रांसी स्टेडियम सिर्फ एक नाम नहीं है। यह उच्च हिमालयी क्षेत्र में हाई एल्टिच्यूट खेल स्टेडियम की एक बड़ी सोच को धरातल पर उतारने का सपना रहा है जो अविभाजित उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और हिमालय पुत्र के नाम से विख्यात स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा ने पहाड़ी युवाओं के भविष्य के लिए देखा था। इसी सोच और सपने के साथ वर्ष 1974 में पौड़ी शहर से करीब तीन किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित रांसी में इस स्टेडियम की नींव रखी थी। 1974 में आधारशिला रखने के बाद बनते-बनते 2024 में आखिरकार रांसी स्टेडियम बन कर तैयार हुआ। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के गढ़वाल लोकसभा उम्मीदवार और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी द्वारा रांसी स्टेडियम को प्रदेश स्तर का स्टेडियम बनाने और इसमें 2025 में राष्ट्रीय खेलों में एथलीट प्रतियोगिता तक करवाने का दावा किया गया था जबकि हकीकत यह कि एक भी एथलीट प्रतियोगिता इस स्टेडियम के नसीब में नहीं आई और आज रांसी स्टेडियम सिर्फ एक सफेद हाथी बनकर रह गया। इतना ही नहीं इस स्टेडियम को हाई एल्टिच्यूट ट्रेनिंग सेंटर बनाए जाने के भी बड़े-बड़े दावे हुए लेकिन वह भी अभी तक सिर्फ घोषणाओं में ही है, इसके लिए अभी तक शासनादेश तक जारी नहीं किया जा सका है
उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में एक झाड़ी पाई जाती है जिसे आमतौर पर कंडाली या सिसूण कहा जाता है। यह पौधा इतना खतरनाक होता है कि अगर इसको छू भर लिया तो बिच्छू के डंक जैसा दर्द महसूस होता है इसलिए इसे बिच्छु घास भी कहा जाता है। अपने तमाम अवगुणों के बावजूद यह कंडाली का पौधा सदियों से उत्तराखण्ड के स्थानीय निवासियों के जीवन में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। प्राचीनकाल में इस पौधे के रेशों से कपड़ा बनाया जाता था और इसके कोमल पत्तों का साग बनाकर शीतकाल में खाया जाता है। इस पौधे में अनेक औषधीय गुण हैं जिसके कारण यह समूचे हिमालयी क्षेत्र के लिए खास माना जाता है। ठीक इसी कंडाली के पौधे की ही तरह पौड़ी के निवासियों के लिए रांसी स्टेडियम भी बन चुका है जो सब को दिखाई तो दे रहा है लेकिन इसके दिखने का दर्द पौड़ी के निवासियों को आज भी रह-रह कर सालता रहता है।
करीब 22 करोड़ रुपए की लागत से बना रांसी स्डेडियम जिस उदे्श्य से बनाया गया उसका उपयोग कभी नहीं हुआ हालांकि इसके लिए तमाम तरह के दावे और घोषणाएं हो चुकी हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के गढ़वाल लोकसभा उम्मीदवार और राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी द्वारा रांसी स्टेडियम को प्रदेश स्तर का स्टेडियम बनाने और इसमें 2025 में राष्ट्रीय खेलों में एथलीट प्रतियोगिता तक करवाने का दावा किया गया था, जबकि हकीकत यह है एक भी एथलीट प्रतियोगिता इस स्टेडियम के नसीब में नहीं आई और आज रांसी स्टेडियम सिर्फ एक सफेद हाथी बन कर रहा गया। इतना ही नहीं इस स्टेडियम को हाई एल्टिच्यूट ट्रेनिंग सेंटर बनाए जाने के भी बड़े-बड़े दावे हुए लेकिन वह भी अभी तक सिर्फ घोषणाओं में ही है, इसके लिए अभी तक शासनादेश तक जारी नहीं किया जा सका है।
