यूके हाईटेक नर्सरी के संचालक अनिल रावत पुत्र करम सिंह रावत तथा संचालक यूके हाईटेक नर्सरी ग्राम बानपुर तहसील त्यूणी जिला देहरादून भी आई जिसके खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी, 409, 420, 467, 468 व 471 तथा भ्रष्टाचार निरोधक कानून संशोधित 2018 के अनुसार मुकदमा दर्ज किया गया। तत्कालीन उद्यान निदेशक हरमिंदर बबेजा के साथ-साथ तत्कालीन जिला उद्यान अधिकारी मीनाक्षी जोशी व अज्ञात विभागीय कर्मचारी तथा प्राइवेट व्यक्तियों पर भी मुकदमा दर्ज किया गया था। मुख्य आरोपियों में अनिल रावत, संचालन यूके हाईटेक नर्सरी का नाम भी मुकदमे में दर्ज किया गया था। इससे साफ हो जाता है कि सीबीआई द्वारा इस बड़े घोटाले के प्रमुख आरोपियों में अनिल रावत और उसकी यूके हाईटेक नर्सरी थी।
इन सबके बावजूद उद्यान विभाग के उच्चाधिकारियों के लिए यूके हाईटेक नर्सरी सबसे पंसदीदा नर्सरी तो बनी हुई है, साथ ही इस नर्सरी को भरपूर संरक्षण और फायदा पहुंचाने के लिए ठेके देने का काम किया जा रहा है। सीबीआई द्वारा दर्ज मुकदमें में आरोपी नर्सरी को वर्ष 2024-25 के लिए करोड़ो ंके शीतकालीन फलों के पौधों की आपूर्ति का ठेका उद्यान निदेशक और मिशन निदेशक द्वारा दिए जाने से साफ हो गया है कि राज्य के उद्यान विभाग को सीबीआई जैसी संस्था का भी कोई खौफ नहीं रह गया है।
यूके हाईटेक नर्सरी के फर्जीवाड़े पर सीबीआई जांच में यह भी सामने आ चुका है कि संचालक अनिल रावत का नर्सरी टेªनिंग का प्रमाण पत्र भी फर्जी है लेकिन इसी फर्जी प्रमाण पत्र द्वारा उसकी नर्सरी को करोड़ों के ठेके दिए जाता रहा है। जबकि उसको तत्काल प्रभाव से फलों पौधों की आपूर्ति करने वाली नर्सरियों के पैनल से बाहर होना चाहिए था लेकिन इसके बाद भी यूके हाईटेक नर्सरी को अखरोट, खुबानी, पुलम और कीवी जैसे फलों की पौध की आपूर्ति का भी ठेका दिया जाता रहा है। जबकि उद्यान विभाग में पंजीकरण सिर्फ सेब के पोैधों की आपूर्ति के लिए किया गया था।
वर्ष 2024 में यूके हाईटेक नर्सरी को उद्यान निदेशक दिप्ती सिंह और मिशन बागवानी निदेशक महेंद्र पाल द्वारा वर्ष 2025 के लिए शीतकालीन फलों की पोैधों की आपूर्ति के लिए करीब 1 करोड़ 35 लाख केपौधों की आपूर्ति का ठेका दे दिया गया। इसमें कीवी की ग्राफ्टिंग तकनीकी के ऐलिसन, हैवार्ड, तोमरी प्रजाति तथा सेब की रेड चीफ, स्पर ग्राफ्टिंग प्रजाति के करीब 94 लाख की कीमत के फलों की पौधों की आपूर्ति का आवंटन सिर्फ देहरादून जिले में ही कर दिया। साथ ही मिशन बागवानी के तहत प्रदेश के सभी जिलों के लिए ग्राफ्टेड कीवी के फलों के 15 हजार पौधों की आपूर्ति के लिए टेंडर जारी कर दिया गया जिसकी कुल लागत 41 लाख के करीब मानी जा रही है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि यूके हाईटेक नर्सरी को सिर्फ सेब के पौधों की ही आपूर्ति के लिए पंजीकृत किया गया है।
सीबीआई द्वारा जांच में आरोपी नर्सरी को लाखों का ठेका दिए जाने के बाद हंगामा मच गया। सरकार के साथ-साथ विभागीय मंत्री की भी खूब फजीहत होने लगी। बताया जाता है कि विभागीय अधिकारियों के ये पूरे प्रकरण मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के संज्ञान में जब आया तो उन्होंने इस पर फटकार भी लगाई और तुंरत कार्यवाही करने के मौखिक आदेश दिए। इसके बाद ही उद्यान विभाग के मिशन बागवानी निदेशक महेंद्र पाल द्वारा यूके हाईटेक नर्सरी को पौधों की आपूर्ति का ठेका रद्द करने पर मजबूर होना पड़ा। महेंद्र पाल ही वह अधिकारी हैं जो सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई जांच रूकवाने के लिए विभाग द्वारा याचिका लेकर गए थे।
हालांकि अब यूके हाईटेक नर्सरी को शीतकालीन फलों के पौधों की आपूर्ति का ठेका रद्द कर दिया गया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आवंटन रद्द होने से पूर्व लाखों के पौधे किसानों को दिए जा चुके हैं उसका अब क्या होगा? क्योंकि नियमानुसार यूके हाईटेक ने तो विभागीय टेंडर के आधार पर किसानों को फलों के पौधों की आपूर्ति कर दी है जिसका भुगतान विभाग द्वारा किया जाना तय है। साथ ही यह भी सवाल खड़ा है कि जिस तरह से रूद्रप्रयाग जिले में कागजी नींबू की पौध की जगह जंगली जम्भीरी नींबू के पौधों को आवंटित किया गया था कहीं उसी तरह से यूके हाईटेक नर्सरी द्वारा किसानों को कीवी और सेब के फलों के पौधों की भी स्थिति नहीं होगी और इसकी जवाबदेही किसके सिर होगी?
