दिन था 21 अगस्त, 2024। एक गैर सरकारी संस्था ‘पहले इंडिया फाउंडेशन ने दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में इस दिन एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा बड़े स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराना और देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देने संबंधी एक ऑन लाइन सर्वे रिपोर्ट को जारी करना था। सर्वे कराने वालों ने 140 करोड़ की आबादी वाले मुल्क में मात्र 8,209 नागरिकों, ई-कॉमर्स कंपनियों से जुड़े 2,062 ऑन लाइन दुकानदारों और 2,031 ऑफ लाइन दुकानदारों संग बातचीत कर एक बड़ा निष्कर्ष निकाल डाला कि ये कम्पनियां भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी योगदान दे रही हैं। इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने लेकिन इन दावों को यह कह सिरे से खारिज कर दिया कि ‘यदि आप प्रति वर्ष 6000 करोड़ रुपए का नुकसान उठा रहे हैं तो क्या यह शिकारी द्वारा शिकार करने के लिए मूल्य निर्धारण करना जैसा नहीं है? ई-कॉमर्स कंपनियों को कानूनी रूप से सीधे उपभोक्ता संग व्यापार करने की अनुमति नहीं है लेकिन यह वास्तविकता है कि आप सभी इन ई-कॉमर्स प्लेटफॉमर्स से सस्ते में माल खरीदते हैं। ऐसा हो रहा है? क्या यह हमारे लिए चिंता का विषय नहीं है?’ वाणिज्य मंत्री ने स्पष्ट कह डाला कि इन ई-कॉमर्स कम्पनियों के चलते छोटे व्यापारियों के सामने अस्तित्व का संकट आ खड़ा हुआ है
भारत में किराना स्टोर हर नुक्कड़ पर हैं, जो लंबे समय से देश की खुदरा अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं और ये स्टोर खुदरा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन जैसे-जैसे तकनीक ने हमारी जिंदगी के हर पहलू को छुआ है, वैसे-वैसे ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स के क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। क्विक कॉमर्स जिसे ऑन डिमांड डिलीवरी भी कहते हैं। यह कस्टमर को उनके ऑर्डर 10 से 30 मिनट के भीतर डिलीवर करने का वादा करता है। मौजूदा समय में यह भारत में तेजी से बढ़ रहा है। खरीदारी के तरीके में इस चलते बदलाव आया है। उपभोक्ता ऑन लाइन खरीदारी, सुपरमार्केट या बड़े आधुनिक स्टोर से करने लगे हैं और इसके परिणामस्वरूप, किराना स्टोर अपना ग्राहक आधार खो रहे हैं।
हालांकि किराना स्टोर्स की सबसे बड़ी ताकत उनकी स्थानीयता और ग्राहकों के साथ उनके सम्बन्ध हैं। जब भी कस्टमर को किसी जरुरी सामान की आवश्यकता होती है तो अक्सर अपने नजदीकी किराना स्टोर की तरफ रुख करते हैं लेकिन क्विक कामर्स के आने से अब यह सुविधा मोबाइल ऐप पर उपलब्ध हो गई है। जिस कारण ग्राहक तेजी से इस नई सेवा की ओर रुख कर रहें हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि किराना स्टोर्स को ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स से क्या खतरा है? इंडिया फाउंडेशन की हालिया रिपोर्ट क्या है? क्या किराना स्टोर्स अपने अंत की ओर हैं? इसके लिए सबसे पहले इंडिया फाउंडेशन रिपोर्ट को समझना आवश्यक है।
क्या कहती है इंडिया फाउंडेशन की रिपोर्ट
