Country

महिलाओं और बच्चों के लिए जलवायु परिवर्तन कैसे बना संकट 

तेजी से हो रहा जलवायु परिवर्तन पर्यावरण समेत मनुष्य जाति के लिए खतरा बनता जा रहा है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कई अध्ययनों के अनुसार जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाएं , गर्भवती महिलाएं और नवजात शिशुओं पर पड रहा है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं ने जलवायु संकट के चलते गर्भवती महिलाओं ,शिशुओं और बच्चों पर उपजते स्वास्थ्य जोखिमों को ध्यान में रखते हुए तुरंत ठोस कदम उठाए जाने की पुकार सभी देशों की है।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ),यूएन जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) और यूएन बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मातृ, नवजात और शिशु स्वास्थ्य की रक्षा नामक विश्लेषण जारी किया गया है। जिसके अनुसार महिलाएं/ गर्भवती महिलाएं , नवजात बच्चे ,बच्चे जलवायु परिवर्तन का शिकार तेजी से हो रहे हैं और इसकी जानकारी होने के बावजूद भी इसे कम आंका जा रहा है। कई देशों में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा होती है। लेकिन वहां महिलाओं समेत बच्चों की आवश्यकताओं की ओर ध्यान नहीं दिया जाता,जो कि अहम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि जलवायु का सबसे ज्यादा दुष्परिणाम महिलाओं और बच्चों को झेलना पड़ता है। इसलिए बच्चों के भविष्य की रक्षा किए जाने पर हमें सोचने विचारने की जरूरत है , जिसका अर्थ निकलता है कि उनके स्वास्थ्य व जीवन के लिए अभी से जलवायु संकट से उनकी रक्षा के लिए उपाय सोचना। जिसमें से एक उपाय यह है कि जलवायु प्रतिक्रिया योजनाओं में उनकी विशिष्ट जरूरतों का ख्याल रखा जाना चाहिए। 

28वा जलवायु सम्मेलन 

 

यूएन एजेंसियों ने दुबई में आगामी कॉप28 जलवायु सम्मेलन से ठीक पहले अपनी यह अपील जारी की है। दरअसल इस साल का वार्षिक जलवायु सम्मेलन संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में  30 नवंबर से 12 दिसंबर तक होने जा रहा है। यह 28वां सम्मेलन है। संयुक्त राष्ट्र लगभग तीस वर्षों से वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन के माध्यम से दुनिया के देशों को एक मंच पर लाता रहा है। इस सम्मेलन को कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप) कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस सम्मेलन में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सतत कटौती, जलवायु वित्त पोषण कार्रवाई, और गर्भवती महिलाओं, शिशुओं व बच्चों की आवश्यकताओं को नीतियों में समाहित करने जैसे तत्काल सात क़दम उठाए जाने पर बल दिया गया है।

 

जलवायु संकट का सामना करती महिलाएं 

 

जलवायु संकट ,

 

जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्परिणाम महिलाएं कैसे झेलती है इसका विश्लेषण द हिंदी प्रिंट की एक खबर में किया गया है। जिसके अनुसार खेतों में काम करने वाली मंजू देवी को पिछले साल दो महीने तक असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ी ,जिस वजह से उन्हें अपने काम से दूर रहना पड़ा। उनके कामों में धान की फसल के लिए घंटों कमर तक पानी में खड़े रहना, भीषण गर्मी में भारी बोझ उठाना और कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना शामिल हैं। जब दर्द बर्दास्त से बाहर हो गया तब वह अस्पताल गई जिससे उसे मालूम हुआ कि यूट्रस प्रोलैप्स (बच्चा दानी बाहर आ जाना ) की पीड़ित है। उन्होंने कहा, “मैंने महीनों तक असहनीय दर्द सहा। इसके बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने से डरती थी। गैर-लाभकारी संस्था ‘ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया’ के लिए लैंगिक मुद्दों पर नज़र रखने वाली सीमा भास्करन का इस संदर्भ में कहना है कि जलवायु परिवर्तन सीधे तौर पर बच्चेदानी के बाहर आने का कारण नहीं है, लेकिन यह स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं को बढ़ाता है जिससे महिलाएं ऐसे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।

 

यह भी पढ़ें : भोजन की बर्बादी से बढ़ रहा है जलवायु संकट का खतरा

 

 इसके अलावा 62 वर्षीय खेतिहर मजदूर सविता सिंह का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें अपने खेत में अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ा, जिससे उनकी अंगुली में रसायन की वजह से संक्रमण हो गया और उसे 2022 में अंगुली काटनी पड़ी । दरअसल जलवायु पैटर्न में बदलाव और कीटों के हमले बढ़ने के कारण धान और गेहूं की पैदावार में गिरावट आई तो कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ाने का फैसला उनके पति द्वारा किया गया था। 

 

यह भी पढ़ें : भारत में गंभीर जल संकट

 

वहीं एक अन्य मामला उत्तर प्रदेश का है। पिलखाना गांव  में 22 वर्षीय दिहाड़ी मजदूरी करने वाली बबीता कुमारी के यहां 2021 में मृत बच्चा पैदा हुआ और इसके लिए वह भीषण गर्मी में लंबे समय तक ईंट भट्टे पर काम करने के दौरान भारी वजन उठाने को जिम्मेदार मानती हैं। बबीता अपने पति के साथ अस्थायी शिविर में रहती हैं। उन्होंने कहा, “मेरी मां और उनकी मां सभी ने जीवन भर ईंट भट्टों में काम किया है, लेकिन गर्मी का इतना बुरा हाल नहीं था। लेकिन पिछले छह-सात वर्षों से स्थिति बदतर हो गई है और गर्मी सहन करना असहनीय हो गया है लेकिन हमारे पास इसे सहने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। 

 

जलवायु संकट ,

 

इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट अनुसार कहा गया है कि इस साल वनों में आग , बाढ़ ,ताप लहरें ,और सूखे समेत विश्व के अनेक हिस्सों में विनाशकारी जलवायु आपदाएं देखी गई हैं और इनका महिलाओं और बच्चों पर गहरा असर पड़ा है। तापमान में वृद्धि होने के कारण घातक बिमारियों का खतरा बढ़ता है, जिसका सबसे ज्यादा असर महिलाओं और बच्चों पर होता है।  इस नुकसान के असर गर्भ में ही देखने को मिल सकते हैं, जिसका असर माँ और बच्चे दोनों पर हो सकते हैं, जिसका प्रभाव जीवन के अंत तक रह सकता है।

 

जलवायु संकट ,

 

यूनीसेफ़ कार्यक्रमों के लिए उप कार्यकारी निदेशक उमर अब्दी ने ज़ोर देते हुए कहा है कि बच्चों के शरीर और मस्तिष्क पर, प्रदूषण और चरम मौसम से होने वाली बीमारियों का ध्यान रखा जाना होगा। क्योकि जलवायु संकट से बच्चों के स्वास्थ्य व कल्याण के बुनियादी अधिकार पर जोखिम मंडरा रहा है, और यह हमारा सामूहिक दायित्व है कि बच्चों की ज़रूरतों को जलवायु परिवर्तन एजेंडा में शामिल किया जाए। वहीं संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाला वार्षिक जलवायु शिखर सम्मेलन में भी इस बार कार्यकर्ता,नीति निर्माताओं से महिलाओं और लड़कियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर प्रतिक्रिया देने का आग्रह किया जा रहा है।

 

You may also like

MERA DDDD DDD DD