उत्तराखण्ड की सियासत में बहुत से ऐसे सियासतदां उभरे, जिन्होंने तमाम आदर्शवादी विचारों के बावजूद अंत में परिवार को ही चुना। नेतागिरी के माध्यम से वे अपने परिवार को ही सुरक्षित करने में लगे रहे। देवभूमि में ऐसे ढेरों किस्से भरे पड़े हैं जिसमें पता चलता है कि सियासतदां कैसे अपने परिवार को आगे बढ़ा रहे हैं। किसी ने अपने पुत्र को तो किसी ने अपनी पुत्रवधू को चुनावी रण में उतार कर प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया है। इस तरह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भी भाजपा और कांग्रेस ने परिवारवाद को आगे बढ़ाने की परम्परा को खूब पनपाया है। फिलहाल नेता अपने परिजनों को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं
सत्ताधारी भाजपा के नेता विपक्ष पर परिवारवाद को लेकर हमला बोलना शुरू करते हैं तो विपक्षी नेता उसके ही कई नेताओं के नाम लेकर पलटवार करते हैं। भाजपा की ओर से परिवारवादी पार्टियां कहकर संगठन और सरकार के शीर्ष पद एक ही परिवार के काबिज होने का उदाहरण देकर हमला बोला जाता है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राजद समेत सभी विपक्षी दल भाजपा के कई नेताओं के परिवार में सांसद, विधायक, प्रमुख या जिला पंचायत अध्यक्ष गिनाकर हमला बोलने लगते हैं। इस पंचायत चुनाव में भी ऐसे परिवारों की धूम है। भाजपा ने तो एक ही परिवार से एक साथ कई लोगों को पार्टी का समर्थन देकर परिवारवाद की बहस को बढ़ा दिया है। गौरतलब है कि प्रदेश के 12 जिलों में पंचायत चुनाव को लेकर दिनोंदिन शोर बढ़ रहा है। पंचायतों में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के अलावा निर्दलीयों के बीच भी दिखाई दे रहा है। हालांकि ब्लाॅक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर ज्यादातर सीटें राजनीतिक दलों के नाम ही रहती हैं।
कुमाऊं में कौन करेगा कमाल?
कुमाऊं में अल्मोड़ा जनपद की ही बात करें तो यहां जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर बड़े-बड़े दिग्गज नेता काबिज रहे हैं। केंद्रीय राज्यमंत्री अजय टम्टा भी एक समय अल्मोड़ा जिला पंचायत के अध्यक्ष रह चुके हैं तो वहीं जागेश्वर के भाजपा विधायक मोहन सिंह मेहरा और उनकी पत्नी ने भी जिला पंचायत की कमान सम्भाली है। इससे पहले हुए चुनाव में द्वाराहाट के कांग्रेस विधायक मदन सिंह बिष्ट ने जिला पंचायत में पूर्ण बहुमत नहीं होने के बावजूद भी अपनी पत्नी उमा बिष्ट को जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। जागेश्वर से चार बार विधायक रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने इस बार के पंचायत चुनावों में लमगड़ा ब्लाॅक की खांकर सीट से अपनी बहू सुनीता कुंजवाल को चुनावी मैदान में उतारा है। सुनीता उनके मझले बेटे कुंदन कुंजवाल की पत्नी हैं। कुंदन पिता के साथ राजनीतिक कार्यों में सक्रिय रहते हैं। यह सीट महिला आरक्षित होने के चलते कुंदन की पत्नी को मैदान में उतारा गया है। कुंजवाल अपनी पुत्रवधू को इस चुनाव में जिताकर अल्मोड़ा जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने की रणनीति बना रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में अपने ही हमराही रहे मोहन सिंह मेहरा से शिकस्त मिलने के बाद कुंजवाल के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कुंजवाल की पुत्रवधू सुनीता के सामने भाजपा समर्थित प्रत्याशी हेमा जोशी चुनाव लड़ रही हैं। हेमा जोशी पहले कांग्रेस की ही नेता रही हंै। पंचायत चुनाव में वे भाजपा में आई है।
