देवभूमि में बढ़ते अपराध
राज्य गठन के बाद से ही देवभूमि में लगातार अपसंस्कृति का विस्तार होता चला आ रहा है। बीते 24 बरसों में प्रदेश के पहाड़ी जिलों में इस अपसंस्कृति का एक बड़ा असर अपराध में भारी बढ़ोतरी के रूप में सामने आया है। यहां की शांत वादियों को अब बलात्कार, अपहरण, चोरी और साम्प्रादायिक हिंसा ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। हिमालयी राज्यों में महिलाओं और बालिकाओं के साथ बलात्कार के मामलों में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने अपनी 2022 की रिपोर्ट में उत्तराखण्ड को सबसे खराब बताया। 2019 में भी एनसीआरबी ने लड़कियों की तस्करी के मामले में उत्तराखण्ड को हिमालयी राज्यों में सबसे बदतर करार दिया था। राज्य के पहाड़ी जनपदों में लगातार बढ़ रहे अपराध समाज और सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं
- अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय में पर्वतीय जिलों को सबसे शांत और सुकून वाले माना जाता था। तब उत्तर प्रदेश के 85 जिलों में 8 पर्वतीय जिले थे। उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी और चमोली गढ़वाल मंडल और अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ तथा नैनीताल जिले कुमाऊं मंडल में थे। देहरादून और नैनीताल जिले पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रांे में बटे हुए थे। जिसमें देहरादून के चकराता और मसूरी क्षेत्र पहाड़ी थे तो नैनीताल के हल्द्वानी और रूद्रपुर, काशीपुर आदि मैदानी क्षेत्र थे। सामान्य अपराधों को छोड़ दिया जाए तो इन क्षेत्रों में गम्भीर अपराध नाम मात्र के और कभी-कभार ही देखने को मिलते थे।
पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद कुछ समय तक को स्थितियों में कोई बड़ा परिवर्तन देखने को नहीं मिला लेकिन कुछ वर्ष बाद पहाड़ी जिलों में गम्भीर अपराध जैसे बलात्कार, बलवा, हत्या, चोरी, लूट जैसे मामले देखें जाने लगे। पहाड़ी जिले के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी गम्भीर प्रवृत्ति के अपराधों की शुरुआत होने लगी। वर्ष 2021 से लेकर 2023 तक महज तीन वर्षों के आपराधिक वारदातांे के आंकड़ों से साफ हो गया है कि अब शांत पहाड़ी जिलों में न सिर्फ अशांति फैल रही है, बल्कि हत्या, बलात्कार, बलवा, अपहरण, चोरी, लूट, दहेज हत्या, वाहन चोरी और साइबर अपराध जैसी वारदातें पहाड़ों में होने लगी हैं।
पहाड़ में बढ़ते चोरी के मामले
सरकारी आंकड़ांे के अनुसार प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में 2021 से लेकर 2023 तक 492 वारदातें चोरी की सामने आ चुकी हैं। जिलों के हिसाब से देखें तो पौड़ी गढ़वाल जिले में 132, पिथौरागढ़ में 63, अल्मोड़ा में 57, टिहरी जिले में 64, उत्तरकाशी में 51 बागेश्वर में 22 चम्पावत में 49 और चमोली जिले में 39 मामले तथा रूद्रप्रयाग जिले में 15 मामले विगत तीन वर्षों में दर्ज हुए हैं। हालांकि चोरी के मामले पहाड़ी जिलों में मैदानी जिलों की तुलना में बहुत कम हैं लेकिन पहाड़ी जिलों में चोरी की वारदातें होना गम्भीर बात है क्योंकि एक समय ऐसा भी था जब यहां घरों में ताले नहीं लगाए जाते थे। जानकारों की मानें तो जिस तरह से प्रदेश में अनेक परियोजनाओं पर काम हो रहा है और इसके लिए बाहरी प्रदशों से मजदूरों आदि की आमद बहुत तेजी से बढ़ी है, इसके चलते पहाड़ी गांवों में चारी की घटनाएं बढ़ रही हैं। साथ ही युवाओं में बेरोजगारी और नशे का चलन ज्यादा होने चलते भी चोरी की घटनाएं सामने आ रही हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों