कभी अपने हरे-भरे आम और लीची के बगीचों के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध रामनगर की फलपट्टी आज अस्तित्व संकट से जूझ रही है। वर्ष 2002 में सरकार द्वारा रामनगर शहर सहित 26 गांवों को ‘फलपट्टी क्षेत्र’ घोषित किया गया था। गजट नोटिफिकेशन में स्पष्ट उल्लेख है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि, उद्योग, निर्माण या काॅलोनी विकास की अनुमति नहीं होगी। लेकिन दो दशक बाद हकीकत इसके उलट है, नियमों की खुली अनदेखी कर भूमाफिया और वन माफिया इस क्षेत्र में बाग-बगीचों को उजाड़ कर अवैध काॅलोनियां, होटल और फैक्टरियां खड़ी कर चुके हैं फलपट्टी के नियमों का खुला उल्लंघन फलपट्टी अधिसूचना के अनुसार इस क्षेत्र में न तो नक्शे पास किए जा सकते हैं और न ही 143 रूपांतरण की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन स्थानीय प्रशासन और विभागों की मिलीभगत से नक्शे पास हुए, जमीनें रूपांतरित हुईं और अवैध निर्माणों का सिलसिला जारी रहा।
भारतीय वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 के तहत यदि कोई वृक्ष काटा जाता है या गिरता है तो उसकी जगह दो नए वृक्ष लगाए जाने का प्रावधान है। लेकिन रामनगर की फलपट्टी में अब तक नष्ट हुए बगीचों की जगह एक भी पेड़ नहीं लगाया गया। सरकार और विभागों की उदासीनता के चलते यह क्षेत्र, जो कभी आम और लीची के घने बागों से घिरा रहता था, अब कंक्रीट के जंगल में बदलने लगा है।
रामनगर की लीची और आम की गिनती देश के बेहतरीन फलों में होती है। यहां की लीची विदेशों तक निर्यात होती है। रामनगर के आसपास चोरपानी, छोई, शंकरपुर, जस्सागांजा, तेलीपुरा, चिल्किया, गौजानी, कानिया, हिम्मतपुर डोटियाल, टांडा, सांवल्दे सहित दो दर्जन से अधिक गांव हैं जहां कभी बड़े-बड़े बगीचे थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ती आबादी, रियल एस्टेट कारोबार और पर्वतीय इलाकों से पलायन के कारण इन बगीचों पर कब्जे और कटान का सिलसिला तेज हो गया है।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि वृक्ष कटान की सूचना मिलने पर चालान काटा जाता है, लेकिन कार्यवाही करने या मुकदमा दर्ज करने का अधिकार उद्यान विभाग को नहीं है, केवल रिपोर्ट भेज सकता है।
फलपट्टी क्षेत्र में खनन और रियल एस्टेट कारोबार ने भी भारी नुकसान पहुंचाया है। कई जगह बगीचों में खनन सामग्री का अवैध भंडारण किया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो रही है और फलदार पेड़ों की जड़ें सड़ रही हैं। ईको सेंसिटिव जोन में बिना अनुमति रिजाॅर्ट, होटल और फैक्ट्रियों का निर्माण किया जा रहा है, जो पर्यावरण संरक्षण कानूनों का गम्भीर उल्लंघन है।
फलपट्टी क्षेत्र में अवैध कटान और निर्माण को लेकर दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए माननीय उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि ‘फलपट्टी क्षेत्र में किसी भी प्रकार की हाउजिंग स्कीम लागू नहीं की जाएगी, और न ही इस क्षेत्र में वृक्षों का कटान होगा।’ लेकिन आदेशों के बावजूद कई बगीचे जड़ों समेत नष्ट कर दिए गए और अवैध निर्माण धड़ल्ले से जारी हैं।
लोगों का कहना है कि सरकार और विभाग केवल कागजी कार्यवाही कर रहे हैं। विभागीय अधिकारी केवल विरोध होने पर कार्रवाई की बात करते हैं। कुछ समय बाद वही विभाग मौन स्वीकृति दे देता है। भूमाफिया पूरे फलपट्टी क्षेत्र को निगल रहे हैं।’
रामनगर में अब तक जितनी भी काॅलोनियां बनी हैं, वे सभी अवैध और गैर-अधिकृत हैं। इसके बावजूद आज तक शासन द्वारा एक भी काॅलोनी का ध्वस्तीकरण नहीं किया गया। इससे साफ है कि नियमों का उल्लंघन करने वालों को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है।
