दिल्ली विधानसभा चुनाव की बिसात बिछनी शुरू हो गई है। पिछले एक दशक से दिल्ली में काबिज आम आदमी पार्टी जहां हैट्रिक लगाने का दम्भ भर रही है, वहीं भाजपा और कांग्रेस भी सत्ता वापसी की पुरजोर कोशिश कर रही हैं। ‘आप’ सभी विधानसभा क्षेत्रों में ‘पदयात्रा’ तो कांग्रेस ‘न्याय यात्रा’ कर रही है। इसकी काट में अब 8 दिसम्बर से भाजपा भी ‘परिवर्तन यात्रा’ निकालेगी। इन यात्राओं और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों के चलते सियासत गरमा गई है। राजनीतिक गलियारों से लेकर चौपालों तक कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या आम आदमी पार्टी सत्ता बरकरार रख पाएगी या फिर परिवर्तन देखने को मिलेगा
दिल्ली विधानसभा चुनाव का कार्यकाल अगले साल 23 फरवरी को समाप्त हो रहा है। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां इसकी तैयारी में जोर-शोर से जुट गई हैं। पिछले एक दशक से दिल्ली में काबिज आम आदमी पार्टी जहां हैट्रिक लगाने का दम्भ भर रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक-दूसरे पर अक्सर हमलावर नजर आते हैं। सभी सत्ता में वापसी करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। ‘आप’ अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में ‘पदयात्रा’ कर रही है तो कांग्रेस ‘न्याय यात्रा’ कर रही है। इसकी रणनीतिक काट में अब 8 दिसम्बर से भाजपा भी ‘परिवर्तन यात्रा’ निकालेगी। इन यात्राओं और एक-दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोपों के चलते सियासत गरमा गई है। देश की राजनीतिक गलियारों से लेकर चौपालों तक कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या आम आदमी पार्टी दिल्ली में जीत की हैट्रिक लगाकर अपनी सत्ता बरकरार रख पाएगी या फिर राज्य में सत्ता परिवर्तन देखने को मिलेगा। ऐसे तमाम सवाल इन दिनों आम से खास तक की जुबां पर हैं।
इस बीच ‘आप’ संयोजक अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उनकी पार्टी कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी। इससे पहले लोकसभा चुनाव के लिए ‘आप’ और कांग्रेस ने समझौता किया था। लेकिन यह समझौता बीजेपी को दिल्ली की सभी सात सीटें जीतने से नहीं रोक पाया था। ‘आप’ दिल्ली में लगातार तीन बार से सरकार चला रही है तो कांग्रेस पिछले दो चुनाव से शून्य पर सिमटती आ रही है। इस बार लोगों को उम्मीद थी कि अगर दिल्ली के चुनाव में ‘आप’ और कांग्रेस एक साथ आ जाएं तो हो सकता है कि कांग्रेस की स्थिति थोड़ी सुधर जाए। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि समझौता न होने से क्या दिल्ली में मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाएगी कांग्रेस? इसका ‘आप’ और कांग्रेस पर क्या असर पड़ेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दिल्ली तीन तरफ से हरियाणा से घिरी हुई है। पिछले दिनों हुए हरियाणा चुनाव में कांग्रेस वैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई जिसकी उम्मीद की जा रही थी। इससे केजरीवाल ने अनुमान लगाया होगा कि अगर कांग्रेस की हरियाणा में सरकार होती तो उसे उसका फायदा दिल्ली में मिलता लेकिन ऐसा न होने की वजह से अब कांग्रेस को कोई फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है। इससे ‘आप’ को कांग्रेस से गठबंधन का कोई फायदा मिलता नजर नहीं आया होगा इसलिए अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। हां, अगर दिल्ली में समझौता हो जाता तो हो सकता था कि कांग्रेस को कुछ सीटें मिल जाती। इससे कांग्रेस के लिए दिल्ली में जगह मिल जाती जहां वह शून्य पर है। लेकिन कांग्रेस के मजबूत होने का नुकसान ‘आप’ को ही उठाना पड़ता इसलिए भविष्य में होने वाले किसी नुकसान या मिलने वाली चुनौती से बचने के लिए ही ‘आप’ ने कांग्रेस से समझौता न करने को बेहतर समझा है।