नैनीताल जनपद में रामनगर के विधायक दीवान सिंह बिष्ट की बहू श्वेता बिष्ट पंचायत के चुनावी मैदान में उतर चुकी हैं। विधायक की बहू श्वेता शंकरपुर भूल सीट से क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रही हंै। पिछली बार भी वह क्षेत्र पंचायत का चुनाव जीती थी। तब विधायक ने अपनी पुत्रवधू को ब्लाॅक प्रमुख का चुनाव भी लड़ाया था। लेकिन वह कुछ ही मतों से जीत से वंचित रह गईं थीं। भाजपा के ही नेता इंदर रावत की पत्नी विधायक की बहुरानी को हराकर ब्लाॅक प्रमुख बन गई थी। बताया जा रहा है कि श्वेता को अगर जीत मिली तो वह एक बार फिर ब्लाॅक प्रमुख का चुनाव लड़ेगी। हालांकि शंकरपुर भूल क्षेत्र पंचायत की सीट पर श्वेता बिष्ट के सामने पूर्व ब्लाॅक प्रमुख संजय नेगी की बहन नीमा नेगी चुनाव लड़ रही है। इसके चलते मुकाबला कड़ा हो चला है। राजनीति के चतुर खिलाड़ी बन चुके संजय नेगी की रणनीति यह रहेगी कि क्षेत्र पंचायत सदस्य के चुनाव में ही वह अपनी बहन की जीत के जरिए विधायक की बहुरानी के किले को ध्वस्त कर दें। इसके साथ ही संजय नेगी ने अपनी पत्नी मंजू नेगी को हिम्मतपुर डोटियाल से चुनावी समर में उतार दिया है। संजय नेगी भी रामनगर की राजनीति में गत विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुके हैं। नेगी ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर भाजपा विधायक दीवान सिंह बिष्ट को कड़ी चुनौती दी थी। याद रहें कि इस बार रामनगर ब्लाॅक प्रमुख के पद को महिला आरक्षित कर दिया गया है।
इसके अलावा सल्ट के पूर्व विधायक रणजीत रावत के पुत्र और पुत्रवधू भी चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। रणजीत रावत के पुत्र विक्रम रावत पूर्व में सल्ट के ब्लाॅक प्रमुख रह चुके हैं। इस बार ब्लाॅक प्रमुख की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होने के चलते रणजीत रावत अपनी पुत्रवधू कंचन रावत को भी क्षेत्र पंचायत का चुनाव लड़ा रहे हैं। जबकि विक्रम रावत भी सल्ट से ही क्षेत्र पंचायत का चुनाव लड़ने के लिए जनता के बीच हैं। रानीखेत के विधायक प्रमोद नैनवाल पर भी परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप लग रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनका एक पोस्टर वायरल हो रहा है जिसमें उनकी पत्नी, भाई, बहन के साथ ही भांजे और भांजे की पत्नी को चुनाव लड़ते दर्शाया गया है।
डीडीहाट के विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल ने अपनी पुत्री गीतिका चुफाल को एक बार फिर पंचायत चुनाव में उतार दिया है। गीतिका बरकटिया सीट से प्रत्याशी हंै जिन्हें भाजपा का समर्थन प्राप्त है। उनके सामने कांग्रेस के प्रवक्ता खीमराज जोशी की पत्नी चुनावी मैदान में है। गीतिका पिछली बार भी जिलापंचायत के सदस्य का चुनाव लड़ी थी लेकिन तब वह कांग्रेस के बंशीधर भट्ट से चुनाव हार गई थी।
लोहाघाट के पूर्व विधायक पूरन फत्र्याल अपनी पुत्री सुष्मिता फत्र्याल को जिला पंचायत चम्पावत की पाटन-पाटनी से चुनाव लड़ा रहे हैं। सुष्मिता फत्र्याल को भाजपा का समर्थन नहीं मिला है। भाजपा ने इस सीट से मंडल अध्यक्ष सचिन जोशी की पत्नी सुनीता जोशी को अपना समर्थित प्रत्याशी बनाया है। सचिन जोशी यहां से पूर्व में जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं।
भीमताल के विधायक रामसिंह कैड़ा अपनी पत्नी कमलेश कैड़ा को क्षेत्र पंचायत सदस्य बनाने के लिए राजनीति में प्रवेश करा दिया है। विधायक पर आरोप है कि उन्होंने ओखलकांडा विकास खंड के बडौन क्षेत्र से कमलेश कैड़ा को निर्विरोध क्षेत्र पंचायत सदस्य बनाने के लिए इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ रही बसूली देवी के प्रमाण पत्र गायब करा दिए है। इस बाबत कांग्रेस नेता हरीश पनेरू ने कमिश्नर कुमाऊं के कार्यालय पर धरना भी दिया।
नैनीताल की भाजपा विधायक सरिता आर्या भी उस समय परिवारवाद की बेल बढ़ाती नजर आई जब उन्होंने अपने पुत्र रोहित कुमार आर्या को भवाली गांव जिला पंचायत सीट से चुनावी मैदान में उतार दिया। इस सीट से भाजपा के यशपाल आर्या काफी दिनों से सक्रिय थे लेकिन भाजपा ने यशपाल आर्या की बजाय सरिता आर्या के पुत्र को पार्टी समर्थित प्रत्याशी घोषित कर दिया। फिलहाल यशपाल आर्या भाजपा के बागी उम्मीदवार के रूप में रोहित कुमार आर्या को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

