वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही की जीडीपी यानी कि सकल घरेलू उत्पाद में 7.5 फीसद की गिरावट दर्ज की गयी है। इस आकड़े के आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भारत में तकनीकी रूप से यह मंदी का समय है।
क्योंकि भारत एक विकाशील देश है और विकसित देश बनने के लिए अभी यह अपनी आर्थिक व्यवस्था को सुधार रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि जीडीपी के ग्रोथ में हर वर्ष थोड़ी वृद्धि जरुर हो।
लेकिन अगर हर तिमाही के आंकड़ों में जीडीपी घटती नजर आएगी तो यह देश के लोगों के भविष्य के लिए चिंताजनक है। सरल भाषा में जीडीपी के बारे में बात करें तो यह किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को कहते हैं। दूसरी तिमाही के आये इन आंकड़ों के आने से पहले कई एजेंसियों ने पांच से दस फीसद की गिरावट का अनुमान लगाया था। जो सही भी साबित हुई।

कोविड-19 की वजह से देश भर में हुए लॉक डाउन के बाद आया यह जीडीपी का पहला आंकड़ा है। दूसरी तिमाही के इन आंकड़ों के आने के बाद सरकार की अर्थव्यवस्था की नीतियों पर प्रश्न उठने शुरू हो गए हैं।
मौजूदा तिमाही में उद्योग क्षेत्र में 2.1, खनन क्षेत्र में 9.1 और विनिर्माण के क्षेत्र में 8.6 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है।
हालांकि कृषि क्षेत्र और मैन्युफ़ैक्चरिंग के क्षेत्र में मामूली वृद्धि दर्ज की गई है। कृषि क्षेत्र में जहाँ 3.4 फ़ीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है तो वहीं मैन्युफ़ैक्चरिंग क्षेत्र में 0.6 फीसद का इज़ाफ़ा हुआ है।
रिज़र्ब बैंक के गर्वनर शक्तिकांत दास ने क्या है ?

रिज़र्ब बैंक के गर्वनर शक्तिकांत दास ने 26 नवंबर को एक आयोजन के दौरान कहा था कि,’भारतीय अर्थव्यवस्था उम्मीद से बेहतर तरीक़े से वापस पटरी पर आ रही है लेकिन यह देखे जाने की ज़रूरत है कि यह रिकवरी टिकी रहे।’
भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार के वी सुब्रमण्यम ने जीडीपी में हुई गिरावट को लेकर कहा है कि,’मौजूदा आर्थिक हालात कोविड-19 के असर की वजह से है। ‘
जीडीपी के आंकड़ों पर कांग्रेस ने अपने ट्वीटर हैंडल से कहा है कि,’अब भारत ‘आधिकारिक’ तौर पर मंदी में है। क्या मोदी सरकार यह बताने की कृपा करेंगे कि उनके पास इस मंदी से उबरने की क्या योजना है।’
क्या है जीडीपी ?
एक वर्ष में चार बार जीडीपी का किया जाता है आकलन
जीडीपी से यह पता चलता है कि सालभर या फिर किसी तिमाही में अर्थव्यवस्था ने कितना अच्छा या ख़राब प्रदर्शन किया है।
भारत में सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस (सीएसओ) साल में चार बार जीडीपी का आकलन करता है। हर साल यह सालाना जीडीपी ग्रोथ के आँकड़े जारी करता है।
यानी हर तिमाही में जीडीपी का आकलन किया जाता है।
इसको दो भागों में बांटा
कॉस्टैंट प्राइस
भारत का सांख्यिकी विभाग उत्पादन व सेवाओं के मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष यानी बेस इयर तय करता है।
इस वर्ष के दौरान कीमतों को आधार बनाकर उत्पादन की कीमत और तुलनात्मक वृद्धि दर तय की जाती है और यही कॉस्टैंट प्राइस जीडीपी है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि जीडीपी की दर को महंगाई से अलग रखकर सही ढ़ंग से मापा जा सके।
वर्तमान प्राइस (करेंट प्राइस)
जीडीपी के उत्पादन मूल्य में अगर महंगाई की दर को जोड़ दिया जाए तो हमें आर्थिक उत्पादन की मौजूदा कीमत हासिल हो जाती है। यानि कि आपको कॉस्टैंट प्राइस जीडीपी को तात्कालिक महंगाई दर से जोड़ना होता है।

