भाजपा शरणम् गच्छामि/भाग-2

 

‘बंटी-बबली’ नाम की एक हिंदी फिल्म आई थी जिसमें नायक-नायिका दोनों मिलकर ठगी करते थे। सरकार को भी चूना लगाने का काम उनके द्वारा किया गया। उत्तराखण्ड की राजनीति में भी ऐसे ही बंटी और बबली की आजकल चर्चा जोरों पर है। फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्म के नायक और नायिका को राजनीतिक संरक्षण नहीं था, वहीं इसके विपरीत इस दम्पत्ति द्वारा राजनीतिक संरक्षण में सरकार से भी धोखाधड़ी की जाती रही है। आलम यह है कि सियासत के इस बंटी-बबली द्वारा फर्जी कंपनी बनाकर करोड़ां के सरकारी ठेके हासिल कर किए गए। यहां तक कि इन पर आपराधिक मामला दर्ज करने के बावजूद कार्यवाही नहीं किया जाना सवालों के घेरे में है

‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने अंक 34 में ‘भाजपा शरणम् गच्छामि’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। जिसमें पौड़ी के द्वारीखाल ब्लॉक प्रमुख महेंद्र सिंह राणा के कल्जीखाल ब्लॉक प्रमुख रहते हुए वित्तीय अनियमितता और अपने चहेते खास ठेकदारों को भुगतान करवाने के मामले का खुलासा किया था। यही नहीं बल्कि हाईकोर्ट ने भी इसे आपराधिक मामला माना था। अपने राजनीतिक रसूख और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत से महेंद्र सिंह राणा और उनकी पत्नी बीना राणा ने लोक निर्माण विभाग पौड़ी के साथ ही प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना सहित अन्य कई विभागों के करोड़ों के काम फर्जी दास्तावेजां के आधार पर स्थापित केबीएम कंपनी द्वारा करवाए गए हैं। कई जांच होने और उनमें दोषी ठहराए जाने के बावजूद भी ब्लॉक प्रमुख दम्पत्ति का बाल भी बांका नहीं हुआ। इसके पीछे महेंद्र राणा का अपने खिलाफ कार्यवाही से बचने के लिए भाजपा की शरण में चले जाने को अहम माना गया। चर्चा है कि देवभूमि के ये बंटी-बबली पति-पत्नी अब सरकार के सहारे अपने भ्रष्टाचार के कारनामों पर पर्दा डालने की कोशिशों में जुटे हैं।
वर्तमान द्वारीखाल ब्लॉक प्रमुख महेंद्र सिंह राणा और उनकी धर्मपत्नी बीना राणा जो कि मौजूदा समय में कल्जीखाल ब्लॉक प्रमुख हैं, की सरकारी विभागों में निर्माण कार्य करने वाली कंपनी केबीएम और मैसर्स महेंद्र सिंह राणा जो कि प्रोपराइटरशिप के तहत बनी फर्म पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि दोनों ही कंपनियां झूठे और फर्जी दास्तावेजों के आधार पर बनाई गई हैं। राजनीतिक संरक्षण और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी दास्तावेजों के आधार पर गठित केबीएम और मैसर्स महेंद्र सिंह राणा को न सिर्फ विभाग में ए क्लास श्रेणी का दर्जा दिया गया बल्कि करीब 5 सौ करोड़ के निर्माण कार्यों का ठेका तक दे दिया गया। हैरत की बात यह है कि इस मामले में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा फर्जी दास्तावेजों की जांच करवाई गई जिसमें सभी आरोप सही पाए गए। इस मामले में विभागीय अनियमितता होने पर कानूनी कार्यवाही करने की संस्तुति भी की गई लेकिन लोक निर्माण विभाग महेंद्र सिंह राणा और बीना राणा को बचाने का काम कर रहा है।

केबीएम कपंनी का गठन वर्ष 2008 में किया गया। इस कंपनी की प्रोपराइटर बीना राणा के आयकर पैन नंबर जो कि 15 जून 2008 में जारी हुआ था जिसे महज 23 दिनां के भीतर ही ए क्लास में रजिस्टर्ड कर दिया गया, जबकि नियमानुसार किसी भी कंपनी को ए क्लास में रजिस्टर्ड होने के लिए न्यूनतम दस-दस लाख के 5 कार्यों का अनुभव होना चाहिए। हैरत की बात यह है कि केबीएम कंपनी को ए क्लास में रजिस्टर्ड करने के लिए केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के निर्माण कार्य करने के जो अनुभव प्रमाण पत्र लगाए गए, पूरी तरह से फर्जी थे। बावजूद इसके केबीएम कपंनी को पौड़ी लोक निर्माण विभाग द्वारा गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत निर्माण कार्यों हेतु 30 जून 2011 तक ए क्लास श्रेणी में पंजीकृत कर दिया।

