Uttarakhand

धिक्कार! क्या धामी करेंगे प्रतिकार?

राजनीति में भाषा-आचरण को लेकर शालीनता और मर्यादा का लगातार ह्रास होता रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा भीतर और सार्वजनिक मंचों पर कई बार नेताओं ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है। बिहार में तो चुनावी रैलियों में व्यक्तिगत हमले और अनादरजनक भाषा का प्रचलन चरम पर देखने को मिलता रहा है तो वहीं पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा के साथ-साथ नेताओं के कटु शब्दों ने कई विवादों को जन्म दिया है। महाराष्ट्र में बीते दिनों सत्ता संघर्ष के दौरान कई नेताओं की भाषा मर्यादा की सीमा लांघ इतने हल्के स्तर तक जा पहुंची जिसकी अपेक्षा जनप्रतिनिधियों से तो कतई नहीं की जा सकती। इससे स्पष्ट है कि राजनीति में भाषा की मर्यादा एक राष्ट्रीय संकट बन चुकी है और इस पर नियंत्रण आवश्यक है। हाल ही में उत्तराखण्ड के वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा विधानसभा में पहाड़ की जनता को ‘साला’ शब्द से सम्बोधित किए जाने के बाद जबरदस्त हंगामा खड़ा हो गया है। इसको लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। इस प्रवृत्ति ने प्रदेश की राजनीति में शिष्टाचार और मर्यादा के गिरते स्तर को उजागर किया है। प्रेमचंद अग्रवाल के बयान से पहले भी कई विधायक और जनप्रतिनिधि अपनी भाषा के लिए विवादों में रह चुके हैं

‘‘काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में,
उतरा है रामराज विधायक निवास में’’
                                                   -अदम गोंडवी

उत्तराखण्ड में हाल ही में राज्य के वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा विधानसभा में पहाड़ की जनता को ‘साला’ शब्द से सम्बोधित किए जाने के बाद जबरदस्त हंगामा खड़ा हो गया है। इस बयान को लेकर प्रदेश में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। यह कोई पहला मामला नहीं है जब किसी जनप्रतिनिधि द्वारा अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया हो। इससे पहले भी कई विधायकों और नेताओं द्वारा अनुचित भाषा का उपयोग किया जा चुका है। इस प्रवृत्ति ने प्रदेश की राजनीति में शिष्टाचार और मर्यादा के गिरते स्तर को उजागर किया है। वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के बयान से पहले भी कई विधायक और जनप्रतिनिधि अपनी भाषा के लिए विवादों में रह चुके हैं। कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट अपनी अदभद्र भाषा के कारण चर्चा में रहते आए हैं। बीते दिनों खानपुर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार और वहीं के पूर्व विधायक कुंवर प्रणव चैम्पियन का प्रकरण राजनीति कैसे गिरते स्तर से जुड़ता है। सल्ट विधानसभा सीट से भाजपा विधायक महेश जीना की भी कई ऑडियो क्लिप बीते दिनों सोशल मीडिया के जरिए सामने आए हैं जिनमें वह बेहद अभद्र भाषा का प्रयोग करते सुनाई दिए।

यह घटनाएं इस बात को दर्शाती हैं कि उत्तराखण्ड की राजनीति में भाषा और आचरण को लेकर शालीनता और मर्यादा का लगातार ह्रास होता रहा है। हालांकि यह अमर्यादित व्यवहार केवल उत्तराखण्ड तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी अपसंस्कृति की राजनीति का विस्तार होते देखा जा सकता है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा भीतर और सार्वजनिक मंचों पर कई बार नेताओं ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है। बिहार में तो चुनावी रैलियों में व्यक्तिगत हमले और अनादरजनक भाषा का प्रचलन चरम पर देखने को मिलता रहा है तो वहीं पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा के साथ-साथ नेताओं के कटु शब्दों ने कई विवादों को जन्म दिया है।

महाराष्ट्र में बीते दिनों सत्ता संघर्ष के दौरान कई नेताओं की भाषा मर्यादा की सीमा लांघ इतने हल्के स्तर तक जा पहुंची जिसकी अपेक्षा जनप्रतिनिधियों से तो कतई नहीं की जा सकती। इससे स्पष्ट है कि राजनीति में भाषा की मर्यादा एक राष्ट्रीय संकट बन चुकी है और इस पर नियंत्रण आवश्यक है।