की मानें तो प्रदेश के पहाड़ी जिलों में युवा बेरोजगार हो रहे हैं जिससे उनके भीतर नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसके चलते नशे के लिए भी चोरी की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस तरह के मामले ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में होने से पहाड़ी गांवों की सामाजिक व्यवस्था में भी बदलाव आने लगा है। कभी पहाड़ी जिलों के गांवांे के ग्रामीण अपने घरों में ताले तक नहीं लगाते थे। लेकिन अब चोरी की घटनाएं बढ़ने से ग्रामीणों में भय का वातावरण पैदा हो गया है।
वाहन चोरी में भी बढ़ोतरी
इसी तरह से वाहन चोरी के मामले भी पहाड़ी जिलों में बढ़ रहे हैं। 2021 से लेकर 2023 तक 9 पर्वतीय जिलों में 159 मामले अलग-अलग थानांे में दर्ज किए जा चुके हैं। इनमें अल्मोड़ा जिले में 14, बागेश्वर में 7 चमोली में 5 चम्पावत में 13, पौड़ी गढ़वाल में 55 और पिथौरागढ़ में 15 रूद्रप्रयाग जिले में 5 तथा टिहरी में 26 एवं उत्तरकाशी जिले में 19 मामले विगत तीन वर्षों में दर्ज हुए हैं।
अपहरणों को जन्म देती अपसंस्कृति
भगा ले जाने के लिए अपहरण के मामले भी पर्वतीय जिलों में बड़ी संख्या में दर्ज हुए हैं। 8 पहाड़ी जिलों में 690 मामले दर्ज होना साफ दर्शाता है कि प्रदेश के पहाड़ भी इस तरह के अपराधों से अछूते नहीं रह गए हैं। पौड़ी गढ़वाल जिले में 128 पिथौरागढ़ में 115, चम्पावत जिले में 105, बागेश्वर में 02 चमोली जिले में 88, उत्तरकाशी जिले में 81, अल्मोड़ा जिले में 58, टिहरी जिले में 60, रूद्रप्रयाग जिले में 53 मामले विगत तीन वर्षों में दर्ज हुए हैं। इन मामलो में ज्यादातर मामले महिलाओं के अपहरण के हैं जो कि शांत पहाड़ी जिलों के लिए एक बड़े खतरे की घंटी समान हैं।
देश भर में अपराधों को लेकर हर वर्ष राज्यवार एनसीआरबी द्वारा आंकड़े जारी किए जाते हैं। इनमें सबसे गम्भीर मामले नाबालिग बालिकाओं को शादी के नाम भगा ले जाना और उन्हें मानव तस्करी के दलदल में धकेलने के हैं। प्रदेश के तीन जिले मानव तस्करी के मामले में सबसे आगे बताए गए हैं। ये ऊधमसिंह नगर, पिथौरागढ़ और चम्पावत जिले हैं। बालिकाओं की तस्करी और बाहरी प्रदेशों के लोगों द्वारा नाबालिक बालिकाओं के साथ विवाह करने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। वर्ष 2019 में एनसीआरबी की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा करते हुए भारत के हिमालयी राज्यों में बेटियों की तस्करी के मामले में उत्तराखण्ड प्रथम स्थान पर दर्शाया गया था। रिपोर्ट में यह भी बात सामने आई थी कि ज्यादातर मामलांे की पुलिस रिपोर्ट तक नहीं हो पाती है जिसके चलते महज दो प्रतिशत मामले ही सामने आ पाते हैं।
2020 में 9 मामले मानव तस्करी के सामने आए तो 2021 में 16 तथा 2022 में 10 मामले दर्ज हुए हैं। महज तीन सालों में 35 मामले दर्ज होना साफ करता है कि मानव तस्करी के मामले में प्रदेश की क्या स्थिति है। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि 3 वर्षों में 35 मामले तो सामने आए जिस पर मुकदमा दर्ज किया जा सका है लेकिन अनेक मामले सामने ही नहीं आ पाते हैं। इन 35 मामलों में 29 महिलाओं को बचाया गया जिसमें 21 नाबालिक लड़कियां थी। जबकि 2018 में मानव तस्करी के 29 मुकदमे और 2017 में 20 मुकदमे दर्ज हुए थे।
