नैनीताल जिले में जहां निजी स्कूलों की मनमानी, पेयजल संकट और ट्रैफिक अव्यवस्था जैसी जनसमस्याएं विकराल रूप ले चुकी हैं, वहीं प्रशासन अपनी पूरी ऊर्जा मदरसों की जांच और बंदी में झोंक रहा है। आम जनता की जरूरतें हाशिये पर हैं और राजनीतिक एजेंडा प्राथमिकता बनता जा रहा है
उत्तराखण्ड के नैनीताल जनपद में प्रशासन की प्राथमिकताएं इन दिनों गम्भीर सवालों के घेरे में हैं। एक ओर जहां निजी स्कूलों की मनमानी पर अभिभावकों की लगातार शिकायतें मिल रही हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन का पूरा फोकस कथित अवैध मदरसों की पहचान और उनके विरुद्ध कार्रवाई पर केंद्रित दिखाई देता है। यह स्थिति बताती है कि आम नागरिकों की बुनियादी समस्याएंकृजैसे जलापूर्ति, बिजली, जर्जर सड़कों और निजी विद्यालयों की शोषणकारी नीतियां – प्रशासन की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं हैं।
गर्मी और पर्यटन सीजन की शुरुआत के साथ ही नैनीताल जिले की तमाम व्यवस्थाएं चरमराने लगी हैं। पेयजल संकट, अनियंत्रित ट्रैफिक, असुरक्षित सड़कें और स्कूलों की लापरवाह फीस व पुस्तक नीति, ये सब मिलकर एक बड़ी प्रशासनिक चूक की ओर संकेत करते हैं। इसके विपरीत, स्थानीय प्रशासन कथित अवैध मदरसों की जांच और उन्हें बंद कराने में पूरी ताकत झोंक रहा है। मुख्यमंत्री के निर्देशों के तहत कार्रवाई में एडीएम से लेकर सीओ, सिटी मजिस्ट्रेट, नगर आयुक्त, एसडीएम और भारी पुलिस बल तक को लगाया गया।
यह प्रशासनिक सक्रियता तब और असंतुलित दिखती है जब निजी स्कूलों पर कार्रवाई की बात आती है। नया शैक्षिक सत्र शुरू होते ही निजी स्कूलों द्वारा फीस वृद्धि, महंगी निजी प्रकाशनों की पुस्तकें खरीदने की अनिवार्यता और धार्मिक चित्रों जैसी शिकायतें सामने आईं। प्रशासन ने समिति गठित कर जांच का आश्वासन तो दिया, लेकिन अब तक किसी प्रभावी कार्रवाई के संकेत नहीं हैं। सबसे चैंकाने वाला पहलू यह रहा कि जांच समिति, जिसमें सरकारी स्कूलों के प्रधानाचार्य शामिल थे, शिक्षा की अनियमितताओं के बजाय धार्मिक प्रतीकों पर ध्यान केंद्रित करती दिखी।
नैनीताल जैसे पर्यटन जिले में यातायात व्यवस्था की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। भवाली से कैंचीधाम जैसे मार्गों पर कई-कई घंटे का जाम प्रशासन की लचर योजना का प्रमाण है। हल्द्वानी की प्रमुख सड़कों के चैड़ीकरण और वैकल्पिक मार्ग निर्माण के पुराने प्रस्ताव आज भी फाइलों में दबे हैं। जिले में ट्रैफिक सम्भालने के लिए कुल मात्र 43 ट्रैफिक पुलिसकर्मी हैं, जबकि सैलानियों की भारी आमद प्रशासन को पहले से ज्ञात रहती है।
व्यापार मंडल के महासचिव त्रिभुवन फत्र्याल कहते हैं कि अनियंत्रित यातायात और लंबा जाम पर्यटकों को नकारात्मक अनुभव दे रहा है, जिसका असर व्यापार पर भी पड़ रहा है। इसी प्रकार पेयजल संकट भी विकराल होता जा रहा है। हर दिन जल संस्थान के सामने प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन समाधान की दिशा में प्रगति नगण्य है।
पूर्व जिलाधिकारी सबिन बंसल द्वारा सुझाए गए गुलाबघाटी वैकल्पिक मार्ग या पेड़ों की जड़ों को हटाने जैसे निर्देश अब तक लागू नहीं हुए हैं, जो प्रशासनिक उदासीनता का जीवंत उदाहरण हैं। प्रशासन की मौजूदा कार्यशैली को देख यह सवाल उठता है कि क्या जिले की मूलभूत समस्याएं उसकी प्राथमिकताओं में शामिल नहीं हैं? या फिर वह सिर्फ राजनीतिक निर्देशों की प्रतीक्षा में काम करता है?
