कभी देश के अधिकांश राज्यों में सत्तारूढ़ रहने वाली कांग्रेस वर्तमान में केवल तीन राज्यों हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना की सत्ता पर काबिज है। इनमें से दो राज्यों में उसकी सरकारों पर अस्थिरता के बादल मंडराने लगे हैं। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के मध्य चली आ रही नूरा-कुश्ती के बीच अब मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज होने के बाद उनके इस्तीफे की मांग विपक्ष करने लगा है। पार्टी नेतृत्व आशंकित है कि यकायक पैदा हुए इस संकट की आड़ में भाजपा एक बार फिर से राज्य में कमल खिलाने का खेला न कर दे। दूसरी तरफ हिमाचल में प्रदेश कांग्र्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के पुत्र और राज्य सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की गद्दी पर नजर गड़ाए बैठे हैं। गत् सप्ताह उन्होंने हिमाचल में भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर भोजनालयों में मालिकों के नाम प्रदर्शित करने को अनिवार्य बनाए जाने की बात कह कांग्रेस को बैकफुट पर ला खड़ा किया। योगी सरकार को धार्मिक आधार पर समाज का विभाजन करने का आरोप चस्पा वाली कांग्रेस अपने ही मंत्री के इस बयान बाद अशंकित है कि सुक्खू सरकार को गिराने का खेला एक बार फिर से शुरू हो चला है
एक समय था जब सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का देश में एकछत्र राज हुआ करता था। लेकिन वर्तमान में जिन तीन राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में पार्टी खुद के बलबूते सरकार में है यहां भी उसके नेताओं में अंतर्विरोध के चलते कांग्रेस आलाकमान उलझन में दिखाई दे रहा है। एक ओर जहां कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुडा भ्रष्टाचार मामले में हाईकोर्ट के आदेश बाद सीएम पर
एफआईआर दर्ज हो चुकी है तो वहीं हिमाचल की कांग्रेस सरकार में लोक निर्माण विभाग और शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भोजनालयों में मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दे बड़ा विवाद पैदा कर दिया है। सवाल उठने लगे हैं कि हिमाचल कांग्रेस देश की कांग्रेस से अलग है या पार्टी नेतृत्व उस स्थिति में नहीं है जैसे पहले हुआ करता था। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या कर्नाटक में सिद्धारमैया को सीएम पद से हटाने के लिए डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार फिर से सक्रिय हो उठे हैं।
असल में मुडा केस में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत की मंजूरी को गत सप्ताह सिद्धारमैया ने कर्नाटक हाईकोर्ट में चौलेंज किया था लेकिन उनकी याचिका अदालत ने खारिज कर लोकायुक्त को तीन महीने के भीतर जांच की रिपोर्ट पेश करने का भी आदेश दिया है। ऐसे में प्रदेश की राजनीतिक जंग अपनी जगह है, लेकिन सिद्धारमैया उस मोड़ पर तो पहुंच ही चुके हैं जहां इस्तीफा देने की नौबत आ चुकी है। अब ये पार्टी आलाकमान को तय करना है कि सिद्धारमैया इस्तीफा देते हैं या नहीं लेकिन एक बात तो पक्की है सिद्धारमैया के इस्तीफे से कर्नाटक कांग्रेस में भूचाल आना ही आना है। हाईकोर्ट से सिद्धारमैया को मिले झटके के तुरंत बाद ही भाजपा ने सिद्धारमैया से इस्तीफा देने की मांग की है। बीजेपी नेताओं को ये कांग्रेस के खिलाफ बड़ा मौका मिल गया है तो मुडा केस की वजह से सिद्धारमैया की अब तक रही बेदाग छवि को बड़ा झटका लगा है। अपनी छवि के कारण ही सिद्धारमैया ने डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद की रेस में पीछे छोड़ दिया था और उनको डिप्टी सीएम की कुर्सी से ही संतोष करना पड़ा था लेकिन अब सिद्धारमैया के इस मामल बुरी तरह फंस जाने से कांग्रेस के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कांग्रेस नेतृत्व पहले जैसा या मौजूदा बीजेपी की तरह मजबूत स्थिति में भी नहीं है कि किसी को भी मुख्यमंत्री बना दे तो वो सब कुछ सम्भाल लेगा। कांग्रेस के किसी भी नेता के लिए मुख्यमंत्री