Uttarakhand

शांत फिजाओं में नफरत की सियासत

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कभी शांत और मेलजोल वाली संस्कृति के लिए पहचाने जाने वाले उत्तराखण्ड में पिछले वर्षों में पहचान की राजनीति और धार्मिक तनाव तेजी से बढ़े हैं। हरिद्वार धर्म सभा, पुरोला पलायन, हल्द्वानी हिंसा के बाद अब रामनगर में वैध मांस लेकर लौट रहे ड्राइवर नासिर पर भीड़ का हमला और भाजपा नेता मदन जोशी पर उकसाने के आरोप इसी बदलाव की कड़ी के रूप में देखे जा रहे हैं। हाईकोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया है कि शिकायत में नाम साफ होने के बाद भी एफआईआर में उसे सिर्फ ‘मदन’ कर दिया गया। हाईकोर्ट ने कहा है कि राजनीतिक प्रभाव की आशंका दिखती है और आदेश दिया कि घटना से जुड़े भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्ट और लाइव वीडियो तुरंत हटाए जाएं तथा पुलिस निष्पक्ष कार्रवाई पर रिपोर्ट दे
उत्तराखण्ड को लम्बे समय तक एक शांत, आध्यात्मिक और अपेक्षाकृत निविज़्वाद राज्य के रूप में देखा जाता रहा है। पहाड़ों की संस्कृति, पौराणिक परम्पराएं और धार्मिक महत्व ने इसे ‘देवभूमि’ की पहचान दी। यहां धार्मिक विविधता होते हुए भी सामाजिक ताने-बाने में संघर्ष या साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएं बहुत कम दिखाई देती थीं। पहाड़ी समाज अपनी सामूहिकता, आपसी सहयोग और सरल जीवनशैली के लिए जाना जाता था। परंतु पिछले लगभग एक दशक में विशेषकर 2021 के बाद, धीरे-धीरे ऐसा प्रतीत होने लगा कि उत्तराखण्ड भी उस राजनीतिक- सामाजिक धारा का हिस्सा बन रहा है जिसमें धर्म आधारित पहचान, जनसंख्या परिवर्तन का भय, बाहरी-भीतरी विभाजन और सांस्कृतिक असुरक्षा जैसी भावनाएं उभर रही हैं। ये सभी परिवर्तन अचानक नहीं हुए, बल्कि आर्थिक प्रवास, जनसांख्यिकीय बदलाव, राजनीतिक विमर्श और डिजिटल संचार तंत्र के प्रभावों से धीरे-धीरे गठित हुए।

पहाड़ी इलाकों में पलायन ने एक नई सामाजिक मनोवृत्ति को जन्म दिया। गांव खाली हुए, शहर बढ़े और मैदान-केंद्रित विकास ने पहाड़ी समाज को असुरक्षा से भर दिया। यहां असुरक्षा केवल आर्थिक नहीं थी यह पहचान और अस्तित्व से जुड़ी होने लगी, क्योंकि पहाड़ों में खाली घरों और बंजर खेतों के बीच जब स्थानीयों की जगह नए व्यापारी और किराएदार आने लगे, तब ‘हमारा समाज बदल रहा है’ जैसी चिंता जन्म लेने लगी। यही चिंता समय के साथ धार्मिक-सांस्कृतिक शंकाओं में बदलने लगी। सोशल मीडिया ने इस भावना को बार-बार यह बताकर और मजबूत किया कि ‘पहाड़ों में बाहरी जनों की घुसपैठ से मूल संस्कृति खतरे में है।’ यह संदेश केवल आर्थिक नहीं रहा, उसे धर्म और सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया। 2021 में हरिद्वार में आयोजित विवादित धर्म सभा इस बदलाव का पहला बड़ा संकेत थी। धार्मिक मंच से खुले तौर पर ऐसे भाषण दिए गए जिन्होंने न केवल देशभर में आलोचना बटोरी, बल्कि यह भी बताया कि उत्तराखण्ड में कट्टर धार्मिक अभिव्यक्ति अब खुलकर सामने आने लगी है। इस सभा ने राज्य में धार्मिक तनाव की संरचनात्मक शुरुआत कर दी। यह घटना हिंसा में नहीं बदली, लेकिन इसने एक विचारात्मक भूमि तैयार की जिसके बाद समाज का एक हिस्सा धार्मिक संघर्ष की कल्पना में विश्वास करने लगा। इसी अवधि में इंटरनेट और सोशल मीडिया आधारित हिंदुत्व नैरेटिव ने पहाड़ी युवाओं को प्रभावित करना शुरू किया। वीडियो, संदेश और जनसंख्या-सम्बंधी मिथक वायरल होकर नई
