देहरादून में आयोजित पशु मेले ने राज्य में किसानों और पशुपालकों के हित में चलाई जा रही योजनाओं की पोल खोल दी। मेले में दूसरे प्रदेशों के पशु आकर्षण का केंद्र रहे, जबकि राज्य के पर्वतीय क्षेत्र से जिस बदरी गाय को लाया गया उसे जानकार नकली करार दे रहे हैं

 

उत्तराखण्ड सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के दावे किये हैं। इसके लिए वागवानी, पशुपालन और अन्य ऐसे क्षेत्र जो कहीं न कहीं खेती किसानी से जुड़े हैं, को अपनी येजना में शामिल करने का प्रयास किया है। प्रदेश के पर्वतीय पशु पालकों के लिए ‘बदरी गाय’ योजना चलाई जा रही है। हैरानी इस बात की है कि सरकार क्षेत्र विशेष के नाम पर योजनाओं का गठन तो कर देती है, लेकिन उनका उचित प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता है। इसके पर्वतीय क्षेत्र के पशु पालकों को योजना का फायदा नहीं मिल पाता है। इसी तरह देहरादून में संपन्न हुए कøषि और पशु मेले में मैदानी क्षेत्रों के पशुओं को ही सबसे ज्यादा तरजीह दी गई।

देहरादून में गैर सरकारी संगठन प्रोग्रेसिव डेरी एवं फार्मस एसोसिएशन और प्रदेश के पशु पालन विभाग के सहयोग से तीन दिवसीय पशु मेले का आयेजन किया गया। कहने को तो यह मेला एक गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित किया गया। लेकिन सरकार ने इस आयेजन में हर तरह का सहयोग दिया। इस मेले में एक बात साफ तौर पर देखने को मिली कि उत्तराखण्ड सरकार और पशुपालन विभाग द्वारा पर्वतीय क्षेत्र में पशुपालन को बढ़ावा देने और नस्ल सुधार के तमाम दावों के विपरीत मेले में एक भी मूल प्रजाति का पशु नहीं था। जिस बदरी गाय को लेकर राज्य सरकार बड़े-बड़े दावे करती नहीं थकती उसके नाम पर एक पहाड़ी गाय को मेले में प्र्रचारित किया गया। यही नहीं बदरी गाय को प्रतिदिन 5 से 7 लीटर दूध देने वाली बताया गया जबकि असल में बदरी गाय दोनों समय में महज डेढ़ से दो लीटर दूध ही देती है। इससे यह स्पष्ट है कि सरकारी तंत्र किस तरह से राज्य में पशुपालन को बढ़ावा देने और पशुओं की नस्ल को सुधारने की योजना चला रहा है।

पहाड़ी दुधारू पशु के नाम पर मात्र नकली बदरी गाय ही मेले में पहुंच पाई जबकि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के मूल दुधारू पशुओं की तादात बहुत थी। जिनमें करोड़ां की कीमत के नर भैंंसे सुल्तान और रूस्तम तथा भारत की सबसे अधिक दूध देने वाल मुर्रा नस्ल की भेंस प्रमुख रही।

वैसे तो भारतीय नस्ल के सबसे अधिक दूध देने वाले पशुओं को शायद उत्तराखण्ड और खास तौर पर देहरादून के निवासियां ने पहली बार देखा होगा। गौमूत्र में स्वर्ण के अंश होने के दावे वाली गिर गाय, राजस्थान और पाकिस्तान के रेतीले क्षेत्र की धारपड़कर नस्ल की गाय तथा साहिवाल एवं हरियाणा नस्ल की बेहतर दूध देने वाली गायां को देखने का अवसर मिला।

देश-विदेश में अपने कद और भव्यता से ख्याति प्राप्त मुर्रा नस्ल का नर भैंसा सुलतान जिसकी 21 करोड़ कीमत लग चुकी है और सवा 11 करोड़ की कीमत वाला रूस्तम नर
भैंसा भी मेले में देखने को मिला। इसके अलावा भारत की सबसे ज्यादा तकरीबन 20 लीटर प्रतिदिन दूध देने वाली मुर्रा नस्ल की लाडो भैंस भी मेले में आकर्षण का केंद्र रही।

उत्तराखण्ड की मूल प्रजाति के पशु इस मेले से नदारद ही रहे। एक मात्र बदरी गाय जरूर मेले में पहुंची थी। लेकिन जिस तरह से
लोगों की इस पर प्रतिक्रिया आ रही थी उससे साफ था कि यह बदरी गाय की मूल प्रजाति न होकर पहाड़ी गाय की नस्ल ही ज्यादा प्रतीत हो रही थी। बदरी गाय के स्वामी का कहना था कि 7 से 8 लीटर प्रतिदिन दूध मिलता है जो अपने आप ही कई सवाल खड़े करता है। माना जाता है कि बदरी गाय से अधिकतम एक से दो लीटर ही दूध मिल पाता है।

