बर्ड फ्लू की बिमारी फिलहाल महामारी बनने की और अग्रसर है। कोरोना के बाद यह बिमारी पक्षियों में जबरदस्त तरीके से फैल चुकी है। जिसमे अब तक हजारो पक्षी मौत की आगोश में समा चुके है। हालाँकि इस बिमारी पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार सहित सभी प्रदेशों की सरकारे कोशिशों में जुटी है। सरकारे बीमारियों पर कितनी लापरवाही करती है इसका एक उदहारण मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय ने पेश किया है।
हाईकोर्ट ने इस मामले में मध्यप्रदेश सरकार को आज से 14 साल पहले इस बिमारी को कंट्रोल करने के लिए बनाई गई मॉनिटरिंग कमेटी की याद दिलाई और पूछा कि कमेटी कहा गई। इस मामले में नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की तरफ से एक याचिका डाली गई है।
मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय ने कल राज्य सरकार से पूछा है कि बर्ड फ्लू को लेकर वर्ष 2006 में गठित मॉनिटरिंग कमेटी की सिफारिशों पर कितना अमल किया गया। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने एक हफ्ते में जवाब मागा है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2006 में भी बर्ड फ्लू फैला था।
बताया गया कि तब हाईकोर्ट ने डॉ. जेएल वेगड़ और अन्य विशेषज्ञों की मॉनिटरिंग कमेटी बनाई थी। कमेटी ने सिफारिश की थी कि प्रदेश में बर्ड फ्लू की जांच के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रयोगशालाएं बनाई जाएं। जागरुकता फैलाई जाए। पोल्ट्री वर्कर्स को प्रशिक्षित किया जाए। हाईकोर्ट ने सरकार को सिफारिशों पर अमल का निर्देश दिया था, पर ऐसा नहीं हुआ।

