हल्द्वानी नगर निगम के मेयर पद के हालिया चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ललित जोशी ने निर्वाचन प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उनकी याचिका को जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं चुनाव ट्रिब्यूनल सुबीर कुमार की अदालत ने स्वीकार भी कर लिया है। परिणाम को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार होने के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल बढ़ गई है। ललित जोशी का आरोप है कि भाजपा प्रत्याशी गजराज सिंह बिष्ट को 71,962 मत मिले, जबकि उन्हें 68,068 मत प्राप्त हुए। चुनाव में 6,769 मत निरस्त किए गए, जो जीत के अंतर से अधिक हैं। उन्होंने मतदान फार्म-19 में दर्ज मतों की संख्या और मतपेटियों से प्राप्त मतों की संख्या में भी अंतर होने का दावा किया है। विशेष रूप से, आनंदा अकादमी डहरिया मुखानी और महर्षि विद्या मंदिर के कुछ बूथों में इस अंतर की शिकायत की गई है

हालिया चुनाव में चाहे लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव या फिर निकाय चुनाव, चुनाव आयोग या राज्य निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते रहे। चंडीगढ़ नगर निगम मेयर के चुनाव में उच्चतम न्यायालय तक को हस्तक्षेप करना पड़ा था। हरियाणा, महाराष्ट्र और हाल में सम्पन्न हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं। खासकर मतदाता सूची में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम काटने के साथ ही दल विशेष के मतदाताओं के नाम काटने के आरोप लगे थे। उत्तराखण्ड के नगर निकाय चुनावों में मतदाता सूची में बड़ी संख्याा में वोटरों के नाम काटने के आरोप लगे थे। हल्द्वानी नगर निगम चुनावों में भी करीब 20 वार्डों के मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में नाम न होने पर चुनाव कराने वाली मशीनरी पर सवाल उठना लाजिमी है। ये तब हुआ जब निकाय चुनावों से पूर्व मतदाता सूची में नाम चढ़वाने के लिए नगर निगम ने विभिन्न जगह कैम्प लगाए थे। मतदान से लेकर मतगणना तक कई उम्मीदवारों ने चुनाव कराने वाले अधिकारियों पर निष्पक्षता न बरत चुनाव की पवित्रता के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है।

