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एक सरदार जिसने शाहीन बाग प्रोटेस्ट के लिए अपना फ्लैट बेच दिया

शाहीनबाग में लगभग दो महीने से लगातार नागरिकता कानून को लेकर विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। यहाँ स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सब के एक ही बोल है कि एनआरसी-सीसीए जैसे काले कानून वापस लो। दिल्ली की सर्द रातों ने भी प्रदर्शनकारियों के हौसले नहीं डिगा पाई। कई बार गोलियां चली पर किसी ने भी घर का रुख नहीं किया। यहाँ तक कि जहान की मौत ने इन्हें कमजोर करने के बजाय और अधिक मजबूत किया।

एक समय ऐसा आया जब सभी जगह से नाउम्मीद कश्मीरी पंडितों ने शाहीन बाग की महिलाओं से आकर अपने लिए समर्थन माँगा। मगर सरकार की तरफ से कोई नहीं आया। उल्टे सरकार समर्थित लोगों के तरफ से ये सवाल उठवाया गया कि प्रदर्शन की फंडिंग कहाँ से आ रही है? कौन खिला रहा है बिरयानी? यहाँ तक आरोप लगाया गया कि प्रदर्शन में शामिल महिलाओं को प्रतिदिन 500 से 700 रुपये प्रतिदिन दिए जाते हैं। हालांकि, इसका आधार एक ऐसा फर्जी वीडियो था जो शाहीन बाग इलाके से दस किलोमीटर दूर किसी दुकान का था।

इतना ही नहीं जिस माँ ने अपने बच्चे को खो दिया उस माँ को भी लोगों ने अपशब्द कहे। उसके ममत्व पर सवाल उठाए। लेकिन इन सभी सवालों का जवाब आज एक वीडियो दे रहा है। ये वीडियो दो दिन से वायरल हो रहा। वीडियो में मौजूद शख्स का नाम है एस.डी बिंद्रा। बिंद्रा ने शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को खाना खिलाने के लिए अपना फ्लैट बेच दिया है।

बिंद्रा बताते हैं कि बीस दिन पहले पंजाब से सिखों का दस्ता शाहीनबाग आंदोलन को समर्थन देने के लिए पहुँचा था। अब तक वहाँ से 17 बसें शाहीन बाग में आ चुकी हैं। सिखों ने आने के बाद एक लंगर डाला था। ये लोग अपने साथ चावल, आटा, तेल, चीनी, सब्जियों की बोरियां वगैरह लेकर आए थे। ये सारी जरूरत के सामान उन्होंने अपने मुसलमान भाइयों और बहनों के लिए लेकर आए थे। आने के बाद सिखों ने लंगर डाला जहां रोजाना सैकड़ों लोगों का खाना बनता है। लेकिन इसी बीच राशन खत्म होने लगा। सिख धर्म की परम्परा है कि एकबार जो लंगर शुरू हो गया तो मिशन पूरा होने तक खत्म नहीं होता, उसकी जो कीमत हो।

जब ‘गुरु नानक जी लंगर’ की आर्थिक स्थिति के बारे में बिंद्रा को पता चला तो उन्होंने अपना फ्लैट बेच दिया। बिंद्रा कहते हैं, “कैमरे पर ये बातें कहने की नहीं है। फिर भी मैं ये बातें बता देता हूँ। मेरे पास तीन फ्लैट थे। मैंने एक उसमें से लंगर के लिए बेच दिया। पहले मेरी वाइफ ने कहा कि ये तुम ठीक नहीं कर रहे हो। पर बाद में उसने कहा कि जो किया बहुत अच्छा किया।”

बिंद्रा आगे कहते हैं, “सब कुछ मेरे बेटे का है। मेरे बेटे ने आकर मुझसे कहा कि पापा प्राउड ऑफ यू। आपने अच्छा किया। मेरे साथ मेरे भाई आए हुए हैं सबने कहा अच्छा किया मैंने। आज बीबी, भाई, बेटा सब साथ हैं। फिर कुछ सोचने की ज़रूरत नहीं।”

