Uttarakhand

कैग ने खोली अफसरशाही की पोल

उत्तराखण्ड में विभिन्न योजनाओं के मद में खर्च होने वाले सैकड़ों करोड़ रुपए का हिसाब देने में विभागों की हीला-हवाली हमेशा से ही चर्चा में रही है। इस बार मानसून सत्र के दौरान सदन के पटल पर रखी गई (भारतीय नियंत्रक महालेखा परीक्षक) कैग की रिपोर्ट ने विभागों की पोल खोल दी है। इस रिपोर्ट में कई विभागों में गड़बड़ी की बातें सामने आई है। जिससे सियासत गरमाने लगी है। गंभीर बात यह है कि 2005 से 2022 तक भाजपा-कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की सरकारों ने बिना विधानसभा की मंजूरी के 47,758 करोड़ रुपए का बजट खर्च कर दिया जिसे विधानसभा से रेगुलराइज भी नहीं करवाया गया था। अब कैग की रिपोर्ट आने के बाद अफसरशाही पर सवाल खड़े होने लगे हैं

उत्तराखण्ड की अफसरशाही पर शुरू से ही सवाल खड़े होते रहे हैं। लचर कार्यशैली और फाइलों को लटकाने के मामले तो इस कदर होते रहे हेैं कि हर सरकार में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को इसके लिए अधिकारियों को चेतावनी तक जारी करनी पड़ी है। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस से अछूते नहीं रहे हैं। उनको भी इस मामले में कड़ी कार्यवाही करने और फाइलों को तय समय सीमा के भीतर अग्रसरित करने के लिए कहना पड़ा है। लेकिन अब सीएजी यानी कैग ने जिस तरह से राज्य के विभागों पर ही गंभीर सवाल खड़े किए हैं उससे साफ हो गया है कि राज्य में अफसरशाही पूरी तरह से बेलगाम हो चुकी है। भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने वर्ष 2021-22 की वार्षिक लेखा रिपोर्ट में राज्य के सरकारी विभागों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। साथ ही विभागों में 18 हजार 341 करोड़ की अनियमितताओं का खुलासा भी किया है जिसके चलते 2297 करोड़ के भारी-भरकम राजस्व के नुकसान होने की बात कही गई है। यही नहीं विभागों की लचर कार्यशैली के कारण 5 हजार 377 करोड़ 22 लाख रुपए की धनराशि भी बकाया है जिसे विभाग वसूलने में नाकाम रहे हैं।

सीएजी ने वर्ष 2021-22 की वार्षिक लेखा रिपोर्ट में ऊर्जा निगम, डोईवाला चीनी मिल, मंडी समितियों, राज्य के राजकीय विश्वविद्यालयों, अशासकीय विश्वविद्यालयों, जिला खनिज
फाउंडेशन, नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के अलावा परिवहन निगम में करोड़ों की गड़बड़ियांे का खुलासा किया है। उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश बनाने का दावा करने वाले ऊर्जा निगमों में सबसे ज्यादा 16 हजार 129 करोड़ 30 लाख की गड़बड़ी पाई गई है। उत्तराखण्ड ऊर्जा निगम को हरिद्वार-रुड़की में बिजली आपूर्ति से विगत तीन साल में 704 करोड़ की चपत लगी है। जिसमें 482 करोड़ 72 लाख तो अकेले रुड़की में ही चपत लगी है। यह हानि बिजली चोरी रोकने में पूरी तरह से नाकाम होने से हुई है। यही नहीं महज दो वर्ष में ही ऊर्जा निगम को विद्युत आपूर्ति से 1696 करोड़ 41 लाख की हानि होने की बात सामने आई है। ऊर्जा निगमांे के हालात इस कदर है कि उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड द्वारा उड़ीसा प्रदेश में वर्ष 2013 में 200 मेगावाट विद्युत परियोजना के लिए भूमि खरीदने के लिए उड़ीसा इंटिग्रेटेड पावर लिमिटेड को चेक द्वारा 35 करोड़ 93 लाख का भुगतान किया लेकिन जमीन का कोई पता नहीं है।

इसके अलावा ऊर्जा निगमों द्वारा अपनी बकाया राशि को भी वसूलने में नाकाम होने की बात सामने आई है। ऊर्जा निगमों का 77 करोड़ 55 लाख ठेकेदारों एवं अन्य पर बकाया चल रहा है जिसे निगम वसूल नहीं पा रहा है। नाबार्ड से मिला 37 करोड़ 73 लाख रुपए का ऋण 96 माह से बकाया है। यही नहीं प्रदेश में वैकल्पिक ऊर्जा के लिए बना उत्तराखण्ड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी पर भी ऊर्जा निगम के 29 करोड़ 66 लाख बकाया चल रहा है। जीपीएफ को लेकर भारत सरकार द्वारा समय-समय पर कई नियम और गाइड लाइन जारी की गई है जिसमें कर्मचरियों के प्रोविडंेट फंड को जमा न करने पर कठोर कार्यवाही करने का दावा भी किया जाता रहा है लेकिन उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड पर 41 करोड़ 8 लाख का बकाया चल रहा है।