पहाड़ के सम्मान का संकट

उत्तराखण्ड का गठन पहाड़ी क्षेत्रों के विकास और पहाड़ों की जनता की गरिमा बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया था। लेकिन जब प्रदेश के ही मंत्री और जनप्रतिनिधि पहाड़ी जनता के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं तो यह पूरे राज्य की अवधारणा पर प्रश्नचिह्न लगा देता है। उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण की मूल भावना थी कि पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को उनके अधिकार मिलें, उनकी संस्कृति और पहचान को संरक्षित किया जाए। परंतु जब राज्य के ही नेता इन्हें अपशब्द कहकर सम्बोधित करते हैं तो यह उस संघर्ष और बलिदान का अपमान है जिसने उत्तराखण्ड को राज्य का दर्जा दिलाया। यदि इस प्रकार की भाषा और व्यवहार को रोका नहीं गया तो यह राज्य की गरिमा को ठेस पहुंचाने के साथ-साथ उत्तराखण्ड के अस्तित्व के औचित्य को भी कमतर करेगा। यह स्थिति केवल राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत चिंताजनक है।

प्रेमचंद अग्रवाल प्रकरण ने राजनीतिक शिष्टाचार और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी पर गम्भीर सवाल खड़े किए हैं। यह समय है कि राजनीति में शुचिता और मर्यादा बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं। यदि इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगाई गई तो भविष्य में राजनीति का स्तर और अधिक नीचे गिर सकता है, जिससे लोकतंत्र की नींव कमजोर होगी।

इस विवाद पर उत्तराखण्ड में विपक्षी दलों और बुद्धिजीवियों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा ने कहा कि यह बयान उत्तराखण्ड की जनता के लिए अपमानजनक है और वित्त मंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए।

आप पार्टी के नेता जोत सिंह बिष्ट ने कहा कि भाजपा के नेता लगातार अहंकार में जनता का अपमान कर रहे हैं और इस तरह की भाषा से उत्तराखण्ड की अस्मिता पर चोट पहुंचती है। बुद्धिजीवी वर्ग ने इसे उत्तराखण्ड के सामाजिक ताने-बाने पर हमला बताया। प्रसिद्ध समाजशास्त्री डाॅ. आर.एस. पंवार ने कहा कि इस तरह की भाषा पहाड़ी संस्कृति और संवेदनाओं का अपमान है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार जनप्रतिनिधियों से मर्यादित भाषा का पालन करने की अपेक्षा रखती है। हालांकि उन्होंने प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ कोई स्पष्ट कार्रवाई की घोषणा नहीं की। भाजपा प्रवक्ता ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि मंत्री का उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं था और उनके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। पार्टी नेतृत्व ने हालांकि इस मामले को गम्भीरता से लेने की बात कही।

उत्तराखण्ड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी भूषण ने भी इस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी और कहा कि विधानसभा में भाषा की मर्यादा बनाए रखना अनिवार्य है। उन्होंने संकेत दिया कि इस तरह की घटनाओं को दोहराने से बचने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश तैयार किए जा सकते हैं। उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी राज्य में इस प्रकार की भाषा न केवल जनता के सम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि राज्य के निर्माण के पीछे की अवधारणा को भी कमजोर करती है। यह आवश्यक है कि जनप्रतिनिधि अपनी भाषा और आचरण पर नियंत्रण रखें और पहाड़ों की अस्मिता का सम्मान करें। अब देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री इस मामले में क्या रुख अपनाते हैं और क्या भाजपा अपने मंत्री पर कोई ठोस कार्रवाई करती है या नहीं।