रांसी स्टेडियम सिर्फ एक नाम नहीं है। यह उच्च हिमालयी क्षेत्र में हाई एल्टिच्यूट खेल स्टेडियम की एक बड़ी सोच को धरातल पर उतारने का सपना रहा है जो अभिाजित उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और हिमालय पुत्र के नाम से विख्यात स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा ने इस पहाड़ी क्षेत्र के युवाओं के भविष्य के लिए देखा था। इसी सोच और सपने के साथ वर्ष 1974 में पौड़ी शहर से करीब तीन किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित रांसी में इस स्टेडियम की नींव रखी थी। डेढ करोड़ की लागत से उत्तर प्रदेश निर्माण निगम को इसके निर्माण का कार्य सौंपा गया।
खास बात यह है कि तब समूचे भारत में समुद्र तल से 7 हजार फिट की ऊंचाई पर बनने वाला यह पहला स्टेडियम था, क्योंकि तब भारत में इतनी समुद्र तल से इतनी ऊंचाई पर किसी भी राज्य में कोई भी स्टेडियम नहीं था। इसी के चलते इसका नाम हाई एल्टिच्यूट फुटबाॅल स्टेडियम रांसी रखा गया। विख्यात हेमवती नंदन बहुगुणा चाहते थे कि रांसी स्टेडियम देश का ऐसा पहला स्टेडियम बने जिसमें फुटबाॅल के खिलाड़ी बेहतर प्रशिक्षण लेकर देश और प्रदेश का नाम ऊंचा करे।
दुर्भाग्य से बहुगुणा की सोच को आने वाली सरकारों और मुख्यमंत्रियों ने आगे नहीं बढ़ाया और जो हाई एल्टिच्यूट खेल स्टेडियम देश का पहला होना चाहिए था वह नहीं हो पाया। दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला जिले के सिमारू में समुद्र तल से 7 हजार फिट की उंचाई पर एल्टिच्यूट स्टेडियम की भी घोषणा हुई। राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति का जितना मजबूत आधार हिमाचल प्रदेश ने दिखाया उतना तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार नहीं दिखा पाई और हिमाचल का सिमारू एल्टिच्यूट हाॅकी स्टेडियम का निर्माण रांसी स्टेडियम से पहले हो गया। इसके चलते जो रांसी स्टेडियम देश का पहला एल्टिच्यूट स्टेडियम के नाम से पहचान बनाता, वह देश का दूसरा स्टेडियम बन पाया, वह भी आधा-अधूरा।
गौर करने वाली बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में सिमारू हाॅकी स्टेडियम की घोषणा और आधारशिला रांसी स्टेडियम से करीब एक वर्ष बाद हुई थी लेकिन हिमाचल में निर्माण कार्य तेज गति से हुआ जबकि रांसी स्टेडियम का निर्माण कार्य कई वर्षों तक लटकता रहा। स्थानीय जानकारों की मानें तो कई वर्षों तक इसके निर्माण का खाका भी तैयार नहीं हो पाया और जब निर्माण कार्य शुरू हुआ तो उसकी धीमी गति का आलम यह रहा कि पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी स्टेडियम निर्माण गति नहीं पकड़ पाया। 1974 में आधारशिला रखने के बाद बनते-बनते 2024 में आखिरकार रांसी स्टेडियम बन कर तैयार हुआ। 26 वर्ष अविभाजित उत्तर प्रदेश के बीत गए और पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के 24 वर्ष बीत जाने के बाद उत्तराखण्ड राज्य को कुल 50 वर्ष के बाद यह हाई एल्टिच्यूट स्टेडियम रांसी मिल पाया। इससे एक बात तो साफ हो गई कि हेमवती नंदन बहुगुणा के हिमालयी राज्य के खेल को लेकर जो सोच थी वह सोच उनके बाद किसी मुख्यमंत्री और नौकरशाहों में नहीं रही।
