धर्म संकट में भाजपा और प्रदेश सरकार

 

‘‘जब-जब मैं रामनगर की सड़कों पर निकला हूं, सत्ता के लिए खतरा पैदा हुआ है।’’ यह कहना है 76 साल के युवा हरीश रावत का। अल्मोड़ा जिले के मोहान स्थित आईएमपीसीएल कम्पनी के करीब 500 मजदूरों की रोजी-रोटी की लड़ाई शुरू कर हरीश रावत ने कुमाऊं में धामी सरकार के खिलाफ हुंकार भर दी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस मुहिम में सभी जनसंगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ट्रेड यूनियनों को शामिल होने का आह्वान करते हुए आगामी 14 नवम्बर को नेहरू के जन्मदिवस पर एक बड़ा आंदोलन शुरू करने की घोषणा कर डाली है। करोड़ों रुपए के मुनाफे में चल रही आईएमपीसीएल कम्पनी को सरकार द्वारा निजी हाथों में बेचने की कोशिशों को इस चलते तगड़ा झटका लग सकता है। भारत सरकार के प्रतिष्ठान आईएमपीसीएल में केंद्र सरकार के 89 प्रतिशत शेयर हैं। राज्य सरकार के कुमाऊं मंडल विकास निगम के पास 1.89 प्रतिशत के शेयर हैं। हालांकि इस प्रतिष्ठान को बेचने का फैसला केंद्र सरकार का है लेकिन हरीश रावत ने इसे बड़ा जनआंदोलन का रूप दे प्रदेश सरकार और भाजपा को बड़ी दुविधा में डाल दिया है

उत्तराखण्ड के तीन जिलों नैनीताल, अल्मोड़ा और पौड़ी के संगम स्थल पर स्थित मोहान में इंडियन मेडिसिन्स फार्मास्युटिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईएमपीसीएल) की स्थापना 1978 में हुई थी। कम्पनी के अच्छे प्रोडक्ट होने के चलते इसको ‘मिनीरत्न’ का दर्जा दिया गया है। भारत सरकार के इस एकमात्र आयुर्वेदिक कारखाने में आस-पास के सैकड़ों लोग कार्यरत हैं। सुदूर तड़म से पैदल चलकर और चुकम जैसे गांव से नदी में तैर कर यहां मजदूर काम करने के लिए आते हैं। पिछले 40 वर्षों से इस कारखाने से केवल श्रमिक एवं कर्मचारियों की ही जीविका नहीं चलती है, बल्कि क्षेत्र के हजारों लोग विभिन्न प्रकार के उत्पादन इस फैक्ट्री को सप्लाई कर अपनी जीविका चलाते हैं। लेकिन ग्रामीण, किसान और मजदूर केंद्र सरकार के विनिवेश के फरमान से आक्रोशित हैं। सरकार इस कारखाने को निजी हाथों में सौंपने का पूरा खाका तैयार कर चुकी है। यह तब है जब वित्त वर्ष 2022 में आईएमपीसीएल का रेवेन्यू 250 करोड़ रुपए और प्रॉफिट मार्जिन करीब 25 फीसदी था।

अल्मोड़ा जिले के मोहान स्थित भारत सरकार के एकमात्र आयुर्वेदिक कारखाना आईएमपीसीएल में 13 वर्षों से भी अधिक समय से मजदूरों की लड़ाई जारी है। आईएमपीसीएल का विनिवेश रद्द करने, श्रमिकों की बकाया 1.12 करोड़ रुपए की पीएफ राशि व अन्य देय राशियों का भुगतान करने के साथ ही ठेका श्रमिकों को नियमित रोजगार की मांग को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में और बतौर निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़े संजय नेगी के संयोजन में एक बार फिर गत् 16 अक्टूबर को रामनगर में एक विशाल पदयात्रा की गई।

इस कम्पनी के कर्मचारियों को आशंका है कि जिस मजदूरों के फैक्ट्री में काम करने से ही उनका परिवार चलता है वह फैक्ट्री ही बिक जाएगी तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि सरकार लाभ में चलने वाले इस कारखाने के विनिवेश को रद्द करे। उनके पीएफ तथा अन्य देय राशि का तत्काल भुगतान किया जाए एवं ठेका श्रमिकों को नियमित रोजगार की गारंटी दी जाए।