प्रेम का विवाद प्रेम

  • कृष्ण कुमार

धामी सरकार के दिग्गज मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के 18 वर्ष के राजनीतिक सफर को देखें तो उनके विवादित बयानों और कारनामों की एक लम्बी फेहरिस्त सामने आती है। आम आदमी संग बीच सड़क पर मारपीट करने के अलावा भाजपा के ही एक दायित्वधारी के साथ गाली-गलौच करने के मामले इसमें शामिल हैं। अपने बड़बोलेपन और उग्र स्वभाव के चलते प्रेमचंद अग्रवाल राज्य आंदोलनकोरियों को धमकाते और उनको अपशब्द कहने के मामले में भी खासी सुर्खियां बटोर चुके हैं। अगर प्रेमचंद अग्रवाल के विवादों की फेहरिस्त को देखें तो कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिनसे न सिर्फ प्रदेश भाजपा संगठन यहां तक कि भाजपा सरकार को भी कई बार असहज होना पड़ा है। परंतु प्रेमचंद के खिलाफ कोई कार्यवाही की गई हो ऐसा कभी देखने को नहीं मिला है। इसी का परिणाम है कि अग्रवाल हर बार कोई न कोई ऐसा बयान दे देते हंै जिससे हंगामा मच जाता है।

जब प्रेमचंद अग्रवाल संसदीय सचिव औद्योगिक विकास के पद पर दायित्वधारी दर्जा प्राप्त कैबिनेट स्तर के मंत्री बनाए गए थे। तब सत्ता का दम्भ उनके सिर इस कदर चढ़ा कि वे अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर आईडीपीएल की जमीन पर अवैध कब्जाधारियों के पक्ष में महाप्रबंधक के कक्ष में जबरन घुस गए और जमकर तोड़-फोड़ कर डाली। केंद्र सरकार के एक संस्थान में तोड़-फोड़ करने के खिलाफ  आईडीपीएल के सम्पत्ति विभाग द्वारा आईडीपीएल पुलिस चैकी में बलवा, तोड़-फोड़ करने और सरकारी काम में बाधा करने के साथ-साथ मारपीट करने के मामले में अग्रवाल और उनके सर्मथकों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई गई थी।

जून 2019 में अग्रवाल की हनक का नजारा ऋषिकेश की जनता ने देखा। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत का ऋषिकेश में एक कार्यक्रम के दौरान त्रिवेंद्र रावत सरकार में दायित्वधारी राज्यमंत्री भगतराम कोठारी और विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के बीच जुबानी जंग में दोनों ही नेता एक-दूसरे को देख लेने की धमकी देने और गाली-गलौच की भाषा का उपायोग करते देखे गए। प्रेमचंद अग्रवाल के लिए भगतराम कोठारी द्वारा दो कौड़ी का आदमी तक कहा गया। इस विवाद का वीडियो जमकर सोशल मीडिया में वायरल हुआ और सरकार की भी खूब किरकिरी हुई। इस मामले में तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने जांच कमेटी भी बनाई थी और मामले को किसी तरह से शांत किया।

प्रेमचंद अग्रवाल का सबसे चर्चित मामला बीच सड़क में अपने सुरक्षाकर्मियों और निजी सहायक के साथ मिलकर आरएसएस के एक कार्यकर्ता और नगर के सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले सुरेंद्र सिंह नेगी को बीच सड़क पर गाली-गलौच और मारपीट करने का रहा है। इस मामले ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी और राष्ट्रीय मीडिया में भी प्रदेश सरकार की खूब फजीहत हुई। इस मारपीट के वीडियो तमाम सोशल मीडिया में ‘उत्तराखण्ड के सड़क छाप कैबिनेट मंत्री’ के नाम से जमकर वायरल हुए।

मई 2023 को प्रेमचंद अग्रवाल ऋषिकेश में अपने निजी आवास में जा रहे थे तो उनके आवास के समीप कोयल घाटी में भारी जाम लगा हुआ था। इस जाम में मंत्री जी का वाहन भी फंसा हुआ था। इसी बीच मंत्री के वाहन के नजदीक सुरेंद्र सिंह नेगी भी अपने दुपहिया वाहन में जाम में फंसे हुए थे। उन्होंने मंत्री जी को जाम में फंसा देखकर कुछ व्यंग किया जिस पर प्रेमचंद अग्रवाल इतना गुस्सा हो गए कि उन्होंने अपने सुरक्षाकर्मियों और निजी सहायक के साथ मिलकर सुरेंद्र नेगी को बीच सड़क पर ही लेटा कर मारना शुरू कर दिया। मंत्री जी का साथ उनके सहायकों और सुरक्षाकर्मियों ने भी दिया। सुरेंद्र नेगी को जमकर पीटा गया और उसके खिलाफ गम्भीर धाराओं में मुकदमा तक दर्ज करवा दिया गया।इस मामले में धामी सरकार की खूब फजीहत हुई और तमाम राजनीतिक मंचों और बुद्धिजीवियों द्वारा सरकार को जमकर कोसा गया। कांग्रेस ने इस मामले को लेकर प्रेमचंद अग्रवाल को मंत्री पद से बर्खास्त करने की मांग करते हुए आंदोलन तक किया था। लेकिन न तो सरकार ने और न ही भाजपा संगठन ने इस मामले को लेकर कोई कदम उठाया।

मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के विवाद की छाया स्कूली बच्चों के खेल के मैदान में भी तब देखने को मिली जब मंत्री जी अपने निजी आवास के समीप पार्क में ही माॅर्निंग वाॅक कर रहे हे थे लेकिन उन्हें माॅर्निंग वाॅक में पार्क के एक कोने पर बच्चों द्वारा बेैडमिंटन खेलने से पड़ा जिसके चलते मंत्री जी खासे नाराज हो गए और उन्होंने अपने सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों को बेैडमिंटन खेलने से रोकने का आदेश दिया जिस पर सुरक्षाकर्मियों द्वारा बच्चों की न सिर्फ बैडमिंटन नेट उखाड़ दिया, साथ ही बच्चों को खेलने से मना करके भगा दिया। पार्क में मौजूद अनेक बुजुर्ग और माॅर्निंग वाॅक पर आए लोगों ने भी इसका विरोध किया लेकिन उनकी भी एक न चली। इस का वीडियो भी सोशल मीडिया में खूब देखा गया और मंत्री जी की जमकर फजीहत और निंदा की गई।

दिलचस्प बात है कि एक तरफ प्रेमचंद अग्रवाल अपने पुत्र को बेरोजगार बताते हुए उसे सरकारी विभाग में संविदा पर नियुक्ति दिए जाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से शिफारिशी पत्र जारी करवाते हैं जिस पर उनके बेरोजगार पुत्र को सरकारी विभाग में मोटे वेतन पर नियुक्ति का आदेश तक जारी हो जाता है तो वहीं दूसरी तरफ उनके पुत्र के खिलाफ करोड़ों के भूखंड खरीदने के आरोप भी लगते रहे हैं। कांग्रेस पार्टी भी इन भूखंडों को अपने पुत्र के नाम खरीदने पर अग्रवाल के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का आरोप लगा चुकी है। यही नहीं इन भूखंडों की खरीद में स्टाम्प चोरी करने का भी आरोप लग चुका है।

वर्ष 2013 से लेकर 2022 तक मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के पुत्र पीयुष अग्रवाल द्वारा 7 अलग-अलग भूखंड खरीदे हैं। जबकि 2021 और 2022 में प्रेमचंद अग्रवाल की धर्मपत्नी शशि प्रभा अग्रवाल के नाम से दो बड़े भूखंड खरीदे गए हैंइनमें एक 3770 वर्ग मीटर में बना हुआ रिसोर्ट है तथा इसके ही समीप 840 वर्ग मीटर का एक बड़ा भूखंड भी खरीदा गया है। गौर करने वाली बात यह है कि इन भूखंडों को उनके पुत्र के नाम से खरीदा गया है जो कि बकौल प्रेमचंद अग्रवाल बेरोजगार था और उसकी बेरोजगारी दूर करने के लिए मुख्यमंत्री से सरकारी विभाग में सविंदा पर नौकरी दिए जाने की सिफारशी पत्र जारी करवाना पड़ा। हालांकि विवाद बढ़ने के बाद पीयुष अग्रवाल ने नियुक्ति नहीं ली लेकिन इससे एक बात साफ हो गई कि मंत्री अग्रवाल के पुत्र बेरोजगार थे लेकिन वे करोड़ों के भूखंड अपने नाम से खरीदते रहे।

