अयोध्या भूमि विवाद मामले में 26वें दिन की सुनवाई शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में इस बात पर अभी मंथन चल रहा है कि सुनवाई पूरी होने में कितना समय लगेगा,चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा’ कि हमें उम्मीद है कि हम अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 18 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर लेंगे।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि एक महीने में बहस पूरी करने के लिए सभी पक्षों को कोशिश करनी पड़ेगी।जरूरत पड़ी तो हम शनिवार को भी सुनवाई के लिए तैयार हैं। इसके बाद हमें फैसला लिखने के लिए चार हफ्तों का समय मिलेगा।चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि मध्यस्थता को लेकर पत्र मिला. अगर पक्ष आपसी बातचीत से मसले का समझौता करना चाहते है तो इसे कोर्ट के समक्ष रखे,आप मध्यस्थता कर सकते हैं. इसकी गोपनीयता बनी रहेगी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने तमाम पक्षों से कह दिया है कि अयोध्या विवाद में बहस 18 अक्टूबर तक खत्म कर ली जाएगी,सुप्रीम कोर्ट ने तमाम पक्षों से वक्त के बारे में पूछा था. सबके जवाब आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने समय सीमा तय कर दी है।
अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद अगर मध्यस्थता से सुलझ जाता हैं तो इससे अच्छा कुछ और हो ही नहीं सकता। करोड़ों लोगों की धार्मिक भावना से जुड़ा यह वर्षों पुराना केस आपसी बातचीत से सुलझता हैं तो यह सामाजिक एकता की यादगार ऐतिहासिक मिसाल बन जाएगा। लेकिन सवाल ये हैं कि क्या ये इतना आसान होगा ?
हिन्दू और मुस्लिम पक्ष ( निर्वाणी अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड) एक बार फिर से कोर्ट के बाहर इस मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं। इसके लिए दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखा हैं।
इसके बाद लोगों में फिर से एक नयी उम्मीद जागी है। इस मामले के विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसा कोई विवाद नहीं जिसे बातचीत से न सुलझाया जा सके। इसके लिए पक्के संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। अयोध्या मामले में बातचीत के अब तक कई प्रयास हुए लेकिन हर बार उसमें समय ही खराब हुआ कोई सार्थक परिणाम निकल कर नहीं आया।
अब तक कई बार कोशिश हुई कि बातचीत के जरिये अयोध्या मामले को सुलझा लिया जाए, पर कुछ सियासतदार और मजहबी संगठन नहीं चाहते हैं कि इस मसले का हल बातचीत के जरिये निकले। वर्षों से राजनीतिक दल इस मुद्छे पर चुनावी रोटियां जरुर सेंकते हैं लेकिन मतलब साफ है कि उनकी नियति मामले को उलझाए रखने की ही है। मध्यस्थ केवल दोनों पक्षों में केवल बातचीत करवा सकते हैं किंतु वे जबरन किसी को तैयार नहीं कर सकते।
गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंदशेखर, पीवी नरसिम्हा राव और अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में दोनों पक्ष के बीच बातचीत हुई लेकिन परिणाम निराशाजनक ही रहा। पूर्व प्रधामंत्री चंद्रशेखर के समय में दोनों पक्षों के बीच बातचीत के बहुत गंभीर प्रयास हुए और पी वीनर सिम्हा काल तक यह जाराी रहा लेकि नतीजा निष्फल ही रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने कल 17 सितंबर मंगलवार को अयोध्या मामले के पक्षकारों के वकीलों को यह बताने के लिए कहा था कि वे दलीलें पेश करने में और कितना वक्त लेंगे। कोर्ट ने सभी वकीलों को एकसाथ बैठाकर अनुमानित समय बताने के लिए भी कहा था । गत छह अगस्त से चीफ जस्टिस रंजन गोगई की अध्यक्षता वाली पीठ नियमित सुनवाई कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की चल रही नियमित सुनवाई के बीच सुलह-समझौता पैनल की नई अपील से पक्षकारों में उबाल है। पैनल ने 155 दिन की कोशिश के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दे दी थी कि समझौता का रास्ता निकालना मुश्किल है। मगर, जब लगभग सभी पक्षों की दलीलें अंतिम दौर में हैं।
नवंबर तक फैसला आने की उम्मीद प्रबल हो गई है तो फिर से निर्वाणी अखाड़ा व सुन्नी वक्फ बोर्ड के पत्र के आधार पर समझौता की पहल करने की अनुमति मांगने पर पक्षकारों ने मामले को जानबूझकर अटकाने व भटकाने की कोशिश करार दिया। खुद निर्वाणी अनी अखाड़े के पक्षकार महंत धर्मदास ने समझौता संबंधी अपने किसी पत्र से इनकार किया है, उनका कहना है कि जिसे भी समझौता करना हो, सुप्रीम कोर्ट में आए, बाहर कोई बात नहीं हो सकती।
अयोध्या पर कभी सफल नहीं हुई समझौते की कोशिशें-
अयोध्या विवाद में सुलह-समझौते की कोशिशें कई बार हो चुकी हैं। पहले भी कई बार अलग लग पक्षों ने या तो मध्यस्थता की कोशिश की या फिर पेशकश की, लेकिन हर बार यह पहल किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंच पाई। राजीव, वाजपेयी, चंद्रशेखर, नरसिंह सरकार की समझौता कोशिशें भी बेअसर रहीं। संत-धर्माचार्य और मौलाना भी मिलकर इस मामले का सर्वमान्य हल नहीं निकाल सके। 134 साल पहले यह मामला न्यायालय पहुंचा था, 69 साल से मामले की सुनवाई चल रही है।