बनभूलपुरा जैसी संवेदनशील घटनाओं से पूर्व भी प्रशासन की बचकानी हरकतें जिले को दंगों की आग में झोंक चुकी हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि वक्फ संपत्तियों, मदरसों और धार्मिक मामलों से जुड़ी कार्यवाहियों को अत्यधिक संवेदनशीलता और संतुलन के साथ लिया जाए। जितनी तत्परता प्रशासन ने मदरसों की जांच में दिखाई है, उतनी ही जिम्मेदारी से उसे स्कूलों की अनियमितताओं, बिजली-पानी की समस्याओं, ट्रैफिक और पर्यटन व्यवस्थाओं पर भी ध्यान देना चाहिए। यह समय है जब प्रशासन को अपने मूल कर्तव्यों की ओर लौटना चाहिए – जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति और विकास के वायदे पूरे करना।
बात अपनी-अपनी
सरकार शिक्षा माफियाओं को संरक्षण दे रही है और किसी भी प्रकार की कारवाई करने से सरकार बच रही है। जहां तक मदरसों पर कारवाई का सवाल है, प्रदेश सरकार अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए ऐसा सब कुछ कर रही है जिससे लोगों का ध्यान भटके।
यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष, उत्तराखण्ड
सरकार मूल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए ऐसे मुद्दों को उठा रही है।
सुमित हृदयेश, विधायक, हलद्वानी
युवा नेता मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार नित नए जनहित कार्य कर रही है। निजी स्कूलों की शिकायत पर प्रशासन शिक्षा विभाग के साथ मिलकर काम कर रहा है। जहां तक मदरसों का सवाल है तो सरकार अवैध मदरसों पर 2020 की नियमावली अनुपालन कर रही है।
प्रताप सिंह बिष्ट, जिलाध्यक्ष, भाजपा, नैनीताल
मदरसे से सम्बंधित कार्रवाई उस क्षेत्र के एसडीएम कर रहे थे, मेरा कार्य सिर्फ माॅनिटरिंग करना था। इस सम्बंध में आपको जानकारी सम्बंधित अधिकारी ही दे पाएंगे।
विवेक राॅय, एडीएम, नैनीताल
उत्तराखण्ड शासन के अल्पसंख्यक विभाग ने मदरसों के पंजीकरण के लिए 2019 में एक नियमावली बनाई थी जिसे फरवरी 2020 में लागू किया गया था। इसके अनुसार 2020 के बाद खुलने वाले अरबी और फारसी के खुलने वाले मदरसों का पंजीकरण अनिवार्य है। 5 साल का लंबा समय हो गया है इसलिए जिन मदरसों ने अभी तक पंजीकरण नहीं कराया है उनके विरुद्ध कारवाई की जा रही है। जहां तक निजी स्कूलों में अनियमितता की बात है, हमने शिक्षा विभाग और व्यापार कर विभाग के साथ मिलकर स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं के यहां छापे मारे जिसमें अनियमितता की रिपोर्ट शिक्षा विभाग को दे दी है अब इस पर आगे शिक्षा विभाग को ही कारवाई करनी है।
ए.बी.वाजपेयी, सिटी मजिस्ट्रेट, हलद्वानी

