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ग्रीस में वैध बना समलैंगिक विवाह

दुनियाभर के कई मुल्कों में समलैंगिक जोड़ों को न तो सामाजिक स्तर पर मान्यता मिली है और न ही व्यक्तिगत स्तर पर। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसमें बड़े परिवर्तन होते आ रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण ग्रीस में देखने को मिला है। यहां समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने समेत माता-पिता के समान सभी अधिकार दिए गए हैं। इसके साथ ही इस कानून को अपनाने वाला वहा पहला ईसाई राष्ट्र बन गया है। उसके इस कदम को ऐतिहासिक माना जा रहा है

दुनियाभर के अधिकतर देशों में अभी भी समलैंगिक संबंधों को न तो सामाजिक स्तर पर मान्यता मिली है और न ही व्यक्तिगत स्तर पर। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कई मुल्कों में इन जोड़ों को संवेदनशीलता की दृष्टि से देखा जाने लगा है जिसका ताजा उदाहरण ग्रीस में देखने को मिला है। ग्रीस द्वारा समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने समेत माता-पिता के समान सभी अधिकार दिए गए हैं। वहीं कुछ देश इसी राह पर अपने कदम बढ़ा रहे हैं। ग्रीस के इस कदम को ऐतिहासिक माना जा रहा है। इसके साथ ही ग्रीस इस प्रगतिशील कानून को अपनाने वाला पहला ईसाई राष्ट्र बन गया है।

निजी पल में एक साथ समलैंगिक जोड़ा

ग्रीस सरकार रूढ़िवादी चर्च के विरोध के बावजूद, सांसदों द्वारा यह बिल पारित किया है। इस बिल के समर्थन में 176 वोट पड़े, वहीं 76 सांसदों ने इस बिल का विरोध किया। इसके अलावा कुछ सांसद इस मुद्दे से बचते हुए नजर आए, 46 सांसद संसद में मौजूद ही नहीं थे। इस संदर्भ में ग्रीस के प्रधानमंत्री मित्सोताकिस ने कहा कि जो लोग अब तक समाज के मुख्यधारा में नहीं थे, वो अब मुख्यधारा में आ जाएंगे। यह परिवर्तन सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों को बनाए रखने और किसी भी प्रकार के भेदभाव को खत्म करने के लिए जरूरी था। ग्रीस ट्रांसजेंडर सपोर्ट एसोसिएशन की सदस्य एरमिना पापाडिमा ने कानून लागू होने की खुशी को व्यक्त करते हुए कहा है कि ग्रीस की नागरिक होने पर उन्हें गर्व है, अब लोगों की सोच बदल रही है, हमें अभी और इंतजार करना होगा और यह कानून इसमें मदद करेगा।

क्या है कानून
ग्रीस में पारित किया गया यह नया कानून न सिर्फ समलैंगिक विवाह को मान्यता देता है, बल्कि समान लिंग वाले जोड़ो को अभिभावक के सभी अधिकार देता है। इस कानून के तहत ऐसे जोड़ो को बच्चा गोद लेने की इजाजत दी गई है। नए कानून के तहत इस समुदाय से आने वाले अभिभावकों को अपने बच्चों के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेने और उनके पालन-पोषण में पूरी तरह से भाग लेने की अनुमति प्राप्त होती है। ऐसे में संभावना है कि यह नया कानून समलैंगिक लोगों के दैनिक जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा, जिसमें वे बच्चों को स्कूल से लाने, उनके साथ यात्रा करने और चिकित्सा नियुक्तियों में भाग लेने जैसे आवश्यक माता-पिता के कर्तव्यों में शामिल होने में सक्षम होंगे। यह ग्रीस समाज में विविध पारिवारिक संरचनाओं के सामान्यीकरण और स्वीकृति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसलिए इस कानून के बनने के बाद समलैंगिक समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई है।

गौरतलब है कि अभी तक दुनिया भर के करीब 37 देशों में समलैंगिक विवाह को मान्यता दी गई है। यूरोपियन यूनियन के 27 में से 15 देशों में समलैंगिक शादियों को मान्यता दी जा चुकी है जिसमें 16 वें देश के रूप में ग्रीस का नाम भी जुड़ गया है। इससे पहले साल 2015 में ग्रीस ने समलैंगिक जोड़ों की सिविल पार्टनरशिप यानी नागरिक साझेदारी को अनुमति दे दी थी। यह एक ऐसा कानूनी संबंध है जिसे दो लोगों द्वारा पंजीकृत किया जा सकता है जो एक दूसरे से संबंधित नहीं है। नागरिक भागीदारी समान-लिंग वाले जोड़ों और विपरीत-लिंग वाले जोड़ों दोनों के लिए ही उपलब्ध है। इसके तहत दो लोगों के बीच के रिश्ते को कानूनी मान्यता मिलती है। इसके अलावा कानूनी अधिकार के साथ-साथ जिम्मेदारियां भी मिलेंगी। सिविल पार्टनरशिप तभी समाप्त की जा सकती है जब पार्टनर में से किसी एक की मृत्यु हो जाए.या साझेदारी को कानूनी रूप से समाप्त करने के लिए कोर्ट में आवेदन किया जाए। इसके अलावा दो साल पहले ग्रीस सरकार ने किसी व्यक्ति के सेक्सुअल ओरिएंटेशन को बदलने वाली थैरेपी पर भी रोक लगा दी थी।

