हरीश रावत पिछले दिनों से यूं ही ब्राह्माण राग नहीं अलाप रहे थे, उनके इस राग के सुर हाईकमान के निर्णय में साफ सुनाई देते हैं। गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाना कांग्रेस हाईकमान का एक सोचा-समझा कदम है। वे एक संतुलित और स्वीकार्य चेहरा माने जाते हैं, पहाड़ के नेता हैं, संगठन पर पकड़ रखते हैं और किसी गुट से सीधा टकराव नहीं रखते। इससे कांग्रेस ने यह संदेश दिया कि वह ‘एकजुटता’ की राजनीति को प्राथमिकता दे रही है। प्रीतम सिंह का चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनना उनकी भविष्य की राजनीति के लिए बड़ा संकेत है और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के लिए चुनौती भी है। हरक सिंह रावत को चुनाव प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनाना चैंकाता जरूर है, रणनीतिक तौर पर कांग्रेस उनकी उपयोगिता समझती है
उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के 15 महीने पहले कांग्रेस ने जो नियुक्तियां की हैं, उनको देखकर लगता है कि प्रदेश में पार्टी की मजबूती के लिए हाईकमान सक्रिय हो चुका है। लम्बे समय से संगठन के सम्बंध में चली आ रही ऊहापोह की स्थिति अब समाप्त हो गई है। लेकिन जिस प्रकार कांग्रेस ने उत्तराखण्ड में अपने संगठन बदलाव किया है, उसको देखते हुए लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के सामने शायद चुनौतियां बढ़ गई हैं। उत्तराखण्ड कांग्रेस के संगठन में बड़े पैमाने पर बदलाव कोंग्रेस की भविष्य की रणनीति की एक झलक है, साथ ही जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में जो तेजी कांग्रेस आलाकमान ने दिखाई है, उसने राजनीतिक विश्लेषकों को जरूर हैरत में डाला, क्योंकि कांग्रेस आलाकमान के इंतजार और थका देने वाले फैसलों से कांग्रेसी और आमजन भी आदी हो चुके हैं। इन बदलावों का उद्देश्य आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को मजबूत संगठन और स्पष्ट नेतृत्व देना है। इस सूची में गौर करने लायक बात यह है कि लम्बे इंतजार के बाद जो उत्तराखण्ड में संगठनात्मक बदलाव किए गए हैं, उनमें जातीय संतुलन खासकर ब्राह्माण क्षत्रिय का विशेष ध्यान रखा गया है और यही ध्यान जिला अध्यक्षों की सूची में भी नजर आता है। जहां गणेश गोदियाल के रूप में ब्राह्मण चेहरे को जगह दी गई है तो वहीं प्रीतम सिंह के रूप में जनजाति और हरक सिंह रावत के रूप में ठाकुर वोटों को साधने की कोशिश की गई है। कांग्रेस की इस सूची में ब्राह्मण, ठाकुर, महिलाओं, अल्पसंख्यक, वैश्य, ओबीसी और सभी का प्रतिनिधित्व नजर आता है। जिलाध्यक्षों की सूची पर नजर डालें तो इनमें 6 ब्राह्मण हैं 12 ठाकुर हैं और 3 महिलाएं हैं। सिख और मुस्लिम, वैश्य और खत्री इन सबका समन्वय इस सूची में दिखाई देता है। निवर्तमान अध्यक्ष करण माहरा की नियुक्ति 2022 में गणेश गोदियाल को हटाकर ही की गई थी, आज उन्हीं गणेश गोदियाल को पुनः प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंप कर करण माहरा की विदाई केंद्रीय कार्य समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में हुई है। दरअसल गणेश गोदियाल को 2022 में जब कमान दी गई तो उत्तराखण्ड कांग्रेस आपस में विभाजित थी और उन्हें अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने का मौका कांग्रेस हाईकमान ने नहीं दिया था। कांग्रेस आलाकमान के उस निर्णय पर कई सवाल भी उठे थे। खासकर 2022 के विधानसभा चुनाव बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की खटीमा से पराजय के बाद भी पुनः मुख्यमंत्री नामित कर दिया था। 