ऊर्जा निगमों द्वारा दूसरे विभागों का भी बकाया होने की बात रिपोर्ट में सामने आई है जिसमें मनेरी भाली फेस टू परियोजना में सिंचाई विभाग द्वारा कार्य किया गया जिसमें 60 करोड़ 84 लाख रुपए का खर्च आया लेकिन उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड से सिंचाई विभाग को अभी तक भुगतान तक नहीं किया गया।

 

राज्य सरकार द्वारा पांच जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण आदी के लिए दिया गया 128 करोड़ 85 लाख रुपए का ब्याज मुक्त ऋण को भी वापस नहीं किया गया। साथ ही बिक्री योग्य बिजली पर 10 पैसा रॉयल्टी और प्रति यूनिट 30 पैसे के हिसाब से बाकी राशि 526 करोड़ 44 लाख रुपए भी सरकार को नहीं दे पाया है। उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम लिमिटेड के कारण राज्य सरकार को ग्रीन एनर्जी सेस, इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी मद में 31 करोड़ 3 लाख की हानि होने की भी बात सामने आ रही है। इसके अलावा अन्य विभागों की कार्यशैली पर लेखा रिपोर्ट में खुलासा किया गया है। जिसमें सरकारी डोईवाला चीनी मिल के विशेष ऑडिट में 1529 करोड़ 98 लाख की वित्तीय अनियमितताएं होने की बात कही गई है। मंडी समितियों में 409 करोड़ की वित्तीय अनियमिता होने का मामला सामने आया है।

विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की दशा सुधारने के एक के बाद एक दावे करने वाले उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत के विभाग में 134 करोड़ अशासकीय महाविद्यालयों में 79 करोड़ 68 लाख रुपए की वित्तीय अनियमिताओं का खुलासा हुआ है। सीएजी द्वारा वर्ष 2017 से 2021 तक सिर्फ देहरादून जिले में लाखों रुपए की खनन सामग्री की लूट किए जाने की बात कही गई है। वार्षिक लेखा रिपोर्ट में जिला खनिज फाउंडेशन में भी 49 करोड़ 49 लाख की वित्तीय अनियमिता किए जाने की बात कही गई है। गौर करने वाली बात यह है कि राज्य के प्रत्येक जिलें में खनन फाउंडेशन की व्यवस्था है जिसमें खनन से होने वाले पर्यावरणीय ओैर मानव जीवन को होने वाले नुकसान आदी के निवारण के लिए समय-समय पर धनराशि खर्च की जाती है।

इसके अलावा विकास प्राधिकरणों में 12 करोड़ 23 लाख, नगर निगमों में 32 करोड़ 40 लाख, नगर पालिकाओं में 16 करोड़ 64 लाख, नगर पंचायतों में 20 करोड़ 35 लाख और जिला पंचायतों में 2 करोड़ 87 लाख के साथ-साथ 3 करोड़ 58 लाख रूपए परिवहन निगम में वित्तीय अनियमितता होने का मामला सामने आ रहा है। यही नहीं सीएजी ने लेखा रिपोर्ट में राज्य सरकारों के विभागों में 5 हजार 387 करोड़ 22 लाख रुपए बकाया होने और उसकी वसूली न होनेे का खुलासा किया है। 6 हजार 16 करोड़ 24 लाख खर्च करने में ऑडिट नियमों का उल्लंघन करने और 4 हजार 245 करोड़ 42 लाख रुपए की अन्य आपत्तियां पकड़ी हैं। 1 करोड़ 96 लाख नियम विरुद्ध खर्च करने तथा 5 करोड़ 92 लाख का अधिक भुगतान करने की भी बात कही गई है। साथ ही 3 करोड़ 58 लाख का ब्याज रुकने तथा 57 करोड़ 27 लाख का गलत निवेश करने एवं 46 करोड़ 93 लाख की गड़बड़ियां पकड़ी गई है। विगत 20 वर्षों से प्रदेश में सत्ताधारी सरकारों द्वारा 47 हजार 758 करोड़ की धनराशी निकालकर खर्च करने और इस भारी- भरकम धनराशि को विधानसभा से नियमित करवाने की कार्यवाही न करने और वास्तविक अनुमान से अधिक की धनराशि खर्च करने का भी खुलासा हुआ है। जबकि विधानमंडल की इच्छा के बगैर एक भी रुपया खर्च नहीं किया जा सकता था।