दिल्ली स्थित नीति अनुसम्बन्द संस्थान पहले इंडिया फाउंडेशन (पीआईएफ) ने पिछले हफ्ते अपना व्यापक अध्ययन साझा किया जिसमें देश भर में रोजगार और उपभोक्ता कल्याण पर ई-कॉमर्स के शुद्ध प्रभाव का आकलन जारी कर कहा गया है कि ई-कॉमर्स पर बड़ा दांव लगाने से नौकरियों और उपभोक्ता लाभ को बढ़ावा मिलेगा। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने एक कार्यक्रम में इस रिपोर्ट को जारी किया जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था में ई-कॉमर्स की परिवर्तनकारी भूमिका, रोजगार सृजन और उपभोक्ता लाभों पर इसके प्रभाव पर चर्चा की गई है। इस मौके पर पीआईएफ के अध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि ई-कॉमर्स ने भारत के खुदरा परिदृश्य में क्रांति ला दी है। हमारा अध्ययन रोजगार और उपभोक्ता कल्याण पर इसके प्रभाव की डेटा-संचालित समझ प्रदान करता है, जो नीति निर्माताओं और उद्योग हितट्टाारकों के लिए अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय के सचिव सौरभ गर्ग ने डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए सरकार की पहल की सराहना की, जिसने ई-कॉमर्स के सुचारू विस्तार को सक्षम किया है। अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष रोजगार में ई-कॉमर्स के महत्वपूर्ण योगदान को उजागर करते हैं, ई-कॉमर्स विक्रेताओं ने 1.6 करोड़ नौकरियां पैदा की हैं। यह रोजगार विपणन से लेकर प्रबंधन, ग्राहक सेवा, संचालन, वेयरहाउसिंग लॉजिस्टिक्स और डिलीवरी तक कौशल स्तरों पर विभिन्न भूमिकाओं में वितरित किया गया था। यह भी पाया गया कि ई-कॉमर्स अन्य खुदरा क्षेत्रों की तुलना में महिला श्रमिकों के लिए लगभग दोगुनी संख्या में नौकरियां पैदा करता है। ई-कॉमर्स का प्रभाव छोटे शहरों में काम करने वाले विक्रेताओं पर भी महत्वपूर्ण है। अध्ययन के अनुसार, छोटे शहरों में 60 प्रतिशत विक्रेताओं ने ऑनलाइन बिक्री शुरू करने के बाद से बिक्री और मुनाफे में वृद्धि की सूचना दी है, इनमें से दो-तिहाई से अधिक ने अकेले पिछले वर्ष में ऑनलाइन बिक्री मूल्य और मुनाफे में वृद्धि का अनुभव किया है। टियर 3 बाजारों में यह संख्या और भी अधिक थी, जहां 71 प्रतिशत विक्रेताओं ने अपने व्यवसायों में अतिरिक्त बिक्री की सूचना दी। अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे ई-कॉमर्स ने उपभोक्ता व्यवहार को नया आकार दिया है, यह देखते हुए कि उपभोक्ता सुविट्टाा, उत्पाद विविधता और पहुंच जैसे कारणों से ऑनलाइन शॉपिंग में स्थानांतरित हो गए हैं। अत्यट्टिाक व्यस्त उपभोक्ता आधार का संकेत इस तथ्य से मिलता है कि सर्वेक्षण में भाग लेने वाले सभी उत्तरदाताओं में से 50 प्रतिशत से अधिक ने एक सप्ताह में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर दो घंटे से अधिक समय बिताया और 70 प्रतिशत ने अकेले पिछले महीने में ई-कॉमर्स के माध्यम से खरीदारी की। इनमें से कई निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि, कुल मिलाकर, ई-कॉमर्स भारत में उपभोक्ता व्यवहार और रोजगार पैटर्न को बदल रहा है, जिससे एक अधिक मजबूत लेकिन गतिशील खुदरा वातावरण बन रहा है। यानी इंडिया फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार पारंपरिक रिटेल स्टोर के मुकाबले ई-कॉमर्स कंपनियां 50 फीसदी ज्यादा रोजगार पैदा करती हैं। ई-कॉमर्स का छोटे रिटेल के धंधो पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है। एक ऑनलाइन वेंडर औसतन 9 रोजगार पैदा कर रहा है। वहीं, एक ऑफ लाइन वेंडर सिर्फ 6 रोजगार पैदा कर रहा है। ऑन लाइन में महिलाओं को नौकरी ऑफलाइन से लगभग दोगुना है। ऑनलाइन की ग्रोथ से रिटेल दुकाने बंद नहीं हो रही हैं। 2020 के बाद से सिर्फ 20 फीसदी दुकानें ही बंद हुई हैं। हर चौथा स्थानीय दुकानदार विस्तार की योजना बना रहा है।
