नागरिकता संशोधन बिल पर राज्यसभा में चर्चा चल रही है। बहुमत बनाम नैतिकता की लड़ाई की जमीन लगभग तैयार है। लोकसभा में भारी हंगामे के बीच नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 पारित हो गया। इस विधेयक में तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई धर्मावलंबियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। लोकसभा में विधेयक के विरोध में 80 तो पक्ष में 311 वोट पड़े। सरकार की असली परीक्षा आज राज्यसभा में होनी है ।
राज्यसभा में सत्ताधारी एनडीए के पास बहुमत नहीं है। लेकिन जिस तरह से अल्पमत में होने के बावजूद सरकार ने इससे पहले एक के बाद एक तीन तलाक और अनुच्छेद 370 को हटाने वाले विधेयक को पास करवा लिया था ठीक उसी तरह वह इसे भी पास करवा ही लेगी। संख्या बल सरकार के पक्ष में है और इसका उच्च सदन से भी पास होना तय माना जा रहा है। लेकिन विपक्ष सरकार को वाकओवर देने को तैयार नहीं। विपक्ष ने निश्चित हार की स्थिति के बावजूद विपक्ष ने करीब बीस संशोधन के साथ नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों पर बहस कर सरकार के पसीने छुड़ाने की रणनीति बनाई है।फिलहाल 240 सांसदों वाले राज्यसभा में बिल के समर्थन में बहुमत के लिए सरकार को 121 वोटों की जरुरत है। एनडीए और बिल का समर्थन कर रहे दलों का आंकड़ा 124 पर पहुंच रहा है। आंकड़ों के मुताबिक उच्च सदन में भाजपा के पास अकेले 83 सीट है। जबकि गठबंधन वाले दल जदयू 6, सिरोमणी अकाली दल 3, एआईएडीएमके 11, बीजेडी 7, वाईएसआरसीपी 2 और आरपीआई, एलजेपी व एसडीएफ एक एक वोट के साथ सरकार के साथ हैं। 10 मनोनीत और स्वतंत्र सांसदों में से सात बिल के पक्ष में हैं। लोकसभा में बिल पर सरकार का समर्थन देने वाली शिवसेना राज्यसभा में विरोध में जा सकती है।
विपक्षी खेमें में कांग्रेस के पास सबसे अधिक 46 सीट है। आरजेडी 4, एनसीपी 4, डीएमके 5, टीएमसी 13, एसपी 9, टीआरएस 6, सीपीएम 5, बीएसपी 4, आप 3, पीडीपी 2, सीपीआई 1 और जेडीएस 1 सीट के साथ बिल के विरोध में है। सरकार के मुकाबले विपक्ष के पास कुल 108 वोट हैं।कई पार्टियां ऐसी हैं जो न एनडीए में और न ही यूपीए में शामिल हैं। हालांकि विचारधारा के स्तर पर इन पार्टियों का रुख समय-समय पर बदल जाता है। ऐसी पार्टियों में सबसे बड़ी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस है जिसके पास 13 सांसद हैं। इसके बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के पास नौ, तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति के पास छह, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पास पांच, मायावती की बहुजन समाज पार्टी के पास चार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के पास तीन, महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पास दो, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पास एक और एचडी कुमारस्वामी की जनता दल (सेक्युलर) के पास एक सांसद है। इन्हें मिलाकर यह आंकड़ा 44 सांसदों का होता है।कुछ पार्टियां ऐसी हैं जो एनडीए और यूपीए का हिस्सा नहीं हैं लेकिन उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक के पक्ष में होने के संकेत दिए हैं। जिसमें तमिलनाडु एआईएडीएमके के 11, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल के सात, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के दो, चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के दो सांसद हैं।
हाल में भाजपा का साथ छोड़कर एनसीपी और कांगेस के समर्थन से महाराष्ट्र में सरकार बनाने वाली शिवसेना ने लोकसभा में नागरिकता विधेयक के पक्ष में मतदान किया। राज्यसभा में उसके तीन सांसद हैं। माना जा रहा है कि वह ऊपरी सदन में विधेयक का समर्थन करेगी। तीन और सासंद भाजपा का समर्थन कर सकते हैं।