जहां तक सवाल है सत्ता परिवर्तन और सरकार बरकरार का तो दिल्ली में पिछले तीन बार से आम आदमी पार्टी की सरकार चल रही है। बीजेपी ने लगातार अरविंद केजरीवाल की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। कथित शराब नीति घोटाले में सीएम और डिप्टी सीएम से लेकर ‘आप’ के सांसद और कई नेताओं तक को जेल जाना पड़ा, वहीं उसके एक और मंत्री को भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी है। उसके कुछ विधायक भी ऐसे ही आरोपों चलते जेल में हैं। बीजेपी लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर सड़क पर रही है। इसी का दबाव रहा कि जेल से आने के बाद अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, वहीं कांग्रेस इन सालों में केजरीवाल सरकार के खिलाफ सड़क पर नहीं आ पाई है। उसके नेता बयानबाजी तक ही सीमित रहे हैं। जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। हालांकि चुनाव नजदीक आता देख दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाना शुरू कर कांग्रेस की ‘न्याय यात्रा’ के दौरान ‘आप’ और भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हर गुजरते दिन दिल्ली कांग्रेस की ‘न्याय यात्रा’ में लोग जुड़ते जा रहे हैं इससे दोनों ही पार्टियों को डर लग रहा है। साथ ही उन्होंने अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि दिल्ली की जनता आम आदमी पार्टी को सत्ता से हटाने का मन बना चुकी है।
‘आप’ ने जनता को धोखा देने के अलावा कुछ भी नहीं किया है। दूसरी तरफ बीजेपी लगातार जनता के बीच जाकर बदलाव की अपील कर रही है। इसके तहत इन दिनों जहां परिवर्तन सभाओं का आयोजन किया जा रहा है, वहीं अगले हफ्ते से पूरी दिल्ली में परिवर्तन यात्राएं भी निकाली जाएंगी जो सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेंगी। रोज दिल्ली के सातों लोकसभा क्षेत्रों में एक-एक जगह से यह यात्रा निकलेगी और इस तरह हर रोज लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले एक-एक विधानसभा क्षेत्र को कवर किया जाएगा। हर दिन सुबह किसी एक धार्मिक स्थल से परिवर्तन यात्रा की शुरुआत होगी और शाम को एक विधानसभा स्तरीय जनसभा के रूप में यात्रा सम्पन्न होगी। यह यात्रा किसी रथ पर नहीं, बल्कि पदयात्रा के रूप में होगी ताकि हर दिन हर विधानसभा क्षेत्र के बीस हजार परिवारों से सम्पर्क हो सके। यह यात्रा भी उसी तरह से निकाली जाएगी जिसमें लोगों से बहुत बड़े स्तर पर सीधा सम्पर्क किया जा सके।
जैसा कि भाजपा नेता सतीश उपाध्याय का कहना है कि दिल्ली में एक भ्रष्ट सरकार चल रही है लेकिन अब तो रंगदारी, वसूली, फिरौती और आम नागरिकों के बीच डर पैदा करने की भी कोशिश की जा रही है। इसके चलते दिल्ली की जनता अब सत्ता परिवर्तन के मूड में है और देशविरोधी मानसिकता वाली सरकार को इस बार विधानसभा से उखाड़ फेंकने का मन बना चुकी है। परिवर्तन यात्रा के माध्यम से बीजेपी जनता तक सीधे अपना संदेश पहुंचाएगी। जिसका लाभ उसे विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। दिल्ली की राजनीति को पिछले कई दशक से देख-समझ रहे राजनीतिक पंडितों की मानें तो दिल्ली का वोटर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग-अलग वोट करता है। इस ट्रेंड को पिछले कई चुनावों से देखा जा रहा है। दिल्ली की जनता पिछले तीन बार से सभी लोकसभा सीटें बीजेपी को दे रही है, वहीं विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को लगातार मजबूत कर रही है जिससे कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गई। गौरतलब है कि अन्ना आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी ने 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा था। उस समय दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी।