विधानसभा पटल पर सीएजी की वार्षिक लेखा रिपोर्ट में सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2005-06 से लेकर वर्ष 2020-21 के दौरान अधिक व्यय किए गए 47 हजार 758 करोड़ 16 लाख रुपए अभी तक विधानसभा से मंजूर नहीं हुए हैं। इसे संविधान के अनुच्छेद 204 व 205 का उल्लंघन माना है। इसके तहत विनियोग के अलावा समेकित निधि से कोई धनराशि नहीं निकाली जा सकती। सीएजी ने इसे घोर वित्तीय अनुशासनहीनता माना है। विगत छह वर्षों में राज्य में चलने वाली कई परियोजनाओं में करोड़ों खर्च होने के बावजूद परियोजनाएं पूरी न होने में लोक निर्माण विभाग की 509 करोड़ 66 लाख की 75 परियोजनाओं में 357 करोड़ 17 लाख रुपए खर्च किए जाने थे लेकिन इनमें से एक भी परियोजना पूरी नहीं होने की बात रिपोर्ट में कही गई है। साथ ही ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय निकायों के 1390 करोड़ के 321 उपयोगिता प्रमाण पत्र सीएजी को नहीं दिए गए हैं। कैग ने इसे धनराशि के दुरुपयोग और धोखाधड़ी के जोखिमभरा माना है।

सबसे गंभीर सवाल तो कैग ने 10 हजार 77 करोड़ 43 लाख की भारी-भरकम धनराशि को आहरण एवं वितरण अधिकारियों के स्वयं के बैंक खातों और कार्यदायी संस्थाओं के बैंक खातों में पड़ी होने पर किया है। कैग ने इसे व्यक्तिगत जमा लेखों का समय-समय पर मिलान न करने और उनमें पड़ी शेष राशि को संचित निधि में हस्तांतरित न करने को सार्वजनिक धन के दुरुपयोग धोखाधड़ी की संभावना माना है। शहरी विकास, पंचायती राज और स्वास्थ्य विभाग के आपसी तालमेल न होने से 307 करोड़ 72 लाख की धनराशि केंद्र में लटक गई है।

वित्त आयोग की शिफारिशों के तहत केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखण्ड को पांच वर्ष के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार और उच्चीकरण के लिए 797 करोड़ 9 लाख रुपए की धनराशि दी जानी थी। इसके लिए राज्य के स्वास्थ्य विभाग को नेडल एजेंसी बनाया गया है। इसमें शहरी विकास विभाग के साथ-साथ पंचायती राज विभाग को भी शमिल किया गया जिसमें तीनों ही विभागों के आपसी तालमेल से स्वास्थ्य सेवाओं के कार्य पूरे होने थे। लेकिन इन तीनों ही विभागों में आपसी तालमेल नहीं होने से पहली किश्त के 50 फीसदी खर्च तक नहीं हो पाए हैं। यह हाल तब है जब इसके संबंध में वित्त विभाग द्वारा सात बार पत्र लिखकर भेजा जा चुका है और 4 बार इसकी समीक्षा बैठक भी हो चुकी है। राज्य के मुख्य सचिव डॉ एसएस संधु भी इसको लेकर खासी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। साथ ही इसको लेकर की गई लापरवाही के लिए संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदार बता चुके हैं। बावजूद इसके अफरशाही का रवैया बदलने का नाम नहीं ले रहा है।

 

सदन भी दिखा अफसरशाही से आहत
विधानसभा सत्र में कई विधायकों द्वारा राज्य के अधिकारियों द्वारा उनका फोन न उठाए जाने को लेकर हंगामा तक मचा। कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह ने विशेषाधिकार हनन के प्रश्न को उठाते हुए कहा कि अधिकारी विधायकों का सम्मान नहीं करते। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के मुख्य अभियंता को 28 बार फोन किया लेकिन फोन नहीं उठाया गया। किच्छा विधायक और पूर्व मंत्री रहे तिलक राज बेहड़ ने भी विशेषाधिकार हनन का प्रश्न उठाया जिसमें उनकी ही विधानसभा में सरकारी कार्यक्रमों में अधिकारियों द्वारा नहीं बुलाए जाने की बात कही गई।

विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने इसे गंभीर मामला बताते हुए इसे विधायकों के प्रोटोकॉल से जुड़ा बताते हुए पीठ से ही आदेश जारी किया जिसमें अधिकारियों को विधायकों को माननीय कहकर संबोधित करने और प्रोटोकॉल का अनुपालन करने को कहा गया है। साथ ही यह भी कहा है कि मसूरी ट्रेनिंग सेंटर को अधिकारियों को विधायकों के प्रोटोकॉल सिखाने के लिए पत्र भेजा जाएगा। विधानसभा अध्यक्ष इसको लेकर इतनी नाराज नजर आई कि उन्होंने दोपहर के भोजन आवकाश के समय में ही मुख्य सचिव डॉ एसएस संधु को अपने कार्यालय में बुलाकर उनको ताकीद भी दी कि राज्य के अफसर विधायकों के प्रोटोकॉल का सम्मान नहीं करते हैं और न ही उनके सम्मान में खड़े होते हैं यह दुखद प्रवृति है।
ऋतु खंडूड़ी का यह आदेश कितना प्रभावी होगा यह तो कहा नहीं जा सकता। विगत 20 वर्षों से जिस तरह से राज्य की नौकरशाही की बेलगाम कार्यशैली और उसके दुष्परिणाम सीएजी से अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है जिनमें प्रदेश के भारी- भरकम राजस्व को हानि पहुंचाई है उससे तो नहीं लगता कि राज्य के अफसरों पर कोई खास फर्क पड़ने वाला है।

 

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