हल्द्वानी नगर निगम में मेयर प्रत्याशी रहे ललित जोशी

हल्द्वानी नगर निगम में मेयर प्रत्याशी रहे ललित जोशी ने मेयर पद के निर्वाचन को चुनौती देते हुए नैनीताल जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं चुनाव ट्रिब्यूनल सुधीर कुमार के न्यायालय में एक याचिका दाखिल की है। याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने रिटर्निंग ऑफिसर शहरी विकास हृदयेश मेयर पद ने समस्त प्रत्याशियों को नोटिस जारी किए हैं। कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी रहे ललित जोशी ने मतदाता सूची में गड़बड़ी, बड़ी संख्या में मत पत्रों के निरस्त होने तथा कई बूथों पर पड़े मतों और गिने गए बूथों में अंतर का आरोप लगाया है। हल्द्वानी नगर निगम में मेयर पद पर भारतीय जनता पार्टी के गजराज सिंह बिष्ट ने कांग्रेस के प्रत्याशी ललित जोशी को 3894 मतों के अंतर से हराया था। वहीं गजराज सिंह बिष्ट को 71962 और ललित जोशी को 68068 वोट मिले थे। नगर निगम हल्द्वानी के चुनाव में 1 लाख 58 हजार 646 लोगों ने वोट डाला था। अंत तक कांटे की लड़ाई में गजराज सिंह बिष्ट ने कांग्रेस के ललित जोशाी को पराजित तो कर दिया लेकिन ललित जोशी ने निर्वाचन प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हुए चुनाव ट्रिब्यूनल पर याचिका दायर कर नगर निगम चुनाव में मेयर पद पर निर्वाचन को चुनौती देकर सवाल खड़े किए हैं। इसमें कई सच ऐेसे हैं जिन पर प्रश्न उठना स्वाभविक है। नगर निगम चुनाव में मेयर पद हेतु डाले गए मतों में 6767 मत रद्द कर दिए गए। ललित जोशी का कहना है कि रद्द किए गए मत पत्रों में 90 प्रतिशत मत पत्र ऐसे थे जो उनके पक्ष में थे लेकिन एक साजिश के तहत इन्हें रद्द किया गया। वे मतदान स्थान पर ही मतपेटियों से छेड़छाड़ की आशंका व्यक्त करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार के तथ्य सामने आ रहे हैं उसने चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिन मत पत्रों को रद्द किया गया उनमेें बड़ी संख्या में ऐसे मतदान थे जिनमें मतदाता ने तो उनके पक्ष में वोट किया था लेकिन वही मत पत्र में ऐसे एक प्रत्याशी विशेष के नाम के आगे उसका नाम लिखा मिल गया। सवाल खड़ा होता है कि क्या वोट देने वाले की मंशा अपने वोट निरस्त कराने की थी। अगर उसकी मंशा किसी प्रत्याशी को वोट नहीं देने की होती तो वो नोटा का इस्तेमाल कर सकता था लेकिन एक प्रत्याशी के नाम के आगे मुहर तो दूसरे प्रत्याशी के नाम के सामने उसका नाम लिख कर अपने मत को बर्बाद कर देना आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता। अगर सिर्फ कुछ मत पत्रों में ऐसा किया गया होता तो समझ में आता है। ललित जोशी का कहना है कि ऐसा करके उनके पक्ष में पड़े कई मतों को रद्द करने का आधार बनाया गया। अगर ऐसा किया गया होगा तो बिना अधिकारियों की मिलीभगत के ये सम्भव नहीं है? सवाल उठता है कि क्या मतदाताओं का वाकई में ऐसा समूह था जिसने इस पैटर्न पर वोटिंग की और अपने मत को रद्द करने का आधार बनाया या फिर ललित जोशी के पक्ष में पड़े वोटों को साजिश के तहत रद्द करवाने के लिए मतदान के बाद ऐसा किया गया? लेकिन रद्द मत पत्रों के विषय में ऐसी जानकारी आ रही है जिसमें कहा जा रहा है कि बड़ी संख्या में रद्द किए गए मत पत्रों में ऐसे मत पत्र भी हैं जो कि ब्लैंक हैं यानी वोटर ने बिना मुहर लगाए अपने मत पत्र को पेटी में डाल दिया। इसका मतलब शायद ये हुआ कि मतदाता लम्बे समय तक वोट देने के लिए वोटिंग की लाइन में खड़ा रहा और पीठासीन अधिकारी से मत पत्र प्राप्त कर बिना मुहर लगाए सीधे उसे मत पेटी में डाल आया। कई मतदान केंद्र ऐसे हैं जिनमें मत पेटी में पड़े मतों की संख्या और कुल गिने गए मतों की संख्या में अंतर है। कहीं गिने गए वोट डाले गए वोटों से कम तो कहीं गिने गए वोट डाले गए वोटों से ज्यादा निकले।

कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आनंदा एकेडमी डहरिया मुखानी के मतदान केंद्र का उदाहरण लें तो फार्म 19 के अनुसार डाले गए वोट 708 हैं लेकिन जब मतगणना की गई तो 405 वोट ही गिनती में आए। इस प्रकार 303 वोट कम पाए गए, आनंदा एकेडमी के ही एक अन्य बूथ पर 749 की वोटिंग फार्म 19 में है लेकिन गिनती में मत 398 ही निकले। आनंदा एकेडमी के तीसरे बूथ में 624 मतदाताओं के मत डालने का रिकाॅर्ड फार्म 19 में दिखाया गया है लेकिन गणना 703 वोट की की गई। इसी प्रकार महर्षि विद्या मंदिर के एक बूथ पर फार्म 19 के अनुसार 398 मत डाले गए लेकिन मतगणना 624 मतों की हुई। मतलब मत पेटी में 266 वोट ज्यादा निकले। महर्षि विद्या मंदिर के ही एक अन्य बूथ पर मत तो पड़े 405 लेकिन गिनती में 727 मत निकले। कुल मिलाकर 322 मत ज्यादा निकले। इसी प्रकार भगवानपुर के एक बूथ पर 648 वोट पड़े लेकिन 476 वोट ही मतगणना के समय गिने गए। इस प्रकार मतगणना में मत पत्रों का कम या ज्यादा होना चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर ही संदेह पैदा करता है। मत पेटियों में वो कौन-सी चमत्कारिक शक्ति प्राप्त कर ली जिसमें ये मत पत्रों को पचाने और नए मत पत्रों को बढ़़ाने में सक्षम हो गई। मत पत्रों में कमी और बढ़ोतरी सही है तो क्या ये जान-बूझकर किया गया कृत्य है या फिर सिर्फ मानवीय चूक। अगर मानवीय चूक है तो मतदान केंद्रों पर चुनाव समाप्ति कराने वाले अधिकारियों की योग्यता और निष्ठा पर सवाल है। क्या पूरी जांच के बाद ऐसे और मामले भी आएंगे जिनमें डाले गए मतों की संख्या और गिने गए मतों की संख्या में अंतर आए। बहरहाल, ललित जोशी की याचिका स्वीकार होने के बाद न्यायालय की सुनवाई के बाद तय होगा कि सच्चाई क्या है?

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