2022 के विधानसभा चुनाव के परिदृश्य पर नजर डालें तो उस वक्त हरीश रावत, गणेश गोदियाल एक खेमे में खड़े थे तो एक मजबूत विरोधी खेमा कांग्रेस के अंदर ही प्रीतम सिंह, करण माहरा और रंजीत रावत के रूप में खड़ा था। जिस वक्त कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी से लड़ना था, कांग्रेस के बड़े नेता आपस में एक दूसरे को निपटाने में व्यस्त थे। उस वक्त कांग्रेस के अंदर का एक खेमा इस बात पर खुश था कि 2022 में हरीश रावत तो निपट गए, अब 2027 हमारा है। लेकिन विडम्बना देखिए आज वही चेहरे क्षेत्र विशेष में अपनी जमीन बचाने में लगे हैं जबकि हरीश रावत जिन्हें 2022की हार के बाद चूका हुआ मान लिया गया था वो 2022 से 2025 तक के दौरान कांग्रेस की वो धुरी रहे जिसके आस-पास कांग्रेस की राजनीति घूमती रही। करण माहरा चाह कर भी अपनी कार्यकारिणी घोषित नहीं कर पाए और शायद वह पहले प्रदेश अध्यक्ष हैं, जो अपनी कार्यकारिणी बनाए बिना ही कार्यकाल खत्म कर गए। भले ही रावत के विरोधी कुछ कहें लेकिन 2022 के बाद कांग्रेस की या कहें उत्तराखण्ड की राजनीति मे हरीश रावत ने अंगद के रूप में पांव जमाकर रखा और हम आज देखते हैं कि कांग्रेस की राजनीति फिर आज हरीश रावत के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई है। करण माहरा की प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई और प्रीतम सिंह, यशपाल आर्य, गणेश गोदियाल और हरीश रावत का एक नया समीकरण पार्टी के भीतर खड़ा हो गया है। क्या किसी ने यह उम्मीद की होगी कि 2022 में आपसी दो विपरीत ध्रुवों में खड़े प्रीतम सिंह और हरीश रावत आज 2026 आते-आते एक ही साथ दिखाई देंगे? आज प्रीतम सिंह के साथ न करण माहरा है, न रंजीत रावत है, अगर कोई है तो हरीश रावत। जबकि प्रीतम सिंह के प्रदेश अध्यक्ष रहते रंजीत रावत पार्टी के अंदर बहुत ताकतवर थे। 2022 के बाद हरीश रावत पूरे प्रदेश में सक्रिय रहे जबकि कुछ नेता खास क्षेत्र में सिमट कर रह गए।
हालांकि पार्टी के भीतर उनके प्रति विश्वास का मुद्दा अभी भी चर्चा में है। कांग्रेस हाईकमान का यह निर्णय हरीश रावत को कितना पसंद आया होगा यह कहा नहीं जा सकता।
संतुलन और रणनीति के केंद्र में हरीश रावत इस पूरे पुनर्संतुलन के ‘अदृश्य सूत्रधार’ कहे जा सकते हैं, जिन्होंने अपने पत्ते बड़ी राजनीतिक चतुराई से चले हैं। उनकी भूमिका कांग्रेस की राजनीति में हर स्तर पर दिखाई देती है। मार्गदर्शक और वरिष्ठ पर्यवेक्षक हरीश रावत अब प्रत्यक्ष सत्ता की दौड़ में नहीं दिखते, वो अब चुनाव लड़ाने की बात करते हैं बजाय चुनाव लड़ने के। हालांकि हरीश रावत सरीखे खांटी राजनेता के मन की थाह लेना बहुत कठिन है। लेकिन उनका प्रभाव और दिशा तय करने की क्षमता आज भी सबसे प्रबल है। पार्टी में उनकी स्वीकृति यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी निर्णय बिना उनके संकेत के टिकाऊ नहीं होता। समीकरणों का राजनीतिक अर्थ देखें तो स्पष्ट होता है कि इन तीन नियुक्तियों के बाद कांग्रेस का संतुलन स्पष्ट रूप से ‘समावेशी’ दिशा में गया है। प्रीतम सिंह (गढ़वाल से, पुराने संगठनवादी), गणेश गोदियाल (पौड़ी क्षेत्र से, पहाड़ी छवि वाले), हरक सिंह रावत (मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में राजनीतिक प्रभाव और प्रशासनिक अनुभव) इससे कांग्रेस ने यह संदेश दिया है कि वह अब किसी एक गुट या व्यक्ति की पार्टी नहीं, बल्कि ‘टीम कांग्रेस’ के रूप में मैदान में उतरना चाहती है। हरीश रावत इस टीम का राजनीतिक गाइड बन चुके हैं। उनके अनुभव और जनसम्पर्क कौशल से कांग्रेस की रणनीति को दिशा मिल रही है।
