आठ माह पूर्व ही सूबे में निकाय चुनाव सम्पन्न हो जाने चाहिए थे, लेकिन चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही कोई न कोई ऐसी अड़चन आ जाती है जिससे चुनाव तिथि आगे सरक जाती है। सरकार के समक्ष निकाय चुनाव कराने के साथ ही कई ऐसी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं जिनका समाधान टेढ़ी खीर साबित हो रहा है
उत्तराखण्ड में अब नगरीय निकाय चुनावों को लेकर गर्माहट शुरू होने लगी है। हालांकि अभी नगरीय निकायों को लेकर कोई तारीख तय नहीं हुई है। सरकार 25 अक्टूबर 2024 से पहले निकाय चुनाव कराने का वायदा हाईकोर्ट में कर चुकी है। इस बीच विधानसभा में निकायों से सम्बंधित विधेयक पारित होने के बजाय प्रवर समिति को चला गया है। उधर दूसरी तरफ इस बीच कई नए नगरीय निकायों को बनाने की सरकार घोषणा कर चुकी है। इन सभी राजनीतिक सरगर्मियों के बीच उत्तराखण्ड के नगरीय निकायों की वास्तविक स्थितियां चिंताजनक बनी हुई हैं। इसके अलावा उत्तराखण्ड के शहरों की धारण क्षमता पर भी सवाल उठने लगे हैं। जिसे देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को चारधाम समेत तीर्थाटन व पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों की धारण क्षमता का आकलन करने के निर्देश अधिकारियों को देने पड़े हैं।
पहाड़ के शहरों व कस्बांे की तस्वीर कुछ इस तरह से है कि यहां संसाधन व सुविधाएं तो सीमित हैं लेकिन वहीं गांव देहात के लोग आशा और उम्मीद की किरण लिए शहरों में आते हैं। मगर हर शहर की अपनी सीमा होती है। शहरों में बढ़ती जनसंख्या से पूरी व्यवस्था चरमरा रही है। उत्तराखण्ड के गांवों से भी लोग इस उम्मीद के साथ शहरों की तरफ निकासी कर रहे हैं कि यहां आने से जीवन में आर्थिक समृद्धि आती है। वे अब सुख-सुविधा के लिए शहरों में बसने की आशंका पालने लगे हैं। उन्हें अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य व बेहतर रोजगार चाहिए। वहीं दूसरी तरह शहरी नियोजन की ढुलमुल नीति के चलते शहरों में रहने योग्य समुचित व्यवस्था नहीं बन पा रही है। शहरी निकायों की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक निर्भरता की है। शहरी निकाय आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर नहीं बन पा रहे हैं। नगर निकायों की स्थिति यह है कि प्रदेश सरकार के पास शहरी ढांचे में सुधार के लिए बजट की कमी है जबकि शहरी क्षेत्र में आबादी कई गुना निरंतर बढ़ रही है। प्रदेश के सभी निकाय अपनी जरूरतों के लिए केंद्र व राज्यों के अनुदान पर आश्रित हैं। बढ़ती शहरी आबादी की आकांक्षाओं से पार पाना नगरीय निकायों की एक बड़ी चुनौती है, लेकिन इन चुनौतियों से पार पाने की तैयारियां बहुत कम हैं।
नगर निकायों की आमदनी व खर्च में भी काफी असमानता है। कर्मचारियों का खर्च निकालना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। प्रदेश के स्थानीय निकायों की वित्तीय सेहत बेहद खराब चल रही है। शहरों को रहने योग्य बनाने की चुनौती भी अपनी जगह बनी हुई है। नागरिकों को बेहतर सुविधाएं देना भी एक बड़ा काम है। लेकिन नगर इन स्थितियों को पूरी करने की स्थिति में नहीं हैं। सरकारी मदों के सहारे बुनियादी ढांचे तो कम से कम खड़े नहीं किए जा सकते जब तक कि आर्थिक रूप से निकाय खुद सशक्त न हो जाएं। इसके लिए निकायों की अपनी आमदनी का होना बहुत जरूरी है। शहरीकरण की रफ्तार तेजी से आगे बढ़ रही है। शहरी आबादी की आकांक्षा और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्थानीय निकायों को इन्हें पूरा करने के साथ ही अपना आधारभूत ढांचा मजबूत भी करना है। शहरों के पास वित्तीय संकट तो है ही, वहीं इसके नियंताओं के पास इच्छाशक्ति की भी कमी दिखाई देती है।
