उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री की छवि एक बेहद खुशमिजाज और नेकदिल राजनेता की है। देहरादून के सत्ता गलियारों में कहा जाता है कि सीएम धामी ज्यादा समय तक किसी से नाराज नहीं रहते हैं। इन दिनों लेकिन मुख्यमंत्री के मिजाज बेहद सर्द बताए जा रहे हैं। कारण हैं राज्य निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर उठा विवाद जिससे धामी की धाकड़ छवि को धक्का पहुंचा है। खबर गर्म है कि मुख्यमंत्री के करीबी एक नेता जिसे सरकार में बड़ा दायित्व भी दिया गया है, इस पूरे विवाद की जड़ है। इस नेता ने 2027 में हल्द्वानी विधानसभा सीट पर अपनी दावेदारी मजबूत करने की नीयत से मुख्यमंत्री को गलत सलाह दे डाली। नतीजा रहा हल्द्वानी नगर निगम के महापौर की सीट को ओबीसी आरक्षण की जद् में लाना। इस सीट को आरक्षित श्रेणी में करने के लिए राज्य सरकार को कई सीटों में बदलाव करना पड़ा। इससे भारी राजनीतिक बवाल मच गया। प्रदेशभर में भाजपा भीतर विरोध के स्वर बुलंद होने लगे। प्रदेश के सत्ता गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि सीएम के राजनीतिक गुरु और भाजपा के वरिष्ठ नेता भगत सिंह कोश्यारी भी इस एक मुद्दे पर धाकड़ धामी से सहमत नहीं हुए।
बताया जा रहा है कि हल्द्वानी के लगातार दो टर्म से मेयर रहे भाजपा नेता डॉ. जोगेन्द्र रौतेला को मुख्यमंत्री धामी के एक बेहद करीबी नेता किसी भी सूरत में इस बार मेयर नहीं बनते देखना चाहते थे। कारण था यदि रौतेला तीसरी बार मेयर बन जाते तो 2027 में उनका विधायक टिकट पाना तय हो जाता। धामी सरकार में एक महत्वपूर्ण पद पर काबिज इन नेता जी की इच्छा भी शहर का विधायक बनने की है। इस चलते सारा खेला इन्होंने किया लेकिन पासा तब पलट गया जब पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीबी गजराज बिष्ट ने सीट आरक्षित होते ही अपना दावा पेश कर दिया। ऐसा होगा इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी क्योंकि गजराज बिष्ट ओबीसी श्रेणी में आते हैं, ऐसा किसी को पता नहीं था। बिष्ट उत्तराखण्ड की राजपूत जाति है। बहरहाल गजराज की दावेदारी का समर्थन कोश्यारी ने कर सीएम को धर्म संकट में डाल दिया क्योंकि त्रिवेंद्र रावत के इस करीबी को धामी टिकट देने के पक्ष में नहीं थे। एक बार फिर से हल्द्वानी को अनारक्षित करने की कवायद हुई जिसके चलते कई सीटों पर आरक्षण व्यवस्था बदली गई। कोश्यारी खेमा लेकिन अब गजराज के पक्ष में अड़ गया। इस बीच भाजपा के एक कद्दावर नेता और मोदी सरकार में मंत्री मैदान में कूदे। इन नेताजी ने हल्द्वानी सीट के लिए एक नया नाम सुझा दिया। खबर गर्म है कि नैनीताल भाजपा जिलाध्यक्ष प्रताप बिष्ट एक धन बल से सक्षम नेता को टिकट दिलाने के लिए फुल बैटिंग कर रहे थे। उन्हें प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री का सपोर्ट मिल रहा था। लेकिन केंद्रीय नेता की सिफारिश ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए और कम्प्रोमाइज के तहत गजराज बिष्ट पर ही सीएम को सहमत होना पड़ा। बताया जा रहा है धाकड़ धामी अब अपने इस करीबी दायित्वधारी से बेहद खफा हो चले हैं। कहा-सुना तो यह भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने इन महाशय को पूरी तरह साइड लाइन कर दिया है। चर्चा जोरों पर यह भी है कि वर्तमान में एक खासे महत्वपूर्ण पद पर काबिज इन नेता जी को पदमुक्त करने का मन सीएम बना चुके हैं। यह भी सुनने में आ रहा है कि महत्वपूर्ण पद पर बैठने के लिए भाजपाई अभी से जुगाड़ लगाने में जुट गए हैं।