याद रहे कि 2011 में इस सार्वजनिक उपक्रम के कर्मचारियों ने पहली बार पीएफ, वेतन, बोनस, ईएसआईसी आदि में भ्रष्टाचार के मामले को उठाया था। तब दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी प्रदर्शन किया था। 42 दिन के धरने के बाद कम्पनी से ठेकेदारी खत्म कर दी गई थी। लेकिन प्रबंधन ने चालाकी से 2013 में ठेकेदारी को पुनः प्रारम्भ कर दिया। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा करवाई गई जांच में भी सामने आया कि फैक्ट्री प्रबंधन ने ठेकेदार के साथ मिलकर श्रमिकों के पीएफ बोनस वेतन वह ईएसआईएस आदि की राशि में घोटाला किया है। बकायदा पीएफ कमिश्नर हल्द्वानी द्वारा फैक्ट्री प्रबंधन से 1.12 करोड़ रुपए रिकवरी की जा चुकी है।

कर्मचारियों के पीएफ का पैस जमा तो करा दिय गया है लेकिन उसका भुगतान कर्मचारियों का नहीं किया जा सकता है। पीएफ कार्यालय का कहना है कि कारखाना प्रबंधन आपका फार्म 19 अग्रसारित करके भेजेगा तभी हम पैसा मजदूरों को दे पाएंगे, परंतु कारखाना प्रबंधन मजदूरों से शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हुए उनके फार्म 19 पीएफ कार्यालय को अग्रसारित नहीं कर रहा है। चर्चा है कि कर्मचारियों का पैसा एक बार ठेकेदार और मैनेजमेंट मिलकर खा गए और दूसरी बार जब लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद पैसा वसूल हुआ तो वह पैसा पीएफ कार्यालय में डम्प होकर रह गया है। कर्मचारी इसके लिए कारखाना प्रबंधन के उच्च अधिकारियों तथा दिल्ली में जंतर-मंतर से लेकर आयुष कार्यालय तक प्रदर्शन कर चुके हैं।

2022 में विधानसभा का चुनाव लड़े कनिष्ठ ब्लॉक प्रमुख संजय नेगी के अनुसार तीन जिलों अल्मोड़ा, पौड़ी और नैनीताल के संगम पर लगे इस आयुर्वेदिक कारखाने में काम करने के लिए लोग सुदूर तड़म से पैदल व चुकम जैसे गांव से नदी में तैर कर काम करने के लिए आते हैं। पिछले 40 वर्षों से इस कारखाने से केवल श्रमिक एवं कर्मचारियों की ही जीविका नहीं चलती है, बल्कि क्षेत्र के हजारों लोग विभिन्न प्रकार के उत्पादन इस फैक्ट्री को सप्लाई कर अपनी जीविका चलाते हैं।

नेगी कहते हैं कि ‘आज पहाड़ से पलायन बहुत ज्यादा बढ़ चुका है। 16 सौ से अधिक गांव भुतहा हो चुके हैं। इस कारखाने के विनिवेश से पलायन और भुतहा गांवों की संख्या और भी अधिक बढ़ेगी अतः इस कारखाने के विनिवेश को किसी भी शर्त पर रोका जाना बहुत जरूरी है। इस कारखाने से केवल श्रमिकों एवं कर्मचारियों को ही रोजगार नहीं मिला हुआ है, बल्कि क्षेत्र के किसान जड़ी-बूटियां, कंडे, गोमूत्र, आदि बेचकर अपनी जीविका चला रहे हैं। फैक्ट्री प्रबंधन श्रमिकों के पीएफ के फार्म पीएफ ऑफिस के लिए अग्रसारित नहीं कर रहा है जिस कारण श्रमिकों को उनका बकाया 1.12 करोड़ रुपए नहीं मिल पाए हैं।’ आंदोलनकारी लोगों का कहना है कि जब सरकार हमारी आवाज सुनने के लिए तैयार नहीं है तभी हमें आंदोलन के लिए विवश होना पड़ा है। लोगों की मानें तो वर्ष 2019 में भी इस कारखाने को बेचने का प्रयास मोदी सरकार कर चुकी है तब भी श्रमिकों एवं क्षेत्र की जनता के विरोध के कारण विनिवेश की कार्रवाई रुक गई थी।