बिंद्रा इसके आगे कहते हैं, “यहां बैठी औरतों को देख रहे हैं? ये शेरनियां हैं। हम शेर भाइयों ने लंगर लगा रखा है और हमारी शेरनियां बैठी हैं। अगर हमारी शेरनियां एक साल तक लंगर चखेंगी तो एक साल तक लंगर चखाएंगे। इन शेरनियों के लिए जरूरत पड़ी तो बाकी दो फ्लैट भी मैं बेच दूंगा। लेकिन लंगर नहीं रुकेगा। ये शेरनियां बस ऐसे ही डटी रहें। हम सब साथ हैं। ये शेरनियां मेरे लिए एक बार दुआ कर देंगी तो सीधे जन्नत पहुँच जाऊंगा।”

लाल पगड़ी पहने बिंद्रा बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति अपने घर से कमजोर नहीं होता। अल्लाह-वाहे गुरु एक वक्त का खाना सबको देता है। इन शेरनियों को देखो। मैं इन्हें खाना नहीं खिला रहा, ये मेरी खुद-किस्मती है कि मुझे इनकी सेवा करने का मौका मिला। स्थानीय लोगों का कहना है कि चूंकि इस प्रोटेस्ट के चलते यहाँ से सारे दुकानदारों का काम ठप्प पड़ गया है। इसलिए यहाँ मकान मालिकों ने कहा है कि जब तक ये प्रोटेस्ट चलेगा दुकानदारों से कोई किराया नहीं लिया जाएगा।

यहाँ मौजूद लोग कहते हैं कि बिंद्रा जैसे अनगिनत लोग हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष इस प्रोटेस्ट को समर्थन दे रहे हैं, जिसमें ग़ैर-मुस्लिमों की तादाद अधिक है। सब कुछ ऊपर वाले की दुआ से चल रहा है। सब कोई हमारे साथ है। लोग शाहीनबाग के लिए खड़े हैं। जिसकी जितनी क्षमता है उतनी मदद के लिए आगे बढ़ा है। अपने-अपने घरों से कोई घी दे जाता है, कोई चावल, तो कोई गैस सिलेंडर। बाकी जो बचे वो शरीर से यहाँ के लोगों की सेवा कर रहे हैं।

शाहीन बाग प्रोटेस्ट फंडिंग पर सवाल उठाने वालों पर फहीम अख्तर नाम के एक व्यक्ति कहते हैं, “क्या सरकार और उनके समर्थक पत्रकार बता सकते हैं कि हमारे मुल्क में इतने गुरुओं और बाबाओं के आश्रम हैं उनके फंडिंग कहाँ से आते हैं? नेताओं के पास चुनाव लड़ने का खर्च कहाँ से आता है? एक-ढ़ेर लाख की सैलरी पाने वाला नेताओं का परिवार इतनी ऐशो-आराम से कैसे रहता है?”

फहीम आगे सवाल करते हैं, “कोई मुझे बताए कि आरएसएस द्वारा देशभर में चलने वाले ट्रेनिंग कैम्पों के लिए पैसे कहां से आते हैं? जब इसी देश में अन्ना हजारे हड़ताल पर बैठते थे तब कहाँ से पैसा आया था? कोई उनसे सवाल क्यों नहीं करता कि उनकी फंडिंग कौन करता है? लाखों की भीड़ का इंतज़ाम कैसे और किसने किया था उस वक़्त? लेकिन जब भी आम आदमी, मजदूर या किसान दिल्ली की सड़कों पर आता है उसकी फंडिंग तलाशी जाने लगती है।”

फहीम अख्तर की तरह यहां कई लोगों का सवाल हैं। सरकार और पत्रकारों के प्रति एक गुस्सा है। लोगों का गुस्सा सबसे अधिक इस बात पर है कि पत्रकार और सरकार समर्थक लोग शाहीन बाग के बारे में उड़ने वाले अफवाह की जांच-पड़ताल किए बगैर आगे बढ़ा रहे हैं, लोगों के मन में शक पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

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