मनुष्य निर्मित भगवान कल्पना है- यह विचार मेरे मन-मस्तिष्क में हमेशा से ही हलचल मचाता रहा है। लेकिन इसके बावजूद, मैं किसी अलौकिक ऊर्जा द्वारा इस संसार को संचालित किए जाने की धारणा में विश्वास रखता आया हूं। मेरा बचपन एक ऐसे वातावरण में बीता जहां वामपंथी विचारधारा का प्रभाव अधिक था। रूसी साहित्य और रूस की क्रांति ने मेरी चेतना को गहराई से प्रभावित किया। शायद इसीलिए मंदिरों और मस्जिदों में चैतरफा वीआईपी संस्कृति से मुझे हमेशा घुटन महसूस होती रही और मैं मनुष्य निर्मित ईश्वर से दूर होता चला गया। लेकिन यह भी सत्य है कि जब भी संकट की घड़ी आई, मैंने उसी ईश्वर का सहारा लिया। मेरा मानना है कि धर्म डर का व्यापार है और उसके इस जटिल जाल में मैं भी कभी-कभी फंसता रहा हूं। फिर भी, वह ऊर्जा जिसने मुझे समय-समय पर कठिन परिस्थितियों से उबारा है, वह किसी न किसी रूप में मेरा मार्गदर्शन करती रही है।
‘उत्तराखण्ड एक आध्यात्मिक खोज’ पर लिखे जा रहे नियमित स्तम्भ की जिम्मेदारी एक बार फिर मेरे कंधों पर आ पड़ी है। यह लेखन केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह मेरे भीतर चल रहे द्वंद्व और अनुभूतियों का भी हिस्सा है। इसी सिलसिले में, मैं अपने एक व्यक्तिगत अनुभव को साझा करना चाहता हूं, जो अल्मोड़ा स्थित काली मंदिर से जुड़ा हुआ है।
स्वामी साधना नंद जी और काली पीठ
अल्मोड़ा स्थित यह मंदिर मां काली की शक्तिपीठ है। इसकी स्थापना लगभग 60-70 वर्ष पूर्व स्वामी साधनानंद जी द्वारा की गई। ऐसा कहा जाता है कि स्वामी जी हिमाचल प्रदेश के रहने वाले हैं और उन्होंने लम्बे समय तक हिमालय में तपस्या की। कहा जाता है कि तपस्या के दौरान उन्हें कुछ अलौकिक शक्तियां प्राप्त हुईं जिनका अनुभव उनके कई अनुयायियों ने किया है। स्वामी जी से मेरा परिचय मेरे अभिन्न मित्र प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने कराया था। वैज्ञानिक दृष्टि और सोच रखने वाले प्रोफेसर दुर्गेश पंत वर्तमान में उत्तराखण्ड स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी के महानिदेशक हैं।
स्वामी साधनानंद जी अत्यंत सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं। 70 के दशक में वे अल्मोड़ा आए और यहां गोलना-कड़लिया मार्ग, जिसे विश्वनाथ मार्ग भी कहा जाता है, में श्मशान के निकट अपनी धूनी रमा ली। वर्तमान में वे यहां ‘होली चाइल्ड पब्लिक स्कूल’ नाम से एक विद्यालय भी संचालित कर रहे हैं। वे काली मां के अनन्य भक्त हैं। उनके शिष्य भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक फैले हुए हैं। इनमें कई प्रतिष्ठित डॉक्टर भी शामिल हैं जो यह मानते हैं कि स्वामी जी के पास असाध्य रोगों को ठीक करने की अलौकिक क्षमता है।
मैंने स्वयं स्वामी साधना नंद जी को बहुत उदारमना और किसी भी प्रकार की धार्मिक संकीर्णता से ऊपर पाया है। उनके आश्रम में स्थित शिवलिंग का भी एक रोचक इतिहास है। बताया जाता है कि यह शिवलिंग किसी न्यायिक विवाद में फंस गया था और अंततः न्यायालय के आदेश पर इसे स्वामी जी के आश्रम में स्थापित किया गया।
मेरा अनुभव
अल्मोड़ा स्थित कालीपीठ