यहां यह भी याद दिलाना जरूरी है कि इस कारखाने के तकनीकी टेंडर हो चुके हैं। दूसरे दौर के फाइनेंशियल टेंडर भी होने वाले हैं। मैनकाइंड और बैद्यनाथ जैसी कंपनियां 35 एकड़ में फैले इस मिनीरत्न कारखाने को खरीदने के लिए लालायित हैं। यह मजदूरों की जबरदस्त मेहनत का ही परिणाम है कि दो वर्ष पूर्व ही आईएमपीसीएल ने 45 करोड़ रुपए का मुनाफा अर्जित किया है। कोरोना लॉकडाउन के दौरान भी कारखाना मुनाफे में चल रहा था। सरकार लोगों के लिए नए रोजगार पैदा करने की जगह मुनाफे में चल रहे सार्वजनिक संस्थाओं को भी पूंजीपतियों को बेचने पर आमादा है। रामनगर के लोगों का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार पिछले 4 वर्षों में 1.92 लाख करोड रुपए की सरकारी संपत्तियों का विनिवेश कर चुकी है जो कि देश की जनता के साथ धोखा है और उत्तराखण्ड सरकार द्वारा पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए बनाया गया पलायन आयोग जनता के लिए भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं है।

उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय प्रधान महासचिव प्रभात ध्यानी की मानें तो आईएमपीसीएल मोहान का विनिवेश करना राज्य की अवधारणा के खिलाफ है। राज्य की अवधारणा के प्रमुख केंद्र में पहाड़ का पानी पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आनी चाहिए लेकिन भारतीय जनता पार्टी की केंद्र की मोदी सरकार एवं राज्य की धामी सरकार राज्य की अवधारणा के खिलाफ काम कर रही है। आईएमईपीसीएल मोहान मिनी रत्न कारखाने के विनिवेश के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में पहले से ही हो रहे पलायन में तेजी आएगी। स्थानीय नौजवानों को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ेगा, वहीं किसानों के कृषि उपज का सही मूल्य न मिलने के कारण उनका शोषण बढ़ेगा। आईएमपीसीएल मोहान द्वारा मजदूरों का पीएफ के भुगतान में जान-बूझकर अवरोध पैदा किया जा रहा है जिसके कारण मजदूरों का करोड़ों रुपए का भुगतान नहीं हो पा रहा है। ध्यानी कहते हैं कि ‘क्षेत्रीय विधायक महेश जीना जी एवं दीवान सिंह विष्ट जी, सांसद अजय टम्टा जी, अजय भट्ट जी द्वारा इस सम्बंध में पहल न करना मजदूरों के प्रति उनकी दुर्भावना को दर्शाता है। मजदूरों को अपने पीएफ के भुगतान के लिए चक्कर लगाने पड़ रहे हैं जिसके कारण मजदूर एवं आम लोगों में केंद्र एवं राज्य सरकार के खिलाफ आक्रोश बढ़ता जा रहा है जिसकी कीमत आगामी चुनाव में भाजपा को चुकानी पड़ेगी।’

कॉर्बेट जिप्सी वेलफेयर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष नूर मोहम्मद खान करते हैं कि ‘आईएमपीसीएल को मिनीरत्न का दर्जा प्राप्त है तथा इस कारखाने से केवल मजदूर ही नहीं, बल्कि क्षेत्र के किसान तथा स्थानीय व्यापारी व ग्रामीण की भी जीविका जुड़ी हुई है। इस कारखाने के बिकने से उत्तराखण्ड से पलायन और भी अधिक बढ़ेगा अतः इसके विनिवेश को रोका जाना चाहिए।

सोशल वर्कर एवं वत्सल फाउंडेशन की सचिव श्वेता मासीवाल कहती हैं कि ‘आईएमपीसीएल कम्पनी से मैं तब जुड़ी थी जब 2011 से 2012 के बीच कम्पनी घाटे में चल रही थी। तब कम्पनी के एमडी हुसैन साहब हुआ करते थे। उन्होंने मजदूरांे और कम्पनी के बीच मामले को शार्ट आउट कराने की कोशिश की थी। तब नौबत कम्पनी को बंद करने की आ गई थी। लेकिन उनके प्रयासांे से यह फैक्टरी पटरी पर आई। जिस कम्पनी को मिनीरत्न बोला जाता है वहां के कर्मचारियों को अब अपने परिवार पालने का डर सता रहा है। यह पहली बार है जब प्रादेशिक स्तर पर कम्पनी को बेचे जाने का मुद्दा हरीश रावत जी ने उठाया है। इससे पहले भी आंदोलन, धरना-प्रदर्शन होते रहे हैं लेकिन वह रामनगर के जन आंदोलनकारी नेताओं द्वारा किए जाते रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी ने अपील की है कि इस लड़ाई में सभी एकजुट होकर सरकार के सामने आए। उनके नेतृत्व में 14 नवंबर को होने वाले धरना-प्रदर्शन में समस्त प्रदेश की जनता को एकजुट होकर लोगों को बेरोजगार होने से बचाने की लड़ाई लड़नी चाहिए। यह राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक चिंतन का मुद्दा भी है। इस पर हम हाईकोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली जी कानूनी पक्ष का अध्ययन कर रहे हैं। इस पर डबल इंजन सरकार की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जनप्रतिनिधियों को भी इस मुद्दे पर सामने आना चाहिए।’

