बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने प्रदेश की राजनीति में कई नए समीकरण खड़े कर दिए हैं। एक तरफ जहां नीतीश कुमार और बीजेपी की स्थिति और मजबूत हुई, वहीं आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन का जनाधार कमजोर पड़ता दिखा। इन चुनाव परिणामों के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि क्या विपक्ष की खाली होती जगह को भरने के लिए प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज सक्रिय रूप से उभरने की कोशिश कर रही है? क्या तेजस्वी यादव का विकल्प बन पाएंगे पीके जैसे तमाम सवाल उठ रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि प्रशांत किशोर ने चुनाव से पहले 150 सीटें जीतने का दावा किया था, लेकिन पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। 236 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई। इसके बावजूद जनसुराज ने कई क्षेत्रों में मुकाबले को प्रभावित किया। राज्य की 35 सीटों पर जनसुराज प्रत्याशियों को मिले वोट हार-जीत के अंतर से ज्यादा थे। इनमें से 19 सीटें एनडीए, 14 महागठबंधन और 1-1 सीट बसपा व एआईएमआईएम ने जीतीं। यानी जनसुराज ने अप्रत्यक्ष रूप से एनडीए को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाया। पार्टी का सबसे बेहतर प्रदर्शन मढ़ौरा सीट पर रहा जहां जनसुराज उम्मीदवार नवीन कुमार सिंह 58 हजार 190 वोट पाकर दूसरे नम्बर पर रहे। इसके अलावा 115 सीटों पर पार्टी तीसरे स्थान पर रही। राज्यभर में जनसुराज को सिर्फ 3.14 फीसदी वोट मिले जबकि आरजेडी को 23 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल हुए। ऐसे में तेजस्वी यादव के विकल्प के तौर पर उभरने के लिए पीके की पार्टी को अभी लम्बा सफर तय करना होगा। फिर भी इस चुनाव में जनसुराज ने यह जरूर दिखा दिया कि वह आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। गौरतलब है कि पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर भले ही राजनीतिक पार्टियों की चुनावों में जीत के लिए रणनीति में महारथ हासिल किए हों, लेकिन वे खुद राजनीति के सफल खिलाड़ी फिलहाल साबित नहीं हो सके हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में उनका दल जनसुराज पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सका। हालांकि जनसुराज पार्टी बिहार की राजनीति से किनारा नहीं करेगी बल्कि राज्य में सक्रिय बनी रहेगी। इसका मतलब है कि प्रशांत किशोर सब्र और दूरदृष्टि के साथ राजनीति की डगर पर आगे बढ़ रहे हैं। उनकी नजर बिहार और यहां की राजनीति के भविष्य पर है। जन सुराज पार्टी का यह पहला चुनाव था। अपने पहले चुनाव में हार के बावजूद जन सुराज पार्टी अपने एजेंडे पर कायम है। पार्टी अध्यक्ष उदय सिंह ने कहा कि पार्टी के सदस्य निराश नहीं हैं और वे जानते हैं कि उन्हें क्या करना है। वे ‘बिहार बदलाव’ के अपने वादे को पूरा करने के लिए काम करते रहेंगे।
बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की ऐतिहासिक जीत ने न सिर्फ नीतीश कुमार की सत्ता वापसी की भविष्यवाणियों को गलत साबित किया, बल्कि उन पुराने नेताओं को भी बैकफुट पर ला दिया है जिन्होंने कभी भाजपा से दूरी बना ली थी। इन्हीं में सबसे चर्चा में हैं टीएमसी सांसद और पूर्व भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा। दो महीने पहले जहां शत्रुघ्न तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने पीएम मोदी को जन्मदिन पर शुभकामनाएं दी थीं और लिखा था कि एक बार के दोस्त, हमेशा दोस्त। अब बिहार में एनडीए की जीत के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने खुले दिल से जेडीयू,भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बधाई दी। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा बधाई हो! बिहार के लोगों को उनकी पसंद की सरकार मिल गई। सबसे सम्मानित, सज्जन और भरोसेमंद नेता नीतीश कुमार के नेतृत्व में। इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में इसे सिन्हा की सम्भावित घर वापसी के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि बीते कुछ महीनों से उनकी भाजपा और एनडीए नेतृत्व के प्रति बढ़ती सौम्यता बताती है कि भाजपा में उनकी वापसी अब सिर्फ समय का इंतजार है। शत्रुघ्न सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर के बड़े भाजपा नेता हैं। वह 1980 के दशक में भाजपा से जुड़े और 1990 में पहली बार भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और दिल्ली की न्यू दिल्ली सीट से सांसद चुने गए। यह जीत उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत थी। इसके बाद वह 1991 में भी इस सीट से जीते। उनकी लोकप्रियता और पार्टी के प्रति निष्ठा चलते उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में जगह मिली। 2009 और 2014 में उन्होंने पटना साहिब लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की। लेकिन पार्टी नेतृत्व के साथ उनके रिश्ते ठीक नहीं रहे और 2019 में सिन्हा को पटना साहिब से टिकट नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने भाजपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का फैसला लिया। 2024 के आम चुनाव में वह टीएमसी के टिकट पर आसनसोल से सांसद हैं, लेकिन बीते कुछ समय से वह जिस तरह से भाजपा और एनडीए नेतृत्व की तारीफ कर रहे हैं उससे सम्भावना जताई जा रही है कि वह आने वाले वक्त में घर वापसी करने की सोच रहे हैं।
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के पति राॅबर्ट वाड्रा ने एक बार फिर राजनीति में आने के संकेत दिए हैं। इंदौर में धार्मिक यात्रा के दौरान एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में वाड्रा ने न केवल अपनी सम्भावित राजनीतिक पारी पर बात की बल्कि बीजेपी और बिहार चुनाव परिणामों पर भी तीखे सवाल उठाए। वाड्रा ने कहा कि ‘अगर मैं राजनीति में आता हूं तो लोग इसे परिवारवाद कहेंगे। लेकिन अगर जनता चाहेगी, समर्थन देगी तो मैं राजनीति में जरूर आऊंगा। यदि हम संसद में होंगे तो लोगों की आवाज को और मजबूती से उठा सकेंगे।’ यही नहीं अपने बेटे रेहान की सम्भावित राजनीतिक एंट्री पर वाड्रा ने साफ कहा कि अभी यह सही समय नहीं है। उन्होंने कहा कि रेहान ने बचपन से राजनीति को देखा, सीखा और गांधी परिवार के संघर्ष को महसूस किया है। लेकिन वे मानते हैं कि फिलहाल उसे राजनीति में लाना जल्दबाजी होगी। वाड्रा ने यह भी आरोप लगाया कि रेहान ने देखा है कि बीजेपी किस हद तक केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करती है। इस दौरान वाड्रा ने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बीजेपी हर चुनाव में उनके नाम का इस्तेमाल करती है और अनावश्यक विवाद खड़ा करती है। बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों को लेकर उन्होंने कहा कि लोग हैरान हैं, खुश नहीं। जो हुआ है वह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं। चुनाव आयोग की मदद से ऐसे नतीजे आए हैं। उनके इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में कयासों को और हवा दे दी है कि वाड्रा जल्द ही सक्रिय राजनीति में कदम रख सकते हैं, वहीं कांग्रेस की भविष्य की राजनीति पर भी सवाल खड़े किए हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या वाड्रा की राजनीति में एंट्री कांग्रेस की रणनीति बदलेगी? क्या कांग्रेस उन्हें किसी सीट से उतारने पर विचार कर सकती है? क्या वे उत्तर प्रदेश या राजस्थान जैसे राज्यों में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं? राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आधिकारिक रूप से पार्टी की ओर से कोई संकेत नहीं दिया गया है, लेकिन वाड्रा के लगातार बढ़ते राजनीतिक बयान यह दर्शाते हैं कि आने वाले समय में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।