ऐसा नहीं है कि इस स्टेडियम के लिए राजनीतिक स्तर पर कोई काम नहीं हुआ। घोषणाएं और दावे हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में होते रहे। वर्ष 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने पौड़ी जिले को पलायन की समस्या से निजात दिलवाने के लिए कई विकास कार्यों की घोषणाएं की जिसमें रांसी स्टेडियम को भी प्राथमिकता में रखा गया। इसके लिए बजट स्वीकृत किया गया और इसे फुटबाल स्टेडियम के स्थान पर हाई एल्टिच्यूट एथलीट स्पोर्ट स्टेडियम में बदला गया और 1962 में हुए भारत चीन युद्ध के अदम्य साहस दिखाने वाले महावीर चक्र विजेता शहीद जसवंत सिंह के नाम पर इस स्टेडियम का नाम रखा गया। साथ ही इसके विस्तारीकरण के लिए भी स्वीकृति दी गई और बजट भी अवमुक्त किया गया।
त्रिवेंद्र रावत सरकार द्वारा इसके निर्माण और विस्तारीकरण जिसमें अन्य खेलों के लिए एक मिनी स्टेडियम के निर्माण भी शामिल करते हुए तमाम औपचारिकताएं पूरी करने का आदेश दिया साथ ही इसके लिए बजट तक स्वीकृत कर दिया। राज्य बनने के बाद पहली बार प्रदेश सरकार द्वारा इस स्टेडियम के लिए घोषणा हुई थी लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद निर्माण कार्य एक बार फिर से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यह बात तब अधिक गौर करने वाली हो जाती है कि त्रिवेंद्र रावत 2021 में मुख्यमंत्री पद से हटाए गए और फिर तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बनाए गए लेकिन चार माह बाद उन्हें हटाकर पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश की कमान मिली। उनके पहले कार्यकाल में ही वर्ष 2022 में इसका निर्माण आरम्भ हो पाया। 2024 में स्टेडियम का निर्माण पूरा हुआ लेकिन आज भी इसका विस्तारीकरण का कार्य रूका हुआ है।
3 फरवरी 2024 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा इसका लोकार्पण कर प्रदेश और पौड़ी निवासियों को रांसी स्टेडियम का नए क्लेवर और नए स्वरूप में उपहार के तौर पर दिया गया। 22 करोड़ 29 लाख 47 हजार रुपए की लागत से बने रांसी स्टेडियम की करीब 10 हजार दर्शकों की क्षमता है। इसमें 400 मीटर का सिंथेटिक्स एथलेटिक्स ट्रैक, 32 बेड का छात्रावास, बहुद्देश्य हाल तथा छात्रों के लिए कैंटीन की भी व्यवस्था की गई है।
वर्तमान समय में इस स्टेडियम में देश के अनेक राज्यों के 350 खिलाड़ी प्रशिक्षण और प्रतिभाग कर रहे हैं। इनमें हरियाणा, दिल्ली, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र के साथ-साथ मध्य प्रदेश, पंजाब तथा चंडीगढ़ और उत्तराखण्ड के खिलाड़ी भी शामिल हैं। 400 मीटर से लेकर 10 हजार मीटर के साथ-साथ 100 किमी तक की दौड़ का भी अभ्याय करवाया जाता है। इसके अलावा ऊंची, लम्बी कूद, गोला, चक्का और भाला फेंक आदि खेलांे को भी इसमें सम्मिलित किया गया है। एथलीट के साथ-साथ बैडमिंटन, टेबिल टेनिस, बाॅलीबाल की राज्य स्तरीय अनेक प्रतियोगिताएं खेल विभाग इस स्टेडियम में करवा चुका है लेकिन 50 वर्ष के लम्बे इंतजार के बाद वजूद में आए रांसी स्टेडियम से जुड़े विवाद खत्म नहीं हो रहे हैं।
निर्माण कार्यों और प्रबंधकीय व्यवस्था में कई खामियां सामने आने लगी है। सिंथेटिक एथलेटिक्स ट्रैक जिसकी आयु 25 वर्ष की होती है, वह एक ही वर्ष में बरसात के कारण क्षतिग्रस्त होने लगा जिससे प्रशिक्षण लेने वाले खिलाड़ियों के चोटिल होने की बातें सामने आई हैं। जब मामला मीडिया में आया तो खेल विभाग द्वारा बनाई गई जांच टीम ने खामियों को सही पाते हुए उनको दूर करने के भी आदेश जारी किए गए लेकिन आज तक खामियों को दूर नहीं किया जा सका और न ही मिनी स्टेडियम का काम आगे बढ़ पाया।