उत्तराखण्ड पुलिस द्वारा एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग स्पेशल पुलिस का गठन किया गया है जिसमें 200 से अधिक पुलिस अधिकारी और कर्मचारी शामिल किए गए हैं। इन टीमांे को विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इसका असर यह रहा कि 2020 में 9 मुकदमें दर्ज किए गए जिसमें 14 पुरुष और 5 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है। 2016 में 16 एफआईआर दर्ज की गई जिसमें 29 पुरुष और 10 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया। 2022 में 10 मुकदमे हुए जिसमें 19 पुरुष और 17 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया।
बलात्कार के मामलों में भी बढ़ोतरी
विगत तीन वर्षों के आंकड़ांे अनुसार 2021 में 62 बलात्कार के मामले 9 पर्वतीय जनपदों में सामने आए थे। 2022 में ये मामले बढ़कर 103 हो गए। पुलिस विभाग से जारी आंकड़ों के अनुसार अल्मोड़ा में 32, बागेश्वर में 17, चमोली में 7, चम्पावत में 14, पोैड़ी गढ़वाल में 47, पिथौरागढ़ में 33,रूद्रप्रयाग जिले में 1 तथा टिहरी में 40, उत्तरकाशी जिले में 30 मामले 9 पर्वतीय जिलों के विभिन्न थाना क्षेत्रों में दर्ज हुए हैं। पहाड़ी जिलों में टिहरी जिला ऐसा रहा है कि जिसमें वर्ष 2023 में बलात्कार के मामले पिछले दो वर्षों में लगातार बढ़े हैं। 2023 में टिहरी जिले में 19 मामले दर्ज हुए हैं जबकि 2022 में 15 व 2021 में 6 मामले ही सामने आए थे।
अश्लीलता का हुआ विस्तार
वर्ष 2021 से लेकर 2023 तक पहाड़ी जिलों में अश्लीलता से जुड़े अपराध के 161 मामले दर्ज हुए हैं। जनपद वार आंकड़ों के अनुसार अल्मोड़ा जिले में 19, बागेश्वर में 14, चमोली में 21, चम्पावत में 17, पौड़ी गढ़वाल में 21, पिथौरागढ़ में 29, रूद्रप्रयाग में 3 टिहरी में 22 और उत्तरकाशी में 15 मामले दर्ज हो चुके हैं।
‘दि संडे पोस्ट’ ने वर्ष 2022 में अपने अंक 16 में टिहरी जिले के मुख्य द्वार तपोवन में बढ़ती रिसोर्ट होटल संस्कृति के दुष्परिणाम को लेकर ‘‘थाईलैंड बनता तपोवन’’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था, जिसमें तपोवन क्षेत्र में बड़ी तादात में बाहरी प्रदेशों के लोगों द्वारा स्थानीय लोगों के होटल रिसोर्ट को लाखों रूपए सालाना किराए पर लेकर संचालित करने के साथ ही भू-कानून की आड़ में महज 250 वर्ग गज जमीन खरीद कर पर्यटन के नाम पर अपसंस्कृति को फैलाने का खुलासा किया गया था। इस तरह के नए पर्यटन क्षेत्रों में हर तरह की अय्याशी जिसमें शराब, नशे के साथ-साथ देह व्यापार को भी बढ़ावा दिया जाता है। चर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड भी इसी अपसंस्कृति रिसोर्ट के कारण ही हुआ जिसमें पौड़ी की एक बालिका को रिसोर्ट संचालक द्वारा देह व्यापार के लिए दबाव बना रहा था लेकिन अंकिता भंडारी के इनकार करने पर उसकी हत्या कर दी गई।
आज यही अपसंस्कृति उत्तराखण्ड के शांत पहाड़ी जिलों के नगरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में कुकुरमुत्ते की तरह से उग आए रिसोर्ट होटल यहां तक कि होम स्टे योजना में भी देखने को मिल रही है। ग्रामीण और दुरस्थ क्षेत्रों में पर्यटन के नाम पर पहाड़ों में एक नई संस्कृति पनप चुकी है जिससे क्षेत्र में अशांति का माहौल भी बन रहा है।
दंगों और बलवों से अशांत होते पहाड़
मैदानी जिलों की तरह दंगा, बलवा और हंगामा जैसी वारदातें पर्वतीय जिलों में भी पैर पसार चुकी है, जबकि पहाड़ी जिले पूर्व में इस तरह के मामलों से अछूते थे या नाम मात्र के मामले होते थे लेकिन अब पहाड़ी जिलों के आंकड़ों को देखें तो 174 मामले पिछले तीन वर्षों में दर्ज हो चुके हैं। जिलों की बात करें तो पौड़ी गढ़वाल में 39, पिथौरागढ़ में 30, अल्मोड़ा में 26, टिहरी जिले में 24, उत्तरकाशी में 15 बागेश्वर में 6 चम्पावत में 12 और चमोली में 15 मामले तथा रूद्रप्रयाग जिले में 7 मामले विगत तीन वर्षों में दर्ज हुए हैं।
