हरीश रावत
पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड
छह जून को न्याय यात्रा को आगे बढ़ाते हुए मैं अपराह्न रामनगर पहुंचा और अपने दो परिवारिक मित्रों के घर में गया। कांग्रेस के एक होनहार नौजवान अभिमन्यु डंगवाल रिश्ते में मेरे नाती लगते हैं, उनकी माता जी का आकस्मिक निधन हुआ था, परिवार को सांत्वना देने उनके घर गया। छोई, रामनगर में श्री कुबेर सिंह नेगी एक अत्यधिक प्रतिष्ठित बुजुर्ग थे, 102 वर्ष में उनका निधन हुआ है। वहां भी उनके पुत्र मोहन नेगी आदि को सांत्वना देने पहुंचा और श्री कुबेर सिंह नेगी जी के चित्र पर पुष्प चढ़ा। मेरे साथ हमारे रामनगर के सहयोगी श्री पुष्कर दुर्गापाल और श्री संजय नेगी भी साथ थे। हल्द्वानी में ‘थैंक्यू काफल पार्टी’ आयोजित की गई थी, यह पार्टी हल्द्वानी काफल चैप्टर ने आयोजित की थी। मुझे बहुत अच्छा लगा। पार्टी में लोगों ने बहुत उत्साह पूर्वक भाग लिया। मैं कह सकता हूं कि बहुत बड़ी भीड़ काफल को धन्यवाद कहने के लिए जुटी और आयोजक गणों ने भी 8-9 कुंतल से ज्यादा काफल का इंतजाम कर लोगों को गद-गद कर दिया। इस दौरान हुई भारी वर्षा और तेज हवाओं के कारण काफल यूं ही पेड़ों में ही गल गया था। मैं बहुत घबराया हुआ था। मुझे यह लगता था कि एक-दो कुंतल काफल का भी इंतजाम करना कठिन हो जाएगा। कई व्यक्ति 10-10, 20-20 किलो काफल लेकर आए। अजय शर्मा ने अकेले अपने बलबूते तीन-चार कुंतल और श्री गोविंद सिंह कुंजवाल जी ने 2-3 कुंतल, श्री राकेश बृजवासी ने लगभग 80 किलो, श्री मनोज शर्मा ने 50 किलो काफलों का प्रबंध किया। काफलों का ढेर देखकर मेरा मन बाग-बाग हो गया। हल्द्वानी-तराई भाबर के काफल प्रेमियों को भरपेट काफल का आनंद उठाने को मिला। कुछ काफलों में नमक और सरसो का तेल मिला हुआ था जिसका लोगों ने खूब चटकारे लेकर लुफ्त उठाया। एक अच्छी पार्टी थी, पार्टी में चाय, पकौड़ी, पहाड़ी रायता, जलेबी, सेंडविचों के साथ प्लम, खुमानी और आड़ू भी खूब खाने को मिले। पार्टी में बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक भी पधारे, उनको श्री यशपाल आर्या जी, श्री गोविंद सिंह कुंजवाल जी, श्री प्रदीप टम्टा, श्री हरीश धामी, ललित फस्र्वाण, श्री हरीश ऐठानी, मनोज तिवारी, सुमित हृदयेश, नारायण पाल, हिमेश खर्कवाल, श्री प्रेमानंद महाजन, श्री ललित जोशी, श्री प्रयाग भट्ट, श्री भोला दत्त भट्ट, रामनगर के मोहम्मद अकरम, पुष्कर दुर्गापाल, श्री संजय नेगी, श्री आनंद रावत, श्रीमती मीना शर्मा, श्री राहुल छिमवाल, श्री सी.पी. शर्मा, श्री गोविंद बिष्ट, श्री हिमांशु गाबा, श्री गिरधर बम, श्री रईस अहमद जी, श्री कुंदन लाल सक्सेना, श्रीमती शशि वर्मा, श्रीमती पुष्पा नेगी, श्रीमती भागीरथी बिष्ट, श्रीमती जया कर्नाटक, श्रीमती नीमा भट्ट, श्रीमती राधा चैधरी, श्रीमती कविता शर्मा, शिवम शर्मा, अमित रावत, राहुल सोनकर सहित आदि लोगों ने माला और शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। पूर्व सैनिकों में कर्नल हरीश चंद्र सिंह रावत, कैप्टन कुंदन सिंह मेहता सहित कई सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी व सैनिक उपस्थित रहे। श्री भोला दत्त भट्ट जी के संकल्प बैंकट हाॅल में हुए इस उत्साहपूर्ण आयोजन में वरिष्ठतम कांग्रेसजनों