मेरा जीवन बेहद उथल-पुथल भरा रहा है, विशेषकर 2016 के बाद से मैं निरंतर नाना प्रकार के षड्यंत्रों का शिकार होता आ रहा हूं। संभवतः ऐसी ही किसी संकट की घड़ी में मैं स्वामी जी से मिलने गया था। मैंने उनसे अपनी समस्याओं के बारे में बताया तो उन्होंने मुझे काली मां के समक्ष ध्यान लगाने और अपनी बात रखने की सलाह दी। उस समय सरकार द्वारा मुझे वाई-प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई थी। मेरे साथ कई पुलिसकर्मी तैनात थे। मैं स्वामी जी की सलाह पर बहुत बेमन से काली मां के समक्ष बैठा और ध्यान लगाने का प्रयास किया। शायद मेरा ध्यान सच में लग गया था क्योंकि कुछ ही देर बाद मैंने अचानक तेज बादलों की गरज सुनी। मेरी तंद्रा टूटी और मैंने सुना कि स्वामी साधनानंद जी अपने एक शिष्य से धीमे स्वर में कह रहे थे – ‘अपूर्व की बात मां तक पहुंच गई है।’
मैं चकित था। जब मैं मंदिर के प्रांगण से बाहर आया तो मैंने देखा कि मेरे सभी सुरक्षाकर्मी अपनी गाड़ियों से बाहर निकलकर मंदिर के एक कोने में खड़े थे। जब मैंने कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि अचानक ही मंदिर के ऊपर घने बादल उमड़ आए और बिजली कड़की। यह सब देखकर वे घबरा गए थे, क्योंकि यह सब सिर्फ मंदिर के ऊपर ही हुआ और बिजली चमकने के बाद बादल अचानक गायब भी हो गए।
मैंने इस घटना के बारे में स्वामी जी से पूछा, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘तू अविश्वासी है, फिर भी मां ने तेरी बात सुन ली। तेरे कष्ट का निवारण होगा।’
उनकी बात और पुलिसकर्मियों के अनुभव ने मुझे स्तब्ध कर दिया। मुझे लगा कि शायद मुझे कुछ भेंट में काली मां को अर्पित करना चाहिए। मैंने वहीं संकल्प लिया कि मैं सिगरेट छोड़ दूंगा। मैं लम्बे समय तक सिगरेट से दूर रहा, लगभग एक वर्ष तक, लेकिन जैसा कि कहा जाता है ‘कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती’, एक दिन मैंने खुद को यह सोचकर माफ कर दिया कि मां अपने बच्चों के वचन भंग से कुपित थोड़ी हो सकती है। वह तो मां है, अपने बच्चों की गलती को माफ करने वाली प्यारी मां। खुद को यह दिलासा दे मैंने दोबारा धूम्रपान शुरू कर दिया।
एक और चमत्कारी घटना
मैं एक और अनुभव साझा करना चाहता हूं, जो मेरे परिवार से जुड़ा है। मेरे छोटे भतीजे के पैरों में एक अज्ञात समस्या हो गई थी। डाॅक्टर इलाज नहीं कर पा रहे थे। मेरा भाई और मेरी मां उसे लेकर हर बड़े डाॅक्टर और मंदिर के दरवाजे पर गए, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला। आखिरकार वे स्वामी साधनानंद जी के आश्रम में पहुंचे। स्वामी जी ने विशेष पूजा की और मेरी मां और भाई से कहा ‘चिंता मत करो, यह बालक पूरी तरह ठीक हो जाएगा।’ और सचमुच, कुछ ही समय में भतीजा पूरी तरह ठीक हो गया।
अब यह संयोग था या किसी दिव्य शक्ति का आशीर्वाद, यह मैं तय नहीं कर सकता। लेकिन यह अनुभव मेरी आस्था और तर्क के बीच के द्वंद्व को और गहरा कर गया।