मानसिकता बनाने लगे। पहाड़ी पहचान जहां पहले स्थानीय संस्कृति पर आधारित थी, वह धीरे-धीरे धार्मिक पहचान में बदलती दिखाई देने लगी। इसके बाद मई 2023 में उत्तरकाशी जिले के पुरोला कस्बे की घटना सामने आई, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि धार्मिक विभाजन अब केवल विचार तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यवहार और सामाजिक प्रतिक्रिया में भी प्रकट हो सकता है। एक नाबालिग लड़की से जुड़े कथित अपहरण प्रयास में जब आरोपी के धार्मिक पहचान की चर्चा उभरी, तो घटना अचानक अपराध से धर्म-आधारित संघर्ष में बदल गई। ‘लव जिहाद’ जैसी अवधारणा को स्थानीय स्तर पर इतना बल मिला कि कस्बे में अल्पसंख्यक समुदाय को प्रत्यक्ष रूप से निशाना बनाया गया। पोस्टर लगे, हड़तालें हुईं और धमकियों का माहौल बना। स्थानीय व्यापारियों के पलायन की खबरें सामाजिक सद्भाव पर गहरी चोट थीं। यह एक अहम मोड़ था क्योंकि यह पहली बार था जब पहाड़ी कस्बे में सामाजिक तनाव सार्वजनिक आक्रोश और सामूहिक दबाव में बदलता दिखा। यह घटना प्रशासन के लिए भी चुनौतीपूर्ण थी, क्योंकि उसे एक ओर कानून व्यवस्था सम्भालनी थी और दूसरी तरफ फैलते साम्प्रदायिक नैरेटिव को नियंत्रित करना था।
फरवरी 2024 में हल्द्वानी के वनभूपुरा में हुए टकराव ने उत्तराखण्ड के शहरी धार्मिक विवाद की नई कहानी लिखी। अदालत के आदेश के अनुसार कथित अवैध धार्मिक ढांचे को हटाने की कार्रवाई के दौरान हिंसा भड़क उठी। यहां मुद्दा केवल अवैध निर्माण का नहीं था, बल्कि समुदायों के विश्वास और प्रशासन की तटस्थता पर भी सवाल खड़े हुए। इस संघर्ष में जानें गईं, कर्फ्यू लगा, इंटरनेट बंद हुआ और राष्ट्रीय मीडिया की नजर यहां टिक गई। यह घटना यह दर्शाने के लिए काफी थी कि धार्मिक विवाद अब केवल छोटी वैचारिक टकराहट या स्थानीय विरोध तक सीमित नहीं, बल्कि राज्य की शांति व्यवस्था को चुनौती देने की क्षमता रखते हैं। इन घटनाओं के समानांतर सोशल मीडिया ने धार्मिक पहचान की राजनीति को हवा दी। पहाड़ी युवाओं में तेजी से बढ़ते स्मार्टफोन और इंटरनेट उपयोग ने सूचनाओं के नियंत्रण को कठिन बना दिया। फर्जी वीडियो, अफवाहें और इतिहास तथा जनसंख्या सम्बंधी मिथकों ने भावनाएं भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उत्तराखण्ड में खतरा अब केवल वास्तविक घटनाओं से नहीं, बल्कि उस ‘डिजिटल कल्पित खतरे’ से भी है जो लोगों के मन में लगातार पोषित हो रहा है। राजनीतिक भाषा में भी बदलाव देखा गया। राज्य सरकार ने कानून-व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाए, परंतु कई मामलों में अल्पसंख्यक समुदाय ने यह महसूस किया कि उनकी शिकायतों या भय को समान गम्भीरता नहीं मिली। सरकार का तीर्थ सुधार, धर्मान्तरण रोकथाम और ‘पवित्र भूमि’ की सुरक्षा वाला विमर्श बहुसंख्यक भावनाओं के साथ मेल खाता है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि उसे प्रशासनिक निष्पक्षता और संवैधानिक समानता के साथ संतुलित किया जाए।
