2009 में जम्मू-कश्मीर कैडर के आईपीएस अफसर साजी मोहन की मुंबई पुलिस के एंटी टेरेरिज्म स्क्वाड (एटीएस) द्वारा की गई गिरफ्तारी से न केवल पुलिस महकमा, आईपीएस बिरादरी, बल्कि पूरे देश में खासा हडकंप मच गया था। साजी मोहन 1995 बैच का आईपीएस होने के साथ-साथ गिरफ्तारी के समय केंद्र सरकार के नशा विरोध संगठन एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर जैसे महत्वपूर्ण पद पर चंडीगढ़ में तैनात था। उसे एक अरब से अधिक कीमत के नशीले ‘जहर’ हेरोइन को नशे के सौदागरों को सप्लाई करने के आरोप बाद गिरफ्तार किया गया था। दरअसल 15 मई, 2008 को जम्मू-बाॅर्डर पर 60 कि हेरोइन पकड़ी गई थी जिसकी कीमत 200 करोड़ आंकी गई। बाद में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के मालखाने से इसमें से तीस कि हेरोइन गायब हो गई।
इस चोरी को छिपाने के लिए पकड़ी गई हेरोइन में तीस कि चूना मिला दिया गया। मामले की जांच के दौरान यह चैंकाने वाला सच सामने आया कि ‘चैकीदार’ ने ही चोरी को अंजाम दिया है। साजी मोहन ने अपने पीएसओ दविंदर के साथ मिलकर हेरोइन बेच डाली। पिछले 10 सालों से साजी मोहन जेल में बंद है। अब जाकर मुंबई की विशेष नारकोटिक्स ड्रग्स अदालत ने उसे 15 साल की सजा सुनाई है। उसके पीएसओ को 10 साल की सजा सुनाई गई है। शिक्षा से वेटेनिरी डाॅक्टर साजी मोहन के पिता भारतीय सेना में अफसर थे जिन्हें राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था। साजी मोहन का काला सच हमारी पुलिस व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह बन एक बार फिर खड़ा हो गया है।