समाजवादी लोकमंच के संयोजक मुनीष कुमार के अनुसार ‘आईएमपीसीएल के विनिवेश का सवाल सबसे पहले 2018 नवंबर में आया था तब हम लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी तथा कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा व भाजपा के पांचो सांसदों को पत्र लिखकर विनिवेश रोकने की मांग की थी। कांग्रेस और भाजपा के नेता 6 वर्ष तक कुंभकरणीय नींद सोते रहे। हम सभी लोग विनिवेश के खिलाफ 2018 से ही संघर्ष कर रहे हैं। पिछले वर्ष भाजपा सरकार ने इस कंपनी के टेंडर जारी कर दिए हैं। नियमित कर्मचारियों से लेकर सभी जनप्रतिनिधि तब से लगातार चुप्पी लगा कर बैठे रहे , अब कारखाना बिकने के समाचार आने के बाद ये लोग लकीर पीट रहे हैं। सुंदरखाल, कुनखेत, चुकम, तड़म, रामनगर व सल्ट के सुदूर से मजदूर आकर यहां पर काम करके अपना पेट पालते हैं तथा तमाम किसान अपनी उत्पादन फैक्टरी में बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं। कारखाना बिकने से बेरोजगारी और पलायन बढ़ेगा। उत्तराखण्ड में 17 सौ गांव भूतहा घोषित किए जा चुके हैं। भाजपा द्वारा बनाया गया पलायन आयोग का ढकोसला बनकर रह गया है। लोकसभा चुनाव पूर्व कांग्रेस नेता प्रदीप टम्टा ने ठेका मजदूरों को कारखाना गेट पर आयोजित धरने पर आकर आश्वासन दिया था कि कांग्रेस आईएमपीसीएल का विनिवेश रोकने, ठेका मजदूरों की पीएफ की राशि में हुए भ्रष्टाचार व ठेका मजदूरों के नियमितीकरण के सवाल को उत्तराखंड विधानसभा और लोकसभा में उठाएगी। जनता को आज भी कांग्रेस के वादे के पूरा होने का इंतजार है। सभी क्षेत्र की जनता को अपने मतभेद भुलाकर, एक बैनर एकसाथ आकर इस कारखाने को बिकने से बचाने के लिए संघर्ष करने की जरूरत है।’

गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में आईएमपीसीएल को 45.21 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ है जिसके बाद आईएमपीसीएल ने आयुष मंत्रालय और उत्तराखण्ड को 10.13 करोड़ रुपए लाभांश देने की घोषणा की थी। कम्पनी ने बकायदा केंद्रीय आयुष मंत्री सर्वानंद सोनोवाल को आयुष मंत्रालय के लिए 9.93 करोड़ रुपए का लाभांश चेक सौंपा था।

सूत्रों के अनुसार मैनकाइंड फार्मा और बैद्यनाथ आयुर्वेद ने इस सरकारी कम्पनी में 100 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए अभिरुचि पत्र जमा किया है। चर्चा यह भी है कि इस आयुर्वेदिक कारखाने को खरीदने के लिए एक प्राइवेट इक्विटी फंड और एक एसेट रिकंस्ट्रक्शन कम्पनी ने भी बोली लगाई है। बोली लगाने की प्रक्रिया में हरिद्वार की पतंजलि आयुर्वेद के भी शामिल होने की चर्चा थी, लेकिन खबर है कि वह ऐसा नहीं करेगी। पतंजलि आयुर्वेद ने फिलहाल अभिरुचि पत्र जमा करने से इनकार कर दिया है।