बन कर सरकार चलाने भर की ही जिम्मेदारी नहीं होगी, बल्कि उसे विधायकों पर भी पकड़ मजबूत रखनी होगी ताकि ‘सरकार ऑपरेशन लोटस’ की शिकार न हो जाए। मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस इसका स्वाद चख भी चुकी है और कर्नाटक तो ‘ऑपरेशन लोटस’ की पहली कर्मभूमि होने के साथ-साथ जन्मभूमि भी है। ऐसे में हाईकोर्ट से मिले झटके के बाद सिद्धारमैया के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प तो है लेकिन सुप्रीमकोर्ट का रुख भी हाईकोर्ट जैसा ही रहा तो क्या होगा? कांग्रेस की मुश्किल ये भी है कि सिद्धारमैया को हटाने के बाद अगर डीके शिवकुमार को कुर्सी सौंपती है तो कानूनी पचड़ों के साथ-साथ नए संकट की आशंका है। सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से हैं जो कर्नाटक में सबसे बड़ा और ताकतवर समुदाय है। सिद्धारमैया को हटाए जाने की सूरत में कांग्रेस के लिए खतरा ही खतरा है। अगर किसी तीसरे व्यक्ति को सीएम बनाया जाता है तो डीके शिवकुमार उसके साथ काम करेंगे इसकी संभावना कम है। तभी यह जमीन का मामला कांग्रेस के गले की हड्डी बन गया है।
क्या है मुडा भ्रष्टाचार मामला
कर्नाटक के मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) राज्य स्तरीय एक विकास एजेंसी है जिसका गठन वर्ष 1988 में किया गया था। मुडा का काम शहरी विकास को बढ़ावा देना, गुणवत्तापूर्ण शहरी बुनियादी ढांचे को उपलब्ध कराना, किफायती आवास उपलब्ध कराना, आवास आदि का निर्माण करना है। मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50-50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50 फीसदी के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी जिसे 2020 में उस समय की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया।
सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50-50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि वर्तमान मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में उन्हें एक महंगे इलाके में 14 भूखंड आवंटित कर दिए गए। मैसूर के बाहरी इलाके केसारे में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी। मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती ने आवेदन किया जिसके आधार पर मुडा ने विजयनगर में तीन और चार फेज में 14 भूखंड आवंटित कर दिए। यह आवंटन राज्य सरकार की 50-50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 भूखंडों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि पार्वती को मुडा द्वारा इन भूखंडों के आवंटन में अनियमितता बरती गई है। जो भूखंड आवंटित किए गए हैं उनका बाजार मूल्य केसारे में मूल भूमि से काफी अधिक है। विपक्ष ने अब मुआवजे की निष्पक्षता और वैधता पर भी सवाल उठाए हैं। हालांकि यह भी दिलचस्प है कि 2021 में भाजपा शासन के दौरान ही विजयनगर में सीएम की पत्नी पार्वती को यह भूखंड आावंटित किए गए थे।
मामले में कब हुई कानूनी कार्रवाई
पिछले महीने 17 अगस्त को राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ मुडा मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी दी। राज्यपाल ने अपने आदेश में मंत्रिमंडल की मुकदमा न चलाने वाली सलाह को अस्वीकार कर दिया। राज्यपाल ने आदेश में कहा कि मुख्यमंत्री पर जो आरोप लगाए गए हैं, उसकी जांच करने के लिए सरकारी समिति सक्षम नहीं है। उन्होंने अपने आदेश में आगे उल्लेख किया कि उन्होंने याचिकाओं में आरोपों के समर्थन में सामग्री के साथ याचिका का अध्ययन किया है और बाद में सिद्धारमैया के जवाब और कानूनी राय के साथ राज्य मंत्रिमंडल की सलाह का अध्ययन किया है। राज्यपाल ने कहा कि तथ्यों के एक ही सेट के संबंध में दो-दो तरह के उत्तर मिले हैं और इस परिस्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि एक निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17। और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत याचिकाओं में उल्लेखित कथित अपराधों में शामिल होने के आरोप के कारण अभियोजन की मंजूरी दी।
