Uttarakhand

कोटगाड़ी माता देवभूमि की न्यायप्रिय देवी : न्याय और आस्था का प्रतीक

उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जनपद में स्थित कोटगाड़ी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि न्याय और आस्था का प्रतीक भी है। यह मंदिर मां कोटगाड़ी देवी को समर्पित है, कोटगाड़ी मंदिर का निर्माण लगभग 400 से 500 वर्ष पूर्व माना जाता है। इसे कुमाऊं क्षेत्र के चंद वंश के राजा रूद्र चंद के द्वारा बनवाया गया था। चंद राजाओं ने देवी को अपनी कुलदेवी के रूप में स्थापित किया और युद्धों से पहले देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते थे। इस मंदिर को मां कोकिला देवी या माता भगवती का मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर न्याय की देवी के रूप में बहुत प्रसिद्ध है। लोक विश्वास है कि भगवती-वैष्णवी के दरबार में पांच पुश्तों तक का निर्णय-न्याय मिलता है। जिन्हें स्थानीय लोग ‘न्याय की देवी’ के रूप में पूजते हैं। यह मंदिर वर्षों से न सिर्फ लोगों की आस्था, बल्कि उनकी आखिरी उम्मीद बना हुआ है

  • कंचन आर्या
    दि संडे पोस्ट यू-ट्ड्ढयूब चैनल से सम्बध

 

देवभूमि उत्तराखण्ड की घुमावदार पगडंडियों पर चलते हुए जब मैं पहली बार कोटगाड़ी माता के दरबार में पहुंची तो भीतर कुछ ऐसा हिला जिसे मैं आज तक शब्दों में नहीं ढाल पाई हूं। मेरे दिल में भी कई सवाल थे। लेकिन जैसे ही मैंने उस पवित्र स्थान में पांव रखा, मन के भीतर की आवाज ने कहा- ‘‘तू अब किसी देवी के नहीं, न्याय के दरबार में खड़ी है।’’ अब असली सफर शुरू हुआ… वो सीढ़ियां! पत्थर से बनी हुईं, सीधी ऊपर जाती हुईं… एक तरफ घना जंगल, दूसरी ओर ढलान। हर सीढ़ी चढ़ते वक्त मन में यही सोच आ रही थी कि यहां माता के दरबार में पहुंचने के लिए लोगों की आस्था कितनी गहरी है।

उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जनपद में स्थित कोटगाड़ी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि न्याय और आस्था का प्रतीक भी है। यह मंदिर मां कोटगाड़ी देवी को समर्पित है, कोटगाड़ी मंदिर का निर्माण लगभग 400 से 500 वर्ष पूर्व माना जाता है। इसे कुमाऊं क्षेत्र के चंद वंश के राजा रूद्र चंद के द्वारा बनवाया गया था। चंद राजाओं ने देवी को अपनी कुलदेवी के रूप में स्थापित किया और युद्धों से पहले देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते थे। इस मंदिर को मां कोकिला देवी या माता भगवती का मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर न्याय की देवी के रूप में बहुत प्रसिद्ध है। लोक विश्वास है कि भगवती-वैष्णवी के दरबार में पांच पुश्तों तक का निर्णय-न्याय मिलता है। जिन्हें स्थानीय लोग ‘न्याय की देवी’ के रूप में पूजते हैं। यह मंदिर वर्षों से न सिर्फ लोगों की आस्था, बल्कि उनकी आखिरी उम्मीद बना हुआ है।

कोटगाड़ी माता के दरबार की वो सुबह मेरे लिए कुछ खास थी। ऊंची पहाड़ियों के बीच जब मैं माता के मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ रही थी, चारों ओर से श्रद्धालुओं की आवाजें, ढोल-दमाऊं की गूंज, मैंने देखा, कुछ लोग नंगे पांव ही चढ़ रहे थे, कुछ प्यारी सी टोकरी पर फूल-नारियल माता की चुनरी, फल, लिए और सिर पर टोकरी या डलिया और कुमाऊंनी पिछौड़ा पहने महिलाएं दिखाई दीं। हर कोई अपनी-अपनी मुरादें लेकर माता के चरणों में आ रहा था।