हालात कितने खराब हैं और आगे कितने खराब हो सकते हैं इसे रामनगर की ताजा घटना से समझा जा सकता है। यह वही रामनगर है जिसे कभी जंगल सफारी, शांत तेवरों, तराई के सांस्कृतिक मेल और सौहार्द की मिसाल माना जाता था। पिछले कुछ सालों में धीरे-धीरे ऐसा शहर बनता गया जहां पहचान पूछकर रिश्ते तय होने लगे, दुकान के बोर्ड देखकर खरीद-फरोख्त तय होने लगी और धार्मिक प्रतीकों से भरोसे का प्रमाण मांगा जाने लगा। यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि दो-ढाई साल से बारी-बारी से ऐसे घटनाक्रम खड़े होते गए जो अब एक मुकदमे और हाईकोर्ट की दहलीज पर हैं। 23 अक्टूबर 2025 को जिस मॉब हिंसा ने पूरे शहर को हिला दिया और अब जिसका मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा है, वह घटना इस बदलाव का परिणाम बताई जा रही है।
याचिकाकर्ता के पति नासिर, मैरियम ट्रेडिंग कम्पनी के ड्राइवर, रेफ्रिजरेटेड वाहन UK04CB8886 में मारिया फ्रोजन एग्रो फूड प्रा.लि., बरेली से 558 किलो भैंस का वैध मांस लेकर रामनगर लौट रहे थे। बैलपड़ाव पुलिस चौकी पर वाहन और दस्तावेज चेक हुए, सब सही निकला और वाहन को आगे जाने दिया गया। लेकिन जैसे ही वाहन छोई इलाके के पास पहुंचा, फेसबुक लाइव में इसे ‘गौमांस की ढुलाई’ कहा गया और कुछ ही मिनटों में भीड़ जमा हो गई। लाइव करने वाला कोई मामूली स्थानीय नहीं था, यह वह शख्स था जिसका नाम पिछले दो वर्षों से रामनगर की राजनीति, सोशल मीडिया अभियानों, पोस्टर विवादों और साम्प्रदायिक शब्दावली के बीच बार-बार आता है भाजपा नेता मदन जोशी। भीड़ ने नासिर को वाहन से निकालकर पीटना शुरू किया। पत्थर, लात-घूंसे। आरोप है कि पुलिस पहुंची भी तो नासिर को तुरंत अस्पताल नहीं ले जाया गया बल्कि पहले थाने ले जाया गया, मानो उसकी चोटों से ज्यादा प्रशासन को ‘कागज और बयान’ जरूरी लग रहे थे। बाद में परिवार ने उसे अस्पताल पहुंचाया। याचिका के अनुसार जब नासिर की पत्नी शिकायत लेकर थाने पहुंची तो पुलिस ने पहले आवेदन लेने से इंकार किया। बाद में जब भीड़ जुटी और दबाव बढ़ा, तब शाम 6:58 बजे एफआईआर हुई। एफआईआर 382/2025 पर यहां भी ट्विस्ट वही था जो उत्तराखण्ड भर की कई राजनीतिक खबरों में पिछले कुछ वर्षों से दिख रहा है, आरोपित नेता का नाम याचिका में साफ लिखा था, लेकिन एफआईआर में उसे ‘अज्ञात मदन’ कर दिया गया और यह यहीं खत्म नहीं होता, उल्टा नासिर पर ही दूसरा केस दर्ज कर दिया गया कि वह दो नम्बर प्लेट इस्तेमाल कर रहा था, जबकि दस्तावेज दिखाते हैं कि यह अस्थायी नम्बर से स्थायी नम्बर में स्विच करने की वैध प्रक्रिया थी। पीड़िता का कहना है- ”हम केवल कानून के मुताबिक व्यापार कर रहे थे। न हमने गाय का मांस लाया, न हमने किसी को उकसाया। फिर हमें क्यों निशाना बनाया गया?”
