लगभग दो सालों से भारी आर्थिक संकट से जूझ रहे पड़ोसी देश श्रीलंका की जनता ने गत् सप्ताह अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया है। नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके वामपंथी विचारधारा से हैं। यह पहली बार है जब देश की कमान किसी वामपंथी नेता के हाथों में आ गई है
पड़ोसी देश श्रीलंका ने दो साल बाद शांति पूर्व चुनाव कराकर मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को अपना नौवां राष्ट्रपति चुना है। दिसानायके का राष्ट्रपति बनना एक नया परिवर्तन माना जा रहा है वहीं यह पहली बार है जब देश की कमान किसी वामपंथी नेता को मिली है। शपथ लेने के बाद उन्होंने श्रीलंका को नई दिशा देने का प्रण लिया है। दिसानायके ने कहा कि वह अपने देश में ‘‘पुनजार्गरण’’ की शुरुआत करेंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि दिसानायके के राष्ट्रपति बनने के बाद श्रीलंका में बदलावों और सुधारों का नया दौर शुरू हो सकता है। दिसानायके ने चुनाव जीतने के बाद पहली बार देश को संबोधित करते हुए जनादेश का सम्मान करने और शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिए पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का आभार जताया। उन्होंने शपथ ग्रहण करने के बाद कहा, ‘‘मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि मैं लोकतंत्र को बचाने और नेताओं का सम्मान बहाल करने की दिशा में काम करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास करूंगा, क्योंकि लोगों के बीच नेताओं के आचरण को लेकर संदेह है। गौर करने योग्य है कि रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के ऐसे राष्ट्रपति हुए जिन्होंने अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौरान राष्ट्रपति पद संभाल देश का नेतृत्व किया। साल 2022 में गंभीर वित्तीय संकट के कारण व्यापक विरोध-प्रदर्शन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश से भागने और इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
जिसके बाद विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति पद संभाला। आर्थिक सुधार लाते हुए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से राहत पैकेज हासिल किया। लेकिन इस राष्ट्रपति चुनाव में वे जनता की तीसरी पसंद नहीं बन सके। हालांकि राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने जनता के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि ‘राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके, मैं श्रीलंका नामक प्यारे बच्चे को आपकी देखभाल में सौंप रहा हूं, जिसे हम दोनों बहुत प्यार करते हैं।’
21 सितंबर को पहले दौर के हुए राष्ट्रपति चुनाव में दिसानायके ने तीन नामी उम्मीदवारों रानिल विक्रमसिंघे, साजिद प्रेमदासा और नमल राजपक्षे समेत 38 उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में मात दी। जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) पार्टी के नेता दिसानायके इस चुनाव में नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने थे। दिसानायके ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समागी जन बालवेगया (एसजेबी) के साजिथ प्रेमदासा को हराया। दूसरे दौर की मतगणना में प्रेमदासा को करारी हार देते हुए वे राष्ट्रपति चुनाव में विजेता घोषित हुए। साल 1982 के बाद श्रीलंका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि दूसरे दौर के मतगणना के फैसले से राष्ट्रपति चुना गया है।
असल में आर्थिक तंगी से जूझ रहे श्रीलंका में 21 सितंबर को राष्ट्रपति चुनाव हुआ था। इस चुनाव में भले ही भ्रष्टाचार और आर्थिक तंगी से उबारने का वादा करने वाले दिसानायके ने साजिथ प्रेमदासा और रानिल विक्रमसिंघे को चुनावी दौड़ मे पीछे कर दिया लेकिन वे राष्ट्रपति पद तक पहुंचने के लिए 51 फीसदी वोट प्राप्त न कर सके। श्रीलंका कानून के अनुसार किसी भी उम्मीदवार को जीतने के लिए 50 फीसदी से अधिक वोटों की जरूरत होती है। लेकिन पहले दौर में हुए इस चुनाव में दिसानायके 42.31 फीसदी मत ही हासिल कर पाए। उनके प्रतिद्वंद्वी रहे साजिथ प्रेमदासा को 32.76 फीसदी वोट मिले थे। वहीं राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की बात करें तो इस चुनाव में वे तीसरे पायदान पर रहे। किसी भी राष्ट्रपति उम्मीदवार द्वारा 51 फीसदी तक मत हासिल न कर पाने को देखते हुए चुनाव आयोग द्वारा विक्रमसिंघे समेत अन्य उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर दिया। चुनाव आयोग द्वारा 22 सितम्बर को दूसरे राउंड का चुनाव कराया गया। जिसमें अनुरा कुमारा दिसानायके ने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी साजिथ प्रेमदासा को हराते हुए 53 फीसदी मतों से जीत हासिल की।