प्रदेश में भर्ती घोटाला के बाद विधानसभा में जमकर की गई पिछले दरवाजे से भर्ती करने के आरोप भी अग्रवाल पर लग चुके हैं। प्रेमचंद अग्रवाल त्रिवेंद्र सरकार में विधानसभा अध्यक्ष थे और करीब दो दर्जन से भी अधिक लोगों को गुपचुप तरीके से विधानसभा में विभिन्न पदों पर तैनाती दी गई। लेकिन भर्ती घोटाले के सामने आने के बाद हाईकोर्ट नैनीताल के आदेश पर इन सभी भर्तियों को रद्द करना पड़ा।

कुछ समय पूर्व प्रेमचंद अग्रवाल के पुत्र पीयुष अग्रवाल पर यमकेश्वर तहसील क्षेत्र में निर्माणाधीन रिसोर्ट के लिए संरक्षित प्रजाति के पेड़ों को काटने का आरोप लगा। यह मामला तेजी से सुर्खियों में आया तो मजबूूरन प्रशासन को इसकी जांच करवाने के आदेश देने पड़े। जांच में मामला सही पाया गया और कार्यवाही करने की बात कही गई। लेकिन अभी तक मंत्री के रसूख और पद के दबाव में कोई कार्यवाही तक नहीं हो पाई है।

चाय पर चर्चा : पहाड़ी बनाम मैदानी

  • कृष्ण कुमार

हाल ही में संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा विधानसभा सदन में चर्चा के दौरान उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को अपशब्द कहने के बाद प्रदेश में हंगामा मचा हुआ है। पर्वतीय समाज के लोगांे द्वारा सरकार के एक मंत्री द्वारा अपशब्दों का प्रयोग करने को पहाड़ की अस्मिता और पहाड़ की संस्कृति पर हमला माना जा रहा है। इसको लेकर प्रदेश का बौद्धिक जगत भी सकते में है और शंका व्यक्त की जाने लगी है कि आने वाले समय में प्रदेश का पूरा समाज पहाड़ी और मैदानी में तब्दील हो सकता है। अनेक सामाजिक संगठनों और चिंतकों को यह चिंता सताए जा रही है। ‘दि संडे पोस्ट’ ने प्रदेश में मचे इस हंगामे को लेकर कई बौद्धिक व्यक्तियों से चर्चा की जिसमें खास तौर पर चाय की टपरी, दुकानों में एकत्र होकर समाज और राजनीति पर आम चर्चा करने वाले सामान्य लोग और बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत करके उनके विचार जानने का प्रयास किया गया। प्रस्तुत है देहरादून नगर के पंडित दीन दयाल उपाध्याय पार्क के समीप डिलाईटियन ग्रुप के सदस्यांे के साथ पहाड़ी बनाम मैदानी विषय पर चाय पर चर्चा।

जब राज्य की सीमाएं तय हो गई हैं तो चाहे मैदानी हो या पहाड़ी हो सभी को एक-दूसरे की भावना का सम्मान करना चाहिए। हम सभी को इस बात को अपने आचरण में रखना ही होगा। कोई भी जो इसके विपरीत बात कहता है या वक्तव्य देता है, यह कतई उचित नहीं है। हम सबको सद्भावना के साथ राज्य के विकास पर ध्यान देना चाहिए और इस तरह के विवादों से हमेशा दूर ही रहना चाहिए।

समर भंडारी, पूर्व सचिव, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी उत्तराखण्ड

यह बदजुबान लोग है, इनका यही काम रहता है कि किस तरह से समाज को आपस में लड़वाया जाए। जब कुछ नहीं मिलता तो मैदानी और पहाड़ी के नाम पर लोगांे का लड़वाने का काम करते हैं। ये लोग भूल गए हैं कि उत्तराखण्ड आंदोलन में लगभग 45 लोग शहीद हुए और हमारी माताएं बहनों ने अपना योगदान दिया। उनके साथ-साथ मैदानी लोगों ने भी इस राज्य के आंदोलन में साथ दिया। जब मुलायम सरकार ने मुजफ्फरनगर जिले के रामपुर तिराहे पर बर्बरतापूर्वक आंदोलनकारियों का दमन किया था तो वहीं के स्थानीय लोगों ने आंदोलनकारियों को अपने घरों में पनाह दी, उनका भरपूर ख्याल रखा। उनको कई-कई दिनों तक अपने घरों में छुपाकर रखा और पुलिस से बचाया। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों के स्मारक हेतु अपनी जमीन महावीर प्रसाद शर्मा ने दान में दी जिस पर स्मारक बनाया गया। महावीर शर्मा कोई पहाड़ी नहीं थे, वे तो मैदानी थे। इससे यह नहीं कह सकते कि उत्तराखण्ड राज्य निर्माण में मैदानी लोगांे का कोई योगदान नहीं है। आज इस तरह की बातें करना कि पहाड़ी और मैदानी में झगड़ा करवाना गलत है। इससे तो ये लोग पूरे पहाड़ को ही बर्बाद कर देंगे। पहाड़ी को गाली देना, उसको गलत शब्द बोलना बहुत ही निंदनीय है। हम सबको इसकी खुलकर निंदा करनी चाहिए। सरकार को भी ऐसे मंत्री को तुरंत पद से बाहर कर देना चाहिए।