दुनिया में समलैंगिक संबंधों की कानूनी स्थिति
भारी विरोध के बावजूद समलैंगिक संबंधों के हित में ग्रीस ने एक बड़ा कदम उठा सेम सेक्स विवाह को आखिरकार कानूनी मान्यता दे दी है। यहां समलैंगिक विवाह दशकों से विवाद का विषय रहा है। समलैंगिक संबंधों के हित में सबसे पहले नीदरलैंड ने वर्ष 2000 में समलैंगिक जोड़ों के शादी को मंजूरी दी थी। उसके बाद से तकरीबन 15 यूरोपीय देश समलैंगिक विवाह को मान्यता दे चुके हैं। इसके अलावा कुछ देश जैसे चेक गणराज्य, क्रोशिया, साइप्रस, एस्टोनिया, ग्रीस, हंग्री और इटली केवल समलैंगिक नागरिक भागीदारी की ही अनुमति देते हैं वहीं सिंगापुर द्वारा पिछले साल अगस्त में ‘गे’ सेक्स संबंध पर से प्रतिबंध हटाने का फैसला लिया गया था। कई देशों में समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने की भी इजाजत दी गई है। कनाडा उत्तरी अमेरिका का पहला ऐसा देश है जहां 2005 में सेम सेक्स मैरिज और समलैंगिकों द्वारा बच्चा गोद लेने के लिए अनुमति दी गई थी जिसके दस वर्षों के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका द्वारा देशभर में ‘गे’ मैरिज को वैध कर दिया गया। इसके अतिरिक्त लेटिन अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना, कोलंबिया, इक्वाडोर, कोस्टा रिका, उरुग्वे और चिली में समलैंगिक विवाह की अनुमति है। मेक्सिको की संघीय राजधानी मेक्सिको सिटी में 2007 में समलैंगिक संबंट्टां को मान्यता मिली और 2009 में समलैंगिक विवाह को वैध करार दिया गया था।

वर्ष 2020 में इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन (आईएलजीए) द्वारा एक रिपोर्ट पेश की गई थी जिसमें 69 देशों में समलैंगिकता को प्रतिबंधित बताया गया था और 11 देशों में इसके लिए मौत की सजा के बारे में जानकारी दी गई थी। वहीं 30 अफ्रीकी देशों में समलैंगिकता पर प्रतिबंध है, मॉरिटानिया, सोमालिया और सूडान में इसके लिए मौत की सजा दी जाती है। पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में केवल दक्षिण अफ्रीका ऐसा देश है जहां समलैंगिक शादी को वर्ष 2006 में वैध करार दिया गया था।

भारत में क्या है स्थिति
भारत में भले ही समलैंगिक संबंधों को अपराध की दृष्टि से बाहर रखा गया हो, लेकिन भारतीय समाज और सरकार समलैंगिकों के कानूनी अधिकारों को सुनिश्चित करने को लेकर बचती रही हैं। यही नहीं खुले तौर पर भी इसका विरोध किया जाता रहा है। इस समुदाय की ओर से बात रखने वाले कई संगठन और मानवाधिकार समूह समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने की मांग करते रहे हैं। इसी के परिणाम स्वरूप सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले से संबंधित 21 याचिकाएं दायर की गई थी। इन याचिकाओं में समलैंगिक समुदाय के लोगों ने अपनी शादी को कानूनी मान्यता देने के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करने की मांग भी की थी। जिस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को खारिज कर दिया गया। फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना संसद का काम है, कोर्ट का नहीं। हालांकि न्यायालय ने राज्य और केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह तय करें कि समलैंगिकों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी अधिकार दिए जाने का विरोध किया था। केंद्र ने इस समुदाय के विवाह को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ बताया है। साथ ही केंद्र ने ये भी दलील दी थी कि भले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा साल 2018 में समलैंगिक संबंधों को आईपीसी की धारा 377 से हटा दिया गया हो, लेकिन समलैंगिक विवाहों को कानूनी दर्जा नहीं दिया जा सकता।

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