250 करोड़ रुपए था कम्पनी का रेवेन्यू
वित्त वर्ष 2022 में सरकारी दवा आईएमपीसीएल का रेवेन्यू 250 करोड़ रुपए और प्रॉफिट मार्जिन करीब 25 फीसदी था। सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (सीजीएचएस) के तहत चलने वाली डिस्पेंसरीज और क्लीनिक्स को यह कम्पनी दवाओं की सप्लाई करती है। कम्पनी मौजूदा समय में 656 क्लासिकल आयुर्वेदिक, 332 यूनानी और 71 प्रोप्राइटरी आयुर्वेदिक दवाएं बनाती है। कम्पनी नेशनल आयुष मिशन के तहत सभी राज्यों को आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं की सप्लाई करती है। इसके अलावा इंडियन मेडिसिन्स फार्मास्युटिकल कॉरपोरेशन 6000 जन औषधि केंद्रों को भी दवाओं की आपूर्ति करती है। यह कम्पनी केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय के तहत काम करती है।

प्रियंका गांधी भी उठा चुकी है आवाज
पिछले दिनों कांग्रेस की युवा नेता और राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाई है उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा है कि मोहान, अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड में स्थित भारतीय औषधि निगम लिमिटेड (आईएमपीसीएल) की स्थापना 1978 में केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर की थी। यह आयुर्वेद और यूनानी दवाओं का एक प्रमुख कारखाना है जो देश और विदेश में दवाओं की आपूर्ति करता है। पिछले साल कम्पनी को 18 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ था और वह सरकार को 6 करोड़ रुपए का लाभांश देने की तैयारी कर रही है। इस इकाई में 500 से अधिक कर्मचारी हैं और हजारों छोटे किसान अपनी छोटी उपज और कच्चा माल इसकी आपूर्ति करते हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा ने आगे कहा कि लाभ कमाने वाली दवा फैक्ट्री को बेचने की योजना आयुर्वेद और आयुष को बढ़ावा देने के पाखंड की सच्चाई को उजागर कर रही है। देश की बहुमूल्य संपत्तियों को सौंपकर चुनिंदा मित्रों की तिजोरियां भरने के अलावा इसका क्या उद्देश्य हो सकता है?

मजदूर कल्याण समिति का समर्थन
ठेका मजदूर कल्याण समिति ने कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा आईएमपीसीएल के निजीकरण पर रोक लगाने की मांग को लेकर निकाली गई पदयात्रा आंदोलन का समर्थन किया है तथा उन्हें समर्थन पत्र सौंप कर उनसे सभी ठेका मजदूरों को नियमित नियुक्ति दिए जाने तथा पीएफ कार्यालय में ठेका मजदूरों के बकाया एक करोड़ 12 लाख रुपए के भुगतान की मांग को भी मांग पत्र में शामिल करने का निवेदन किया। समिति ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से अनुरोध किया कि उक्त मांगों को विधानसभा एवं लोकसभा में कांग्रेस द्वारा उठाकर इन्हें मुद्दा बनाया जाए। समिति ने उन्हें आईएमपीसीएल का विनिवेश रोकने की मांग को लेकर वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री मोदी व उत्तराखण्ड के सभी सांसदों को लिखे गए पत्र की प्रतियां भी उपलब्ध कराई। ठेका मजदूर कल्याण समिति आईएमपीसीएल मोहान के बैनर तले पदयात्रा कार्यक्रम में समिति के अध्यक्ष किशन शर्मा, भूपेंद्र कुमार सहित बहुत से लोग शामिल हुए।

