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भारत-पाकिस्तान संघर्ष : किसी की जीत नहीं, सिर्फ हार की गूंज

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हालिया संघर्ष में दोनों देशों ने एक-दूसरे को गम्भीर क्षति पहुंचाई, लेकिन भारत को अमेरिका की मध्यस्थता में हुए संघर्षविराम ने ज्यादा क्षति पहुंचाने का काम किया है। भारतीय मीडिया हालांकि इसे एक ‘रणनीतिक सफलता’ कह रहा है लेकिन आम भारतीय इस अचानक घोषित युद्ध विराम से आहत है। दूसरी तरफ पाकिस्तानी मीडिया भी इसे ‘ऐतिहासिक जीत’ करार दे रहा है। सोशल मीडिया पर #ModiSurrenders और #PakVictoryDay जैसे हैशटैग ट्रेंड हो रहें हैं, अमेरिकी हस्तक्षेप को लेकर भी सवाल उठे हैं कि क्या भारत की विदेश नीति पर इसका असर पड़ेगा? प्रधानमंत्री मोदी की ‘झुकेंगे नहीं’ वाली छवि को भी इस संघर्षविराम के बाद चुनौती मिली है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे ‘No Clear Winner’ और ‘Forced Ceasefire’ की संज्ञा दी है। क्या यह युद्धविराम स्थायी शांति का मार्ग प्रशस्त करेगा
या सिर्फ एक अस्थाई विराम है?

एक कहावत है, ‘जीत के कई दावेदार होते हैं, पर हार हमेशा अकेली होती है।’ यह कहावत भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए संक्षिप्त लेकिन भयंकर संघर्ष पर सटीक बैठती है। दोनों परमाणु शक्ति सम्पन्न पड़ोसी देशों ने इस युद्ध में एक-दूसरे को भारी क्षति पहुंचाई और खुद भी गहरे जख्म सहे।

संघर्ष समाप्ति के बाद जैसे ही अमेरिका की मध्यस्थता में युद्धविराम लागू हुआ, भारत के न्यूज चैनलों पर ‘पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया’ की सुर्खियां छा गईं। भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ मजबूत संदेश बताया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में पिछले महीने हुए पर्यटकों की हत्या के बाद भारतीय सेना का यह कदम आवश्यक था।

दूसरी ओर, पाकिस्तान में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इसे ‘सैन्य इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय’ बताते हुए अपनी सेना की बहादुरी की सराहना की। इस जश्न में इस्लामाबाद की सड़कों पर लोगों ने भारतीय प्रधानमंत्री का पुतला भी जलाया। शरीफ ने कहा, ‘कुछ ही घंटों में हमारे जेट विमानों ने भारत की तोपों को खामोश कर दिया, इसे इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।’

भारतीय मीडिया ने युद्धविराम की घोषणा के तुरंत बाद इसे एक ‘रणनीतिक सफलता’ के रूप में प्रस्तुत किया। प्रमुख समाचार चैनलों ने ‘पाकिस्तान ने किया आत्मसमर्पण’ जैसे शीर्षक चलाए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयानों को प्रमुखता से दिखाया गया, जिसमें उन्होंने भारतीय सेना की कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ कठोर संदेश बताया।

पाकिस्तान के समाचार चैनलों ने इस युद्धविराम को अपनी सेना की ‘शानदार जीत’ के रूप में दिखाया। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के भाषणों को लगातार प्रसारित किया गया, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान वायुसेना द्वारा पांच भारतीय विमानों को मार गिराने का दावा किया। पाकिस्तानी मीडिया ने इसे ‘भारतीय घमंड का अंत’ बताते हुए अपने सैन्य बल की प्रशंसा की।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया की प्रतिक्रिया

‘सीएनएन’ ने इसे ‘No Clear Winner’ के रूप में दिखाया, जबकि ‘बीबीसी’ ने इसे अमेरिका की एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा। ‘अल जजीरा’ ने इसे कश्मीर मुद्दे पर भारत की स्थिति को कमजोर बताने की कोशिश की। ‘द गार्डियन’ और ‘डेर स्पाइजेल’ ने इसे ‘फोर्सेज सीजफायर्ड’ का नाम दिया और अमेरिकी हस्तक्षेप को निर्णायक बताया। New York Times ने भारत की ‘No Mediation’ नीति पर सवाल उठाते हुए इसे एक कूटनीतिक झटका बताया।

 

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं:

युद्धविराम के बाद सोशल मीडिया पर दोनों देशों के नागरिकों ने विभिन्न तरह की प्रतिक्रियाएं दीं। भारतीय सोशल मीडिया पर#ModiSurrenders और #CeasefireBetrayal जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। वहीं, समर्थक पक्ष ने इसे मोदी सरकार की रणनीतिक जीत बताया। पाकिस्तान में #PakVictoryDay और #SharifStrikesBack जैसे हैशटैग ट्रेंड में रहे।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मोदी सरकार को निशाने पर लिया। राहुल गांधी ने इस युद्धविराम को भारत की कूटनीतिक हार करार दिया और कहा कि मोदी का ‘56 इंच का सीना’ अमेरिका के एक फोन काॅल पर नरम पड़ गया। लेफ्ट पार्टियों ने इसे भारतीय कूटनीति की कमजोरी बताया और कहा कि यह संघर्षविराम आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करेगा।

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने इसे शरीफ सरकार की बड़ी सफलता बताया। इमरान खान ने अपने एक ट्वीट में इसे पाकिस्तान की सेना की महान उपलब्धि कहा। पीपीपी ने इसे प्रधानमंत्री शरीफ की कुशल नेतृत्व क्षमता का प्रमाण माना।

मोदी की छवि पर प्रभाव

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पूरे कार्यकाल में ‘झुकेंगे नहीं’ और ‘आतंक के खिलाफ जीरो टाॅलरेंस’ का नारा दिया है। लेकिन इस युद्धविराम के बाद उनके समर्थकों के बीच एक असंतोष की लहर देखी गई। सोशल मीडिया पर मोदी के खिलाफ असंतोष व्यक्त करने वाले पोस्ट्स की संख्या में वृद्धि हुई। विपक्ष ने इसे मोदी की कमजोरी करार दिया और उनके दृढ़ निश्चय पर सवाल उठाए।

यह युद्धविराम न केवल भारत और पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं का परीक्षण था, बल्कि दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व की कूटनीति पर भी एक प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर इसका प्रभाव पड़ा है, जिसका असर आगामी चुनावों पर भी देखने को मिल सकता है। अमेरिकी हस्तक्षेप को लेकर भी नई बहस शुरू हो गई है, जिसने भारतीय कूटनीति की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े किए हैं। आखिरकार, यह युद्धविराम क्या स्थायी शांति की ओर कदम बढ़ाएगा या यह महज एक अस्थाई विराम साबित होगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

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