केबीएम कंपनी के ए क्लास श्रेणी में आने के साथ ही हरिद्वार में भी ईडब्ल्यूएस के आवास का निर्माण और एमडीडीए का मुख्यालय बनाने तक का ठेका भी दे दिया गया। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों ही ठेके वर्ष 2008 में केबीएम को दिए गए थे, जबकि 2008 में ही पंजीकृत हुई थी और इसी वर्ष 5 करोड़ के काम केबीएम को दे दिए गए। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा आरटीआई में स्पष्ट तौर पर उल्लेख करते हुए कहा है कि ‘समस्त कार्य क्रम संख्या 1 से लेकर 11 तक मैसर्स केबीएम कंसट्रक्शन कंपनी हाउस नंबर 07 प्रियलोक कॉलोनी जीएमएस रोड देहरादून द्वारा निरूपादित नहीं किए गए हैं और न ही यह अनुभव प्रमाण पत्र इस कार्यालय द्वारा जारी किया गया है।’ इससे यह साफ हो गया कि बीना राणा द्वारा केबीएम कंपनी का रजिस्ट्रेशन ही फर्जी दास्तावेजां के आधार पर किया गया।

सामाजिक कार्यकर्ता नमन चंदोला द्वारा 29 अगस्त 2020 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पौड़ी को केबीएम कंपनी के फर्जीवाड़े की शिकायत की गई। इसके बाद पौड़ी कोतवाली को जांच करने का आदेश जारी किया और उपनिरीक्षक वजिन्द्र सिंह नेगी को इसका जांच अधिकारी बनाया गया। इस मामले की जांच की गई। इस जांच को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा 29 अक्टूबर 2020 को मुख्य अभियंता लोक निर्माण विभाग पौड़ी को भेजा गया। लोक निर्माण विभाग द्वारा इस मामले को जान-बूझकर लटकाया गया। शिकायत होने और दबाव बनने पर नौ माह बाद लोक निर्माण विभाग द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की जांच को पूरा किया गया। हैरानी की बात यह है कि लोक निर्माण विभाग पौड़ी द्वारा नौ माह बाद भेजी गई जांच आख्या न तो पूर्ण थी और न ही स्पष्ट थी। यानी विभाग जान-बूझकर बीना राणा को बचाने का पूरा खेल रचता रहा। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पौड़ी द्वारा जिलाधिकारी पौड़ी को 26 जुलाई 2021 को भेजे गए पत्र में स्पष्ट तौर पर कहा गया है, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग 20 सुभाष मार्ग देहरादून की सत्यापित प्रति के अनुसार उक्त प्रकरण में विभागीय अनियमितता का होना प्रकाश में आया है। अतः उक्त प्रकरण में संबधित लोक निर्माण विभाग द्वारा जांचोपरांत अग्रिम विधिक कार्यवाही किया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है। साथ ही यह भी कहा गया है कि मुख्य अभियंता स्तर लोक निर्माण विभाग द्वारा नौ माह बाद आख्या इस कार्यालय को उपलब्ध करवाई गई है। जांच आख्या का अवलोकन किया गया तो पाया कि प्रकरण के सम्बंध में पूर्ण और स्पष्ट आख्या उपलब्ध नहीं कराई गई है जिससे अग्रिम कार्यवाही की जा सके।

अब इस मामले में बंटी की भूमिका में रहे महेंद्र सिंह राणा की कंपनी मैसर्स महेंद्र सिंह राणा के फर्जीवाड़े की बात करें तो आश्चर्यजनक रूप से यह मामला भी ठीक केबीएम कंपनी के ही जैसा है। इसमें भी केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों के आधार पर कपंनी का रजिस्ट्रेशन किया गया और फर्म को ए क्लास श्रेणी का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया गया। कभी महेंद्र सिंह राणा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में
हॉर्टिकल्चर में श्रेणी चार के मामूली ठेकेदार थे और महज एक से दो लाख के ही काम करते थे। राजनीतिक संरक्षण और विभागीय अधिकारियां से मिलीभगत के चलते महेंद्र राणा द्वारा वर्ष 2009 में एक प्रोपराइटरशिप फर्म ‘मैसर्स महेंद्र सिंह राणा’ बनाई गई। जिसको 2 फरवरी 2009 को लोक निर्माण विभाग में पंजीकरण करवाया गया। इसके बाद महेंद्र सिंह राणा न सिर्फ विभागां से करोड़ों के काम पाने में सफल रहे, साथ ही लघु सिंचाई जैसे अहम विभागों में भी अपनी फर्म को ए क्लास श्रेणी में दर्ज करवाकर करोड़ां के ठेके हासिल करते रहे।