कॉमर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल ने उठाए सवाल इस मौके पर कामर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल भी मौजूद थे और उन्होंने सिरे से ई-कॉमर्स कंपनियों के दावों को खारिज कर दिया। मंत्री ने कहा कि ज्यादा रोजगार पैदा करने की बात गले उतरने वाली नहीं है। पीयूष गोयल ने कहा कि भारत में ई कॉमर्स फर्मों का तेजी से होता विस्तार चिंता का विषय है। यह हमारी उपलब्धि नहीं बल्कि चिंता है। क्योंकि इससे हमारे स्थानीय छोटे व्यापारियों का रोजगार कम हो रहा है। मौजूदा समय में ई-कॉमर्स का बाजार 27 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। ऐसे में आने वाले समय में यह रफ्तार 100 मिलियन छोटे रिटेल विक्रेताओं को प्रभावित करेगी।
गोयल ने ई-कॉमर्स कंपनियों के कारोबारी मॉडल को लेकर कई सवाल भी खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि जब अमेरिकी कम्पनी एमाजॉन भारत में एक अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा करती है, तो हम जश्न मनाते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि ये अरबों डॉलर भारतीय अर्थव्यवस्था की बड़ी सेवा या निवेश के लिए नहीं आ रहे हैं। कंपनी को उस साल अपने बही-खाते में एक अरब डॉलर का घाटा हुआ था और उन्हें उस घाटे की भरपाई करनी थी। एमाजॉन जैसी ग्लोबल ई-कॉमर्स कम्पनियां भारत में निवेश कर कोई एहसान नहीं कर रही हैं। जहां तक किराना स्टोर्स के अंत का सवाल है इसका सीधा जवाब देना थोड़ा मुश्किल है। क्योंकि एक ओर जहां क्विक कॉमर्स तेजी से बढ़ रहा है और लोगों की जीवनशैली में बदलाव ला रहा है तो वहीं दूसरी ओर किराना स्टोर्स की पकड़ अभी भी कायम है। आज भी भारत के कई हिस्सों में लोग पारंपरिक तरीके से खरीदारी करना पसंद करते हैं। हालांकि एमाजॉन पर बेहद कम कीमत में सामान बेचने की तीखी टिप्पणी करने के एक दिन बाद ही पीयूष गोयल ने अपना रुख नरम किया और कहा कि सरकार इसके खिलाफ नहीं है और वह केवल ऑनलाइन-ऑफ लाइन कारोबारों के बीच उचित पर्तिस्पर्धा चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार न केवल विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहती है, बल्कि ग्राहकों के साथ-साथ वस्तुओं और सेवाओं के आपूर्तिकर्ताओं के लिए बराबरी और ईमानदारी भी चाहती है। ‘हमारा रुख स्पष्ट है कि हम एफडीआई आमंत्रित करना चाहते हैं, हम प्रौद्योगिकी को आमंत्रित करना चाहते हैं, हम दुनिया की बेहरीन चीजें चाहते हैं और हम ऑनलाइन के बिल्कुल भी खिलाफ नहीं हैं। ऑनलाइन ई-कॉमर्स के जबरदस्त फायदे हैं। इसमें सुविधा, रफ्तार का लाभ है। यह आपको अपने घरों में सुविधा मुहैया कर रहा है। इसके कई लाभ हैं।’
भारत में ग्राहकों से सीधे कारोबार नहीं कर सकता ई-कॉमर्स
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने हैरानी जताते हुए कहा कि एक साल में 6,000 करोड़ रुपए का घाटा होने से क्या कीमतों को बेहद कम रखने के संकेत नहीं मिल रहे हैं? यह सिर्फ एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म है और उन कंपनियों को सीधे ग्राहकों को बेचने की अनुमति नहीं होती है। सरकार की ओर से लागू गई नीति के मुताबिक, कोई भी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भारत में सीधे ग्राहकों के साथ कारोबार नहीं कर सकता है।
ऑन लाइन फॉर्मेसी पर भी व्यक्त की चिंता
मंत्री ने ऑनलाइन फॉर्मेसी पर भी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऑन लाइन, आप जो चाहें ऑर्डर कर सकते हैं। लेकिन यह चिंता का विषय है। वर्तमान में कितने मोबाइल स्टोर देखते हैं और 10 साल पहले कितने थे? वे सभी मोबाइल स्टोर कहां हैं? क्या केवल एप्पल या बड़े रिटेल ही मोबाइल फोन और उनके सहायक उपकरण बेचेंगे? भारत अमेरिका और स्विटजरलैंड की तरह उच्चप्रति व्यक्ति आय वाला विकसित देश नहीं है। यहां लोगों के एक बड़े वर्ग को सकारात्मक कार्रवाई और मदद की आवश्यकता है।