पिथौरागढ़ जनपद स्थित कोटगाड़ी माता के मंदिर प्रांगण में लेखिका

तभी मेरी नजर उस नन्हीं, मासूम सी बकरी पर पड़ी। वो भोली आंखों से सबको देख रही थी, कुछ समझ नहीं पा रही थी कि उसे यहां क्यों लाया गया है। उसका सफेद, मुलायम सा शरीर, और उसके गले में बंधी घंटी की आवाज मेरे दिल में कहीं गहरे उतर गई। लोग बता रहे थे कि ये बकरी कोई ऐसे ही नहीं लाई – ये किसी की पूरी हुई मुराद का ‘नेग’ है। किसी को न्याय मिला तो किसी का संकट टला और उसकी खुशी में ये बकरी माता को चढ़ाई जाएगी। ‘पर पता नहीं क्यों, मेरे दिल में एक अजीब सी बेचैनी उठी। क्या अपनी मन्नत पूरी होने की खुशी जताने के लिए किसी मासूम प्राणी की बलि जरूरी है?’

मैंने सुना था कि उत्तराखण्ड के कई मंदिरों में ये प्रथा अब बंद कर दी गई है, लोगों में जागरूकता आ रही है। मगर यहां देखकर लगा, बदलाव की ये रोशनी अभी हर जगह नहीं पहुंची। उस मासूम बकरी की आंखें जैसे मुझसे सवाल कर रही थीं, ‘क्या मेरी जिंदगी का यही मतलब है?’ मैं कुछ पल वहीं खड़ी रही, मन भारी हो गया। माता का दरबार तो न्याय का प्रतीक है, क्या समय नहीं आ गया कि हम अंधविश्वास से ऊपर उठें और अपनी खुशियों में किसी और की सांसें न रोकें? मैंने माता से सिर झुकाकर यही प्रार्थना की – हे माता, जैसे आपने हर दुखी का दुख दूर किया है, वैसे ही इन मासूम जानवरों को भी इस दर्द से मुक्ति मिले। लोगों में इतनी समझ आए कि आस्था की राह पर कोई भी जीवन बेवजह कुर्बान न हो। उस प्यारी सी बकरी को देखकर मन भारी था, मगर मैं आगे बढ़ती रही… जैसे कदम मंदिर की ओर बढ़ रहे थे, वैसे ही मन में अजीब सी खामोशी उतरती जा रही थी। जब मंदिर के प्रांगण में पहुंची, ढोल की गूंज, दमाऊं की थाप और घंटियों की आवाजें पूरे माहौल को भक्तिभाव से भर रही थीं। मेरा मन भी उसी संगीत में डूब गया… आंखें बंद कीं, और दिल ने बस एक ही बात महसूस की – जैसे मेरे हर दर्द, हर सवाल का जवाब इन गूंजती हुई ध्वनियों में ही छिपा है।

मंदिर के भीतर सफेद कपड़े पर रखे हुए वो सैकड़ों पत्र जैसे मेरी आंखों के सामने किसी अनकहे दर्द की किताब खोल रहे थे। कोई अपनी बहन के ससुराल का दर्द लिख कर आया था… कोई अपनी जमीन पर हुए अन्याय का दुख समर्पित कर गया था… कोई अपने बेटे के लिए न्याय मांगता, मां के दरबार में उम्मीद छोड़ गया था। हर एक कागज, हर एक शब्द में पीड़ा थी, लेकिन उसके पीछे विश्वास भी झलक रहा था, विश्वास इस बात का कि यहां कोई सुनने वाला है… कोई जो इंसाफ करेगा… कोई जो हर टूटे दिल को सम्भालेगा।

