Editorial

हर चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती

मेरी बात

प्रिय मुख्यमंत्री जी,

इन दिनों आप राज्य के सर्वांगीण विकास का अपना सपना और जनसामान्य को किया वादा पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते नजर आ रहे हैं। 8-9 दिसंबर को राज्य में पूंजी निवेशकों को आमंत्रित कर लगभग ढ़ाई लाख करोड़ का पूंजी निवेश लाने का आपका प्रयास सफल हो ऐसी कामना हर उत्तराखण्डी की है। अपने इस भागीरथ संकल्प की पूर्ति के लिए बीते दिनों आप ब्रिटेन गए और कई हजार करोड़ के एमओयू आपने वहां के उद्योगपतियों संग किए। इस समाचार ने उत्तराखण्ड के लाखों बेरोजगारों को उत्साहित करने का काम अवश्य किया होगा। डबल इंजन की सरकार अब रोजगार और समृद्धि के अपने वायदों को धरातल पर उतार लेगी, ऐसा विश्वास उनके भीतर पैदा हुआ होगा। प्रसन्नता मुझ सरीखे हर उत्तराखण्डी को भी हुई है। लेकिन साथ ही कुछ आशंकाओं ने भी जन्म ले लिया है। आप इसे मेरी नकारात्मकता कह सकते हैं। फिर भी अपनी आशंकाओं को आप तक पहुंचाना मेरा कर्तव्य भी है और अधिकार भी। आप हमारे द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि जो हैं। इसलिए प्रीतकर हो अथवा कर्कश, सुनना आपकी मजबूरी भी है और दायित्व भी। अतः मुख्यमंत्री जी आप मेरी आशंकाओं पर ध्यान दें और अपना मार्गदर्शन भी दें ताकि मैं और मेरे सरीखे ढेर सारे ‘निराशावादी’ और ‘अप्रगतिशील’ सोच वाले निंश्चत हो सकें कि उत्तराखण्ड का भविष्य आपके हाथों में सुरक्षित है।

तो शुरुआत ब्रिटेन में आपके द्वारा किए गए पूंजीनिवेश के करारों से। समाचार माध्यमों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि रोपवे बनाने वाली एक विश्व स्तरीय कंपनी ‘पोमा’ के साथ दो हजार करोड़ रुपये के निवेश संबंधी करार उत्तराखण्ड सरकार ने किया है। समाचार में बताया गया है कि यह कंपनी पहले से ही चमोली रोपवे, देहरादून-मसूरी रोपवे एवं यमनोत्री रोपवे परियोजनाओं में काम कर रही है और हरिद्वार समेत कई अन्य धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों में भी रोपवे के लिए तकनीकी सहयोग की इच्छा रखती है। इस खबर को पढ़ मन प्रसन्न हो गया। फिर मैंने रोपवे की बाबत अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए पढ़ना शुरू किया तो यह प्रसन्नता काफूर हो गई और दुश्चिंता ने अपनी जकड़ में मुझे ले लिया। जानकारी यह मिली की 2018 में हल्द्वानी-नैनीताल रोपवे परियोजना का ख्याति प्राप्त पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत द्वारा विरोध किया गया था। एक जनहित याचिका भी इस मुद्दे पर नैनीताल उच्च न्यायालय में डाली गई। प्रो ़ रावत का मानना है कि न केवल हल्द्वानी-नैनीताल वरन् समस्त हिमालयी क्षेत्र में रोपवे का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हिमालय पर्वत श्रृंखला कतिपय नई पर्वत शृ्रंखला है और अतिसंवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र है। हल्द्वानी-नैनीताल पर्वत कैल्शियम कार्बोनेट का बना हुआ है अतः रोपवे व अन्य निर्माण कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जिसका मुख्य दायित्व जल-जंगल और पर्यावरण की रक्षा करना और विकास कार्यों से होने वाले नुकसान का आकलन करना है, बीते कुछ समय से पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करने वाले अपने दिशा निर्देशों को कमजोर करता नजर आ रहा है। 2006 में मंत्रालय द्वारा पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन (Environmental Impact Assessment) के दिशा निर्देश अनुसार किसी भी प्रकार के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, विशेषकर पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र में प्रस्तावित प्रोजेक्ट के लिए आम जनता के साथ सलाह-मशविरा तथा विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रोजेक्ट का मूल्यांकन किया जाना शामिल था। हजार मीटर से अधिक ऊंचाई अथवा संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्रों (Eco Sensitive Zones) में प्रस्तावित किसी भी आधारभूत संरचना परियोजना के लिए बहुत कड़ाई से इन दिशा निर्देशों का पालन किया जाना बाध्यकारी था। वर्ष 2020 में लेकिन इन दिशा निर्देशों को संशोधित करने की शुरुआत हुई। नए निर्देशों के अनुसार संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्रों में रोपवे परियोजना के लिए पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना तथा जनसामान्य से सलाह मशविरा किया जाना बाध्यकारी नहीं रह गया है।

