16 जून, 2013 का दिन उत्तराखण्ड के केदार क्षेत्र में भारी तबाही लेकर आया था। भारी वर्षां के चलते केदारनाथ क्षेत्र में 3800 मीटर की ऊंचाई में स्थित चोराबाड़ी ग्लेशियर टूट गया। फिर शुरू हुआ ताबाही का खौफनाक मंजर जिसने सरकारी आंकड़ों के अनुसार 5700 जानें लील ली। गैर सरकारी आंकड़े इस प्राकृतिक आपदा में मारे गए लोगों की संख्या बीस हजार से अधिक बताते हैं। मारे गए लोगों में अधिकांश केदार क्षेत्र के निवासी व देश भर से बाबा केदार के दर्शन करने आए तीर्थ यात्री थे।
 16 जून 2013 से, भारतीय राज्य उत्तराखण्ड और आस-पास के क्षेत्रों में भारी वर्षा हुई, जो सामान्य मानसून के दौरान बेंचमार्क वर्षा से लगभग 375 प्रतिशत अधिक थी।
गौरीकुंड और रामबाड़ा के बाजार वाला कस्बा  पूरी तरह नष्ट हो गया था। जबकि सोनप्रयाग के बाजार शहर को भारी क्षति और जनहानि हुई।
 हालांकि केदारनाथ मंदिर खुद क्षतिग्रस्त नहीं हुआ थाएइसका निचला हिस्सा भूस्खलन के पानी कीचड़ और बोल्डर से भर गया था प्रणामस्वरूप  इसकी परिधि को नुकसान पहुंचा था। केदारनाथ टाउनशिप में मंदिर के आसपास के कई होटलए रेस्ट हाउस और दुकानें नष्ट हो गईं। जिसके परिणामस्वरूप कई लोग हताहत हुए।

जलवायु और पर्यावरणीय कारण

यूटा स्टेट यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन ने सिमुलेशन का उपयोग करते हुए जलवायु विसंगतियों पर प्राकृतिक और मानवजनित प्रभावों का विश्लेषण कियाए और पाया कि (ए) उत्तरी भारत ने 1980 के बाद से जून में तेजी से बड़ी वर्षा का अनुभव किया है और (बी) ऐसी आयामों की छोटी लहरों का चरणबद्ध बंधे ग्रीन हाउस गैसों और एरोसोल की लोडिंग बढ़ाना। इसके अलावाए एक क्षेत्रीय माॅडलिंग निदान ने जून 2013 की घटना में 60 ़90  वर्षा की मात्रा को 1980 के बाद की जलवायु प्रवृत्तियों के लिए जिम्मेदार ठहराया। अब एक बार फिर से एक ऐसा ही हिमनद बनता दिख रहा है।
रुद्रप्रयाग के जिला मजिस्ट्रेट मंगेश घिल्डियाल ने देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट आॅफ हिमालयन जियोलाॅजी के साथ नई झील की कुछ छवियां साझा की हैं।
डाॅ ़ प्रदीप भारद्वाज जो  एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं, एक वीडियो में दावा किया कि यह झील बिल्कुल वैसी ही है जो छह साल पहले केदारनाथ में बाढ़ का कारण बनी थी।
लेकिन विशेषज्ञ इस दावे अलग राय रखते हैंैं। वाडिया इंस्टीट्यूट में हिमालयी ग्लेशियरों के विशेषज्ञ डाॅ ़डीपी डोभाल की माने तो चोराबाड़ी झील का निर्माण फिर से संभव नहीं है क्योंकि यह 2013 में पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। सुप्रा- ग्लेशियल झीलें बनी रहती हैं और एक निश्चित अवधि के बाद गायब हो जाती हैं। सभी सुप्रा -ग्लेशियल झीलें खतरनाक नहीं हैं, लेकिन कुछ हैं, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल के महानिरीक्षक संजय गुंज्याल ने कहा कि उनकी टीम ने हिमनद झील का दौरा किया थाए लेकिन उसे अब तक कुछ भी गंभीर नहीं मिला है।

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