यही नहीं इसके छात्रावास में कोई भी छात्र रहना पंसद नहीं करता है। इसका एक मुख्य कारण बताया जाता है कि इसमें छात्रों के लिए बेहतर सुविधाएं नहीं हैं। जिसके चलते सभी छात्र पौड़ी और उसके आस-पास में ही किराए के कमरों पर रहने को मजबूर हैं। हालांकि राज्य सरकार द्वारा उत्तराखण्ड के राज्य स्तरीय पदक विजेताओं के लिए प्रशिक्षण निःशुल्क किया गया है।
जब 2025 के शुरुआती महीनों में राज्य में राष्ट्रीय खेलों का आयोजन किया गया तब कहा गया था कि रांसी स्टेडियम में एथलीट खेलों की प्रतियोगिताएं करवाई जाएंगी लेकिन हाई एल्टिच्यूट होने के कारण
प्रतियोगिताएं नहीं हो पाईं तो इसका एक बड़ा कारण यह रहा कि हाई एल्टिच्यूट खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ता है जिस कारण वे उस तरह से अपना खेल नहीं दिखा पाते जितना वे मैदानी क्षेत्र में दिखा पाते हैं क्योंकि हाई एल्टिच्यूट में ऑक्सीजन की कमी होती है जिसका प्रभाव खिलाड़ियों पर पड़ता है।
एक बात यह भी गौर करने वाली है कि रांसी स्टेडियम को ‘साई’ (स्पोर्ट अथाॅरिटी ऑफ इंडिया) को देने का निर्णय सरकार द्वारा लिया गया है लेकिन ‘साई’ ने इसको अपने अनुरूप न पाते हुए इसे लेने से ही मना कर दिया है। इससे एक बात यह भी स्पष्ट हो जाती है कि रांसी स्टेडियम के लिए जितनी भी घोषणाएं राजनीतिक तौर पर की गई हैं उनके पूरा होने की सम्भावनाएं बहुत ही कम नजर आ रही हैं। राष्ट्रीय खेलों में भी इसी कारण से रांसी स्टेडियम को बाहर रखा गया क्योंकि पौड़ी शहर के आस- पास एक भी ऐसा होटल या आवासीय सुविधा नहीं है जिसमें 20 से अधिक कमरे हों। ‘साई’ ने भी इसको इसी कमी के चलते लेने से मना किया। भविष्य में भी खिलाड़ियों और अन्य स्टाफ के लिए आवास की सुविधा न होने के चलते रांसी स्टेडियम में कोई बड़ी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं हो पाएंगी, इसमें भी संदेह बना हुआ है।
स्थानीय निवासी और समाजिक सरोकार से जुड़े अजय रावत का कहना है कि ‘जब तक पौड़ी शहर को सिस्टेमिक तरीके से विकसित नहीं किया जाएगा तब तक रांसी स्टेडियम ही नहीं अन्य योजनाओं का भी पूरा लाभ कभी नहीं मिल सकता।’ पौड़ी नगर की सबसे भयावह समस्या वाहन पार्किंग की है। अगर सरकार पौड़ी में कोई बड़ा आयोजन करती है तो समूचा शहर जाम हो जाता है। राष्ट्रीय खेल भी इसी कारण से नहीं हुए। सैकड़ों खिलाडियों और स्टाफ के लिए न तो पौड़ी में आवास की सुविधा है और न ही पार्किंग की।
(इस सम्बंध में सांसद अनिल बलूनी से कई बार बात करने का प्रयास किया गया लेकिन वे उपल्बध नहीं हो पाए।)बात अपनी-अपनी
समुद्र तल से करीब 7 हजार मीटर की ऊंचाई पर बने रांसी स्टेडियम हमारे प्रदेश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। भले ही इसके निर्माण में कई वर्ष लगे हों लेकिन आज रांसी स्टेडियम पौड़ी को मिला है। अब स्टेडियम बन गया है तो उसका उपयोग भी होगा। लेकिन इतना जरूर है कि केवल स्टेडियम बनाने से ही सब कुछ सही हो जाएगा। इसके लिए पौड़ी शहर का सुनियोजित विकास और पर्यटन स्थल के तौर पर