इस घटना को समझना हो तो पीछे लौटना जरूरी है, उन महीनों और घटनाओं की ओर जिन्हें ‘दि संडे पोस्ट’ ने विस्तार से दर्ज किया है। सितम्बर माह में मदन जोशी रामनगर के बैराज पर मॉनिंज़्ग वॉक करने गए वहां उन्हें सात्विक जूस भंडार की एक मोबाइल दुकान लगी हुई मिली यहां से जब उन्होंने जूस विक्रेता से पूछा कि वह कैसा जूस बनाते हैं तो उन्हें दुकानदार द्वारा बताया गया कि पेड़ों की छाल पत्ते और कई सब्जियों का मिश्रण बनाकर जूस निकाला जाता है। दुकानदार ने यह भी बताया कि यह जूस ब्लड प्रेशर और थायराइड के अलावा कई बीमारियों में बहुत लाभदायक है। इस पर मदन जोशी ने जूस बनाने का ऑर्डर दिया लेकिन जैसे ही उन्हें यह पता चला कि विक्रेता हिंदू नहीं, बल्कि मुस्लिम नाम का ईसाई धर्म का व्यक्ति है तो उनका आचरण परिवर्तित हो गया। उन्होंने जूस वापस कर दिया और इसी के साथ जूस विक्रेता गुलजार को अपनी मोबाइल दुकान पर अपने नाम का बोर्ड लगाने का ही हिदायत दी। यह अशोक जोशी ने फेसबुक लाइफ के जरिए सोशल मीडिया में चलाया। इसकी फेसबुक पोस्ट वायरल हो गई और उस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया सामने आई। इस घटना से पहले मदन जोशी पर लखनपुर जोगी क्षेत्र में एक समुदाय विशेष के लोगों पर पहचान की सियासत करने का आरोप लगा था। यह लोग सवार और सब्जी बेचने के लिए ठेली लगाते हैं। बताया जाता है कि मदन जोशी ने यहां के फल और सब्जी विक्रेताओं के लिए फरमान जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि हर विक्रेता अपनी ठेली पर अपने नाम की पट्टी लगाएगा, अगर हिंदू है तो वह जय श्री राम लिखकर अपने नाम के साथ अपनी ठेली पर तिरंगा झंडा भी फहराएगा। जोशी की इस हिटलर शाही के बाद एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों में इस कदर खौफ हो गया कि उन्हें लखनपुर चुंगी क्षेत्र से पलायन करने को मजबूर होना पड़ा। इसके कुछ समय बाद ही ‘जश्ने ईद मिलाद’ के जुलूस का विवाद आया। वर्षों से जुलूस मुख्य बाजार से होकर जाता था, लेकिन इस बार इसे ‘शहर के चरित्र’ पर हमला बताया गया। कई दिन तक तनाव, बयान, बंद होने की स्थिति और अंतत: प्रशासन की दखल के बाद पुराना मार्ग ही बहाल हुआ। इसके बाद 10-10 रुपए के स्टाम्प पेपर वाली जमीन का मुद्दा उछाला गया। कहा गया कि एक समुदाय ने गैर-कानूनी कब्जा किया। स्थानीय लोग बताते हैं कि ”असल में ये भूमि विवाद पहले राजनीतिक था, लेकिन बाद में इसे साम्प्रदायिक रूप में रंग दिया गया क्योंकि चुनाव नजदीक थे और वोट ध्रुवीकरण चाहिए था।” नगर पालिका चुनावों में मदन जोशी ने कहा- ”रामनगर नहीं, अब रहमत नगर बनेगा।” सोशल मीडिया पेजों पर यह बात फैलती गई। फिर उन्होंने कहा- ”जाटव वोटों को एकजुट करना होगा ताकि मुस्लिम वर्चस्व न बढ़े।” ऐसे कई बयान, वीडियो, मीम, काफिले में बाइक रैली, हर विवाद में ‘हिंदू पहचान बनाम मुस्लिम पहचान’ का फ्रेमिंग, ये सब धीरे-धीरे रामनगर की मनोभूमि बदलते रहे।
