दो नवम्बर की ऐतिहासिक रात भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने दुनिया को दिखा दिया कि संकल्प, संघर्ष और सपनों की ताकत क्या होती है। नवी मुम्बई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर भारत ने पहली बार महिला क्रिकेट विश्व कप अपने नाम किया। तीन लीग हार के बाद मिली यह जीत सिर्फ खेल नहीं, बल्कि भारतीय महिला शक्ति और क्रिकेट के नए युग की घोषणा है, जिसने 1983 की पुरुष टीम की याद ताजा कर दी और बता दिया कि अब बेटियां सिर्फ भाग नहीं लेतीं, दुनिया को जीतकर दिखाती हैं
नवी मुम्बई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में 2 नवम्बर की रात भारतीय खेल इतिहास में हमेशा के लिए तब अमर हो गई जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रन से हराकर अपना पहला महिला क्रिकेट विश्व कप जीत लिया। यह जीत केवल मैदान पर बने रन या गिरे विकेट की कहानी नहीं थी, बल्कि यह उस आत्मविश्वास, साहस और लम्बे इंतजार का परिणाम थी जिसमें भारतीय महिला क्रिकेटरों ने वर्षों तक मेहनत की, संघर्ष किया और अंततः विश्व क्रिकेट की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। जिस तरह 1983 में कपिल देव की कप्तानी में पुरुष टीम ने दुनिया को चौंकाया था उसी तरह हरमनप्रीत कौर की अगुवाई में इस टीम ने दिखाया कि भारतीय क्रिकेट की दूसरी क्रांति अब बेटियां लेकर आई हैं। स्टेडियम में बैठी हजारों आंखों में चमक थी और टीवी के सामने देश की करोड़ों धड़कनें उस क्षण को महसूस कर रही थीं जब भारत ने जीत का आखिरी विकेट लिया और पूरा देश ‘भारत माता की जय’ के नारों से गूंज उठा।
जब अंतिम विकेट गिरा तो मैदान में मौजूद दर्शकों के चेहरों पर भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। कहीं आंखों में आंसू थे, कहीं हंसी थी, कहीं तिरंगा लहराता दिख रहा था तो कहीं छोटी बच्चियां अपनी हीरो खिलाड़ियों को देखकर सपने बुनती नजर आईं। मीडिया स्टैंड में बैठे कैमरे इस ऐतिहासिक क्षण को कैद करने में व्यस्त थे, कमेंट्री बाॅक्स में उत्साह चरम पर था और भारत के कोच और सपोर्ट स्टाफ एक-दूसरे को गले लगाते हुए इस जीत का आनंद ले रहे थे। इस जीत ने उस लम्बी यात्रा को मुकाम दिया जिसमें पहले घरेलू मैदानों पर अभ्यास की कमी थी, फिर आर्थिक संसाधनों की दिक्कतें थीं, समाज के रवैए से लड़ाई थी लेकिन अब हालात बदल गए हैं, अब भारतीय महिला क्रिकेट सिर्फ मैदान पर ही नहीं, व्यवस्था और मानसिकता में भी जीत चुका है। ये जीत इसलिए भी खास है क्योंकि यह सिर्फ खिलाड़ियों की सफलता नहीं, बल्कि उस सोशल बदलाव का प्रतीक है जिसमें भारतीय बेटियां हर मैदान में आगे बढ़ रही हैं। आज यह टीम करोड़ों लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है। यह वही देश है जहां कभी लड़कियों से कहा जाता था कि खेल से क्या होगा लेकिन आज वही लड़कियां दुनिया को बता रही हैं कि अगर मौका मिले, मेहनत हो और दृढ़ संकल्प हो तो इतिहास उनके कदमों में हो सकता है। शैफाली वर्मा, दीप्ति शर्मा, जेमिमा रोड्रिग्स, हरमनप्रीत कौर, पूजा वस्त्राकर जैसे नाम आज घर-घर में जाने गए हैं और यह सिर्फ शुरुआत है। जिस तरह 2007 के बाद पुरुष क्रिकेट में खिलाड़ियों और सुविधाओं का स्तर बढ़ गया था अब वही दौर महिला क्रिकेट में आने वाला है।
बीसीसीआई ने इस ऐतिहासिक जीत के बाद टीम को 51 करोड़ रुपए का पुरस्कार घोषित किया है जो भारतीय महिला खेल इतिहास में अभूतपूर्व है। साथ ही राज्यों ने भी खिलाड़ियों को सम्मान देने शुरू कर दिए हैं।
सोशल मीडिया पर खिलाड़ी, राजनेता, बाॅलीवुड स्टार और उद्योग जगत के नेता इस जीत की सराहना कर रहे हैं। सचिन तेंदुलकर सहित कई दिग्गजों ने इसे 1983 की जीत जैसा पल बताया है और सच में यह जीत याद दिलाती है कि हर क्रांति मैदान में नहीं होती, कई क्रांतियां दिलों, उम्मीदों और सपनों में जन्म लेती हैं और फिर दुनिया को बदल देती हैं। आज भारतीय क्रिकेट का वह नया सवेरा है जहां लड़की होना रुकावट नहीं, बल्कि गौरव है। आने वाले दिनों में भारतीय महिला टीम पर और भी बड़ी जिम्मेदारी है। अब दुनिया उन्हें सिर्फ प्रतियोगी नहीं, चैम्पियन के रूप में देखेगी। उन्हें इस लय को बरकरार रखना होगा, घरेलू क्रिकेट सिस्टम को मजबूत करना होगा, नई प्रतिभाओं को मौका देना होगा और सबसे महत्वपूर्ण, उस आत्मविश्वास को हमेशा बनाए रखना होगा जो इस टीम को विशेष बनाता है। लेकिन इस समय सिर्फ जश्न का पल है। इस जीत ने हर भारतीय को गर्व महसूस करवाया है। चाहे आप क्रिकेट प्रेमी हों या न हों, यह वह उपलब्धि है जो हर भारतीय दिल में उत्साह जगाती है। आज भारत ने क्रिकेट नहीं, विश्वास जीता है। आज यह साबित हुआ कि सपने जब बेटियां देखती हैं तो सिर्फ पूरे नहीं करतीं वे सपनों का आसमान बदल देती हैं। इतिहास लिखा जा चुका है और आने वाला समय बताएगा कि इस जीत ने कितने नए क्रिकेटर पैदा किए, कितनी नई कहानियां जन्म लीं, और कैसे भारत की बेटियां आने वाले वर्षों में विश्व खेल मंच पर अपना प्रभुत्व कायम रखेंगी। यह केवल एक मैच नहीं था, यह भारत की महिला शक्ति की घोषणा थी, जो दुनिया ने सुन ली है और जिसे अब कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता।
-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