भ्रष्टाचार विरोध के नारे के साथ राजनीति में शामिल हुई ‘आप’ ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया जिसे जनता ने हाथों-हाथ लिया। अपने पहले ही चुनाव में ‘आप’ ने 29.64 फीसदी वोट के साथ 28 सीटें जीत ली थीं। वहीं दिल्ली में तीन बार से सरकार चला रही कांग्रेस 24.67 फीसदी वोट के साथ केवल आठ सीटों पर सिमट गई थी तो दूसरी तरफ बीजेपी ने 34.12 फीसदी वोट के साथ 31 सीटें जीतीं। इस चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। बाद में कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन देकर ‘आप’ की सरकार बनवाई लेकिन यह सरकार बहुत अधिक दिन नहीं चल पाई। साल 2015 में फिर से चुनाव कराना पड़ा। इस चुनाव में ‘आप’ ने शानदार प्रदर्शन कर दिल्ली की 70 में से 67 सीटों पर कब्जा जमाया, वहीं कांग्रेस शून्य पर सिमट गई। यह ‘आप’ का अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन था।
इसके बाद 2020 के चुनाव में भी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ। बीजेपी ने 2015 की तुलना में अपना वोट बढ़ाते हुए 32.78 फीसदी से 40.57 फीसदी कर लिया लेकिन करीब आठ फीसदी वोट बढ़ने के बाद उसकी सीटें केवल पांच ही बढ़ीं। यहीं से कांग्रेस के वोटों का गिरना जारी रहा, वहीं ‘आप’ का प्रदर्शन थोड़ा खराब तो हुआ लेकिन ऐसा नहीं था कि जिसे शानदार प्रदर्शन न कहा जाए। 2015 में 54.59 फीसदी वोटों के साथ 67 सीटें जीतने वाली ‘आप’ इस चुनाव में 53.57 फीसदी वोटों के साथ 62 सीटें जीतने में कामयाब रही जरूर हुई लेकिन उसे पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।
बात अगर करें क्या कांग्रेस दिल्ली मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाएगी की तो इसका ‘आप’ और कांग्रेस पर क्या असर पड़ेगा। यहां जो दल वोटों का विभाजन करा पाने में कामयाब होता है उसे सत्ता मिलती है। इसका एक उदाहरण 1993 का चुनाव है। जब दिल्ली में अंतिम बार बीजेपी की सरकार बनी थी उस चुनाव में बीजेपी को 42.82 फीसदी वोट के साथ 49 सीटें मिली थीं, वहीं कांग्रेस को 14 सीटें मिली थीं। वह चुनाव जनता दल ने भी लड़ा था उसे चार सीटें मिली थीं। इस चुनाव में वोटों का बंटवारा या त्रिकोणीय मुकाबला होने का फायदा बीजेपी को मिला और वह सरकार बनाने में कामयाब रही। इसी ट्रेंड को हम पिछले तीन विधानसभा चुनावों में भी देख सकते हैं। ऐसे में इस चुनाव में भी कांग्रेस के लिए बहुत कुछ नजर नहीं आ रहा है। आम आदमी पार्टी की तरफ से तो 11 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी हो चुकी है। खबर है कि दिल्ली की सत्ता में हैट्रिक के लिए आम आदमी पार्टी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की तरफ से फाउंडेड आई-पैक से हाथ मिलाया है। इससे पहले 2020 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने इस ऑर्गनाइजेशन की मदद ली थी।
मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाएगी कांग्रेस?
दिल्ली में अगले साल फरवरी में चुनाव होने वाले चुनाव से पहले ‘इंडिया गठबंधन’ के दो अहम दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से साफ संकेत मिल गया है कि इस बार दोनों पार्टियां चुनावी रण में एक-दूसरे के सामने खड़ी होंगी। जो कांग्रेस कुछ वक्त पहले तक अरविंद केजरीवाल के खातिर बीजेपी से लड़ रही थी, वहीं कांग्रेस अब ‘आप’ और केजरीवाल के खिलाफ कैसे मोर्चा खोलेगी? हालांकि मौजूदा सियासत में विचारों का उलटफेर एक आम बात हो गई है। लेकिन दिल्ली की जनता सूझबूझ वाली है। ऐसे में कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं होगी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दिल्ली में कांग्रेस त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की स्थिति में नहीं है।
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली की जनता को अपना एजेंडा समझाने में होगी। लोकसभा चुनाव के दौरान जो कांग्रेस नेता अरविंद केजरीवाल के बचाव में बयान दे रहे थे, वही नेता अब उन पर हमलावर हैं। दिल्ली की जनता भी कांग्रेस के रवैये को देखकर कन्फ्यूजन में है। शराब घोटाला मामले को लेकर भी कांग्रेस पहले चुप थी, लेकिन दिल्ली चुनाव नजदीक आते ही वो ‘आप’ को घेर रही है।

