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रो पड़ी गजल, खामोश हो गए सुर

गायिका की दुनिया में पंकज उधास का नाम लीजेंड के तौर पर सामने आता रहा है। उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि हर उम्र के लोग उनके गाने को सुनना और गुन गुनाना पसंद करते हैं। उनकी गजल ‘चिट्ठी आई है, चिट्ठी आई है… वतन से चिट्ठी आई है’ या ‘चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल’ आदि के गानों से मशहूर हुए पंकज उधास के सुर अब हमेशा के लिए खामोश हो गए हैं

इऊपर मेरा नाम लिखा है
अंदर ये पैगाम लिखा है।
ओ परदेस को जाने वाले
लौट के फिर न आने वाले
सात समुंदर पार गया तू
हमको जिंदा मार गया तू
खून के रिश्ते तोड़ गया तू
आंख में आंसू छोड़ गया तू
कम खाते है। कम सोते है।
बहुत ज्यादा हम रोते है।
चिट्ठी आई है, चिट्ठी आई है, चिट्ठी आई है।
वतन से चिट्ठी आई है।

राष्ट्रपति एपीजे कलाम से पद्मश्री सम्मान लेते पंकज
सम्मान लेते पंकज

इस गजल को जिसने भी सुना उसका मन मंत्रमुग्ध हो गया। इस गजल को स्वर देने वाली आवाज गत् 26 फरवरी को हमेशा के लिए खामोश हो गई है। मशहूर गजल गायक पंकज उधास ने 72 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। गायिका की दुनिया में पंकज उधास का नाम लीजेंड के तौर पर सामने आता रहा है। उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि हर उम्र के लोग उनके गाने को सुनना और गुन गुनाना पसंद करते हैं। उनकी गजल ‘चिट्ठी आई है, चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है’ या ‘चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल’ के साथ उनका गाना ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ ने म्यूजिक इंडस्ट्री में तहलका मचा दिया था। इसके अलावा ‘आहिस्ता कीजिए बातें धड़कनें कोई सुन रहा होगा’, ‘एक तरफ उसका घर, एक तरफ मयकदा’ और ‘थोड़ी-थोड़ी पिया करो’ जैसे उनके मशहूर गानों को लोग आज भी गुनगुनाते हैं। 700 फिल्मों में अपनी सुरीली आवाज दे चुके पंकज उधास अब हमारे बीच नहीं रहे हैं। आइए उनके जीवन सफर पर एक नजर डालते हैं।

पंकज उधास का जन्म 17 मई 1951 को गुजरात के जेतपुर में हुआ था। वे तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। राजकोट के चरखाड़ी कस्बे में उनका घर था। उनके दादा जी भावनगर के दीवान हुआ करते थे। पंकज के पिता भी महल में सरकारी नौकरी में थे। महल में ही उनके पिता की मुलाकात मशहूर गायक उस्ताद अब्दुल करीम खां से हुई थी जिनसे उन्होंने दिलरूबा बजाना सीखा था। पंकज खाली समय में परिवार के साथ कभी-कभी दिलरूबा बजाया करते थे। उन्हें दिलरूबा की आवाज बहुत पसंद थी। पंकज की मां भी पारिवारिक कार्यक्रम में गाया करती थी। इस तरह संगीतमय माहौल में पंकज उधास की परवरिश हुई थी। वहीं से इनका रूझान गायिका की ओर चला गया। लेकिन संगीत इतना आसान नहीं था। कहा जाता है कि जब लता मंगेशकर ने चीन युद्ध के बाद ‘ऐ मेरे वतन के लोगों… याद करो कुर्बानी’ को गाया था तो इस गाने ने पूरे देश को गमहीन कर दिया था। पंकज को इस गाने को सुनकर ऐसा लगा कि गायिकी उनके लिए बनी है। फिर उन्होंने गाना गाना शुरू कर दिया। वे स्कूल प्रोग्राम में गाना गाते और पढ़ाई से समय निकालकर जागरण की चौकी में भजन भी गाया करते थे। पंकज ने जब पहली बार ‘ए मेरे वतन के लोगों…’ गाया था तब लोगों ने खूब तारीफ की थी। इसी से उनको पहली कमाई के तौर पर 51 रुपये भी मिले थे। इस गाने के बाद इनके पिता ने उनका एडमिशन राजकोट के म्यूजिक एकेडमी में करा दिया था। वहां से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। लेकिन नाम तो बॉलीवुड में कमाना था। अब उन्होंने वहां से बॉलीवुड का रुख किया और अपने करियर की शुरुआत की पहली फिल्म ‘कामना’ में एक गीत गाया था ये उनके संघर्ष का पहला पन्ना था। इसके बाद चार साल लगे तब जाकर पंकज को दूसरी फिल्म में गाने का मौका मिला। लेकिन पंकज की किस्मत साथ नहीं दे रही थी फिर साल 1985 में आई फिल्म ‘औरत पांव की जूती नहीं है’ फिल्म ने उनके करियर के रास्ते खोले थे।

