देश की सेवा करते हुए पति के गुम हो जाने का गम और उसके बााद पेंशन आदि के लिए भागदौड़ का जीवन, कुछ ऐसे ही संघर्षों से भरी पड़ी है पहाड़ की महिलाओं की दुखभरी कहानी। ऐसे ही मामलों में कई दशकों बाद महिलाओं को न्याय तो मिला लेकिन वह भी आधा-अधूरा
अगर देखा जाए तो देरी से मिला न्याय या हक एक तरह से व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन ही माना जा सकता है। यह राइट टू जस्टिस, राइट टू अपील, राइट टू लाइफ, राइट टू प्रिसंपल ऑफ नेचुरल जस्टिस जो भारतीय संविधान की अवधारणा रही है, के खिलाफ जाता है। कुछ ऐसा ही मामला पिथौरागढ़ जनपद के ग्राम खरथ्यूड़ा, ग्राम पंचायत रज्यूड़ा, गौरीहाट (झूलाघाट) की विशना देवी वाले मामले में भी हुआ है। विशना देवी को फैमली पेंशन व डैथ कम रिटायरमेंट ग्रेचुएटी का अपना हक पाने में 48 साल का समय लग गया। जब उन्हें यह हक मिला तो वह भी आधा-अधूरा। अपना पूरा हक पाने की विशना की लड़ाई अभी भी जारी है।
उल्लेखनीय है कि विशना देवी के पति स्वर्गीय सोबन 61 इंजीनियर रेजीमेंट राजस्थान में हवलदार पद पर कार्यरत थे। अचानक 11 अगस्त 1976 को अपनी यूनिट से वह लापता हो गए। इस केस पर लगातार पैरवी होती रही, जिसके परिणाम स्वरूप इन्हें इनका हक मिल पाया। लेकिन कानूनन उन्हें जो हक मिलना चाहिए था, वह अभी भी नहीं मिल पाया है। इसकी वजह यह है कि विशना देवी के पति 11 अगस्त 1976 को लापता होते हैं लेकिन इनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट 3 अपै्रल 1993 में लिखी जाती है। जबकि ग्राम प्रधान के द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र में भी इनके लापता होने का उल्लेख वर्ष 1976 है। लेकिन बाद में काफी लिखा-पढ़त के बाद जब इनकी पेंशन स्वीकृत होती है तो वह वर्ष 2014 से स्वीकृत होती है। जबकि कानून पुलिस में लिखी गयी गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर विशना देवी को 3 अपै्रल 1993 से पेंशन मिलनी चाहिए। यानी अभी भी विशना देवी को 21 साल की पेंशन व ग्रेच्युटी से वंचित किया गया है। पूर्व सैनिकों के हितों की रक्षा के लिए काम करते आ रहे सेवानिवृत्त ले. कर्नल एस.पी. गुलेरिया विशना देवी प्रकरण को लगातार उठा रहे हैं ताकि विशना देवी को उसका हक मिल सके। इस तरह का यह कोई पहला मामला नहीं है। इसी तरह का एक मामला कुसुम का भी था। कुसुम के पिता मथुरा दत्त जो 2006 में लापता होते हैं। तमाम कोशिशों के बाद पेंशन 2014 में स्वीकृत होती है। इनकी तो लापता के दो साल बाद वर्ष 2008 में एफ.आई.आर. लिखी जाती है। इसलिए जब पेंशन व अन्य धनराशि में इसे दो साल का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।
सवाल यह है कि सालों तक पेंशन के मामले न निपटने से पूर्व सैनिकों के परिवारों को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है। उनकी आजीविका भी प्रभावित होती है। बच्चों की शिक्षा, शादी जैसे महत्वपूर्ण कार्य समय पर संपन्न नहीं हो पाते हैं जिससे कई तरह की त्रासदियों का सामना परिवार के हर सदस्य को करना पड़ता है। पेंशन व धनराशि पाने में इन परिवारों को वर्षों लग जाते हैं। इनका बचा- खुचा पैसा भी आवश्यक कार्यों की भागादौड़ी में खर्च हो जाता है। आज भी भारतीय सेना में कार्यरत कई सैनिक परिवार कई कारणों के चलते समस्याओं से दो-चार हो रहे हैं। दशकों गुजर जाने के बाद भी उन्हें समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है। जबकि भारतीय संविधान की सामाजिक व आर्थिक न्याय की अवधारणा से आज भी आम आदमी कोसों दूर खड़ा है। आज भी सैनिकों की समस्याओं से सम्बंधी हजारों मामले सैन्य अदालतों में अटके पड़े हैं। समय पर समस्याओं के निस्तारण न होने से हजारों सैनिक व उनके परिवारों को समय पर पेंशन, भत्ते व अन्य देयकों का भुगतान नहीं हो पाता हैं। यह एक तरह से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के सामाजिक व आर्थिक समानता के अधिकार का भी उल्लघंन है। विसना देवी का मामला हो या फिर अन्य सैनिक परिवारों के इस तरह के मामलों की पैरवी ले. कर्नल गुलेरिया लगातार कर रहे हैं। वह पिछले दो दशक में 3770 से अधिक केसों का निस्तारण करने में सफल रहे हैं जो 10 से 50 साल पुराने हैं। इस तरह वह कई पूर्व व युद्ध विधवाओं को उनका हक दिला चुके हैं। 180 से अधिक असाधारण केसों का निपटारा करने में वह सक्षम रहे हैं। वर्तमान में भी वह इस तरह के दर्जनों मामलों की पैरवी कर रहे हैं।
समय पर एफआईआर दर्ज न होना, कानूनी जानकारी का न होना भी न्याय में देरी का कारण बनता है। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई, शादी, छत व रोज के जीवन के आवश्यक कामों के संपादन में इन परिवारों को भटकना पड़ता है। कई तरह की पीड़ाओं व कष्टों से यह दो चार होते हैं। सैनिक परिवारों के हितार्थ जितना संभव हो सकता है। उतना काम मैं कर रहा हूॅं। सैन्य परिवारों को उनकी समस्याओं से निजात दिलाना मेरी प्राथमिकता में है। लेकिन कानून जो हक पूर्व सैनिकों व उनके परिवारों को मिलना चाहिए उसमें देरी ठीक नहीं है।
ले.कर्नल, एस.पी. गुलेरिया, पूर्व दर्जा राज्य मंत्री, सैनिक कल्याण सलाहकार परिषद उत्तराखण्ड