इसी माहौल में यह मॉब हिंसा हुई। इसी माहौल में शिकायत दबाई गई। इसी माहौल में नाम ‘अज्ञात’ हुआ और अब इसी माहौल के खिलाफ याचिका में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक ‘तहसील पूनावाला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018)’ फैसले का हवाला दिया गया है। उस फैसले में कोर्ट ने कहा कि ”भीड़ न्याय नहीं करती। भीड़ लोकतंत्र का अपमान करती है।” कोर्ट ने आदेश दिया है कि हर जिले में नोडल अधिकारी, सोशल मीडिया निगरानी, तुरंत एफआईआर, तेज चार्जशीट, पीडि़त सुरक्षा और लापरवाह पुलिस पर कार्रवाई हो।
याचिकाकर्ता की दलील है कि रामनगर में इनका पालन नहीं हुआ। नोडल अधिकारी सक्रिय नहीं दिखे। सोशल मीडिया पर  लाइव होने पर भी कोई कार्रवाई नहीं। एफआईआर नाम बदलकर की गई। अब हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता सीबीआई जांच की मांग कर रही है। दूसरी तरफ शहर दो हिस्सों में बंटा बैठा है। एक भीड़ का शोर कहता है कि ”धर्म और गाय खतरे में है”, दूसरी तरफ घायल ड्राइवर का परिवार पूछ रहा है ”हमने कानून नहीं तोड़ा था, हमें क्यों सजा मिली?” सुनवाई के दौरान उत्तराखण्ड हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश पीठ ने टिप्पणी की कि मामले में राजनीतिक प्रभाव की आशंका नजर आती है और पुलिस निष्पक्ष कार्रवाई करती नहीं दिख रही। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि घटना से जुड़े सभी भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्ट और लाइव वीडियो तुरंत हटाए जाएं तथा जांच अधिकारी अगली तारीख को विस्तृत रिपोर्ट पेश करें।
उत्तराखण्ड की शक्ति उसकी सांस्कृतिक आध्यात्मिक विरासत और शांतिपूर्ण सामाजिक सहजीवन में है। यदि इसे राजनीतिक ध्रुवीकरण, डिजिटल उन्माद और जनसांख्यिकीय डर के हवाले छोड़ दिया गया तो वह विशेष पहचान कमजोर होने का खतरा है जिसने इस भूमि को देवभूमि कहा। आने वाले वर्षों में यह राज्य एक निर्णयात्मक मोड़ पर खड़ा है या तो सद्भाव की परम्परा को और मजबूत करेगा या राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते धार्मिक ध्रुवीकरण के प्रभाव में अपनी विशिष्ट सामाजिक आत्मा को खो देगा। समाधान इसी में है कि विकास, सुरक्षा और धार्मिक आस्था के साथ-साथ समावेशिता, संवाद और न्यायपूर्ण शासन को केंद्र में रखा जाए। तभी उत्तराखण्ड अपनी मूल पहचान को सुरक्षित रखते हुए आधुनिकता और सामाजिक शांति की राह पर स्थिरता से आगे बढ़ सकेगा।

बात अपनी-अपनी

देखिए, इसमें तो हाईकोर्ट का भी आदेश आ गया है। मेरा कहना यह है कि समाज में इस तरह से किसी भी व्यक्ति विशेष को उसके पहनावे, उसके खान-पान, उसके रीति रिवाजों, उसके नाम, उसकी जाति, को टारगेट कर समाज का माहौल खराब नहीं करना चाहिए, विभिन्नता में एकता हमारी पहचान, हमारी संस्कृति है, हमारे देश की हमारे संविधान की और उसी के तहत हम सबको रहना चाहिए, हर चीज के लिए कानून बनाया है तो उसकी शिकायत करें, कानून हाथ में लेकर किसी वर्ग विशेष को टारगेट करना सही नहीं, पूरे देश की यही हालत कर दी है भाजपा ने।
रणजीत रावत, कांग्रेस नेता

