गुजरात में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दो दिवसीय अधिवेशन गुजरात में हुआ। राहुल गांधी पार्टी में नई जान फूंक देना चाहते हैं। इंडिया कन्वेंशन सेंटर में गुजरात को लेकर नया प्रस्ताव पास किया गया। सौराष्ट्र के पाटीदार चेहरे परेश धनानी ने इस प्रस्ताव को पेश किया था। इस प्रस्ताव में राज्य में जातिगत जनगणना, अनुसूचित जाति और जनजातियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर ज्यादा ध्यान देने की बात कही गई। कांग्रेस गुजरात में सामाजिक न्याय को आगे करके चलना चाहती है।
राहुल गांधी का मानना है कि इस फार्मूले से गुजरात में रिकवर करने में उन्हें काफी मदद मिलेगी। कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में अब तक की सबसे कम सीटें केवल 11 सीटें मिली थीं। कई कांग्रेस नेताओं का कहना है कि इस तरह के वादों से भला नहीं होने वाला है। वहीं गुजरात कांग्रेस के कई नेता उसे गलती मान रहे हैं। उनका कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी ने भी यही गलती की थी। ऐसे में कांग्रेस एक बार फिर से उस जगह पर खड़ी हो गई है जहां से उसे यह तय करना है कि उसे अपनी पुरानी प्रतिष्ठा फिर से कायम करने के लिए किस दिशा में चलना है। पार्टी के पास एक विकल्प है बीजेपी के साथ टकराव वाली राजनीति के पथ पर चलते रहने की जो अभी मल्लिकार्जुन खड़गे की अगुवाई और राहुल गांधी के मार्गदर्शन में हो रहा है। दूसरा विकल्प वह है जो केरल से पार्टी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर और अन्य नेताओं ने दिया है।
थरूर ने कहा कि एक पार्टी के तौर पर हमें भविष्य की ओर देखना है, सिर्फ अतीत की ओर नहीं। एक ऐसी पार्टी जिसका दृष्टिकोण सकारात्मक हो, न कि मात्र नकरात्मकता भरी हो। एक ऐसी पार्टी जो समाधान बता सके, न कि सिर्फ नारेबाजी करती रह जाए। थरूर ने जो कुछ कहा है, वह इस वजह से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उन्होंने उस गुजरात की धरती पर पार्टी को जगाने की कोशिश की है जो गांधी और सरदार पटेल दोनों की भूमि है। दिलचस्प बात ये है कि जब पटेल को बीजेपी ने सियासी तौर पर भुनाने में कोई कमी नहीं रख छोड़ी है तो कांग्रेस को भी अब उस ओर देखने की आवश्यकता महसूस होने लगी है।

राहुल और खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस भाजपा और संघ पर हमला जारी रखने के लिए नए वक्फ कानून को अपना हथियार बनाना चाह रही है और इसे कथित रूप से धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान के खिलाफ बताने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस का आरोप है कि कथित तौर पर मुसलमानों को निशाना बनाने के बाद आरएसएस, भाजपा ईसाई, सिख और अन्य अल्पसंख्यकों को भी टारगेट करेंगे। इनके अलावा कांग्रेस ने भाजपा पर चुनावों में कथित धांधली और संविधान के लिए खतरा बताने के साथ-साथ उसके कथित विभाजनकारी विचारधारा के नाम पर भी निशाना साधने की कोशिश की है। कांग्रेस का दावा है कि उसका राष्ट्रवाद लोगों को एकजुट करता है, जबकि बीजेपी का कथित ‘छद्म राष्ट्रवाद’ नफरत और पूर्वाग्रह से भरा पड़ा है। अब कांग्रेस पार्टी को तय करना है कि वह भविष्य में किस रास्ते पर चलने का संकल्प लेती है। यह इस वजह से और भी दिलचस्प है कि थरूर हाल के दिनों में अपने कई बयानों से सुर्खियों में रहे हैं, जिसे बीजेपी की अगुवाई वाली मोदी सरकार की सराहना के तौर पर देखा गया है। यह चाहे रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की कूटनीति हो या फिर कोरोना महामारी के दौरान वैक्सीन वाली कूटनीति।
कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने भी इसके संकेत दिए हैं। अधिवेशन के दूसरे दिन जब वह मीडिया से मुखातिब हुए थे तो उन्होंने कहा था कि गुजरात में कांग्रेस क्यों? इस सवाल को लेकर हम आगे जाएंगे। गुजरात को जीतने के लिए नूतन कांग्रेस-नूतन गुजरात के मंत्र पर आगे बढ़ेंगे। कांग्रेस के अधिवेशन में जिस तरह से ओबीसी की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया है उसके बाद चर्चा शुरू हो गई है कि बीजेपी राज्य में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में किसी ओबीसी नेता पर भी दांव खेल सकती है क्यों गुजरात में ओबीसी की भागीदारी 50 फीसदी से भी अधिक है। वहीं पार्टी महासचिव वेणुगोपाल ने अधिवेशन के अंत में कहा था कि पहले गुजरात और फिर इसके बाद यह काम राजस्थान में शुरू होगा।
कांग्रेस के दो दिन अधिवेशन को देखें तो सीडबल्यूसी ने राहुल गांधी के सुझावों पर आगे बढ़ने का फैसला किया है। मोटे तौर पर गुजरात कांग्रेस में अब जिला अध्यक्षों की भूमिका काफी अहम हो जाएगी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो फैसले गांधीनगर या फिर अहमदाबाद में नहीं होंगे बल्कि जिला और तालुका मुख्यालयों पर लिए जाएंगे। पार्टी में अब उसी को ऊपर आने का मौका मिलेगा जो सड़क दिखेगा। यानी की बीजेपी की तरह की पार्टी में काम की माॅनीटरिंग की जाएगी। कांग्रेस इस काम को गुजरात में होने वाले पंचायत चुनावों से पहले पूरा करना चाहती है ताकि पार्टी पंचायत चुनावों अपनी नींव मजबूत कर सके।