रामनगर की फलपट्टी, जो कभी उत्तराखण्ड की हरियाली और समृद्धि का प्रतीक थी, आज भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ चुकी है। यदि सरकार और सम्बंधित विभागों ने शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाले वर्षों में रामनगर की लीची और आम केवल इतिहास के पन्नों में दर्ज रह जाएंगे।
जो अवैध काॅलोनियां बनाई जाती हैं वो जिला विकास प्राधिकरण देखता है, यह उनका कार्य क्षेत्र है और जो अवैध कटान होता है उसके खिलाफ हमारे द्वारा एफआईआर दर्ज की जाती है। जो लोग परमिशन लेकर काटते हैं, उनके द्वारा एक वृक्ष के बदले दो वृक्ष लगाए जाते हैं। देखिए ऐसा होता है किसान अपनी आजीविका चलाने के लिए बागान लगाता है। अमूमन वृक्षों की उम्र 80, 90, 100 साल होती है। आम, लीची की उत्पादन आय 50 साल रखी गई है। भले अगर वो 60, 70, 80 साल भी ले रहे हों लेकिन उनकी उत्पादन में गिरावट आ जाती है जो किसान भाई को उचित आय नहीं देते हैं। यह उनका कहना है और टेक्निकली ऐसा होता भी है, जहां तक रही बात अवैध फैक्ट्रियां और काॅलोनियों की, इसका पार्ट उद्योग विभाग नहीं है। जरूरतमंद व्यक्ति को 8 से 10 पेड़ हम लोग देते हैं और उनके बदले पेड़ भी हमारी निगरानी में ही लगवाते हैं। हां कुछ किसानों की मंशा सही नहीं दिखी है। बीते कुछ समय से जिन्होंने भी अवैध कार्य किए हैं उन पर जिला स्तर पर प्रशासन कार्यवाही कर रहा है। उद्यान विभाग सिर्फ माॅनिटरिंग कर सकता है, उनकी रखवाली करना हमारे लिए काफी मुश्किल हो जाता है, चाहे रामनगर के इतने बड़े क्षेत्र में हो या हल्द्वानी के क्षेत्र में क्योंकि उद्यान विभाग के पास स्टाफ की कमी है और कोई प्रोटेक्शन नहीं है हमारे पास। नियम में साफ लिखा है कि उद्यान विभाग केवल जुर्माना काटेगा। 1976 का एक्ट है जो जिसमें सुधार करने की जरूरत है। यह हमारे स्तर का नहीं है शासन के स्तर का है। मैं इस वक्त हल्द्वानी में हूं, मैं आज हल्द्वानी का काम देख रहा हूं, कल मैं कोटाबाग का काम देखूंगा, मेरे पास दो उपनल के व्यक्ति हैं फोर्थ क्लास में है। इस समय भी बाग कटा होगा तो उद्यान विभाग क्या करेगा? मैं आपसे जानना चाह रहा हूं, हमारे पास कोई टीम ही नहीं हैं। इस बारे में शासन-प्रशासन को कई बार लिखित में जानकारी दी जा चुकी है। उनको लिखा गया है कि यहां पर टास्क फोर्स की जरूरत है, यहां टास्क फोर्स होनी चाहिए थी जो रात-दिन तहकीकात करती। हमने पहले डीएफओ को भी लिखा है यहां की गतिविधियों के बारे में। उद्यान विभाग पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं। 2015-16 से ये सब हो रहा है। मेरी 60 की उम्र होने वाली है और मेरे लिए यह बहुत आफत हो चुकी है। देखिए हमारे पास केवल यही काम नहीं है। हम धनिया के भी मास्टर हैं, पुदीने के भी मास्टर हंै, कीड़े के भी मास्टर हैं, बीमारी के भी मास्टर हैं और पाॅली हाउस भी हमने लगवाने हैं, ड्रैगन फ्रूट भी हमने लगवाने हैं। कहीं पर पेड़ की कुछ समस्या आ जाती है, कोई बीमारी वाली फाइलें आ जाती है तो उनका