में पंडित दुर्गा दत्त तिवारी, श्री ताराचंद पांडे जी, श्री राम नगीना, श्री हरीश सिंह मेहता, श्री अख्तियार अहमद पटौती, जैसे वरिष्ठ नागरिक को भी काफल चैप्टर ने शाल माला भेंट कर सम्मानित किया। श्री गिरधर बम के सौजन्य से आए हुए छलिया नृत्यकों के दल ने ‘काफल पाको चैता’ कालजयी धुन पर लोगों को बहुत नचाया। छलिया नृत्यकों के साथ फोटो खिंचवाने की लोगों में होड़ लगी रही। संकल्प बैंकट हाॅल के आंगन में लोगों ने सामूहिक झोड़ा भी गाया ‘खोल भवानी, खोल अंबा, धारमा किवाड़ा’ की धुन पर लोग बड़ी देर तक घेरा बनाकर समूह गान करते रहे।
काफल ने लोगों में बहुत उत्साह पैदा किया। श्री यशपाल आर्या, श्री गोविंद सिंह कुंजवाल, श्री प्रदीप टम्टा, श्री हरीश धामी, मनोज तिवारी, सुमित हृदयेश, ललित फस्र्वाण, श्री हरीश ऐठानी, नारायण पाल, हिमेश खर्कवाल, श्री प्रेमानंद महाजन इन सब लोगों ने काफल के सांस्कृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय महत्व पर खूब प्रकाश डाला। ऐसा लगा कि सब लोग काफल को अपनी संस्कृति के प्रतीक के रूप में संरक्षण देना चाहते हैं। मैं जब भी काफल पार्टी आयोजित करता हूं, उसके पीछे सांस्कृतिक उत्तराखण्ड को आगे लाने का लक्ष्य होता है। दूसरा लक्ष्य होता है कि यदि हम काफल के वृक्ष की रक्षा करने लग जाएं तो चैड़ी पत्तों के वृक्षों में सबसे तेजी से बढ़ने वाला वृक्ष, काफल का वृक्ष है और वह अपने अगल-बगल में बांज व बुरांश के वृक्ष के उत्पादन की भी परिस्थितियां पैदा कर लेता है। काफल केवल रसीले फल ही नहीं देता है, बल्कि पर्यावरण का रक्षक भी है। तीसरा लक्ष्य स्वभावतः एक स्वास्थ्यवर्धक जंगली बेरी का प्रचार कर लोगों की आमदनी से उसको जोड़ना भी मेरा अभीष्ट रहता है और मुझे लगा कि अब हमारा यह अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर चुका है। इस साल देहरादून में ठेली लगाकर 600 रुपए किलो तक काफल बिके हैं और मुझे कोई शक नहीं है कि अगली बार वातानुकूलित बसों में दिल्ली, चंडीगढ़, अंबाला, बरेली, लखनऊ व गाजियाबाद आदि डेस्टिनेशन पर भी काफल पहुंचेंगे। काफल हमको पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरण के दृष्टिकोण को राज्य व्यापी सोच का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करता है।
थैंक्यू काफल पार्टी के बाद रात गांव मोहनरी पहुंचा। मैंने अपने कुटुम्बीजनों से आग्रह किया था कि मैं कुछ देर से पहुंचूंगा। घर में उस दिन जागर थी, जरा सा देर में पहुंचा। गुरु अर्थात जगरिया लोग इंतजार कर रहे थे। मेरे पहुंचते ही जागर लगाई गई, देवता प्रसन्न हुए, मैंने भी कुटुम्ब कबीले सहित देवता से आशीर्वाद लिया। मैंने, न्याय यात्रा के अभीष्ट झूठ-लूट और फूट पर आधारित भारतीय जनता पार्टी के कुशासन के खिलाफ संघर्ष करने की शक्ति मांगी। मैंने देवता से प्रार्थना की और कहा कि भगवन पिछले दो चुनावों में भाजपा ने दो झूठ मुझसे जोड़कर के बोले हैं उनका पर्दाफाश कर सकूं इसका आशीर्वाद दीजिए। देवता ने सबको विभूति लगाकर आशीर्वाद दिया, उनके आशीर्वाद के बाद मैं अपने अंदर एक नई स्फूर्ति का आभास कर रहा हूं। मेरी न्याय यात्रा को इस आशीर्वाद कार्यक्रम के बाद चार गुना शक्ति मिली है।