उत्तराखण्ड कांग्रेस में हालिया बदलावों ने पार्टी में उर्जा भरी है। गणेश गोदियाल की सादगी, प्रीतम सिंह का अनुभव, हरक सिंह रावत की रणनीति और हरीश रावत की मार्गदर्शक भूमिका, ये चारों मिलकर कांग्रेस को आगामी चुनावों के लिए एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि संगठन में आंतरिक प्रतिस्पर्धा और भरोसे की कमी अभी भी एक चुनौती है, लेकिन अगर हरीश रावत इस संतुलन को बनाए रखते हैं, तो यह ‘कांग्रेस पुनरुत्थान’’ की दिशा में निर्णायक कदम साबित हो सकता है। कांग्रेस ने इन नई नियुक्तियों से जहां जातिगत और सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश तो की ही है, साथ ही जो क्षेत्रीय असंतुलन की बात खासकर गढ़वाल और कुमाऊं के सम्बंध में की जा रही थी, उसको भी एक हद तक दूर करने का प्रयास किया है। जहां पहले भुवन कापड़ी और यशपाल आर्य कुमाऊं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और करण माहरा भी कुमाऊं से ही थे, तो गढ़वाल का एक बड़ा वर्ग अपनी उपेक्षा की बात कह रहा था। लेकिन अब इन नई नियुक्तियों से गढ़वाल और कुमाऊं के असंतुलन जैसी बात भी खत्म हो चुकी है। इस नई टीम के बनने के बाद कांग्रेस के अंदर भी राजनीतिक समीकरण एक हद तक प्रभावित हुए हैं जहां यशपाल आर्य एक दलित चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर सकते हैं, वहीं प्रीतम सिंह, गणेश गोदियाल भी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में शुमार हो सकते हैं। सवाल इस बात का है कि क्या इन महत्वाकांक्षाओं का कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में कोई फर्क पड़ेगा?
नए प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदयाल का कहना है कि उन्हें पार्टी ने जिस भरोसे के साथ जिम्मेदारी दी है वह उसकी अपेक्षाओं पर सबको साथ लेकर चलने के भाव के साथ खरा उतरने का प्रयास करेंगे।
‘दि संडे पोस्ट’ से बातचीत करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि ‘‘कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व का यह फैसला संगठन को मजबूती देने वाला है और संगठनात्मक सृजन की इस प्रक्रिया से जो समन्वय का अमृत निकला है वह कांग्रेस को नई ऊर्जा और दिशा प्रदान करेगा।’’ उन्होंने कहा कि ‘‘इस समय कार्यकर्ता हर हाल में कांग्रेस को मजबूत बनाकर सरकार बनाने की स्थिति में लाना चाहता है तो ऐसे में नेताओं का किसी भी प्रकार का नकारात्मक दृष्टिकोण वह स्वीकार नहीं करेगा और इस बार कार्यकर्ता चुनाव लड़वाने में फ्रंट में होगा। इसमें कोई राजनीतिक बयान नहीं था यह सिर्फ सब की भागीदारी को शामिल करने का प्रयास था।’’ अपनी भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि ‘‘मेरी भूमिका अब एक ढोल की तरह है, मुझे जो जहां ले जाना चाहे वरुहां मैं उस भूमिका को स्वीकार करूंगा। 2022 में जो कुछ भी हुआ हमें उन सब चीजों को छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए और मैंने तो उन बातों को बिसरा दिया है और चाहता हूं कि कांग्रेस एक नई ऊर्जा के साथ 2027 के चुनाव में जाए और और उत्तराखण्ड में सरकार बनाकर प्रदेश को विकास की नई ऊंचाइयों तक ले जाए।’’