बात अपनी-अपनी
यह मामला कोर्ट में चल रहा है इसलिए इस पर कुछ नहीं कहूंगा। यूके हाईटेक नर्सरी का शीतकालीन फलों की आपूर्ति का टेंडर रद्द कर दिया गया है और अब यह नर्सरी पैनल से भी हटा दी गई है। अगर पौधे किसानों को दिए गए हैं तो उनका भुगतान भी नहीं किया जाएगा।
महेंद्र पाल सिंह, निदेशक, मिशन बागवानी, उत्तराखण्ड
उद्यान विभाग की निदेशक दिप्ती सिंह और मिशन निदेशक महेंद्र पाल के साथ-साथ उद्यान मंत्री गणेश जोशी भी फर्जी और घोटालेबाज नर्सरियों के हितों में काम कर रहे हैं। सीबीआई जांच में यह भी निकल कर सामने आ चुका है कि यूके हाईटेक नर्सरी के स्वामी अनिल रावत का नर्सरी प्रमाण पत्र ही फर्जी है तो फिर क्यों नहीं इस नर्सरी को पैनल से बाहर किया गया। यही नहीं अनिल रावत पर मुकदमा होने के खिलाफ हाईकोर्ट भी गया जहां हाईकोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी कि सीबीआई जांच चल रही है। ऐसे घोटालेबाज नर्सरी के स्वामी अनिल रावत पर जब हाईकोर्ट कोई राहत नहीं दे रहा है तो फिर क्यों बागवानी निदेशक महेंद्र पाल और उद्यान निदेशक दीप्ति सिंह मेहरबान बनी हुई हैं। यूके हाईटेक नर्सरी का लाइसेंस तत्काल रद्द करने की बजाय उसको ही शीतकालीन फलों के पौधों की आपूर्ति का ठेका दे दिया। इस मामले में साफ तौर पर उद्यान मंत्री गणेश जोशी की मौन सहमति नजर आ रही है। पहले भी रुद्रप्रयाग जिले में कागजी नींबू के पौधों में घोटाला हो चुका है फिर भी उसी संजीवनी नर्सरी को ही फलों का ठेका दे दिया। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर उद्यान मंत्री कार्यवाही करने की हिम्मत तक नहीं दिखा पा रहे हैं। मंत्री जी का अपने विभाग और अधिकारियों पर कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया है।
दीपक करगेती, सचिव पर्वतीय कृषक, कृषि, बागवानी और उद्यमी संगठन, उत्तराखण्ड
यूके हाईटेक नर्सरी का मामला केवल एक व्यक्ति महेंद्र पाल का किया हुआ नहीं है। मैं उनको पिछले बीस वर्षों से जानता हूं उनके अकेले के बस का नहीं है कि वे ऐसी नर्सरी को फिर से काम दे दे जो सीबीआई जांच में आरोपी है। इस मामले में विभाग के अलावा बड़े स्तर के लोग भी शामिल हैं।
कुंदन सिंह पंवार, प्रगतिशील किसान, रवांई घाटी
उद्यान विभाग के घपलों और रोज नए कारनामों से किसानों का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। शीतकालीन फलों के पौधे जब लगाए जाने थे तब तो उद्यान विभाग टेंडर खोल रहा था। अब फलों के लगाने का समय खत्म हो गया है, साथ ही इस वर्ष बारिश भी कम हुई और ठंड भी कम रही तो इस साल शायद ही फलों के पौधे लगाए जा सकेंगे। इससे एक साल किसानों का बर्बाद हो गया है। पूरे विभाग में निकम्मे लोग भरे हुए हैं।
प्रवीण कुमार, किसान, मुक्तेश्वर