मैं भी चुपचाप वहीं बैठ गई। दिल में बहुत कुछ था… कहने को, लिखने को, रोने को… मगर शब्द जैसे गले में अटक गए। हाथ कांपते हुए मैंने भी एक कागज निकाला। उस पर न कोई नाम लिखा, न किसी पर आरोप लगाया… बस दिल की गहराई से एक प्रार्थना लिखी :

‘‘हे माता… सच चाहे जितना भी छुपा हो, पर आपसे नहीं छुप सकता। अब सच को बाहर लाना, न्याय करना… ये काम आपका है।’’

उस कागज को पत्रों के ढेर में रखते हुए मेरी आंखें नम हो गईं। लगा जैसे माता के दरबार में केवल दुख नहीं आता, यहां हर दुख से ऊपर उठने की हिम्मत भी मिलती है… और सबसे बड़ी बात, उम्मीद कभी खत्म नहीं होती। माता का दरबार, न्याय का प्रतीक है… और मैंने उस दिन महसूस किया कि यहां केवल बोलने से नहीं, कभी-कभी खामोशी में भी इंसाफ की दस्तक होती है।

 

पिथौरागढ़ जनपद स्थित कोटगाड़ी माता का मंदिर

कोटगाड़ी माता को केवल पूजा का पात्र नहीं, बल्कि लोकन्याय की प्रत्यक्ष व्यवस्था के रूप में देखा जाता है। यहां न्याय देने वाली देवी को कोई मूर्त रूप में नहीं बांधता, बल्कि उन्हें सजीव और सक्रिय शक्ति माना जाता है। कई बार मैंने स्थानीय लोगों से सुना – ‘जो भी झूठा आरोप लेकर देवी के दरबार में आता है, उस पर माता का कोप पड़ता है। उसकी फसल बर्बाद हो जाती है, मवेशी बीमार हो जाते हैं या घर में अशांति फैल जाती है।’’ और जिन पर अन्याय हुआ होता है, उनके जीवन में धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगता है। आरोपी पश्चाताप करता है, समाज सच्चाई के पक्ष में खड़ा होता है। यह सब सुनते हुए मुझे लगा शायद यही है ईश्वर का सजीव रूप, बिना मुकदमे, बिना अपील, सीधा और प्रभावशाली।

इस मंदिर की कोई चमचमाती सोने-चांदी की मूर्तियां नहीं हैं, लेकिन इसकी विशाल पत्थर की दीवारें, जो वर्षों से यहां की हवाओं, बारिश और आस्था की कहानियों को समेटे खड़ी हैं, अपने आप में एक अलग भव्यता लिए हुए हैं। ऊंची दीवारों के भीतर बना यह मंदिर साधारण दिखने वाला जरूर है, पर इसके चारों ओर फैली अलौकिक ऊर्जा हर आने वाले को भीतर तक झकझोर देती है। खुला आकाश, पत्थरों से बनी परकोटियां, और हर दिशा में गूंजता ‘कोटगाड़ी माता की जय’ का स्वर, यह सब मिलकर जैसे आपको संसार दुखों से निकालकर सीधा देवत्व की गोद में पहुंचा देते हैं।

नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है। दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। महिलाएं, बुजुर्ग, युवा, सब मिलकर माता का जागरण करते हैं। भजन की वह रात जब ‘कोटगाड़ी माता की जय’ के स्वर पूरी पहाड़ी में गूंजते हैं, वह क्षण किसी देवलोक की अनुभूति से कम नहीं होता।

मंदिर की ऊंची पत्थर की दीवारें न केवल उसकी मजबूती का प्रतीक हैं, बल्कि उस आस्था की भी गवाह हैं, जो सदियों से यहां हर श्रद्धालु अपने साथ लेकर आता है। मंदिर में अनगिनत घंटियां टंगी हैं, जो हर पल ये बताती हैं कि कोटगाड़ी माता के दरबार में कितने लोगों की मनोकामनाएं पूरी हुई हैं। हर एक घंटी, हर एक ध्वनि किसी न किसी की दुआ, किसी की जीत, किसी की श्रद्धा की कहानी कहती है।