ज्यादातर ऐसे मामले धार्मिक रूप में सामने आए हैं जिसमें दूसरे धर्म के युवकों द्वारा स्थानीय निवासियों की युवतियों के साथ अश्लील हरकतों यहां प्रेम-प्रंसग के कारण हुई हैं। कई मामले दूसरे धर्म के पूजा स्थलांे के लिए अतिक्रमण और कब्जा करके निर्माण के मामले में भी देखने को मिले हैं। चमोली जिले के नंदा घाट और उत्तरकाशी जिले के पुरोला में हुए बलवे और विवाद के यही कारण माने जा रहे हैं। पुरोला के मामले में तो भारी विवाद हो चुका है और बाहरी राज्यों के खास तौर पर मुस्लिम धर्म के कारोबारियों का बहिष्कार और उनसे किराए की दुकानें खाली करवाए जाने की घटना भी हो चुकी है। इसी तरह से चमोली के नंदा घाट मामले में भी मुस्लिम युवक द्वारा स्थानीय युवती से अश्लील ईशारे करने का मामला है। इसमें भी आरोपी युवक जो कि उत्तर प्रदेश से नंदा घाट में कारोबार करने के लिए आया था। इस पर स्थानीय लोगों का भारी आक्रोश देखने को मिला। हालांकि पुलिस द्वारा आरोपी युवक के खिलाफ कार्यवाही करके उसे जेल भेज दिया गया है। पहाड़ी जिलों में 174 मामले पिछले तीन वर्षों में दर्ज होना साफ बताता है कि उत्तराखण्ड के पहाड़ बलवे, दंगे और हंगामे की वारदातों से अछूते नहीं रह गए।
साइबर क्राइम में भी अव्वल
जैसे-जैसे संचार तकनीक बढ़ रही है वैसे-वैसे अपराध भी बढ़ रहे हैं। प्रदेश के पहाड़ी जिलों के निवासी मैदानी जिलों की तुलना में ज्यादा जागरूक नहीं हैं। खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में साइबर अपराध का शिकार बढ़ना बड़ी चिंता का विषय बन चुका है। पहाड़ के 9 जिलों में सूचना तकनीकी अपराध (साइबर क्राइम) के 187 मामले दर्ज हुए हैं जो अपने आप में चौंकाते हैं। आंकड़ों के अनुसार 2021 से लेकर 2023 तक अल्मोड़ा जिले में 26, बागेश्वर में 2, चमोली में 18, चम्पावत में 26, पोैड़ी गढ़वाल 28, पिथौरागढ़ जिले में 24, रूद्रप्रयाग 13 तथा टिहरी जिले में 34 व उत्तरकाशी जिले में 16 मामले सूचना तकनीक अपराध के दर्ज हो चुके हैं। इन आंकड़ों में सुखद बात यह है कि विगत तीन वर्षों में इस तरह के अपराधों में भारी कमी भी देखने को मिली है। कम से कम पहाड़ के निवासी जागरूक हो रहे हैं।
प्रदेश में अपराध कहां और क्यों बढ़ रहे हैं इस पर चिंतन की जरूरत है। आपराधिक तत्वों को चिन्हित करने के लिए राज्य में सत्यापन अभियान चलाया जा रहा है। देवभूमि के लोग शांतिप्रिय हैं। यदि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग आकर यहां की शांत वादियों में अशांति फैलाएंगे और कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने का प्रयास करेंगे तो इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएग। इसलिए महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर नियंत्रण हेतु ‘गौरा शक्ति’ ऐप को अधिक सक्रिय किया जा रहा है और धर्मांतरण, लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे मामलों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है।
पुष्कर सिंह धामी
मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड
‘बढ़ते अपराधों के लिए परिवार और सोशल मीडिया भी जिम्मेवार’
कुसुम कंडवाल, अध्यक्ष राज्य महिला आयोग