कुछ समय पूर्व मैंने “Many Lives, Many Masters” नामक पुस्तक पढ़ी। इस पुस्तक को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनोचिकित्सक डाॅ. ब्रायन एल. वीस (Dr. Brian L. Weiss) ने लिखा है। यह पुस्तक पुनर्जन्म, पूर्व जन्मों की यादें और आध्यात्मिक उपचार पर आधारित है। डाॅ. वीस एक प्रतिष्ठित अमेरिकी मनोचिकित्सक हैं। उन्होंने इस पुस्तक में अपने एक मरीज के साथ हुए असाधारण अनुभव को साझा किया है। कैथरीन एक युवा महिला थी, जिसे गहरी चिंता (anxiety), अवसाद (depression) और फोबिया (phobias) जैसी समस्याएं थीं। वर्षों के पारंपरिक चिकित्सा उपचार के बावजूद, उसकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा था। आखिरकार, डाॅ. वीस ने उसे हिप्नोथेरेपी (Hypnotherapy) के माध्यम से उसके अवचेतन मन में जाने का सुझाव दिया। उन्हें उम्मीद थी कि शायद उसके बचपन की कोई छिपी हुई याद उसकी समस्याओं का कारण हो सकती है। लेकिन जब कैथरीन गहरी सम्मोहन अवस्था (hypnotic state) में गई, तो उसने अपने इस जन्म से पहले के कई जन्मों की घटनाएं बतानी शुरू कर दीं। कैथरीन ने बताया कि उसने कई अलग-अलग जन्मों में अलग-अलग रूपों में जीवन जिया है। इन जन्मों के दौरान, वह विभिन्न देशों और संस्कृतियों में रही थी और हर जन्म में उसने अलग-अलग संघर्षों और अनुभवों का सामना किया था। उसने खुद को एक प्राचीन मिस्र की महिला के रूप में देखा, जहां उसकी मृत्यु एक दुर्घटना में हो गई थी। एक अन्य जीवन में, वह एक स्पेनिश सैनिक थी, जिसे युद्ध के दौरान मार दिया गया था। एक बार वह एक भारतीय किसान थी, जो गरीबी में मरी थी। इन यादों ने उसकी वर्तमान जिंदगी के डर और फोबिया से गहरा संबंध दिखाया। उदाहरण के लिए, जब उसने देखा कि एक जन्म में वह पानी में डूबकर मरी थी, तो यह स्पष्ट हुआ कि वर्तमान जन्म में उसे पानी से डर क्यों लगता था।
कैथरीन की सम्मोहन अवस्था के दौरान, कुछ अदृश्य आत्माएं या उच्च चेतनाएं सामने आईं, जिन्हें उसने ‘मास्टर्स’ (Masters) कहा। ये मास्टर्स आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे, जो डाॅ. वीस को पुनर्जन्म, आत्मा के विकास और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में रहस्यमयी संदेश देते थे।
एक वैज्ञानिक होने के नाते, शुरुआत में डॉ. वीस को इन चीजों पर विश्वास करना मुश्किल था। लेकिन कैथरीन द्वारा दी गई कुछ जानकारियां इतनी सटीक थीं कि उन्होंने संदेह करने की बजाय शोध करने का निर्णय लिया। कैथरीन ने सम्मोहन के दौरान डॉ. वीस के उनके मृत बेटे के बारे में जानकारी दी जिसकी बाबत डाॅ. वीस ने कभी किसी को नहीं बताया था। उसने बच्चे का नाम भी सही बताया, जिसे सुनकर डाॅ. वीस हैरान रह गए। यह अनुभव उनके लिए एक आध्यात्मिक जागृति की तरह था। उन्होंने समझा कि पुनर्जन्म और आत्मा की यात्रा केवल कल्पना नहीं, बल्कि एक गहरी सच्चाई हो सकती है।
यह पुस्तक सिर्फ पुनर्जन्म की अवधारणा को प्रस्तुत नहीं करती, बल्कि यह मनुष्य के अस्तित्व, कर्म और आध्यात्मिक विकास की भी व्याख्या करती है। यदि विज्ञान ‘Assume’ (मान लेना) की अवधारणा पर आधारित है, तो क्या यह सम्भव नहीं कि आत्मा, पुनर्जन्म और अलौकिक ऊर्जाएं भी वास्तविक हो सकती हैं? विज्ञान कई रहस्यों को अभी तक हल नहीं कर पाया है। विज्ञान उन चीजों को अंधविश्वास करार देता है, जिन्हें वह समझ नहीं पाया है या जिनके मूल तक नहीं पहुंच पाया है। लेकिन क्या यह सत्य है कि जो चीजें अभी विज्ञान की पकड़ में नहीं आईं, वे असत्य हैं? मेरा अनुभव और मेरी समझ कहती है कि- ‘मनुष्य जिन रहस्यों को समझ चुका है, वह विज्ञान है – बाकी सब भगवान है।’