बात अपनी-अपनी
इस कम्पनी की वजह से यहां के मजदूर, कर्मचारियों समेत आसपास के ग्रामीणों की निरंतर आजीविका चलती है। 500 लोगों के करीब 50000 परिवार इस कम्पनी से पलते हैं। यह कम्पनी निरंतर लाभ कमा रही है और यहां के हजारों उत्पाद, औषधी, फलों और­­ दूसरी जड़ी-बूटियों के उत्पादन लोगों की आजीविका का आधार बनी हुई हैं। लेकिन सरकार उसे निजी हाथों में बेचने­­ का षड्यंत्र लंबे समय से रच रही है। अब ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने ऐसा पाप करने का निश्चय कर लिया है। इस समय यह छोटी सी कम्पनी निरंतर लाभ अर्जित कर रही है। इस कम्पनी से हजारों लोगों को अप्रत्यक्ष तौर पर लाभ मिल रहा है। बड़ी संख्या में हमारे नौजवानों को घर के पास नौकरी मिल रही है। लेकिन कुछ लोगों की गिद्ध दृष्टि पहले से ही इस भूमि पर है। वह इस भूमि को ले लेना चाहते हैं, ताकि इसको कालांतर में लग्जरी रिजॉर्ट में या किसी और चीज में बदला जा सकें। पब्लिक सेक्टर के क्षेत्र में यूनानी दवाइयां बनाकर उत्तराखण्ड के नाम को देश और दुनिया में फैला रही इस कम्पनी का निजी हाथों में देने के बाद इसका अस्तित्व मिट जाएगा। इस कम्पनी को बनाने में समूचे उत्तराखण्ड का संघर्ष है। खासकर स्वर्गीय एनडी तिवारी जी जिनके प्रयासों से यह कम्पनी मोहान में स्थापित हो सकी थी। उनका सपना था कि पहाड़ का माल पहाड़ में ही बिके और काश्तकारों को उनका वाजिब दाम मिले। लेकिन उनका यह सपना अब केंद्र सरकार तोड़ने जा रही है। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड

मैंने आईएमपीसीएल के सम्बंध में केंद्र सरकार के तत्कालीन मंत्री श्रीयाद नाईक से बात की थी। तब कम्पनी का विनिवेश रोक दिया गया था। अभी हमारी सरकार इस कम्पनी का विनिवेश नहीं कर रही है। कांग्रेस इसे मुद्दा बनाकर राजनीतिक रोटियां सेक रही है। मेरी पूरी कोशिश है कि इस कम्पनी के मजदूरांे के साथ किसी तरह का अन्याय न होने पाए। मैंने अपनी सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि कम्पनी के मजदूरों को वहां से किसी भी कीमत पर न हटाया जाए। हमारी सरकार लोगों के रोजगार को बढ़ावा देने के लिए अपने वादे पर कायम है।
अजय टम्टा, सांसद एवं केंद्रीय राज्यमंत्री

कांग्रेस के पास इस समय कोई काम नहीं है। यह पार्टी मुद्दे बनाने में माहिर है। आईएमपीसीएल कम्पनी का मुद्दा आज का नहीं है कई वर्षों का है। कितने सालों से ये बात उड़ाई जा रही है कि ये कम्पनी बेची जा रही है। लेकिन ऐसा कहीं नहीं है। सरकार इसको नहीं बेच रही है। मैं इस मामले पर जल्द ही मुख्यमंत्री जी से मिलकर स्थिति को स्पष्ट कराऊंगा। हमारी सरकार में मजदूरों और बेरोजगारों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। रोजगार देने के मामले में हमारी सरकार सबसे आगे है। हम रोजगार छीनते नहीं बल्कि देते हैं।
दीवान सिंह बिष्ट, विधायक, रामनगर

 

निजीकरण की राह पर सरकार
वर्ष 2014 के बाद से अब तक केंद्र सरकार ने कई सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया है। प्रमुख रूप से एयर इंडिया, हिंदुस्तान जिंक, और बीपीसीएल जैसी कंपनियों का विनिवेश किया गया। इस प्रक्रिया के तहत सरकार ने लगभग 4 लाख करोड़ से अधिक की धनराशि जुटाई है। इसका उद्देश्य सरकारी वित्तीय घाटे को पूरा करना और सरकारी कंपनियों की दक्षता में सुधार करना है। निजीकरण की इस नीति को ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ के तहत लागू किया जा रहा है।

भारत सरकार ने 2021-22 में निजीकरण और विनिवेश के माध्यम से 1.75 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा था। हालांकि यह लक्ष्य पूरी तरह से पूरा नहीं हो सका। 2022 तक, सरकार ने विभिन्न विनिवेश प्रयासों से लगभग 78,000 करोड़ जुटाए थे। एयर इंडिया और एलआईसी जैसी प्रमुख कंपनियों के निजीकरण से राजस्व प्राप्त हुआ। लेकिन कुछ योजनाओं में देरी और विनिवेश प्रक्रिया में जटिलताओं के कारण सरकार अपने निर्धारित लक्ष्य तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाई।

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