डॉक्टर कफील खान उत्तर प्रदेश के मथुरा की जेल में बंद हैं। कोरोना के कारण कैदियों की रिहाई की लिस्ट में उनका भी नाम शमिल था। लेकिन रिहाई कथित तौर पर लखनऊ के एक अधिकारी के कहने पर रोक दी गई है। ये आरोप डॉ कफील की पत्नी ने लगाया है। कफील की पत्नी डॉ शबिस्ता खान का आरोप है कि बीती 28 मार्च को कफील की रिहाई का आदेश आ गया था पर बाद में उसे निरस्त कर दिया गया।
डॉ शबिस्ता खान ने बताया कि कोरोना अलर्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सात साल से कम सजा वाले बंदियों को जेल से पैराल पर रिहा किया जाए। ऐसे में कफील को भी रिहा किया जाना था। उनका नाम भी जेल प्रशासन की लिस्ट में था। उन्होंने बताया कि शनिवार की सुबह उनकी रिहाई के लिए कॉल आया था। उसी शाम को उनको रिहा किया जाना था। लेकिन शाम को लखनऊ से किसी अधिकारी का फोन आने पर उनकी रिहाई रोक पर रोक लगा दी गई है।
कफील की पत्नी शबिस्ता ने कहा कि कफील ने जेल के पीसीओ से दोपहर 3:16 बजे फ़ोन किया था। उन्होंने खुद इस बात की जानकारी दी कि उनकी रिहाई रोक दी गई है। शबिस्ता ने सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त की है कि मेरे पति डॉक्टर कफील को रिहा की जाए। उनकी सेहत भी ठीक नहीं है। ऐसे में उन्हें रिहा किया जाए।
रिहाई लिस्ट में नाम होने के बाद भी क्यों नहीं रिहा हुए गोरखपुर के डॉक्टर कफील ? कफील की पत्नी ने लगाई सुप्रीम कोर्ट से गुहार… @KafeelSmile #kafeelkhan pic.twitter.com/9sBNjXPy4w
— Gorakhpur Post (@GorakhpurPost) March 30, 2020
बता दें कि हाल ही में कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए सरकार के प्रयासों की डॉ कफील ने तारीफ की थी और कोरोना के तीसरे चरण में पहुंचने की आशंका व्यक्त करते हुए उससे बचने के उपाय सुझाए थे। डॉ खान ने इसके लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कोरोना वायरस के मरीजों की सेवा करने के लिए रिहाई की भी मांग भी की थी।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को एक अहम निर्देश दिया था कि सात साल से कम की सज़ा के आरोपों में जेल में बंद अंडर ट्रायलकैदी या फिर 65 साल से ऊपर की उम्र के कैदियों को नियमों रऔ शर्तों के दायरे में रखते हुए छोड़ दिया जाए। निर्देश के मुताबिक, सभी राज्य सरकारों को एक समिति का गठन करने को कहा गया था जो यह निर्धारित करेगी कि किन कैदियों/अपराधियों को इन हालातों या शर्तों में जमानत दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए लिया था।
गौरतलब है कि सीएए, एनपीआर और एनपीए के विरोध के दौरान अलीगढ़ विश्वविद्यालय में बीते साल 13 दिसम्बर को कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने के आरोप में उनपर करवाई शुरू की गई थी। रिहा किए जाने वाले थे लेकिन रासुका लगा दिया गया। जिससे उन्हें रिहाई नहीं मिली थी। वहीं इसपर यूपी पुलिस का दावा था कि उनके भाषण से ही प्रेरित होकर एएमयू के छात्रों ने 15 दिसंबर को उग्र प्रदर्शन और तोड़फोड़ की घटना को अंजाम दिया था।डॉक्टर कफील को उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (यूपी एसटीएफ) ने जनवरी में मुंबई से गिरफ्तार किया था।