मुख्यमंत्री जी, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की यह उदारता भयभीत करने वाली है। हमारा अधिकांश प्रदेश पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र में आता है। फरवरी 2010 में इसी मंत्रालय ने रोपवे परियोजनाओं की बाबत विस्तृत गाइड लाइंस जारी की थी जिसके अनुसार क्षेत्र के तलस्वरूप (Topography), नालियों की स्थिति, मिट्टी कटाव एवं उसका प्रदूषण, वन क्षेत्र में कमी, प्रवासी पक्षियों के आवागन मार्ग को पहुंचने वाली क्षति, रोपवे मशीन से पैदा होने वाले प्रदूषण इत्यादि का संपूर्ण अध्ययन बाद ही ऐसी परियोजनाओं की बाबत निर्णय लिया जा सकता था। वर्ष 2020 में लेकिन ऐसे किसी भी अध्ययन को कराए जाने की आवश्यकता लगभग समाप्त कर दी गई। ऐसा विकास के नाम पर किया गया है लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञ इसे प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ मानते हुए इसे मनुष्य जनित विनाश करार देते हैं। आप संभवतः अवगत होंगे कि 1998 में नेपाल में ऐसी ही एक रोपवे परियोजना ने वहां के पानी निकासी मार्ग को इस हद तक क्षतिग्रस्त कर दिया था कि 1999 में वहां भारी बाढ़ आ गई थी। हमारे पड़ोसी राज्य हिमालय प्रदेश में जाखू रोपवे परियोजना के दौरान सौ से अधिक देवदार के वृक्ष काटे जाने की बात सामने आई थी। इसमें से कई वृक्ष दो सौ वर्ष से भी पुराने थे।

2023 में आई केदारनाथ की आपदा का दंश आज तक हमें स्मरण करा रहा है कि अनियोजित और अवैज्ञानिक विकास के परिणाम किस कदर भयावह हो सकते हैं। अफसोस कि हमारे नीति नियंताओं ने इस आपदा से कोई सबक सीखा नहीं। आपकी सरकार द्वारा चारधाम यात्रा मार्ग को लेकर लंबे-चौड़े दावे किए जाते हैं। इस यात्रा मार्ग को ऑल-वेदर रोड कह पुकारा जाता है। सच से आप भी भली-भांति वाकिफ हैं कि यह मार्ग हल्की सी बारिश में ही भूस्खलन का शिकार हो अवरोधित हो जाता है। यह कैसा विकास? किसके लिए विकास? और किस कीमत पर होने वाला विकास है? ऐसे विकास का ही नतीजा है कि हमारे प्राचीन शहर जोशीमठ का अस्तित्व संकट में आ चुका हैं। सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति की बीते पखवाड़े जारी रिपोर्ट से यह स्थापित हो गया है कि इस तीर्थ नगरी के 65 प्रतिशत घर भूमि धंसने से प्रभावित हो चुके हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ में कुल 2 हजार 152 घरों में से 1 हजार 403 घर जमीन धंसने से क्षतिगस्त हो चुके हैं और इनमें से 472 घरों के पुर्ननिर्माण की आवश्यकता है। इस विशेषज्ञ रिपोर्ट में कहा गया है कि अनियोजित और अराजक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं, विशेष रूप से एक बिजली सयंत्र इस स्थिति के लिए जिम्मेवार है। इस सयंत्र का निर्माण पहाड़ों में ड्रिलिंग एवं विस्फोट कर किया गया है।

मुख्यमंत्री महोदय क्या आपको राज्य का ‘मुख्य सेवक’ होने के नाते नहीं लगता कि इन कथित विकास परियोजनाओं के चलते हम अपनी जन्म भूमि को नष्ट करने का काम कर रहे हैं? आपका उद्देश्य निश्चित ही बड़े पूंजीनिवेश के जरिए उत्तराखण्ड की आर्थिकी को मजबूती देना का है। आप देश-विदेश में रोड शो के जरिए ऐसे पूंजी निवेशक को राज्य में लाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। लेकिन आपको यह भी चिंतन करना होगा कि इस प्रकार का पूंजीनिवेश स्थानीय आर्थिकी को मजबूती देने के बजाए निवेश पर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने के सिद्धांत पर अमल करता है। ऐसे पूंजी निवेशकों का स्थानीय जनसरोकारों और जनसंवेदनाओं से कोई रिश्ता नहीं होता। वे केवल और केवल अपनी लागत का अधिकतम मूल्य न्यूनतम समय में पाने के मकसद से काम करते हैं। मुझे विश्वास है कि देवभूमि की संतान होने के नाते आप ऐसे तमाम नकारात्मक पहलुओं का भी आकलन अवश्य कर रहे होंगे। आपसे इतना भर अनुरोध है कि राज्य में अधिक से अधिक पूंजीनिवेश लाने के लक्ष्य को पाने के इस भगीरथी प्रयास में मेरी और मुझ सरीखों सैकड़ों अन्य की उपरोक्त आशंकाओं को भी अपने ध्यान में रखें ताकि विकास सही में विकास बन कर उत्तराखण्ड को एक आत्मनिर्भर और मजबूत प्रदेश बना पाने में सफल रहे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले समय में यह विकास राज्य के लिए विनाशकारी भी साबित हो सकता है। अंग्रेजी की एक कहावत है ‘हर चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती।’ यह विकास भी कुछ ऐसा ही है।

सादर आप

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