‘नाम’ फिल्म ने कर दिया था फेमस
‘संजय दत्त’और ‘अमृता सिंह’ की फिल्म ‘नाम’ 1986 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म में एक गाने के बोल थे ‘चिट्ठी आई है, आई है’ जिसने पूरे देश में धूम मचा दी। इस फिल्म ने पंकज उधास को रातों-रात स्टार बना दिया। कहा जाता है पंकज ने इस गाने को गाने से मना कर दिया था। फिर राजेंद्र साहब ने इस गाने को पंकज से गवाने के लिए उनके भाई मनहार से बात की। मनहार ने पंकज को समझाया फिर उन्होंने ये गाना गाया। जिसके बाद पंकज की लोकप्रियता में चार चांद लग गए। वो इस गाने से इतने फेमस हुए कि एक बार राज कपूर साहब ने पंकज को डिनर पर बुलाया और कहा कि पंकज जी अपना प्रसिद्ध गीत सुना दें। बताया जाता है इस गाने को सुनने के बाद राज कपूर साहब बहुत फफक-फफक कर रोये थे। उन्होंने पंकज से कहा था कि आपसे बेहतर इस गाने को कोई नहीं गा सकता था। इससे बेहतर कोई गायकी नहीं हो सकती। वाकई इस गाने की हर लाइन इतनी भावपूर्ण है और इसको जिस दर्द से गाया गया है वो बहुत ही अद्भुत है। जैसे इस गाने की एक लाइन ‘सूनी हो गई शहर की गलियां, कांटें बन गए बाहर की गलियां’ को पंकज उट्टास ने जिस दर्द के साथ गाया है वह बहुत ही लाजवाब था।

इस गाने को लेकर एक किस्सा बहुत फेमस है। एक बार पंकज को किसी लाइव प्रोग्राम में गीत गाना था। वहां पर एक व्यक्ति ने उनसे गलत तरीके से इस गाने की फरमाइश की जिसको उन्होंने मना कर दिया था। लेकिन सामने वाले व्यक्ति ने उनके सिर पर पिस्टल तान दी थी और कहा कि तुम गाओगे नहीं तो हम तुम्हें ठोक देंगे।

पत्नी और बेटियों के साथ

धर्म की बेड़िया तोड़कर रचाई शादी
पंकज जी की लव स्टोरी भी बहुत फेमस है। उनकी शादी 1982 में फरीदा से हुई थी फरीदा मुस्लिम थी और पंकज हिंदु थे। लेकिन उनकी ये शादी इतनी आसान नहीं थी। बताया जाता है पंकज की फरीदा से मुलाकात उनके पड़ोसी ने करवाई थी उस समय पंकज ग्रेजुएशन कर रहे थे और फरीदा एयरहोस्टेस थीं। तभी फरीदा से पंकज की दोस्ती हो गई और फिर मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। बताया जाता है कि पंकज और फरीदा के घर थोड़ी दूरी पर थे, इसलिए वो दोनों अक्सर पड़ोसी के घर पर ही मिला करते थे। ट्टारे-धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई। बात शादी तक पहुंची लेकिन धर्म की दीवार प्यार के आड़े आ गई जिससे शादी में दिक्कत आ गई। पंकज के परिवार को कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन फरीदा के परिजन इसके खिलाफ थे। जैसे-तैसे करके दोनों के परिवार राजी हुए तब जाकर उनकी शादी हुई। उस समय 1982 में एक मुस्लिम लड़की का हिंदु लड़के से शादी करना इतना आसान नहीं था। हालांकि पंकज उधास और फरीदा ने ये पहले ही तय कर लिया था कि अगर उनकी शादी होगी, तो वह दोनों के माता-पिता के आशीर्वाद के साथ ही होगी।
पंकज उधास गायिकी की दुनिया का ऐसा सितारा हैं कि आने वाली कई पीढ़ियों के कानों को उनके गाने ठंडक पहुंचाते रहेंगे। उन्होंने अपने शानदार करियर के दौरान कई हिट बॉलीवुड गानों से लेकर सदाबहार गजलें दी हैं। आज भी लोग उनकी गजलों और गानों के दिवाने हैं। यही नहीं उन्होंने कई फिल्मों में भी अपनी आवाज दी है, जिनमें ‘बहार आने तक’, ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’, ‘थानेदार’, ‘साजन’, ‘मोहरा’, ‘गंगा जमुना सरस्वती’ जैसी कई फिल्में शामिल हैं।

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