पांच अगस्त, 2024 के दिन बांग्लादेश में हुए तख्तापलट का बड़ा असर अब सामने आने लगा है। गत् सप्ताह देश के अर्टानी जनरल ने संविधान को बदलने और उससे समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और बंगाली राष्ट्रवाद सरीखे शब्द हटाने की बात कह यह स्पष्ट संकेत दे डाला है कि भारत का यह पड़ोसी देश भी पाकिस्तान की राह पर चलने जा रहा है
पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश के भीतर चल रही आंतरिक गतिविधियों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि शेख हसीना के शासन छोड़ते ही देश का माहौल किस प्रकार बदल गया है। अंदेशा है कि वहां रह रहे हिंदू समेत अन्य धार्मिक समुदायों के लिए आने वाले समय में स्थितियां गम्भीर हो सकती हैं। हाल ही में बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल और सर्वाेच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील मोहम्मद असदुज्जमां ने कहा है कि बांग्लादेश के संविधान से धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और बंगाली राष्ट्रवाद, जैसे शब्द हटाए जाने चाहिए। इसके पीछे का तर्क देते हुए उन्होंने कहा है कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्द बांग्लादेश की सही तस्वीर पेश नहीं करते हैं, क्योंकि यहां की 90 फीसदी आबादी मुस्लिम है। हाल ही में ढाका उच्च न्यायालय में एक याचिका पर सुनवाई हुई थी। इसी दौरान असदुज्जमां ने अपना यह सुझाव दिया था।
13 नवंबर को उच्च न्यायालय में उस याचिका पर सुनवाई हो रही थी जिसने साल 2011 में शेख हसीना सरकार के कार्यकाल के दौरान संविधान में हुए 15वें संशोधन को चुनौती दी थी। साल 2011 में हुए संशोधन के जरिए बांग्लादेश के संविधान में ‘सेक्युलरिज्म’ शब्द को शामिल किया गया था, इसके अलावा भी संविधान में कई प्रावधानों को जोड़ा, बदला और हटाया गया था। आर्टिकल 2ए में कहा गया है कि राज्य सभी धर्मों के पालन में समान अधिकार और समानता तय करेगा। मोहम्मद असदुज्जमां ने अपना तर्क देते हुए कहा कि संवैधानिक संशोधन में लोकतंत्र नजर आना भी चाहिए, साथ ही साथ हमें सत्ता के दुरुपयोग को बढ़ावा देने से भी बचना चाहिए। उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान मोहम्मद असदुज्जमां ने कहा कि ‘पहले अल्लाह पर हमेशा भरोसा और यकीन होता था, मैं चाहता हूं कि यह पहले जैसे ही रहे।’ इसके अतिरिक्त जनरल ने आर्टिकल 7ए और 7बी पर भी आपत्ति जताई है, जो किसी भी संशोधन पर रोक लगाते हैं। उन्होंने कहा है कि ‘यह संशोधन बांग्लादेश की आजादी की विरासत को बाधित करता है। साथ ही यह मुक्ति संग्राम की भावना के साथ-साथ 1990 के दशक के लोकतांत्रिक विद्रोहों का भी खंडन करता है।’ सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सरकार से भी इस मामले को लेकर राय मांगी है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की अनुमति से अब संविधान सुधार आयोग बनाया गया है। इस आयोग को 90 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। संविधान सुधार आयोग द्वारा उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर देश भर के लोगों से सुझाव मांगे गए हैं जो 25 नवंबर तक दिए जा सकते हैं। खबरों के अनुसार बांग्लादेश के लोगों से सुझाव मांगने का मकसद यह है कि मौजूदा संविधान की समीक्षा कर जरूरी सुझाव के साथ एक रिपोर्ट तैयार कर संविधान में संशोधन कर लोगों के सशक्तिकरण के लिए प्रभावशाली लोकतंत्र स्थापित किया जा सके।
गौरतलब है कि बांग्लादेश ने ऐतिहासिक संघर्ष के बाद 26 मार्च 1971 को आजादी हासिल की। जिसके बाद 4 नवंबर 1972 को बांग्लादेश का संविधान बनाया गया था। बांग्लादेश के संविधान में समाजवाद, लोकतंत्र, राष्ट्रवाद, और धर्मनिरपेक्षता को देश का उच्च आदर्श माना गया है। संविधान में प्रतिज्ञा है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिए देश में समाजवादी और शोषण से मुक्त समाज का निर्माण मूल मकसद होगा। इसके अलावा इसमें यह भी कहा गया है कि इसके किसी भी प्रावधान को संविधान संशोधन के जरिए ही बदला जा सकता है। फिर चाहे वो कुछ नया बदलना हो या हटाना हो। संविधान संशोधन के लिए इसे बांग्लादेश की संसद के दो-तिहाई बहुमत से पारित कराना जरूरी है। एक बार पारित होने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजे जाने का प्रावधान है।
धर्मनिरपेक्षता संशोधन अनुच्छेद को हटाए जाने के अतिरिक्त ढाका उच्च न्यायालय में अटार्नी जनरल ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान को लेकर कहा कि उनके राष्ट्रपिता के दर्जे को खत्म कर देना चाहिए। बांग्लादेश संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीब-उर -रहमान की तस्वीर भी राष्ट्रपति भवन के हॉल से हटा दी गई है। अंतरिम सरकार के सलाहकार महफूज आलम ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘साल 1971 के बाद फासिस्ट शेख मुजीब-उर-रहमान की तस्वीर दरबार हॉल से हटा दी गई है, हम इसपर शर्मिंदा हैं कि हम यह तस्वीर 5 अगस्त के बाद नहीं हटा सके थे।’ दरअसल सोशल मीडिया के जरिए कुछ लोग हॉल से शेख मुजीब की तस्वीर हटाने की मांग कर रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बांग्लादेश के राष्ट्रपति भवन से शेख मुजीब की तस्वीर हटाने के बाद से कई सरकारी विभागों से उनकी तस्वीर हटाने की खबरें आई हैं।
गौरतलब है कि पड़ोसी मुल्क में 5 अगस्त को छात्रों के हिंसक आंदोलन के बाद संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान की बेटी और तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को छात्र विरोध के चलते इस्तीफा पत्र देकर देश छोड़ कर भागना पड़ा था। जिसके बाद से वे भारत में रह रही हैं। हाल ही में 10 नवंबर को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा कहा गया है कि शेख हसीना और अन्य ‘भगोड़ों’ को भारत से वापस लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (इंटरपोल) से मदद मांगी गई है ताकि उन सभी पर मानवता के खिलाफ कथित अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सके। दरअसल शेख हसीना और उनके दल के नेताओं पर सरकार विरोधी छात्र आंदोलन को क्रूर तरीके से दबाने का आदेश देने का आरोप लगाया गया है।

