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केरल का गरमाता राजनीतिक तापमान

केरल में 2026 के विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है और राज्य का राजनीतिक परिदृश्य कई बदलावों के संकेत दे रहा है। वर्तमान में राज्य की सत्ता में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) है, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री पिनराई विजयन कर रहे हैं। 2021 के विधानसभा चुनावों में एलडीएफ ने 140 में से 99 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी। कांग्रेस पार्टी जो कि यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) का हिस्सा है, आगामी चुनावों में वापसी की कोशिश कर रही है। हाल ही में पार्टी ने केरल में अपने संगठनात्मक ढांचे में बदलाव के संकेत दिए हैं। कांग्रेस महासचिव दीपा दासमुंशी ने केरल में पार्टी के प्रभारी के रूप में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं और उन्होंने प्रियंका गांधी वाड्रा को राज्य में पार्टी की चुनावी रणनीति का नेतृत्व करने का प्रस्ताव दिया है। इस कदम का उद्देश्य पार्टी में चल रही गुटबाजी और नेतृत्व संकट को दूर करना है। पार्टी के वरिष्ठ नेता के. सुधाकरण, वी.डी. सतीसन और रमेश चेन्निथला के बीच मतभेदों ने पार्टी की एकता को प्रभावित किया है। दूसरी तरफ भाजपा केरल में अब तक विधानसभा में दमदार प्रदर्शन नहीं कर पाई है। हालांकि 2021 के चुनावों में पार्टी को 11.3 प्रतिशत वोट मिले थे। राज्य में पार्टी की उपस्थिति बढ़ाने के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को राज्य में पार्टी का प्रमुख चेहरा बनाया है। पार्टी ने ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं। वाम लोकतांत्रिक मोर्चा, विशेष रूप से सीपीआई(एम), राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन है। पिनराई विजयन के नेतृत्व में सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं, हालांकि कुछ मुद्दों पर विपक्ष ने सरकार की आलोचना की है। फिर भी, पार्टी ने अपनी एकता और अनुशासन के बल पर राज्य में मजबूत स्थिति बनाए रखी है। कुल मिलाकर इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी जरूर नजर आ रहा है। लेकिन यदि बड़े नेताओं की आपसी रार समाप्त नहीं हुई तो वाम मोर्चा तीसरी बार राज्य में सरकार बना सकती है।

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