दूसरे दिन प्रातःकाल में उस प्राइमरी स्कूल में गया जो मेरे गांव से ढाई-तीन किलोमीटर दूर है। मैं 1 से 5 तक वहीं पढ़ा। अवकाश का दिन था और स्कूल का गेट बंद मिला। गेट पर खड़े-खड़े कई यादों ने मुझे आ घेरा। मेरे उस समय के दोनों शिक्षक हेड मास्टर साहब श्री चिंताराम जी, सहायक अध्यापक श्री केवलानंद जी के चेहरे उमड़-घुमड़ कर मेरी आंखों के सामने कई बार आए। साथी किशन राम, सोहन सिंह, नित्यानंद जी, आनंद सिंह, हरि सिंह रावत आदि बचपन के साथी भी याद आए। भंडारी बूबू और कमुली दीदी भी बहुत याद आई, बचपन की शरारतें भी बहुत याद आई। आज सिरमोली प्राइमरी पाठशाला एक बहु प्रचारित पाठशाला है, इसके बगल में हाई स्कूल संचालित हो रहा है, मैं यहां से आगे चमड़खान की ओर चला। चमड़खान में ग्वेल देवता के पास गया क्योंकि बचपन में जब कभी भी किसी को कोई कष्ट, संकट आता था और किसी प्रकार की परेशानी में फंसते थे तो मैं लोगों से सुनता था कि चमड़खान के गोलज्यू की शरण में जाओ, वह न्यायकारी हैं, न्याय देंगे। ग्वेल देवता को उत्तराखण्ड में न्याय का देवता माना जाता है। मैं भी न्याय मांगने के लिए अपने साथियों के साथ उनकी शरण में गया, ताड़ीखेत व रानीखेत कांग्रेस के बहुत सारे साथी वहां आए थे। हमने गोलज्यू से भाजपा के दोनों झूठों का सफलतापूर्वक प्रतिकार करने के लिए आशीर्वाद मांगा। वहां के बाद हम बिनसर में ब्रह्मालीन मोहन गिरी बाबा की तप स्थली पहुंचे। बाबा जी ने बिनसर को वास्तव में स्वर्ग बना दिया है, बिनसर स्वर्ग है, ताड़ीखेत- सोनी के बीच में एक रमणीक स्थल जहां से कुजगढ़ नदी बहती है, बिनसर स्थित शिवालय देवदार, सुरई, बांज आदि वृक्षों के आच्छादित स्वर्ग सा आभास कराता है। वहां भागवत पूजन हो रहा था। उसमें भाग लिया और फिर मैं देवलीखेत इंटर काॅलेज में भी गया जहां से मैंने हाईस्कूल की पढ़ाई की, और उस घर में भी गया जिस घर में रहकर मैंने 2 साल कक्षा 9 और 10 का अध्ययन पूरा किया। वहां आज के गृह स्वामी राजेंद्र सिंह बिष्ट अपनी पत्नी सहित मेरा इंतजार कर रहे थे, थोड़ा अस्वस्थ हैं, मुझसे उम्र में छोटे हैं, लेकिन उन्होंने मेरे साथ बचपन की यादें ताजा की। जब हम अपने ही घर के सेब, माल्टा, नारंगी, आड़ू, प्लम, नाशपाती पेड़ों में चोरी करते थे, दोस्तों को खिलाते थे। हमने और भी बहुत सारी यादें, शरारतें याद की जो हम करते थे, मन बहुत हल्का हो गया, रात देर तक मुझे अपने पुराने दिन याद आते रहे।
इस अवसर पर ताड़ीखेत ब्लाॅक अध्यक्ष श्री चंदन सिंह, श्री नंदन सिंह नेगी, ताड़ीखेत के ब्लाॅक अध्यक्ष गोपाल सिंह देव, श्री बोरा, अंकिता पंत, विजय सिंह महरा जी आदि लोग मौजूद रहे। जब मैं गांव की ओर चला तो अचानक मेरे मन में ध्यान आया कि मैं अपने कुल देवता के मंदिर में प्रणाम करूं। हमारे कुल देवता का मंदिर घने जंगल में स्थित हैं वहां जाने का रास्ता जरा कठिन है, मगर भावना के आगे कठिनाईयां छोटी पड़ जाती हैं। मैं और मेरे पुत्र आनंद रावत पैदल चलकर ग्वेल देवता की शरण में पहुंचे उनको प्रणाम किया, मन बहुत अभिभूत हुआ। उस स्थल पर पहुंचने के बाद याद आया की कैसे हम बचपन में ग्वेल देवता की पूजा करने के लिए हर साल वहां आते थे। एक मेला जैसा लगता था। पूरा कुटुम्ब-कबीला जुटता था, अब भी जुटता है लेकिन मैं नहीं पहुंच पाता हूं, फिर मन में ध्यान आया कि यहीं