नगरीय निकायों की दृष्टि से देखें तो राज्य में निकायों की संख्या 102 है। जिसमें प्रदेश में अभी 9 नगर निगम हैं। 44 नगरपालिका परिषद हैं। 49 नगर निकाय हैं। अभी दर्जन भर और निकाय बनाने की सरकार घोषणा कर चुकी है। इन निकायों को केंद्रीय आयोग, राज्य आयोग से अनुदान मिलता है। पहले विकास प्राधिकरण, जल संस्थान व ऊर्जा निगम की आय में भी इसकी हिस्सेदारी थी। लेकिन ये विभाग अब इससे छीने जा चुके हैं। केंद्र व राज्य वित्त आयोगों से जो अनुदान राशि मिलती है, उसका बड़ा हिस्सा वेतन, भत्तों व पेंशन में खर्च हो जाता है। शहरी निकाय स्वयं की आय के स्रोत पैदा करने में सक्षम नहीं बन पा रहे हैं। पहले जलापूर्ति, सीवरेज, विद्युत आपूर्ति, फायर सर्विस, भवन प्लान जैसे कार्य शहरी निकायों के जिम्मे थे लेकिन एक तरफ शहरों का विस्तार होता रहा वहीं दूसरी तरफ आय के ये महत्वपूर्ण स्रोत उनके हाथ से फिसलते रहे। वर्तमान में संपत्ति कर, दुकान किराया, तहबाजारी, विज्ञापन शुल्क जैसे कार्य ही आय के मुख्य स्रोत हैं। आय के स्रोत कम होने के बाद भी निकाय अपनी आय के लिए आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। पार्किंग स्थल, बारातघर, कॉम्प्लेक्स, स्थाई दुकानों का निर्माण आदि नगरीय निकायों के वित्तीय संसाधन हो सकते हैं। बशर्ते इस पर तेजी से काम किया जाए। दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने भी कहा है कि सुधारात्मक प्रदर्शन के आधार पर ही वह निकायों को फंड जारी करेगी।
प्रदेश के छोटे-बड़े सभी नगरों में नियोजित तरीके से विकास नहीं हो रहा है। इसमें आबादी का दबाव बढ़ रहा है। अनियोजित तरीके से भवनों का निर्माण हो रहा है। वहीं शहरी निकायों में स्टाफ की भी भारी कमी है। हालात यह हैं कि पालिकाओं में क्लर्क व सफाई निरीक्षकों को अधिशासी अधिकारी(ईओ) का काम करना पड़ रहा है। शहरी विकास निदेशालय के पास स्टाफ की भारी कमी है। कई सालों से भर्तियां लटकी पड़ी हुई हैं। नगर पालिकाओं में अधिशासी अधिकारियों की तीन श्रेणियां हैं। इन तीनों श्रेणियों के साथ ही नगर पंचायत के अधिशासी अधिकारियों के प्रदेश में 105 पद सृजित हैं। इनमें से 75 पद खाली पड़े हुए हैं। प्रदेश के सभी निगमों, निकायों में 853 पद सृजित हैं लेकिन 644 पद खाली पड़े हुए हैं। इसी तरह शहरी विकास निदेशालय के अलग-अलग संवर्ग में 70 में से 30 पद खाली पड़े हुए हैं। वहीं नगर निकायों की आमदनी व खर्च में काफी असमानता है। कर्मचारियों का खर्च निकालना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। केंद्र व राज्य वित्त आयोगों से जो अनुदान राशि मिलती है, उसका बड़ा हिस्सा वेतन, भत्तों व पेंशन में खर्च हो जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि व्यवस्थित शहर व निकायों को सक्षम बनाना बड़ी चुनौती तो है ही लेकिन इसके लिए नियोजित विकास के साथ ही निकायों को आय के स्रोत बढ़ाने के लिए तेजी से कदम उठाने होंगे।
यही हाल कूड़ा निस्तारण को लेकर भी है। अधिकांश शहरों में कूड़े के प्रतिदिन के निस्तारण के लिए समुचित व्यवस्था नहीं है। अकेले उत्तराखण्ड के देहरादून शहर में 450 मीट्रिक टन कूडा निकलता है जिसमें से मात्र 250 मीट्रिक टन का ही अच्छे से निस्तारण हो पाता है। अगर पिथौरागढ़ नगर जिसे अब नगर पालिका से नगर निगम बनाने का निर्णय सरकार ले चुकी है, उसकी स्थिति यह है कि यहां पिछले पांच दशक से ट्रंचिंग ग्राउंड की 27 नाली भूमि पर 42 हजार टन कूड़ा जमा पड़ा है। रिसाइकिलिंग प्लांट न होने से स्थितियां काफी खराब हो चुकी हैं। पूरे शहर का कूड़ा नगर के पास नैनीपातल के टंªचिंग ग्राउंड में जमा किया जाता है, यहां पर कूड़े का एक पहाड़ ही उग आया है। यही हाल जनपद के गंगोलीहाट, धारचूला, डीडीहाट, बेरीनाग, धारचूला आदि नगरीय निकायों का भी है। दूसरी तरफ पूर्व में जोशीमठ में आए भूधंसाव के बाद पर्वतीय क्षेत्र के नगरों की धारण