अब भारत की परंपरागत दुधारू नस्लां की बात करें तो इनमें गिर गाय को सबसे अधिक पंसद किया गया। गिर गाय से 18 से 20 लीटर प्रतिदिन दूध मिलता है। वर्तमान में दूध देने वाली गिर गाय की कीमत 2 से तीन लाख मानी जा रही है। यहां तक कि इसकी छह माह की बछड़ी की कीमत भी 50 से 75 हजार बताई जा रही है। अपने जीवन काल में 12 से 15 बार गिर गाय गर्भधारण कर सकती है। इसी गिर गाय के दूध की सबसे अधिक कीमत तथा दो हजार प्रति किलो इसके दूध से बने घी की बाजर कीमत बताई जा रही है। इसके गौमूत्र की कीमत भी 100 से 200 रुपए प्रति लीटर बतलाई जा रही है। दूसरी सबसे अधिक दूध देने वाली गाय पंजाब के साहिवाल नस्ल मानी जाती है। 12 से 16 बार गर्भधारण की क्षमता वाली यह साहिवाल नस्ल की गाय 16 से 20 लीटर प्रतिदिन दूध दे सकती है। इसकी बाजार कीमत एक से डेढ़ लाख बतलाई जा रही है। इसकी एक वर्ष की बछिया की कीमत भी 30 से 40 हजार बताई जा रही है।

राजस्थान और पाकिस्तान के इलाकां में पाई जाने वाली थारपड़कर नस्ल की गाय वैसे तो सामान्य कद काठी की ही है, लेकिन यह भी अपने पूरे जीवन काल में 10 से 12 बार गर्भधारण कर सकती है। 10 से 14 लीटर प्रतिदिन दूध दे सकती है। इसकी वर्तमान में अनुमानित कीमत 50 से 80 हजार के बीच बतलाई जा रही है।

भगवान कøष्ण के फोटो में अधिकतर दिखाई देने वाली हरियाणा नस्ल की गाय भारत की देशी गायों में अपनी एक अलग पहचान रखती है। मूलतः हरियाणा प्रदेश में पाई जाने के कारण इसे हरियाणा नस्ल की गाय कहा जाता है। यह प्रतिदिन 10 से 15 लीटर दूध दे सकती है। साथ ही 15 बार अपने जीवन काल में गर्भ धारण कर सकती है। वर्तमान में इसकी कीमत 70 से 80 हजार बतालाई जा रही है।

धारपड़कर गुजरात

अब भैंस प्रजाति के दुधारू पशुओं की बात करें तो मेले में केवल मुर्रा नस्ल की ही भैंस और नर भेंसे पहुंचे थे। जिनमें भारत की अभी तक सबसे अधिक दूध देने वाली भैंस लाडो का नाम बताया जा रहा है। यह भेंस बेनीवाल फार्म हरियाणा के किसान और पशुपालक रमेश बेनिवाल के पास है। सबसे अधिक दूध देने का रिकार्ड इसी लाड़ो भैंस के नाम दर्ज है। वर्ष 2014 में सबसे अधिक 24 लीटर 400 ग्राम एक दिन और इस वर्ष अगस्त में 19 लीटर 274 ग्राम दूध यह भैंस दे चुकी है। इसी बेनीवाल डेयरी फार्म का भारत विख्यात नर भैंसा सुल्तान भी है जो अभी तक भारत में सबसे अधिक कीमत यानी 21 करोड़ का बतलाया जा रहा है। सुल्तान कई पुरस्कार एवं रिकार्ड अपने नाम कर चुका है। इसी तरह से सवा 11 करोड़ की कीमत वाला मुर्रा नस्ल का भैंसा रुस्तम है जो अपने भारी भरकम शरीर ओैर भव्य आकृति के चलते देश में सबसे अधिक विख्यात है। अपने शांत स्वभाव के चलते रुस्तम सभी के आकर्षण का केन्द्र बना रहा।

अब सवाल उठता है कि सरकार राज्य में मैदानी क्षेत्र के पशुआें की नस्ल सुधारने के लिए कई पशुओं को मेले में लाई। वह अपनी पीठ थपथपा रही है, परंतु पर्वतीय क्षेत्रां में जो नस्लें सदियों से पशुपालकों के लिए एक सहारा बनी हुई हैं चाहे वह गाय हो या भैंस या भेड़ बकरी उनके लिए कोई ऐसी न तो योजना परवान चढ़ पाई है और न ही इस मेले में देखने को मिल पाया है।

मैदानी क्षेत्र के पशु पर्वतीय क्षेत्र में किसी भी सूरत में पनप नहीं सकते तो फिर क्यों सरकार के सहयोग से नकली बदरी गाय को प्रस्तुत करके झूठा प्रचार किया गया। बदरी गाय पर अनुसंधान करने और पलायन को लेकर काम कर रहे रतन सिंह असवाल का कहना है कि उत्तराखण्ड में बदरी नाम की कोई नस्ल ही नहीं है। जिसे बदरी नाम दिया गया है उसे सदियों से उत्तराखण्ड के इलाकों में श्री गाय के नाम से पुकारा जाता है। बदरी नाम तो भाजपा और बाबा रामदेव के द्वारा राजनीतिककरण करके दिया गया है। उनका यह भी कहना है कि बदरी गाय महज एक से डेढ़ लीटर ही दूध दे सकती है। पहाड़ी गायां को बदरी गाय के नाम से सरकार प्रचारित कर रही है। जबकि सरकार और पशुपालन विभाग के पास उत्तराखण्ड में सदियां ये पाले जा रहे पशुओं की प्रजाति और नाम तक का आंकड़ा नहीं है। बदरी गाय प्रदेश के कुछ ही भूभाग में होती है। शेष पर्वतीय क्षेत्रां में अन्य नस्लों की गाय है जिनकी पहचान करना आज बहुत जरूरी है।

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