बहुजन समाज पार्टी, जो कभी 2007 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई थी, अब राजनीति के हाशिए पर खड़ी दिखती है। लेकिन मायावती, जो अपनी चुप्पी के लिए प्रसिद्ध हैं, इस बार तकनीक और युवाओं को साधने की रणनीति पर काम कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक पार्टी अब जिलावार ‘युवा सोशल नेटवर्कर्स’ की सूची बना रही है जिन्हें अगले चुनाव में रणनीतिक रूप से मैदान में उतारा जा सकता है। 1990 के दशक में कांशीराम के नेतृत्व में बसपा ने जिस जमीनी आंदोलन से राजनीतिक ताकत पाई थी, उस ऊर्जा को मायावती अब डिजिटल माध्यम से दोहराना चाहती हैं। हालांकि सवाल यह है कि क्या एकदम शांत पड़ी बसपा, केवल डिजिटल उपस्थिति से फिर से मैदान में वापसी कर सकती है? राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अब बसपा अपना खोया रूतबा वापस नहीं ला पाएगी, खासकर ऐसे समय में जब पार्टी प्रमुख मायावती स्पष्ट तौर पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के दबाव में हैं और खुलकर भाजपा का विरोध नहीं कर पा रही हैं।