इंस्पेक्शन भी हमने करना है और बीच-बीच में यह जो पंचायती चुनावों की ड्यूटियां आ जाती हैं हमें वो भी देखना है। अभी वार्ड मेम्बर के चुनाव हैं वो भी हमें देखना है और हमें सुविधा कुछ नहीं मिलती है। कोई स्टाफ नहीं, कोई फोर्स नहीं, कोई प्रोटेक्शन नहीं। पेड़ की कंडीशन देखकर ही हम परमिशन देते हैं काटने की, अगर एक पेड़ खराब हो गया हो तो पूरा बगान कटाने की परमिशन देने वाले हम कौन होते हैं? हमारी इतनी हिम्मत नहीं कि हम पूरे-पूरे बाग उजाड़ दे। रामनगर में एक चीज और है जो हमारा काॅर्बेट की सीमा है, पीछे जंगल से उनकी दीवार है। 2 किलोमीटर तक अवैध कटान को रोकने के लिए। मान लीजिए वहां किसी ने रात को बिना अनुमति के चार पेड़ काट दिए तो जो डीएफओ होते हैं, तराई पश्चिमी के हो या रामनगर डिविजन के हो, फलपट्टी क्षेत्र में, वो उनकी जिम्मेदारी होती है उस 2 किलोमीटर पर एक्शन लेने की। देखिए बाग काटकर अवैध काॅलोनियां बनाए जाने के लिए उद्यान विभाग जिम्मेदार नहीं है इसके लिए जिला विकास प्राधिकरण जिम्मेदार है। यह इनकी लापरवाही है अगर काॅलोनियां अवैध बन रही है तो बुल्डोजर कौन चलाएगा उद्यान विभाग? हमारे पास तो सब्जी काटने वाला चाकू भी नहीं है, फाॅरेस्ट के पास तो फोर्स है, राइफल फोर्स है।
मैडम देखिए फलपट्टी का आप बात करे उद्यान अधिकारी से क्योंकि फोरेस्ट डिपार्टमेंट परमिशन नहीं देता है पेड़ काटने की परमिशन देता है उद्यान विभाग, जब वहां से परमिशन आ जाती है तो हम लोग निकासी देते है।
प्रकाश आर्या, डीएफओ तराई, पश्चिमी वन प्रभाग, रामनगर
हाईकोर्ट ने निजी घर बनाने के लिए किसी प्रकार की कोई रोक नहीं लगाई है जबकि काॅलोनियां जो बन गई हैं फैक्ट्रियां जो बन गई हैं, जो बगीचे काट कर बनी हैं, उसमें 143 एक्ट है। पूर्व में जो एसडीएम रहे हैं उन्होंने जो परमिशन दी थी उन पर काॅलोनियां बन गई हैं जबकि इसमें परमिशन एसडीएम स्तर पर न होकर राज्य सरकार द्वारा होनी चाहिए जिसमें पीआईएल भी लगी है। एक तो ‘दि संडे पोस्ट’ के सम्पादक अपूर्व जोशी जी की है और दूसरी कुंदन का मामला कोर्ट में चल रहा है। अदालत द्वारा प्रतिबंध बगीचे काट कर काॅमर्शियल निर्माण करने पर है बाकी निजी घर बनाने, निजी प्रयोग में कोई रोक नहीं है।
दुष्यंत मैनाली, अधिवक्ता हाईकोर्ट
देखिए मेरे आने से पहले जो भी काॅलोनियां बनी हैं उसमें हम जांच कर रहे हैं, बाकी मुझे ऐसा लगता है स्थानीयों की भी भागीदारी होनी चाहिए उन्हें जागरूक होना चाहिए, अगर हमें उसी समय जब पेड़ काट रहे हैं, कोई भी हमें तभी अगर सूचना मिल जाए तो हम उसी समय सख्त कार्यवाही करेंगे जिसमें वहां रह रहे, बाकी हमारी टीम निरीक्षण करती रहती है, जैसे कोई जमीन खरीदता है तो हम पूरी जानकारी लेते हैं कि कहां जमीन ले रहा है? क्यों ले रहा है? क्या करेगा? कौन ले रहा है? पूरा इन्पेक्शन होता है। कितने बार कैंसल भी हुआ है। जहां हमें लगा कि नहीं कुछ कमी है या कुछ सही नहीं है तो वहां कैंसल भी कर देते हैं। जहां तक रही उद्यान विभाग की बात, मुझे स्टाफ की कमी की जानकारी नहीं प्राप्त थी, अगर वे लिखित में हमें बता दें तो उन्हें शासन द्वारा स्टाफ व सुविधाएं दे दी जाएगी।
प्रमोद कुमार, एसडीएम रामनगर
विकास प्राधिकरण के जो भी अधिकारी हैं उन्हें हम ये निर्देश दे रहे हैं कि जो भी कानून है, जो भी महा योजना है उसके अनुसार ही विकास कार्य होंगे और जो अवैध कार्य करेगा उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही होगी, फल पट्टी क्षेत्र जिस विभाग के अंदर आता है, चाहे फिर वो उद्यान विभाग हो, चाहे वन विभाग हो,सब नियमों के अंतर्गत ही कार्य करेंगे, नियमों का उल्लंघन नहीं होने दिया जाएगा, देखिए मैं अभी आया हूं मेरे कार्यकाल में नियम के अंतर्गत ही सब होगा, जहां तक रही बात उद्यान विभाग में स्टाफ की कमी की तो उन्हें अपने प्राॅपर चैनल में जाकर इसकी जानकारी देनी चाहिए, एसडीएम उद्यान को कोई स्टाफ थोड़ी देगा, सही तरीके से यह बात सही व्यक्ति (सीएचओ और एचओडी) के सामने रखनी चाहिए, बाकी नियमानुसार ही कार्यवाही होगी।
ललित मोहन रयाल, जिलाधिकारी, नैनीताल

