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भारत के 83 प्रतिशत युवा बेरोजगार

भारत में बढ़ रही बेरोजगारी कोरोनाकाल के बाद से अपने चरम पर आ गई है इसको लेकर हर वर्ष इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन(आईएलओ) और इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट (आईएचडी) के द्वारा एक रिपोर्ट जारी की जाती है जिससे हमें भारत में बेरोजगारी की दर का पता चलता है। इस वर्ष भी आईएलओ और आईएचडी के द्वारा बैरोजगारी की बढ़ती समस्या और इसके बढ़ते प्रतिशत को लेकर रिपोर्ट पेश की गई है। यह रिपोर्ट भारत में भयंकर रूप लेती बेरोजगारी के बारे में स्पष्ट करती है कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसकी बढ़ती जनसंख्या नहीं बल्कि उसकी बढ़ती युवा बेरोजगारी है। इस रिपोर्ट की जानकारी चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर (सीईए) वी अनंत नागेश्वर ने मंगलवार को रिपोर्ट जारी की।

इस रिपोर्ट की मानें तो, सभी बेरोजगार लोगों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी साल 2000 में 54.2% थी, जो बढ़कर 2022 में 65.7% हो गई है। इसके अलावा, वर्तमान में शिक्षित लेकिन बेरोजगारी युवाओं में पुरुषों (62.2%) की तुलना में महिलाएं (76.7%) अधिक हैं। इन सारे डेटा के साथ पेश हुई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘भारत में बेरोजगारी की समस्या युवाओं, विशेषकर शहरी क्षेत्रों के शिक्षित लोगों के बीच तेजी से पैदा हो गई है। जिसका समाधान किया जाना बेहद जरूरी अन्यथा इस समस्या से कई तरह की बड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।’
इस रिपोर्ट में विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2000 से वर्ष 2019 तक युवाओं के रोजगार और अल्प रोजगार में वृद्धि देखी गई है, लेकिन कोविड-19 महामारी के वर्षों के दौरान इसमें गिरावट को देखा गया। वर्ष 2000 में, कुल नियोजित युवा आबादी का आधा हिस्सा स्वरोजगार था, 13% के पास नियमित नौकरियाँ, और शेष 37% के पास आकस्मिक नौकरियाँ थीं। लेकिन अब यह आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। 

अगले दस वर्षों में और बढ़ेगी बेरोजगारी 

इस रिपोर्ट पर काम कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि ‘हमने अपनी सालों की स्टडी में पाया है कि भारत अगले दस सालों में अपने लेबर वर्कफोर्स में 7-8 मिलियन (70-80 लाख) युवाओं को जोड़ेगा, जिसके लिए उन्होंने आने वाले दस सालों के लिए 5 मुख्य की (key) पॉलिसी सेक्टर बताए हैं। जिनमे से पहला है; रोजगार सृजन को बढ़ावा देना। दूसरा; रोजगार की क्वालिटी में सुधार। तीसरा; श्रम बाज़ार में असमानताओं को संबोधित करना। चौथा; सक्रिय श्रम बाजार के स्किल और पॉलिसी दोनों को मजबूत करना। पांचवा; लेबर मार्केट पैटर्न और युवा रोजगार पर ज्ञान की कमी को पाटना।

 

इस रिपोर्ट में ‘सीईए नागेश्वरन’ का कहना है कि ‘यह सोचना ‘सही नहीं’ है कि सरकार को ‘हर सामाजिक या आर्थिक समस्या’ के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। हमें इस मानसिकता से बाहर निकलने की जरूरत है। सामान्य दुनिया में, यह कमर्शियल सेक्टर है, और जो लोग फायदे चाहते हैं, उन्हें भर्ती करने की जरूरत है। हमें सरकार पर पूर्ण रूप से निर्भर नहीं होना चाहिए। यदि हमें जरूरत है तो हमें प्राइवेट सेक्टर की तरह बढ़ना चाहिए इससे बेरोजगारी की समस्या काफी हद तक हल हो सकती है।’
सरकार पर तंज कस्ते विपक्ष  
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत कई विपक्षी नेताओं ने रिपोर्ट को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला है। विपक्ष के लोग एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखते हैं कि ‘हमारे युवा मोदी सरकार की दयनीय उदासीनता का खामियाजा भुगत रहे हैं, क्योंकि लगातार बढ़ती बेरोजगारी ने उनका भविष्य बर्बाद कर दिया है। आईएलओ और आईएचडी की रिपोर्ट निर्णायक रूप से कहती है कि भारत में बेरोजगारी की समस्या गंभीर है। वे रूढ़िवादी हैं, हम बेरोजगारी के ‘टिक टिक बम’ पर बैठे हैं।

 

दूसरे पोस्ट में कहा गया कि ‘मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार यह कहकर प्रिय नेता का बचाव करते हैं। सरकार बेरोजगारी जैसी सभी सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती। खरगे ने आगे रिपोर्ट का भी हवाला दिया और लिखा कि 83% बेरोजगार भारतीय युवा हैं। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 17.5% युवा नियमित काम में लगे हुए हैं। उद्योग और विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत लोगों की हिस्सेदारी 2012 से कुल कार्यबल के 26% पर ही बनी हुई है और  आर्थिक गतिविधियों में शामिल युवाओं का प्रतिशत 2012 में 42% से घटकर 2022 तक 37% हो गया। इसलिए, मोदी सरकार के तहत नौकरियों की भारी कमी के कारण कांग्रेस-यूपीए सरकार की तुलना में कम युवा अब आर्थिक गतिविधियों में शामिल हैं। वही, 2012 की तुलना में मोदी सरकार में युवा बेरोजगारी तीन गुना हो गई है।’

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