कर्नाटक में बिना अनुमति सीबीआई की हुई नो एंट्री
कर्नाटक में अब मामलों की जांच सीबीआई नहीं कर पाएगी। कांग्रेस सरकार ने जांच के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस लेने का फैसला ऐसे समय में लिया है जब बीजेपी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से जुड़ा केस सीबीआई को सौंपने की मांग की है। दरअसल राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में जांच के लिए उन सरकारों से सहमति की जरूरत होती है। राज्य के कानून मंत्री एच.के. पाटिल ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि सीबीआई या केंद्र सरकार अपने साधनों का इस्तेमाल करते समय उनका विवेकपूर्ण इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। हम सीबीआई के गलत इस्तेमाल पर चिंता जता रहे हैं। राज्य सरकार ने जितने भी केस सीबीआई को रेफर किए, उनमें चार्जशीट दाखिल नहीं की गई।
इस्तीफा नहीं देंगे सिद्धरमैया
सिद्धरमैया ने एक बार फिर से मुडा द्वारा अपनी पत्नी को 14 भूखंड आवंटित किए जाने में किसी भी गलत चीज से इनकार किया और अपने खिलाफ आरोपों को भाजपा की साजिश करार दिया है। सिद्धरमैया ने यह भी कहा कि वह कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और इस्तीफा नहीं देंगे। गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी यह कह कर नहीं बच सकती है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ दुर्भावना से भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया जा रहा है। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने सिद्धारमैया उनकी पत्नी और परिवार के कुछ अन्य सदस्यों के ऊपर मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण यानी मुडा की जमीन में घोटाले के आरोपों की जांच के आदेश दिए थे, जिस पर हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। राज्यपाल के आदेश के खिलाफ सिद्धारमैया ही हाईकोर्ट गए थे लेकिन उच्च अदालत ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि उनको लाभ हुआ है इसलिए इस मामले की जांच होनी चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश बाद भी सिद्धारमैया इस बात पर अड़े हैं कि वे इस्तीफा नहीं देंगे। पार्टी भी मजबूरी में उनका समर्थन कर रही है। हो सकता है कि वे सुप्रीम कोर्ट भी चले जाएं लेकिन अब इसकी संभावना कम है कि मुडा में हुए कथित घोटाले की जांच न हो। ऐसे में अगर जांच होती है तो सिद्धारमैया के बारे में कांग्रेस को फैसला करना ही होगा।
हिमाचल में मंत्री ही बने संकट का कारण
दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार में लोक निर्माण विभाग और शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भोजनालयों को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दे विवाद पैदा कर दिया है। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि हर भोजनालय और फास्ट-फूड कार्ट के मालिकों को आईडी प्रदर्शित करनी होगी, ताकि ग्राहकों को किसी तरह की असुविधा न हो। ऐसे में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की तरह ही हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार की ओर से नेम प्लेट को लेकर आदेश जारी करने से यह सवाल उठने लगे हैं कि हिमाचल की कांग्रेस देश की कांग्रेस से अलग है क्या? क्योंकि कांवड़ यात्रा के दौरान योगी सरकार की ओर से नेम प्लेट लगाने के फैसले का कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी सभी ने आलोचना की थी।
सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेताओं में आपसी सामंजस्य नहीं है। राज्य स्तर के नेताओं में एक-दूसरे से ऊपर उठने की चाह दर्शाती है कि नेताओं पर संगठन का नियंत्रण नहीं है। हालांकि मंत्री विक्रमादित्य के बयान का खुद कांग्रेस के नेताओं ने उनकी आलोचना की है और कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें इस मामले में तलब भी किया है।