गांव के रास्ते पर भूमिया देवता विराजमान हैं, मेरे गांव की भूमि के मालिक, हमने उनको प्रणाम किया। फिर हमारे घर की धार के ऊपर देवी का मंदिर है, मां देवी को प्रणाम किया और गांव की ओर बढ़ते समय उस बड़े से पत्थर पर थोड़ी देर खड़ा रहा जिस पर कभी मैं घुस-घुसी खेला करता था, बहुत सारी यादें उस पत्थर के साथ जुड़ी हैं जब बड़े चचा के साथ शरारत करता था, किस तरीके से वह मेरी शरारत को प्रोत्साहित करते थे और मुझे अपने ढंग से प्रतियोगी बनाते थे। एक गुड़ की डली देकर या मिश्री की कटक देकर कहते थे कि ऊपर उस पत्थर पर घुस-घुसी खेल कर आओ। वह सब बातें याद आई। मैं थका हुआ था, बहुत दिनों बाद इतना पैदल चलना हुआ था। जीनापानी में रामलीला मंचन देखने का निमंत्रण था। मैं, जिस पट्टी कंगलसों का रहने वाला हूं, वह कटोरी की आकार की है वस्तुतः उसके बिल्कुल मध्य में स्थित है जीनपानी, कभी वह जूनियर हाईस्कूल था, हम परीक्षा देने वहां जाते थे, उन दिनों प्राइमरी की भी बोर्ड की परीक्षाएं होती थी। लेकिन आज शिक्षा पद्धति थोड़ा बदल गई है। जीना पानी अब इंटर काॅलेज है, थोड़ा बहुत योगदान उस स्कूल की विकास यात्रा में मेरा भी रहा है। आयोजकगणों ने इस साल बहुत शानदार रामलीला आयोजित की है। एक बहुत अच्छे आयोजक हैं, विद्युत कर्मचारियों के सेवानिवृत्त नेता श्री कृपाल सिंह रौतेला, शायद इस रामलीला आयोजन के पीछे वह एक प्रेरणा रहे हैं, मुझको वहां आने के लिए प्रेरित करने वाले भी श्री कृपाल ही थे। रामलीला में पहुंचा, बहुत शानदार मंचन हो रहा था। मैं बहुत थका हुआ था लेकिन मन लग गया, रात्रि 1 बजे वहां से लौटकर घर पहुंचा। मैं बहुत थका हुआ था, घर गांव की ढेर सारी यादों की गुदगुदाहट के साथ सो गया और सुबह फिर न्याय यात्रा के कार्यक्रम के अनुरूप आगे बढ़ा। मैंने सैमखान के ग्वेल देवता, मेरी नैनिहाल के ग्वेल देवता से न्याय यात्रा की सफलता का आशीर्वाद लिया।
मेरे बचपन की ढेरों यादें गोलज्यू के मंदिर के साथ बहुत बड़ी मात्रा में जुड़ी हुई हैं, अनगिनत यादें हैं। मेरे नाना-मामा लोग, प्यारी- प्यारी नानी, मेरी मामियां, मेरे ठेकेदार मामू जिन पर ग्वेल देवता अवतरित होते थे, उनका बड़ा विशालकाय शरीर था और वह वास्तविक अर्थों में एक देवता के रूप में दिखाई देते थे, उनके आशीर्वाद की बहुत सारी यादें मुझे ग्वेल देवता के मंदिर में पहुंचते ही याद आ जाती हैं, आज भी जब मैं घर जाता हूं वहां माथा टेकना नहीं भूलता हूं, अपनी न्याय यात्रा के लिए ग्वेल देवता से आशीर्वाद मांगा और उसके बाद मैंने दुर्गेश्वर महादेव जहां स्वप्रकट भगवान शिव का लिंग है। कहा जाता है कि हमारे पुरोहितों में एक श्री दुर्गा दत्त जी को सपनों में भी यह लिंग व लिंग के अव्यवस्थित होने वाले स्थान के दर्शन हुए। यहीं से मंदिर की स्थापना हुई व दुर्गेश्वर कहलाए। वहां प्रणाम किया और जलाभिषेक किया, उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के झूठ-लूट और फूट की राजनीति के खिलाफ संघर्ष करने की शक्ति मांगी।