ऐसा नहीं है कि राज्य गठन के बाद अपराध, खास तौर से महिलाओं पर अपराध हो रहे हैं, उत्तर प्रदेश के समय से ही अपराध होते रहे हैं। इन 24 वर्षों में अपराध घटे हैं यह भी सच है। जब से मैंने आयोग का कामकाज सम्भाला है तब से हर रोज मेरे सामने महिलाओं के ऊपर हो रहे उत्पीड़न, मारपीट, घरेलु हिंसा और लड़कियों के प्रेमी के साथ घर से भागने जैसे मामले आ रहे हैं। इन मामलों में सबसे बड़ी बात यह सामने आई है कि परिवार की अनदेखी और सोशल मीडिया भी एक सबसे बड़ा कारण है। कई मामलांे में आयोग ने पाया कि घर से भागने वाली युवती या बालिका जिनमें नाबालिगों की संख्या ज्यादा है, सोशल मीडिया से ज्यादा जुड़ी रही हैं। इसमें अपने प्रेमी या दोस्त के साथ लम्बी-लम्बी बातें करने में ही ज्यादा समय गुजारती रही हैं। उनके परिवार के लोग इस बात से अनजान रहते हैं कि उनकी पुत्री किससे बात कर रही है और क्यों लम्बे समय तक बात कर रही है। कई मामलांे में परिवार के लोगों को पता होने के बावजूद वे इस पर ध्यान नहीं देते। जब बेटी कहीं चली जाती है तो तब वे परेशान होकर पुलिस और महिला आयोग के पास शिकायत लेकर आते हैं।
दूसरी बात इससे भी ज्यादा गम्भीर है। कुछ सालांे में प्रदेश, खास तौर पर पहाड़ी जिलों में प्रेम-प्रसंग के मामले तेजी से बढ़े हैं। जिसमें सोशल मीडिया सबसे बड़ा माध्यम बना है। बाहरी प्रदेशों के युवाओं से पहाड़ की बालिकाओं की दोस्ती हो जाती है और फिर उसका नाजायज फायदा उठाकर उनके साथ गलत होता है। ऐसे कई मामले हो चुके हैं जिसमें बालिका के किसी के साथ प्रेम-प्रसंग बने और उसको बहला-फुसला कर भगा ले गया। पौड़ी में एक शिक्षक द्वारा नाबालिक बालिका को भगा कर ले जाने का मामला भी इसी तरह का है। पहले हमारे प्रदेश में इस तरह के मामलों को सामाजिक डर के कारण छुपा दिया जाता था और इसकी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती थी, लेकिन अब इस तरह के मामले छुपाए नहीं जाते। लोग खुलकर लड़की के भागने या भगाए जाने के मामले पुलिस में रिपार्ट दर्ज करा रहे हैं। इसका एक फायदा यह भी है कि ऐसे अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही हो रही है जिससे भविष्य में वह किसी अन्य बालिका के साथ इस तरह का अपहरण नहीं कर पाएगा।
ऐसा ही बलात्कार के मामले में भी देखा जा रहा है। पहले सामाजिक भय के चलते इन मामलों को दबा दिया जाता था लेकिन अब इस पर रिपोर्ट दर्ज करवाने में पीड़ित युवती के साथ उसके परिवार के लोग भी खड़े होकर अपराधी के खिलाफ कार्यवाही की मांग कर रहे हैं। यह भी एक बड़ा बदलाव है। अब इस तरह के रेप आदि के मामले भी घट रहे हैं जो अच्छी बात है।
इस प्रदेश में एक और चलन सामने आ रहा है वह है लिव इन रिलेशनशिप का। कई ऐसे मामले भी आए हैं जिसमें लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले प्रेमी जोड़ों के बीच अनबन के कारण उसका नुकसान महिला को ही हुआ है। यह प्रदेश की सामाजिक व्यवस्था में ऐसा बदलाव है जिसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। प्रदश में यूसीसी के लोग होने से महिलाओं की सुरक्षा बढ़ेगी। कम से कम लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले प्रेमी जोड़ों को इसका फायदा होगा। अगर उसके पार्टनर ने उसको धोखा दिया तो उसके खिलाफ कार्यवाही होगी। उनको अपना रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ेगा। इससे कम से कम महिला को एक सुरक्षा कवच मिलेगा। महिलाओं की सुरक्षा के लिए आयोग कई अवरनेंश प्रोग्राम चलाता है। मैं हर कार्यक्रम में एक ही बात कहती हूं कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा और सबसे पहला माध्यम अपना परिवार होता है। परिवार के लोगों को अपने बच्चांे चाहे बालक हो या बालिका दोनों पर पूरा ध्यान देना चाहिए। उनकी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। उनके कौन मित्र है, किनके साथ उनका ज्यादा समय गुजर रहा है वे किससे फोन पर या सोशल मीडिया पर जुड़े हैं, इनमें कितनी देर तक बात कर रहे हैं यह कम से कम परिवार के लोगों को देखना ही होगा। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम अपने बच्चों की स्वतंत्रता को छीन लें लेकिन अगर हम अपने बच्चों का पूरा ध्यान रखें तो भविष्य में हमें किसी परेशानी का सामना तो नहीं करना पड़ेगा।