क्षमता को लेकर सवाल उठने लगे हैं, सरकार भी इसको लेकर सक्रिय हो चुकी है। यह देखा जाना जरूरी है कि ये नगर कितना दबाव झेलने में सक्षम हैं। सरकार ने जिन 15 नगरों की धारण क्षमता का आकलन करने के लिए नगर चिन्हित किए हैं उनमें नैनीताल, अल्मोड़ा, चम्पावत, धारचूला, रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, मसूरी, नई टिहरी, श्रीनगर, पौड़ी, देवप्रयाग, गैरसैंण, गोपेश्वर, कर्णप्रयाग, जोशीमठ शामिल हैं। इन नगरों में जियोलॉजिकल, जियोटेक्निकल, जियोफिजीकल जांच होगी। ढलान स्थिरीकरण, आदि सर्वे भी होंगे। इससे पता लगाया जाएगा कि इन नगरों में अभी कितना बोझ है और इनकी भार क्षमता कितनी है। कुल मिलाकर चुनौती यह है निकाय कैसे आत्मनिर्भर बने।
आरक्षण से उलझा निकाय चुनाव
हाईकोर्ट में पच्चीस अक्टूबर से पहले निकाय चुनाव कराने का दावा करने के बाद भी उत्तराखण्ड के 99 नगर निकायों के चुनाव फंसे हुए नजर आ रहे हैं। विधानसभा में निकायों से संबंधित विधेयक पारित होने के बजाए प्रवर समिति को चला गया है। प्रवर समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही अब चुनाव की यह गाड़ी आगे बढ़ पाएगी। इस मामले में शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का कहना है कि चूंकि अब मामला प्रवर समिति के पास चला गया है, इसलिए समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही आगे का निर्णय लिया जाएगा। दरअसल, निकायों में एकल सदस्यीय समर्पित आयोग की संस्तुति के हिसाब से ओबीसी आरक्षण लागू किया जाना है। इसके लिए सरकार सदन में नगर पालिका और नगर निगमों के एक्ट में संशोधन का एक्ट लेकर आई थी।
इस एक्ट के पारित होने के दौरान विधायकों के विरोध के चलते इन्हें प्रवर समिति को भेज दिया गया है। प्रवर समिति एक माह में अपनी रिपोर्ट देगी, जिसके बाद दोबारा विशेष सत्र में विधेयक पास होंगे। विधेयक पास होने के बाद चुनाव होने तक की प्रक्रिया में भी एक से डेढ़ माह समय की जरूरत होगी। विधेयक पास होने के बाद सभी जिलाधिकारी अपने जिले के निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर नोटिफिकेशन जारी करेंगे। इस पर आपत्तियां व सुझाव मांगे जाएंगे। उनकी सुनवाई पूरी होने के बाद डीएम अपनी रिपोर्ट शासन को भेजेंगे। शासन राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव की संस्तुति भेजेगा। इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग नोटिफिकेशन जारी करेगा। तब जाकर चुनाव होंगे। इन सभी प्रक्रियाओं में समय लग सकता है। बहरहाल , 25 अक्टूबर तक की चुनाव की समय सीमा फिर खतरे में नजर आ रही है।
सरकार ने चुनाव के मामले में कोर्ट में ही अपना पक्ष रखा है। जिसमें कहा गया कि राज्य में तय समय के भीतर निकाय चुनाव लोकसभा चुनाव की वजह से नहीं हो पाए। क्योंकि राज्य का प्रशासन लोकसभा चुनाव कराने में व्यस्त था। उसके बाद मानसूनी वर्षा शुरू हो गई और आधा प्रशासन आपदा प्रबंधन तैयारियों में व्यस्त रहा। ऐसी परिस्थिति में राज्य निकाय चुनाव कराने में सक्षम नहीं था। राज्य अभी भी आपदा की मार झेल रहा है। स्थानीय निकायों का कार्यकाल दिसंबर 2023 में समाप्त हो गया है। सरकार ने निकायों के संचालन को छह माह के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिए थे। जून 2024 में प्रशासकों का छह माह का कार्यकाल भी समाप्त हो गया।
राज्य सरकार ने चुनाव कराने के बजाय प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ा दिया। अब सरकार ने निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के आठ माह बीत जाने के बाद कई नगर निगम व नगर पंचायतों की घोषणा कर दी है। जो राज्य निर्वाचन आयोग पंचायत व स्थानीय निकाय के लिए परेशानियां खड़ी कर सकता है। जबकि यह प्रक्रिया दिसंबर 2023 से भी छह माह पहले की जानी थी।