सामाजिक कार्यकर्ता नमन चंदोला ने इस मुद्दे पर फेसबुक लाइव कर मामले को उजागर किया। इस चलते महेंद्र सिंह राणा ने अपनी छवि को हानी पहुंचाने और उनके खिलाफ राजनीतिक षड्यंत्र रचे जाने का आरोप लगा चंदोला के खिलाफ पौड़ी पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी। इस पर चंदोला ने भी महेंद्र सिंह राणा के खिलाफ लोक सेवक होने के बावजूद भ्रष्टाचार करने के मामले में शिकायत दर्ज करवा दी। दोनां शिकायतों की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा जांच करवाई गई जिसमें केबीएम कंपनी के दास्तावेजों के फर्जीवाड़े की जांच की और जांच में सभी आरोप सही पाते हुए जिलाधिकारी पौड़ी और लोक निर्माण विभाग को कार्यवाही के लिए पत्र लिखा गया।

इस मामले में भी जन दबाब और लोक निर्माण विभाग पर गंभीर आरोप लगने के बाद आखिरकार लोक निर्माण विभाग द्वारा केबीएम कंपनी और मैसर्स महेंद्र सिंह राणा का ए क्लास का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया लेकिन इसमें भी विभाग द्वारा खेल किया गया। पंचायती राज अधिनियम के तहत जनप्रतिनिधि कानून जिसमें कोई जन प्रतिनिधि सरकारी लाभ ठेका नहीं ले सकता, अगर लेता है तो उस पर पंचायती राज अधिनियम के तहत कार्यवाही होती है, के अनुसार कार्यवाही की गई। जबकि यह मामला पूरी तरह से धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े करके सरकारी निर्माण कार्यों का ठेका लेने का था, जिसमें मुकदमा के साथ ही कार्यवाही होना तय थी।

लोक निर्माण विभाग के इस कारनामे के बाद इस मामले में सूचना आयोग में भी अपील की गई जिसमें 3 अगस्त 2023 को राज्य सूचना आयुक्त विवेक शर्मा द्वारा कड़ी टिप्पणी करते हुए साफ किया कि मामले में विभागीय अनियमितता कीं कार्यवाही करने की बजाय लोक निर्माण विभाग उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग की नियमावली आवेदक को पकड़ा दी गई, जबकि फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों के आधार पर ठेकेदारी प्राप्त की है, पंरतु उसके उपरांत भी लोक निर्माण विभाग द्वारा सम्बंधित के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की है। जबकि विभाग द्वारा सम्बंधित दोषी व्यक्तियां द्वारा एफआईआर की जानी चाहिए थी। राज्य सूचना आयुक्त की इस टिप्पणी के बाद भी लोक निर्माण विभाग हैरतनाक ढंग से मामले को दबाए बैठा है और अभी तक प्रमुख दम्पति के खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा तक दर्ज करवाना तो दूर इस मामले में शिकायत तक दर्ज नहीं करवा रहा है।

बात अपनी-अपनी
मेरे समय का शायद ये मामला नहीं है, पुराना मामला है। मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है, मैं इस मामले को देखता हूं।
टी. एस. ब्रजलाल, मुख्य अभियंता, लोक निर्माण विभाग पौड़ी

भाई साहब, अब हमारी कोई कंपनी नहीं है, जिस कंपनी की आप बात कर रहे हो उस कंपनी में हम लोग नहीं हैं। दो साल पहले हट गए थे, बिक गई कंपनी, जब कंपनी नहीं तो फर्जी क्या होगा।
महेंद्र सिंह राणा, ब्लॉक प्रमुख, द्वारिखाल, पौड़ी

महेंद्र राणा और बीना राणा दोनों ने अपनी कम्पनियों के माध्यम से बहुत बड़ा भ्रष्टाचार किया है। फर्जी कागजातों के आधार पर कम्पनी बनाई और करोडों के सरकारी ठेके हासिल किए, पीडब्ल्यूडी विभाग भी राणा दंपति के भ्रष्टाचार मे शामिल है। जांच मे विभाग को भी दोषी पाया गया लेकिन राणा दंपति को बचाने के लिए विभाग ने कम्पनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया, जबकि आपराधिक मुकदमा होना चाहिए था। हाल ही में शामिल हुए महेंद्र राणा से मैं यह कहना चाहता हूं कि अगर वह साफ छवि के हैं तो फिर उनकी कंपनी को ब्लैक लिस्ट क्यों किया गया और क्यों उन्हें 50 करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान हुआ है। खुद की जान बचाने को आज महेंद्र राणा भाजपा में जरूर गए हैं लेकिन सच जनता के सामने आकर रहेगा। हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक इन दोनों भ्रष्टाचारियों को जेल ना हो जाए।
नमन चंदोला, संयोजक, पौड़ी बचाओ संघर्ष समिति

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