रामनगर में हुई यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। रामनगर को शांत और प्राकृतिक दृष्टिकोण से समृद्धि पूर्ण माना जाता है। मारपीट की घटना नहीं होनी चाहिए थी जो कि गलत है। माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल का रुख इस घटना की संवेदनशीलता को प्रकट करता है। बीते कुछ समय में सामाजिक सौहार्द और सांस्कृतिक मेल पर भी असर पड़ा है। इस पूरे प्रकरण के बाद कानून का इकबाल बुलंद रहे, प्रशासन इसको प्रमुखता से देखे। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस ने जिस तरह कार्य किया वह सराहनीय है, सोशल मीडिया के प्रभाव के बावजूद कोई अनहोनी नहीं हुई, रामनगर में हुई इस घटना का असर राज्य सहित पूरे देशभर में पड़ा है, राजनीतिक रूप से
संवाद स्थापित करने की आवश्यकता है।
मयंक मैनाली, अधिवक्ता

 
ये मामला हाईकोर्ट में भी चल रहा है, जो पुलिस प्रशासन है वो अपना काम करेगा, साम्प्रदायिक सौहार्द को कम करने के लिए जो रूल ऑफ लॉ है उसे लागू कराएंगे, हर नागरिक के लिए जो भी अधिकार है, सुविधाएं हैं, कानून-प्रशासन उसमें कार्य करेगा, सभी लागू कराया जाएगा।
ललित मोहन रयाल, जिलाधिकारी, नैनीताल

गत सप्ताह मेरे जनपद में चार्ज लेने से ठीक पहले रामनगर और कालाढूंगी थाना क्षेत्रों में मांस के एक वाहन को रोककर, ड्राइवर के साथ बेरहमी से मारपीट करने और भीड़ द्वारा आक्रमण करने की गम्भीर घटनाएं हुईं। प्रारम्भिक सूचना पर पुलिस ने समय रहते हस्तक्षेप कर ड्राइवर को बचाया तथा घटनाओं की त्वरित जांच शुरू कर दी। छानबीन में स्पष्ट हुआ है कि ट्रांसपोर्ट किया जा रहा मांस वैध था और उसके सम्बंधित कागजात भी पूर्ण थे। इन दोनों घटनाओं के सम्बंध में अलग-अलग थानों में कुल दो एफआईआर दर्ज की गई हैं। रामनगर प्रकरण में अब तक चार आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके हैं, पांच के विरुद्ध वारंट जारी हो चुके हैं तथा अन्यों पर 82 सीआरपीसी के अधीन सीज की कार्यवाही की गई है। कालाढूंगी में हुई तोड़-फोड़ मामले में सीसीटीवी फुटेज, सोशल मीडिया और जांच-वीडियो के माध्यम से कई व्यक्तियों की पहचान हो चुकी है और उनके खिलाफ कार्रवाई प्रगतिशील रूप से जारी है। छोई क्षेत्र में भी कई गिरफ्तारियां हो चुकी हैं तथा सम्बंधित दबिशें दिन-रात जारी हैं। जिन पर वारंट जारी हुए थे, वे कुछ लोग फिलहाल फरार हैं और अपनी उपलब्धता को छिपाए हुए हैं। इस मामले में जिन लोगों का नाम आया है उन सभी के खिलाफ समान रूप से कड़ी और न्यायसंगत कार्रवाई की जा रही है। भीड़ उकसाने, वाहनों को अवैध तरीके से रोके जाने तथा सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने में संलिप्त सभी दोषियों के प्रति कानून सख्ती से लागू होगा, किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जाएगा। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए उच्च न्यायालय ने भी संज्ञान लिया है और लगातार सुनवाई करते हुए कड़े निर्देश दिए हैं। मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि पुलिस बल को आवश्यक निर्देश दिए जा चुके हैं और हम हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुरूप निष्पक्ष, पारदर्शी तथा कठोर कार्यवाही सुनिश्चित कर रहे हैं। किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी और घटना में शामिल दोषियों को ढूंढ़कर दंडित किया जाएगा। हम जनता से अपील करते हैं कि वे अफवाहों और सोशल मीडिया पर बिना सत्यापित जानकारी के फैलने वाली बातों से बचें, यदि किसी के पास घटना से सम्बन्धित प्रामाणिक जानकारी हो तो वह नजदीकी पुलिस स्टेशन को सूचित करें ताकि जांच में आवश्यक सहायता मिल सके।