मंदिर के पीछे नजर डालो तो वहां चुपचाप खड़ी एक अद्भुत आकृति दिखती है शेषनाग की। ऐसा लगता है मानो स्वयं भगवान विष्णु के चरणों में लिपटे शेषनाग यहां माता के दरबार की रक्षा में डटे हैं। वो
पत्थरों पर उकेरी गई आकृति सिर्फ एक कलाकृति नहीं, बल्कि इस बात का प्रतीक है कि यह स्थान सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि साक्षात दिव्यता और शक्ति का केंद्र है।

मैंने कोटगाड़ी माता के दरबार में जब भी प्रार्थना की, भीतर से कोई शक्ति मुझे आश्वस्त करती रही कि जो भी सत्य है, वह सामने आएगा। मुझे यहां कभी किसी चमत्कार की प्रतीक्षा नहीं रही, क्योंकि इस मंदिर में चमत्कार नहीं, सत्य की पुनस्र्थापना होती है। आज जब भी जीवन में कोई बड़ी चुनौती आती है, मैं आंखें बंदकर कोटगाड़ी माता को स्मरण करती हूं- ‘‘हे माता, जैसे तब मेरा मार्गदर्शन किया, अब भी अपनी कृपा बनाए रखना।’’

कोटगाड़ी देवी को न्याय की देवी के रूप में पूजा जाता है और मान्यता है कि देवी के दरबार में पांच पुश्तों तक का न्याय मिलता है।

इस मंदिर में हर साल चैत्र और आश्विन माह में मेला लगता है। एक प्रसिद्ध लोककथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक निर्दोष व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाया गया था और उसे दंडित कर दिया गया। वह व्यक्ति देवी के मंदिर पहुंचा और न्याय की प्रार्थना की। कुछ ही दिनों में झूठा आरोप लगाने वाला व्यक्ति दंडित हुआ उसकी सम्पत्ति नष्ट हो गई और वह रोगग्रस्त हो गया। तब से यह विश्वास और भी गहरा हो गया कि देवी सच्चे भक्तों को अवश्य न्याय देती हैं। कोटगाड़ी माता का मंदिर सिर्फ एक आस्था स्थल नहीं, बल्कि एक आत्मा की पुकार और देवत्व का उत्तर है। यह मंदिर बताता है कि न्याय पाने के लिए केवल अदालतें नहीं, दिव्यता में विश्वास भी जरूरी होता है और जब वह विश्वास सच्चा हो तो देवी स्वयं हस्तक्षेप करती हैं। मैंने इस मंदिर में सच्चे मनों को रोते हुए देखा है और उसी मन को कुछ ही महीनों बाद मुस्कराते हुए लौटते भी देखा है। उन अनगिनत बेटियों में से एक मैं भी हूं, जिसने टूटे दिल और नम आंखों के साथ कोटगाड़ी माता के दरबार में कदम रखा… और लौटते वक्त मेरे मन में न्याय की आस, दिल में सुकून था और आंखों में आस्था की रौशनी। जिसने वहां न्याय भी पाया और विश्वास भी। यदि आप जीवन के किसी मोड़ पर अन्याय के बोझ से दबे हों और आपको लगे कि अब कहीं कोई सुनवाई नहीं तो एक बार इस मंदिर में आइए। यहां कोई सवाल नहीं पूछेगा, कोई दस्तावेज नहीं मांगेगा, बस आपकी आंखों की नमी और मन की सच्चाई ही देवी का दरबार खोल देगी।

क्रमशः
(लेखिका पत्रकार हैं, उत्तराखण्ड के मंदिरों पर विशेष रूप से लिखती हैं तथा इन धार्मिक स्थलों की बाबत यू-ट्यूब के जरिए अपनी बात सामने रखती हैं।)

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