विज्ञान की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह अध्यात्म और अलौकिक ऊर्जा को खारिज कर देता है। विज्ञान अपने सिद्धांतों में उदार दृष्टिकोण नहीं रखता। यदि ईश्वर की अवधारणा काल्पनिक है, तो विज्ञान की बुनियाद भी ‘Assume’ (मान लिया) शब्द पर टिकी है। यदि Assume शब्द को हटा दिया जाए तो विज्ञान की थ्योरी आगे बढ़ ही नहीं सकती। अभी भी सैकड़ों ऐसे रहस्य हैं, जिन्हें विज्ञान सुलझा नहीं पाया है। यह मान लेना कि जो समझ नहीं आता, वह अस्तित्व में नहीं है- विज्ञान की सबसे बड़ी विफलता है।
विज्ञान की प्रगति ‘Assume’ (मान लेना) अवधारणा पर आधारित है। किसी भी वैज्ञानिक सिद्धांत या प्रयोग की शुरुआत एक परिकल्पना (hypothesis) से होती है, जो एक ‘मान्यता’ या ‘अनुमान’ है। इस परिकल्पना के आधार पर प्रयोग और अवलोकन किए जाते हैं, जिनसे सिद्धांतों की पुष्टि या खंडन होता है। इस प्रकार, ‘Assume’ शब्द विज्ञान की नींव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कई रहस्य ऐसे हैं जिन्हें विज्ञान अभी तक पूरी तरह समझ नहीं पाया है, उनमें से एक है ‘आत्मा’ का अस्तित्व। इस विषय पर कुछ वैज्ञानिकों ने प्रयोग किए हैं, लेकिन निष्कर्ष अभी भी अनिश्चित हैं। 1907 में, डॉ. डंकन मैक्डूगल ने यह परिकल्पना की कि आत्मा का भौतिक वजन होता है। उन्होंने मरणासन्न रोगियों के वजन में मृत्यु के समय अचानक कमी दर्ज की, जिसे उन्होंने आत्मा के वजन के रूप में व्याख्यायित किया। यह कमी लगभग 21 ग्राम थी, जिससे यह धारणा बनी कि आत्मा का वजन 21 ग्राम होता है। हालांकि इस प्रयोग की वैज्ञानिक समुदाय में व्यापक आलोचना हुई और इसे निर्णायक प्रमाण नहीं माना गया। कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने भी आत्मा के अस्तित्व की जांच के लिए प्रयोग किए हैं। विल्सा क्लाउड चैम्बर का उपयोग करके वैज्ञानिकों ने मरणोपरांत जीवित प्राणियों की आकृतियों को देखने का प्रयास किया। इन प्रयोगों में पाया गया कि मृत्यु के बाद भी एक सूक्ष्म आकृति दिखाई देती है, जो धीरे-धीरे लुप्त हो जाती है। यह निष्कर्ष आत्मा के अस्तित्व की ओर संकेत करता है, लेकिन इसे निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। विज्ञान और अध्यात्म के बीच का सम्बंध जटिल और बहुआयामी है। ‘Assume’ अवधारणा विज्ञान की प्रगति में केंद्रीय भूमिका निभाती है, लेकिन कुछ रहस्य, जैसे आत्मा का अस्तित्व, अभी भी विज्ञान की पकड़ से बाहर हैं। इन विषयों पर और अधिक शोध और खुले विचार- विमर्श की आवश्यकता है ताकि हम इन गूढ़ प्रश्नों के उत्तर खोज सकें। मेरा स्वामी साधनानंद की काली पीठ पर हुआ अनुभव केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं थी, बल्कि यह एक आत्मिक खोज थी। मैंने इस यात्रा में अपने भीतर झांकने का अवसर पाया। शायद यही सत्य की खोज है- जहां हम अपने विश्वासों को परखते हैं, अपने संदेहों का सामना करते हैं और अंत में, किसी न किसी रूप में, अपने उत्तरों तक पहुंचते हैं।