डॉ. मंजूनाथ टी.सी., एसएसपी, रामनगर नैनीताल

मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से जितना इस घटना को समझा मुझे ये मॉब लिंचिंग लगी। आज तक हम लोग दूर से इस तरह की घटनाओं को देखते थे। पहाड़ की शांत फिजा में ये होना खतरे का संकेत है। छोटे से राज्य में सब एक दूसरे को जानते हैं। शक की बिनाह पर इतने सारे लोगों को इक्कठा कर निहत्थे ड्राइवर की पिटाई करना साफ दिखता है कि संवैधानिक और इंसानियत दोनों से इस झुंड का कोई नाता नहीं है। रामनगर में हमेशा से सांझी परम्परा चलती आई है। यहां प्रकृति के अद्भुत नजारों को देखने देश-विदेश से इतने सैलानी आते हैं और आमतौर पर लोग बहुत शांति से यहां कोएक्सिस्ट करते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से कुछ व्यक्ति विशेष पट्टाधारी बगैर विजन के नेता धर्म के नाम पर उन्माद फैला रहे हैं। हर समुदाय की रैली में अब शक्ति प्रदर्शन की होड़ लगने लगी है जिससे हमारे यहां आने वाले पर्यटक भी प्रभावित होते हैं। सोशल मीडिया पर पहले भी ऐसे लाइव चलते रहे हैं। समाधान के मूल में एक संवाद आवश्यक है और सबसे पहले आवश्यक है इन चीजों पर कठोर कारज़्वाई। इससे उन्मादियों के हौंसले परस्त होंगे। साथ ही सृजनात्मक रचनात्मक कार्यक्रम होना ताकि लोग धर्म सनातन और सांझी संस्कृति की खूबसूरती को समझ कर सामाजिक ड्यूटीज का निर्वहन करें। रामनगर में बेसिक सुविधाओं का अभाव है और राजनेता क्योंकि बाकी गम्भीर मुद्दों पर कभी चर्चा करते नहीं दिखते, इतना उन्होंने अपनी सोच को, समझ को परिपक्व नहीं किया है इसलिए ऐसे उन्मादी तरीकों की जो हरकते हैं जान-बूझकर भी करते हैं ताकि भीड़ इक्कठा कर सके और फिर उस भीड़ को बड़ी राजनीतिक रैलियों में परिवर्तित कर वोट बैंक की राजनीति कर सके।
श्वेता माशीवाल, सामाजिक कार्यकर्ता

 
  देखिए, यह प्रकरण अब माननीय हाईकोटज़् में चल रहा है। ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं होगा फिर भी कुछ रोशनी डाली जा सकती है। आज के दौर में किसी भी पार्टी का कार्यकर्त्ता वही कार्य करेगा जो उसकी पार्टी को पसंद हो। हां, इतना जरूर कहूंगा कि इतना उतावलापन ठीक नहीं होता जिससे कि माहौल खराब होने का खतरा पैदा होता हो। रामनगर का माहौल हमेशा से अच्छा रहा, एक-दूसरे के सुख-दुख में हमेशा शरीक रहते चले आ रहे हैं। आज की राजनीति में भी बदलाव नजर आता है। पहले राजकाज देश सेवा के लिए होता था आज के परिवेश में अधिकतर जिसे जनता चुनकर भेजती है अपनी समस्याओं को हल करने के लिए वो पहले अपना कल्याण करते हैं। कानून का पालन तभी होगा जब सख्ती के साथ वो अपना कार्य करेगा। समाज से गलत कार्यों को दूर करने के लिए सामाजिक संवाद जरूरी हो जाता है। 23 अक्टूबर को जो हुआ नियम विरुद्ध नजर आया जो भी नियम विरुद्ध हो रहा था उसे पुलिस और कानून देखता है, कानून को अपने हाथ में लेने की किसी को भी आजादी नहीं है।
अजीम खान, समाजसेवी व आरटीआई कार्यकर्त्ता

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