कुछ ही महीनों के भीतर पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है। ऐसे में कांग्रेस अब तक के इतिहास में बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। जहां एक ओर केंद्र और राज्यों में उसका जनाधार लगातार सिकुड़ता जा रहा है, वहीं पार्टी के सामने अहम सवाल यह भी है कि आखिर भविष्य में पार्टी का खेवनहार कौन होगा? पार्टी अपना नेतृत्व ही तय नहीं कर पा रही है। लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम कर रही हैं। एक तरफ पार्टी को अध्यक्ष नहीं मिल पाया है तो दूसरी तरफ चुनावों में लगातार मिल रही करारी हार से पार्टी के भीतर कलह जारी है। बड़ी दिक्कत यह भी है कि पार्टी को खुद अपने भीतर भी लड़ना पड़ रहा है। राष्ट्रीय नेतृत्व के सवाल पर मतभेद हैं, तो राज्यों में नेता एक-दूसरे को नीचा दिखाकर अपनी- अपनी गोटियां सेट कर रहे हैं। पार्टी पर अब आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने का दबाव है। लेकिन पार्टी इन दिनों कई राज्यों में अंदरूनी झगड़ों का सामना कर रही है। ऐसे में कांग्रेस अब खुद को बदलने की तैयारी कर रही है। पार्टी की नजर विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव पर है। चुनाव में जीत की दहलीज तक पहुंचने के लिए पार्टी जातीय समीकरणों के साथ युवाओं पर दांव लगा रही है ताकि, 2024 के चुनाव में जीत हासिल की जा सके।

राहुल संग जिग्नेश

कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती कमजोर संगठन है। इसके साथ पार्टी की जीत का फॉर्मूला सवर्ण, दलित और मुस्लिम गठजोड़ बिखर चुका है। इसलिए, पंजाब में जहां चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी दलितों को फिर राजनीतिक बहस के केंद्र में लाई है। वहीं, पीढ़ीगत बदलाव भी किया है। युवाओं को साथ जोड़ने के लिए कांग्रेस ने राज्य इकाइयों में महाअभियान चलाया है। इसके तहत पार्टी ऐसे युवाओं को जोड़ने की कोशिश कर रही है जो आंदोलन और संघर्ष से निकले हों। कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी ऐसे ही युवा हैं। इसलिए कांग्रेस ने इन्हें साथ लिया है।

राहुल गांधी को भेंट देते कन्हैया कुमार

कन्हैया कुमार बिहार के बेगुसराय से हैं। वर्ष 2019 केलोकसभा चुनाव में बगैर भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी प्रत्याशी उन्होंने अपनी किस्मत भी आजमाई थी, पर वह भाजपा के गिरिराज सिंह से हार गए। बेगुसराय में भूमिहार मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है और कन्हैया कुमार भी भूमिहार हैं। फिर भी वह खुद को साबित करने में विफल रहे। इसके बावजूद कांग्रेस मानती है कि बिहार में नए चेहरे की जरुरत है। छात्र नेता के तौर पर उन्हें संगठन बनाने का अनुभव है। बिहार कांग्रेस के नेता अमरिंदर सिंह कहते हैं कि कन्हैया के आने से पार्टी को फायदा होगा। क्योंकि कन्हैया वही मुद्दे और लड़ाई लड़ रहे हैं जिन्हें कांग्रेस उठाती रही है।

कांग्रेसी बनने की राह पर पीके

कन्हैया कुमार बीते डेढ़ सालों से राजनीति में कम सक्रिय हैं। इससे पहले कन्हैया कुमार ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता अशोक चौधरी से भी मुलाकात की थी लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। वामपंथी विचारधारा से जुड़े कन्हैया पिछले कुछ अर्से से माकपा भीतर खुद को असहज पा रहे थे। इस वर्ष फरवरी में हैदराबाद में भाकपा की अहम बैठक हुई थी। इसमें कन्हैया कुमार द्वारा पटना में की गई मारपीट की घटना को लेकर निंदा प्रस्ताव पास किया गया था। बैठक में पार्टी के 110 सदस्य मौजूद थे जिसमें तीन को छोड़कर बाकी सभी ने कन्हैया के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास करने का समर्थन किया था। इस घटनाक्रम के बाद कन्हैया की जदयू नेता से मुलाकात को अहम माना जा रहा था।

कन्हैया कुमार को साल 2016 में जेएनयू परिसर के अंदर संसद हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु की बरसी के मौके पर भारत विरोधी नारे लगाने के आरोप में जेल हुई थी। इसके बाद से ही कन्हैया का रणजनीतिक कद बढ़ने लगा था। वर्ष 2017 के गुजरात चुनाव में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी की तिगड़ी ने अहम भूमिका निभाई थी। हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। वहीं, अल्पेश ठाकोर भाजपा में चले गए। जिग्नेश मेवाणी ने विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़ा लेकिन कांग्रेस का उन्हें समर्थन प्राप्त था। वह लगातार भाजपा से लड़ रहे हैं। गुजरात में सात फीसदी दलित हैं और उनके लिए 13 सीट आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में अधिकतर आरक्षित सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। उस वक्त जिग्नेश मेवाणी अपनी सीट तक सीमित रहे थे। कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होनेे के दिन जिग्नेश की भी पार्टी में शामिल होने की चर्चा थी। कांग्रेस के मंच पर कई बार दिखे भी लेकिन पार्टी की औपचारिक सदस्यता ग्रहण नहीं की। मेवाणी के कांग्रेस में आने से तस्वीर बदल सकती है।

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का कांग्रेसी होना भी लगभग तय है। माना जा रहा है कि पार्टी को उनमें काफी संभावनाएं देख रही है। रणनीतिकार मानते हैं कि प्रशांत के जरिए जहां चुनाव रणनीति बनाने में मदद मिलेगी, वही वह संगठन को मजबूत करने के लिए युवाओं को जोड़ने में भी उनकी मदद ले पाएगी। प्रशांत खुद को पांच राज्यों में अगले वर्ष होने जा रहे विधानसभा चुनाव से अलग कर चुके हैं। पर कई नेता मानते हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के चुनावी फैसलों पर उनका असर साफ दिखाई देगा। पार्टी संगठन को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है। कांग्रेस को उम्मीद है कि प्रशांत, कन्हैया और जिग्नेश के जरिए वह युवाओं को जोड़ने में सफल रहेगी।

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