फिर मैं कौसानी की ओर जहां मुझे रात्रि प्रवास करना था वहां के लिए अग्रसर हुआ। मार्ग में एक सामाजिक दायित्व पूरा करना था, हमारी बहुत कर्मठ पूर्व ब्लाॅक प्रमुख हैं श्रीमती भगवती रिखाड़ी जी अभी-अभी उनके पुत्र की शादी हुई थी तो मैं उनको बधाई देने के लिए वहां पहुंचा। द्वाराहाट-कौसनी के रास्ते में बाजन गांव है। इस गांव के साथ बहुत स्मृतियां जुड़ी हुई हैं, जब मैं वहां पहुंचा तो बड़ी संख्या में लोग मेरा इंतजार कर रहे थे, उनको मेरा कार्यक्रम मालूम था। बाजन से होते हुए मैं कई छोटे-छोटे मुकामों पर रुकते, हाथ जोड़ते, नमस्कार करते बग्वाली पोखर पहुंचा, वहां हमारे द्वाराहाट के विधायक माननीय श्री मदन सिंह बिष्ट जी अपने सहयोगी-साथियों के साथ मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे, पूर्व प्रमुख राजेंद्र किरौला जी भी वहां थे, कार्यकर्ता साथियों से बहुत उत्साहपूर्ण वातावरण में बहुत सारी बातें हुई, कैसे आगे लड़ना है, कैसे संघर्ष करना है, उस पर चर्चा हुई। द्वाराहाट एक क्रांतिकारी स्थल रहा है, यहां के लोगों ने बढ़-चढ़कर के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया है। मां दुनागिरी की छत्रछाया में बसा हुआ द्वाराहाट बौद्धिकता व क्रांतिकारिता, दोनों में अग्रगणीय रहा है। जनपद अल्मोड़ा में द्वाराहाट का बहुत नाम है और मुझे सौभाग्य मिला है कि वहां डिग्री काॅलेज, इंजीनियरिंग काॅलेज आदि शिक्षण संस्थानों की स्थापना का। आज भी हम विकास के एक अग्रगणीय ब्लाॅक के रूप में द्वाराहाट को देख रहे हैं। वहां से चलकर हमने उतने ही सुंदर व क्रांतिकारी स्थल सोमेश्वर में प्रवेश किया, वहां एक नाला है जिसको हम लोदनाला कहते हैं। वहां भी खेती बहुत अच्छी होती है। अंग्रेज इस क्षेत्र व इससे लगे हुए गोमती घाटी को पहाड़ों का राइस बाउल कहते थे। यहां का धान बहुत खुशबूदार होता है। यह समस्त क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर क्षेत्र है। इस घाटी के प्रवेश द्वार लोद में सोमेश्वर और जिला अल्मोड़ा के कांग्रेस जन अपने अध्यक्षों के साथ मेरा इंतजार कर रहे थे। लोद एक ऐतिहासिक सुंदर स्थल है। कत्यूरी राजवंश की राजमाता जिया का झूला आज भी यहां विद्यमान है। रोहिल्ला आक्रमणकारियों के खिलाफ हल्द्वानी के निकट रानीबाग में मां जिया रानी ने रोहिल्ला आक्रमणकारियों का मुकाबला किया और उन्हें अपने राज्य से बाहर खदेड़ा। धोखे में उनकी हत्या हुई। वीरांगना जिया देश के स्वतंत्रता की पहली नायक थी। कांग्रेसजनों ने कुछ स्थानीय लोगों के साथ मेरा उत्साहपूर्ण स्वागत किया। बहुत दिनों बाद यहां पहुंचा था। लोग बहुत खुश थे। कांग्रेसजनों से मैंने दूसरे दिन के कार्यक्रम पर चर्चा की और रात्रि विश्राम के लिए कौसानी की ओर चल पड़ा। कौसानी में बहुत सुंदर नाम वाले होटल ‘बुरांस’ में ठहरा, मशहूर फोटोग्राफर जिन्होंने अपनी कला की सुघड़ता से उत्तराखण्ड की प्रकृति को अनेकों रूपों में सजीव किया है। श्री थ्रीस कपूर जी मेरा इंतजार कर रहे थे। होटल के स्वामी श्री थ्रीस हैं। यह मुझे वहां पहुंचने पर मालूम हुआ। कौसानी से हिमालय के अनेक रूप दिग्दर्शित होते हैं। श्री कपूर के कैमरे ने इन स्वरूपों को हम सबके लिए उकेरा है। बुरांस नाम व उपयोग, दोनों से उत्तराखंडियत सहेजता व संवारता हुआ दिखाई दिया। प्रकृति के साथ ही नहीं, बल्कि यहां के उत्पादों, हस्तशिल्पों व व्यंजनों का भी यह होटल एक प्रदर्शनी स्थल है, मैं यहां दो दिन रूका।
क्रमशः
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)

