उत्तर प्रदेश में सियासत इस समय सतह पर भले धीमी दिखे, पर पर्दे के पीछे हलचल तेज है। सत्ताधारी दल भाजपा ने मंडल व जिला समिति समीक्षा का दूसरा चरण शुरू किया है, जिसमें प्रत्येक विधानसभा से बूथ-वाॅर रिपोर्ट ली जा रही है। कहा गया है कि अब केवल ‘कागजी नाम’ नहीं, सक्रिय ग्राउंड वर्कर ही जिम्मेदारियों में बनाए जाएंगे। युवा प्रकोष्ठ को नए सोशल कनेक्ट अभियान का काम दिया गया है ताकि काॅलेज, यूनिवर्सिटी और शहरी मतदाताओं के बीच पकड़ मजबूत रहे। विपक्ष ने भी रणनीति बदल ली है। समाजवादी पार्टी द्वारा बड़े नेताओं के बयानों पर निर्भरता कम और पैरवी-परिचर्चा-प्रचार तीन स्तरों पर एक नेटवर्क सक्रिय किया जा रहा है। खासकर दलित-ओबीसी बेल्ट में ‘स्थानीय मुद्दा, स्थानीय चेहरा’ माॅडल पर काम शुरू हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2027 यूपी चुनाव ऑफिसों में नहीं, गली-गली में तय होगा। इसीलिए फिलहाल शोर नहीं, पर जमीन पर धड़कन तेज है।
अपने गठन के बाद से ही लगातार पार्टी भीतर और विपक्ष के निशाने पर रही भजन लाल शर्मा सरकार सरकार ने प्रशासनिक ढांचे की कसावट बढ़ा दी है। जिला अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे योजनाओं की समीक्षा केवल फाइलों से नहीं, बल्कि वास्तविक साइट विजिट से करें। ग्रामीण सड़क परियोजनाओं, जल संसाधन सुधार, स्वास्थ्य उपकेंद्र तथा विद्यालयों की सुविधाओं की वास्तविक तस्वीर मांगी जा रही है। इसके लिए ब्लाॅक स्तर पर ‘प्रगति प्रपत्र’ जारी किए गए हैं। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ये सब ‘चुनाव की तैयारी के नाम पर प्रशासनिक दबाव’ डालकर कर रही है। सत्ता पक्ष का जवाब साफ ‘काम दिखेगा तभी विश्वास बनेगा’। सरकारी हलकों में चर्चा है कि आने वाले महीनों में लाभार्थी सूची की भी दोबारा जांच होगी ताकि शिकायतें और फर्जीवाड़ा रोका जा सके। यह भी संकेत मिल रहे हैं कि शहरों के मुकाबले इस बार ग्रामीण प्रदर्शन और सामाजिक योजनाओं के असर पर ज्यादा फोकस रहेगा। राजनीतिक तौर पर राजस्थान में अभी तैयारियों का दौर है, लेकिन भूमि परीक्षण की नीति से सरकार भविष्य की नींव डालने में लगी है।
पश्चिम बंगाल में प्रशासनिक फेरबदल ने राजनीतिक माहौल में नया मोड़ ला दिया है। राज्य के कई महत्वपूर्ण जिलों में नए अधिकारी तैनात किए गए हैं, जिससे सत्तापक्ष ने पंचायत और ब्लाॅक प्रशासन में बेहतर तालमेल की उम्मीद जताई है। इसी बीच पार्टी संगठन ने अपने ‘ग्रासरूट टच-प्वाइंट’ को पुनर्जीवित करने का अभियान चलाया है। सत्ताधारी दल ने महिला, किसान और अल्पसंख्यक समूहों से सीधे संवाद कार्यक्रम शुरू करना तय किया है। ग्रामीण इलाकों में छोटी-छोटी चैपाल बैठकों और गांव-स्तरीय प्रतिनिधियों की रिव्यू मीटिंग को गति दी जा रही है। विपक्ष इस कदम को ‘चुनावी तैयारी का शुरुआती ड्रिल’ बता रहा है और शहरी हिस्सों में ‘विकास बनाम राजनीतिक दबाव’ के मुद्दे उठा रहा है। बंगाल की राजनीति में पंचायतें हमेशा निर्णायक भूमिका निभाती हैं। यही वजह है कि इस बार तैयारी पोस्टर से नहीं, पंचायत के दरवाजे से शुरू हो रही है। आने वाले दिनों में ग्रामीण क्षेत्र में राजनीतिक गर्माहट और बढ़नी तय है।
महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिविधियां इस समय बहुत व्यवस्थित पर धीमी गति वाली दिखाई देती हैं, पर अंदरखाने हर दल में गम्भीर चर्चा चल रही है। सत्तापक्ष ने अपने विधायकों और जिलाध्यक्षों के प्रदर्शन का ऑडिट शुरू कर दिया है। इसमें केवल बुनियादी काम नहीं, बल्कि जनसम्पर्क, मीडिया उपस्थिति, संगठन सहयोग और स्थानीय संवेदनशीलता जैसे मानदंड भी शामिल हैं। विपक्ष अपनी रणनीति ‘मुद्दों की प्रामाणिकता’ पर आधारित कर रहा है। माना जा रहा है कि किसान संकट, कर्मचारी संगठनों की नाराजगी, और मराठी विचारधारा का पुनर्संयोजन विपक्ष की प्रमुख लाइन होगी। वहीं शहरी क्षेत्रों, विशेष रूप से मुम्बई-पुणे बेल्ट में मेट्रो, हाउसिंग और ट्रांसपोर्ट पर विमर्श तेज किया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की राय में इस बार महाराष्ट्र का चुनाव धारणा बनाम उपलब्धि और स्थायित्व बनाम स्वाभिमान के बीच झूल सकता है। टिकट वितरण चरण सबसे निर्णायक होगा।
कर्नाटक सरकार एक ओर निवेश आकर्षित करने की कड़ी कोशिश कर रही है। इस लक्ष्य को पाने के लिए सिद्धरमिया सरकार टाॅप टेक कम्पनियों से बातचीत कर रही है, स्टार्टअप पाॅलिसी अपडेट तेजी से चल रहा है और विदेशी प्रतिनिधिमंडल आमंत्रण जारी हैं। उद्देश्य स्पष्ट है, बेंगलुरु की वैश्विक पहचान को और प्रखर बनाना। दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में सरकार को एहसास है कि किसान और क्षेत्रीय असंतोष की सम्भावनाओं को समय रहते सम्भालना होगा। इसके लिए ग्राम सभाओं, कृषि ऋण समीक्षा और रोजगार कार्यक्रमों का नया स्वरूप तैयार हो रहा है। विपक्ष इसे ‘कागजी विकास’ बताकर ग्रामीण फ्रंट पर अधिक सक्रिय है और पंचायत स्तर पर सर्वे व जन चर्चा चला रहा है। राजनीति के जानकार इसे अर्बन माॅडल बनाम रूरल सेंटीमेंट की टक्कर बताते हैं। यह मुकाबला केवल विचार नहीं, आर्थिक दिशा तय करने वाली बहस भी है। आने वाले महीनों में राज्य की राजनीति का पिच और तीखा होने की उम्मीद है।