गढ़वाल में बनेगा किसका गढ़
गढ़वाल में कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रीतम सिंह कांग्रेस के विधायक हैं। वे लम्बे समय से चकराता विधानसभा सीट पर अपनी जीत बरकरार रखे हुए हैं। इस बार के पंचायत चुनावों में कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह ने अपने बेटे अभिषेक सिंह को मैदान में उतारा है। कहा जा रहा है कि प्रीतम सिंह अपने पुत्र को देहरादून जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं। अभिषेक सिंह को जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुनावी मैदान में उतारकर प्रीतम सिंह ने सियासी सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि इससे पहले कांग्रेस से प्रीतम सिंह के भाई चमन सिंह दो बार इस सीट पर जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं।
इसी के साथ ही देहरादून की ही सीट पर एक बार फिर चैहान परिवार काबिज होने की पूरी तैयारी कर रहा है। हालांकि चैहान परिवार भी परिवारवाद से अछूता नहीं रहा है। यह चैहान परिवार है भाजपा के विधायक मुन्ना सिंह चैहान का। देहरादून से मुन्ना सिंह चैहान की पत्नी मधु चैहान चुनाव लड़ रही हैं। मधु चैहान का इस सीट पर काफी प्रभाव रहा है। वह पिछली बार भी इस सीट पर भाजपा की जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं।
उत्तराखण्ड बनने के बाद देहरादून की जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर चैहान और प्रीतम सिंह के ही परिवारों का दबदबा रहा है। दो बार प्रीतम सिंह के भाई तो दो बार मुन्ना सिंह चैहान की पत्नी मधु चैहान देहरादून जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में जीत हासिल कर चुकी हैं। वर्ष 2003 में पहली बार कांग्रेस के चमन सिंह अध्यक्ष बने थे तो साल 2008 में मुन्ना सिंह चैहान की पत्नी मधु चैहान अध्यक्ष रहीं थीं।
इससे अगले चुनाव वर्ष 2014 में चमन सिंह ने जीत हासिल की तो साल 2019 में मधु चैहान ने एक बार फिर अध्यक्ष पद पर अपना कब्जा बरकरार रखा। इस तरह एक बार चैहान परिवार तो एक बार प्रीतम सिंह का परिवार इस सीट पर जीत हासिल करते रहे हैं। पूर्व की भांति एक बार फिर दोनों के परिवार आमने-सामने हैं। दोनों ही राजनीतिक रसूख वाले हैं। दोनों का ही क्षेत्र में अपना-अपना दमखम है। हालांकि देहरादून सीट का इतिहास बताता है कि जब-जब जिस पार्टी की सत्ता रही है तब-तब उसी पार्टी का जिला पंचायत अध्यक्ष भी इस सीट पर काबिज होता रहा है। इस हिसाब से अगर देखा जाए तो फिलहाल मुन्ना सिंह चैहान की पत्नी मधु चैहान की अध्यक्ष पद की दावेदारी मजबूत है। लेकिन इस मामले में प्रीतम सिंह की मजबूत राजनीतिक पैंठ भी कमतर नहीं आंकी जा सकती है। पासा किस तरफ पलटता है यह तो वक्त बताएगा। लेकिन फिलहाल देहरादून की इस सीट पर सबकी नजर है।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावी समर में भाजपा समर्थित उम्मीदवार के रूप में लैंसडौन विधायक दिलीप रावत की पत्नी नीतू रावत के नामांकन के बाद जनपद पौड़ी का सियासी तापमान भी बढ़ गया है। नीतू रावत ने जिला पंचायत के लिए जयहरीखाल सीट से पर्चा दाखिल किया है। फिलहाल जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर नीतू की मजबूत दावेदारी मानी जा रही है नीतू रावत वर्ष 2018 में उस समय चर्चाओं में आई थी जब भाजपा ने उन्हें कोटद्वार से मेयर पद पर अपना उम्मीदवार घोषित किया था। लेकिन उनकी तब करारी हार हुई थी। कोटद्वार में भाजपा के प्रत्याशी की हालत इतनी पतली कभी नहीं हुई। तब बागी होकर पत्नी को चुनाव लड़ाने वाले भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष धीरेंद्र चैहान की पत्नी विभा चैहान जहां मात्र 1578 वोट से हारी वहीं भाजपा प्रत्याशी को 13961 मतों से हार का मुंह देखना पड़ा था।