महावीर त्यागी, आर्य समाजी, कार्यकर्ता

इस तरह के जो भी संवाद है वह विग्रह के संवाद है और अमार्यादित हैं। सदन के अंदर इस तरह की बातें न हो और हमेशा सदन में आदर्श स्थापित करने की बात हो तो अच्छा रहता है। स्व. एनडी तिवारी जी ने एक बात कही थी कि उत्तराखण्डियत क्या है इसको आईडेंटिफाई करे और परिभाषित करे। तब से लेकर आज तक 20-22 साल निकल गए लेकिन हम आज भी उत्तराखण्डियत को परिभाषित नहीं कर पाए हैं। हम इन दोनों बातों का तय नहीं कर पा रहे हैं और विवादों को जन्म दे रहे हैं। आज देशी-पहाड़ी का विवाद हो रहा है, यह तो इसके अंतरनिहित है। कइयों को बुरा लग सकता है लेकिन यह सच है कि एक ईष्र्यावश राजनीति पैदा हुई। उत्तराखण्ड के लोगों खास तौर पर राज्य कर्मचारियों को लगता था कि मैदानी मूल के अधिकारी, कर्मचारी एक कनस्तर लेकर पहाड़ों में आते हैं और रिटायरमेंट के बाद ट्रक भरके सामान लेकर वापस चले जाते हैं। यह कहावत भी बन गई थी। उनको लगता था कोई भी पहाड़ को लूटने के लिए ही आते हैं और लूट कर चले जाते हैं जबकि आम आदमी के लिए उत्तराखण्ड एक अपनी अस्मिता का सवाल बना हुआ था। आज जो हो रहा है वह इसलिए नजर आ रहा है कि जो सवाल राज्य बनने से पहले थे वे सवाल आज भी खत्म नहीं हुए हैं, वहीं बने हुआ हैं कि सबसे ज्यादा हिस्सेदारी किसकी है? आज भी हर उत्तराखण्डी इसी आग में झुलसता जा रहा है कि परस्पर किसकी हिस्सेदारी है। राजनीति को इसको बदलना चाहिए था लेकिन उसका भी बदलाव में कोई फोकस नहीं है।