विकसित करने की सबसे बड़ी आवश्यकता है। अगर इस स्टेडियम में कोई बड़ी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता हो तो पौड़ी में कोई भी व्यवस्था ऐसी नहीं है कि जो 200 खिलाड़ियों के लिए आवास की सुविधा दे सके। सांसद अनिल बलूनी जी हों या अन्य जन प्रतिनिधि हर एक को पौड़ी की वास्तविकता परखने और जानने की जरूरत है सिर्फ राजनीतिक घोषणा और दावे की बाजाय धरातल पर मजबूत इच्छाशक्ति दिखाने की जरूरत है। आज तो हालात ऐसे हो गए हैं कि पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत के एक बयान के बाद ही गढ़वाल कमिश्नर को पौड़ी की याद आई और वे दिखावे के लिए पौड़ी में आए जबकि गढ़वाल कमिश्नर का कार्यालय पौड़ी नगर में ही उत्तर प्रदेश के समय से ही रहा है लेकिन कमिश्नर हमेशा देहरादून में ही रहते हंै। कम से कम पौड़ी का पुराना प्रशासनिक स्वरूप तो बहाल किया जाए।
अनिल बहुगुणा, वरिष्ठ पत्रकार, पौड़ी
रांसी स्टेडियम का संचालन खेल विभाग द्वारा ही किया जाता है। हमने अभी तक कई राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं रांसी स्टेडियम में करवाई है। अब विस्तारीकरण और मिनी स्टेडियम का काम भी शुरू होने वाला है। अब रांसी स्टेडियम हाई एल्टीट्यूट ट्रेनिंग सेटर बन गया है लेकिन शासनादेश के बारे में मुझे जानकारी नहीं है।
जयबीर सिंह रावत, जिला खेल अधिकारी, पौड़ी
रांसी स्टेडियम इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि किस तरह से सरकारों और प्रशासनिक अधिकारियों ने पौड़ी की दुर्दशा की है। 1974 में जिस स्टेडियम की नींव पड़ी थी उसे बनने में आधी सदी लग गई। जब हेमवती नंदन बहुगुणा जी जैसे विराट हिमालयी सोच के जन नेता ने इसकी नींव रखी थी जब उनकी सोच थी की इस क्षेत्र में हाई एल्टीट्यूट स्टेडियम होना चाहिए जिसमें पहाड़ के युवाओं को पहाड़ में ही प्रशिक्षण के साथ-साथ खेल में मदद मिले, लेकिन दुर्भाग्य से उनके बाद की सोच किसी नेता, मुख्यमंत्री यहां तक कि हमारे
जनप्रतिनिधियों की भी नहीं रही। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जिस पहाड़ी जिले ने उत्तर प्रदेश को हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे मुख्यमंत्री दिया और उत्तराखण्ड राज्य को बीसी खण्डूड़ी, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ तथा त्रिवेंद्र सिंह रावत जैसे तीन-तीन मुख्यमंत्री तो दिए ही हैं, साथ ही अविभाजित उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड सरकार के कई दिग्गज कैबिनेट मंत्री भी पौड़ी जिले से ही रहे हैं फिर भी रांसी स्टेडियम को बनने में 48 वर्ष का समय लगा हो तो विकास और विकास की सोच की क्या हकीकत है? 2024 में स्टेडियम का लोकार्पण मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा किया गया लेकिन आज भी रांसी स्टेडियम उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है। निर्माण कार्यों में घपले की खबर मिल रही है सिंथेटिक ट्रैक के क्षतिग्रस्त होने की बाते आ रही है। हां राज्य सरकार ने इतना जरूर किया है कि इसका नाम शहीद जसवंत सिंह के नाम पर कर दिया। उम्मीद पर दुनिया जी रही है तो हमें भी उम्मीद है कि इस स्टेडियम का लाभ देश और राज्य के साथ-साथ बदहाल हो चुके पौड़ी का भी मिलेगा।
नमन चंदोला, संयोजक, पौड़ी बचाओ संघर्ष समिति, पौड़ी