बात अपनी-अपनी
ये कोई अपराध होते हैं, क्या पूछते रहते हो, अपराध कभी रुकते नहीं हैं, अपराधों पर वर्क आउट क्या है इसे भी देखिए। हमारा वर्क आउट सबसे बेहतर है, ये भी तो देखिए। अधिकतर मामलों में हमने अपराधियों को पकड़ा है, कुछ दो-चार मामले रह गए हैं उनको भी वर्क आउट कर लिया जाएगा।
करन सिंह नागन्याल, पुलिस महानिरीक्षक गढ़वाल
पिथौरागढ़ जिला नेपाल सीमा से लगा हुआ है और दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण इस जिले में कई चुनौतियां भी हैं। यहां माइग्रेशन होता है, सर्दियों-गर्मियों में होता ही है। पहाड़ के लोग आज भी अपने घरों में ताला लगाने से परहेज करते हैं। खुले पड़े घरों मंे चोरी आसानी से हो जाती है। ज्यादातर इनमंे अपराधी नेपाल के नागरिक ही होते हैं जो कामकाज के लिए इस जिले में आते हैं और फिर चले जाते हैं। पुलिस अपराधियों को पकड़ कर उनके खिलाफ कार्रवाई करती रहती है। इसी तरह अपहरण के मामले में भी है जिसमें कोई युवती अपने प्रेमी या कोई और के साथ बरगला कर भाग जाती है और उसके परिवार के लोग अपहरण की रिपोर्ट लिखवाते हैं, इसलिए ऐसे मामले हो जाते हैं। अन्य अपराधों में भी यही होता है। पुलिस का काम अपराध को रोकना है और अगर अपराध हुआ है तो अपराधी को कानून के अनुसार सजा दिलवाना है।
रेखा यादव, पुलिस अधीक्षक, पिथौरागढ़
प्रदेश में कानून-व्यवस्था बहुत बढ़िया और चुस्त-दुरुस्त है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में प्रदेश को अपराध मुक्त किया जा रहा है। कांग्रेस की सरकारों के समय अपराधों को दबा दिया जाता था लेकिन हमारी सरकार में अपराध और अपराधियों को बक्शा नहीं जाता। कितना भी बड़ा और रसूख वाला अपराधी हो उसे जेल में डाल दिया गया है। प्रदेश को अपराधियों और अपराध से मुक्त करना ये हमारी सरकार का संकल्प है।
मनवीर सिंह चौहान, मुख्य प्रवक्ता, भाजपा उत्तराखण्ड
पटरी से नहीं उतरी है वेंटिलेटर पर है प्रदेश की कानून व्यवस्था, जो अपराध देवभूमि में कभी नहीं होते थे वह भाजपा की डबल इंजन और प्रचंड बहुमत की सरकारों में हो रहे हैं। दिनदहाड़े हत्या, बलात्कार, लूट और इन अपराधों में सत्तारूढ़ दल के नेता, कार्यकर्ताओं की संलिप्तता स्थिति को और गंभीर बना रहे हैं। पहले भर्ती घोटाले में भाजपा के पदाधिकारियों का मुख्य आरोपी के रूप में नाम आया फिर महिला अपराध के क्षेत्र में नाबालिग बच्चियों के साथ बड़े-बड़े नेताओं द्वारा किए गए दुष्कर्म की खबरों ने उत्तराखण्ड को दहला दिया है। उत्तराखएड की शांत वादियों में पहले कभी साम्प्रदायिक उन्माद की कोई जगह नहीं थी अब उन साम्प्रदायिक झगड़ों में भी भाजपा से जुड़े हुए संगठन के नेताओं के नाम प्रमुख तौर पर सामने आ रहे हैं। धामी सरकार के एक मंत्री पर आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच की तलवार लटक रही है। अपराधियों को संरक्षण देकर भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने ही अपने कार्यकर्ताओं को अपरोक्ष रूप से यह संदेश देने का काम किया है कि जो चाहे कर लें, सरकार तो अपनी है ही, बचा लेगी।
गरिमा मेहरा दसौनी, मुख्य प्रवक्ता, उत्तराखण्ड कांग्रेस

