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‘तालिबान रिट्रनर्स’ की आशंका से सहमा अफगानिस्तान

भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में इन दिनों ‘तालिबान रिट्रनर्स’ की आहट से देश की राजधानी काबुल समेत अमेरिकी समर्थित सरकार के कब्जे वाले हिस्से में माहौल बेहद गमगीन है। लगातार हो रहे बम धमाकों में बड़ी तादात में मारे जा रहे नागरिकों के परिजन ज्यादा आतंकित अमेरिका और तालिबान के मध्य चल रहे सुलह प्रस्ताव से हैं। 11 सितंबर, 2001 को अमेरिकी सेना ने तालिबान से अफगानिस्तान को मुक्ति दिलाई थी। इससे पहले 1997 में इस कट्टर मुस्लिम आतंकी संगठन ने देश की राजधानी समेत अधिकांश भुभाग पर कब्जा कर यहां कठोर इस्लामी कानून लागू कर दिए थे। हालात इतने अमानवीय कि महिलाओं को घरों से बाहर निकलने की आजादी नहीं थी। लड़कियों का स्कूल जाना बंद कर दिया गया था और किसी भी प्रकार के संगीत पर पाबंदी लगा दी गई थी। इन पाबंदियों को न मानने वालों को पत्थर मार-मार कर खत्म करना, लड़कियों और महिलाओं का यौन शोषण करना तालिबानी आतंकियों ने बड़े पैमाने पर दहशत फैलाने के लिए शुरू कर दिया था। 2001 में अमेरिकी सेना से पराजित तो तालिबान हुआ, काबुल भी उसके हाथों से फिसल गया लेकिन पिछले अठारह बरसों से वहां जमी अमेरिकी सेना तालिबान को समाप्त न कर सकी। हालात आज इतने खराब हैं कि खरबों डाॅलर अमेरिका इस युद्ध में गंवाने के बाद भी अफगानिस्तान में न तो शांति स्थापित कर पाया न ही तालिबान के कब्जे वाले हिस्से को मुक्त करा पाया। अब थक हार कर टंªप प्रशासन अफगानिस्तान से सेना हटाने का मार्ग तलाशने में जुट गया है। पिछले एक बरस से उसके और तालिबानी आतंकियों के बीच वार्ता चल रही है।

काबुल आशंकित है कि यदि तालिबान की रि इंट्री होती है तो कहीं एक बार फिर से ‘पत्थर युग’ की शुरूआत न हो जाए। काबुल स्थित विश्व प्रसिद्ध बुद्ध प्रतिमा को तोड़ने वाले तालिबान ने यहां के राष्ट्रीय म्यूजियम में भारी तबाही मचाई थी। लगभग 25,000 अति महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों को तालिबान ने नष्ट कर डाला था। पिछले अठारह वर्षों से इन धरोहरों को पुनः सहजने में जुटे इतिहासकारों को डर है कि तालिबान अपनी वापसी बाद इन धरोहरों को पुनः नष्ट कर देगा। इस बीच 12 अगस्त को अमेरिका और तालिबान के बीच आठवें राउंड की बातचीत कतर की राजधानी दोहा में हुई। इस बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने संकेत दिए कि बातचीत सफल रही है। अमेरिकी फौजों के वापस लौटने की एवज में तालिबान यह गारंटी देने को तैयार बतया जा रहा है कि उसके द्वारा अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी आतंकी संगठन को नहीं रहने दिया जाएगा।

अमेरिकी सेना 18 वर्षों की इस लड़ाई से थकी बताई जा रही है। साथ ही प्रति वर्ष खरबों डालर का खर्चा अमेरिका को उठाना पड़ रहा है। संकट लेकिन वर्तमान अफगान सरकार को लेकर भी है। तालिबान बातचीत में इस सरकार को शामिल करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में यह आशंका भी बलवती हो रही है कि अमेरिकी सर्मथित सरकार इस समझौते को न माने। बहरहाल अमेरिका अपना पीछा अफगानिस्तान से छुड़ाने का रास्ता खोज रहा है, अफगान जनता तालिबान की वापसी को लेकर दहशत में है तो भारत भी आशंकित है कि तालिबान की वापसी उसके लिए बड़ा सिरदर्द बन सकी है।

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