सुरेंद्र आर्य, पूर्व संपादक

पहाड़ी-मैदानी के सवाल पर मेरा मानना है कि जब उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन चल रहा था तो जो भी आंदोलनकारी ताकतें थी उनमें सभी प्रकार के लोग शामिल थे। विशेष तौर पर वे लोग थे जो यहां पर रहते थे और गम्भीर तौर पर महसूस करते थे कि इस क्षेत्र का विकास होना चाहिए। जो बड़ी प्रशासनिक ईकाइयां हैं उनसे इस क्षेत्र का विकास सही से नहीं हो पा रहा है। यहां की परिस्थितियां अलग हैं, काम करने का तरीका अलग है इसलिए चाहे पहाड़ का आदमी हो या मैदान का हो, करीब-करीब हर कोई अलग राज्य के आंदोलन से अपने आप को जोड़ रहा था और आंदोलन में किसी न किसी रूप से शामिल हो गया था। सिख समाज हो या मुस्लिम समाज हो या जैन समाज हो किसी ने यह नहीं कहा कि उत्तराखण्ड पहाड़ी है हम क्यों इसके भागीदार बनें। सभी की एक ही भावना थी हमें अपना अलग राज्य मिले। 24 साल के बाद इस तरह की बातें उठना बहुत ही गलत है। मुझे तो यह लगता है कि प्रदेश में कुछ ऐसी ताकतें हैं जो नहीं चाहती कि इस प्रदेश का विकास हो और प्रदेश विवादों में ही रहे जिससे विकास के मुद्दों को भुला दिया जाए। चुनाव जीतने के लिए जो वादे किए गए उन वादों को जनता याद न रख पाए। अब कहा जा रहा है कि मंत्री ने गाली दी है पहाड़ियों को। जो अंकिता भंडारी का मामला हुआ उसमें तो यह आ रहा हेै कि यहीं के लोग शामिल थे। यह विवाद जान-बूझकर आम लोगांे की समस्याओं से ध्यान भटकाने का है। अगर ऐसा नहीं होता तो क्यों नहीं इस विवाद को खत्म किया जा रहा है। हर रोज कोई न कोई इस विवाद को बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ वक्तव्य देने पर लगा है। यह सभी सरकार से उठ रहे सवालांे से बचने के लिए किया जा रहा है। सरकार से कोई यह न पूछे कि आपने जमीन जेहाद की बात की और मजबूत भू-कानून देने का दावा किया लेकिन भू-कानून में क्यों ऐसे लूप छोड़ दिए हैं जिससे जमीनों की लूट कम नहीं होगी? क्यों आपने दो जिलों को इस कानून से अलग किया है? जनता कहीं सरकार से इन सवालों का जबाब न मांग ले इसलिए जान-बूझकर पहाड़ी-देशी का मामला बनाया गया है। ऐसी कई ताकतें हैं जो समाज में विघटन पैदा करना चाहती है जिससे प्रदेश को नुकसान हो और इसकी संस्कृति को हानी पहंुचे।

हरिओम पालीवाल, सेवानिवृत्त राज्य कर्मचारी

उत्तराखण्ड की संस्कृति में आज तक पहाड़ी-मैदानी शब्द का प्रयोग नहीं हुआ और न ही गढ़वाल और कुमाऊं का हुआ। जैसे ही 9 नवम्बर 2000 को अलग उत्तराखण्ड राज्य बना तभी कुमाऊं में एक खतड़वा होता था उसे बंद कर दिया गया ताकि उत्तराखण्ड के निवासियों में सद्भावना और प्रेम बना रहे। विधानसभा के अंदर इस प्रकार की अमर्यादित भाषा का प्रयोग अनुचित है। समूचे उत्तराखण्ड की जनता में इसका भारी रोष है। ऐसे जनप्रतिनिधियों को उन मंचों पर जहां उनको प्रविलेज हासिल है उनको संवैधानिक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। उत्तराखण्ड की जनता ऐसे किसी व्यक्ति का जो इस तरह की भाषा और शब्दों का प्रयोग करता है उसे कतई माफ नहीं किया जा सकता। इसकी जितनी भी हो निंदा करनी चाहिए ताकी भविष्य में फिर से कोई जनप्रतिनिधि उत्तराखण्ड के लिए इस तरह की बात न कह सके।

सागर सिंह रावत, संयोेजक, भू कानून आंदोलन

उत्तराखण्ड राज्य बनने में सभी का योगदान रहा है। कोई यह नहीं कह सकता कि सिर्फ हमारा या हमारे क्षेत्र का ही योगदान था। हर कोई जो उत्तराखण्ड में रहता था उसने राज्य के निर्माण के लिए अपना योगदान दिया है। उत्तराखण्ड में देशी -पहाड़ी की बातें कही जा रही है यह निदंनीय है और इसका विरोध करना चाहिए। उत्तराखण्ड में रहने वाला हर व्यक्ति जो यहां का निवासी है, यहां काम कर रहा है वह इसी उत्तराखण्ड का नागरिक है। हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम सब उत्तराखण्डी हैं। विधानसभा में जो अभद्र शब्दों का प्रयोग पहाड़ के लोगों के लिए किया गया है वह सर्वथा निदंनीय है। इसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। भविष्य में भी इस बात का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कि काई भी व्यक्ति चाहे वह जनप्रतिनिधि हो या उत्तराखण्ड का आम निवासी, वह किसी भी सूरत में इस तरह की बातों और शब्दों का प्रयोग न करे।

चंदन सिंह नेगी, सहित्याकार

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