पिछले चुनाव में जेवीपी पार्टी के सिर्फ तीन सांसद श्रीलंका की पार्लियामेंट तक पहुंचे थे। लेकिन 56 वर्षीय दिसानायके अपने कड़े भ्रष्टाचार विरोधी उपायों और गरीब-समर्थक नीतियों के कारण इस चुनाव में काफी लोकप्रिय नेता बनकर उभरे हैं। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान खुद को सुधारवादी नेता के रूप में जनता के सामने प्रस्तुत किया। खुद को मजदूरों का नेता बताने वाले दिसानायके ने अपनी जीत को लेकर सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि ‘यह जीत हम सभी की है। हम सब मिलकर श्रीलंका के इतिहास को फिर से लिखने के लिए तैयार हैं। सिंहली, तमिल, मुस्लिम और सभी श्रीलंकाई लोगों की एकता इस नई शुरुआत का आधार है। हम जिस नए पुनर्जागरण की तलाश कर रहे हैं, वह इस साझा ताकत और दृष्टि से उभरेगा। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि किसी एक व्यक्ति के काम का नतीजा नहीं है, बल्कि आप हजारों लोगों के सामूहिक प्रयास का नतीजा है।’ आपकी प्रतिबद्धता हमें यहां तक ले आई है और इसके लिए मैं हृदय से आपका आभारी हूं।
विपक्षी दलों ने किया दिसानायके का स्वागत
पहले मतदान के दौर में दिसानायके को जीत की ओर बढ़ते हुए देख विपक्षी उम्मीदवारों द्वारा भी राष्ट्रपति पद के लिए उनका स्वागत किया गया। श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने कहा, मैंने राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के लिए जमकर प्रचार किया था, लेकिन श्रीलंका की जनता ने अपना फैसला कर दिया है और मैं अनुरा कुमारा दिसानायके के लिए उनके जनादेश का पूरा सम्मान करता हूं। प्रेमदासा का समर्थन करने वाले सांसद हर्षा डी सिल्वा ने कहा कि हमने प्रेमदासा के लिए कड़ी मेहनत की, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब यह स्पष्ट है कि दिसानायके श्रीलंका के नए राष्ट्रपति होंगे। डी सिल्वा ने इस जीत के लिए नए राष्ट्रपति को बधाई भी दी। विपक्षी दलों के कई नेताओं का मानना है कि दिसानायके ने ‘नस्लीय या धार्मिक कट्टरता’ का सहारा लिए बिना ‘प्रभावशाली जीत’ हासिल की है।
चीन की ओर झुकाव रखने वाले अनुरा कुमारा दिसानायके को देश विदेश द्वारा बधाई दी जा रही है। भारत द्वारा भी उन्हें शुभकामनाएं दी गई है। श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके को बधाई देते हुए, भारत के प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में आपकी जीत पर बधाई।’ भारत की पड़ोसी पहले नीति और विजन सागर में श्रीलंका का विशेष स्थान है। एक्स पर लिखे गए अपने पोस्ट में प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘मैं अपने लोगों और पूरे क्षेत्र के लाभ के लिए हमारे बहुमुखी सहयोग को और मजबूत करने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हूं।’ श्रीलंका के राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री का धन्यवाद करते हुए कहा कि ‘प्रधानमंत्री मोदी, आपके दयालु शब्दों और समर्थन के लिए धन्यवाद। मैं हमारे राष्ट्रों के बीच संबंधों को मजबूत करने की आपकी प्रतिबद्धता को साझा करता हूं। साथ में हम अपने लोगों और पूरे क्षेत्र के लाभ के लिए सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम कर सकते हैं।’ गौरतलब है कि शपथ लेने के बाद दिसानायके ने कहा था कि श्रीलंका अलग-थलग नहीं रह सकता और उसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है। मैं कोई जादूगर नहीं हूं, बल्कि मेरा उद्देश्य आर्थिक संकट से जूझ रहे देश को ऊपर उठाने की सामूहिक जिम्मेदारी का हिस्सा बनना है।
भारत के लिए दिसानायके की जीत के मायने
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दिसानायके की पार्टी जेवीपी श्रीलंका में भारत के प्रभाव को कम करने के लिए आंदोलन भी कर चुकी है। जेवीपी का सिंहली राष्ट्रवादी आचरण देश के अल्पसंख्यक समुदायों जैसे तमिलों और मुस्लिमों के खिलाफ भी रहा है। लेकिन ये पुरानी बातें हैं। अब उसकी सोच में बदलाव आ चुका है। सिंहली राष्ट्रवाद और पुरानी वामपंथी नीति के विचारों पर मतभेद के कारण पार्टी टूट चुकी है। जब से दिसानायके के हाथ में पार्टी की कमान आई है तब से वे पुराने दाग से पीछा छुड़ाने में लगे हैं। जहां तक भारत से सम्बंध का सवाल है तो उन्होंने भारत को एक आर्थिक ताकत के रूप में स्वीकार किया है। उनका मानना है कि भारत के बिना काम नहीं चल सकता। वैसे भी श्रीलंका बहुत हद तक भारत से आयात किए गए सामानों पर निर्भर रहता है। चाहे वह आलू, दाल और टमाटर ही क्यों न हांे। दूसरा श्रीलंका में संकट के दौरान भारत ने उसकी आर्थिक मदद की थी। चीन भी उसकी मदद करता है। ऐसे में श्रीलंका के नए राष्ट्रपति इस बात को समझते हैं कि किसी भी पड़ोसी देशों से खराब रिश्ते उसकी अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकते हैं। इस लिहाज से भारत और श्रीलंका की विदेश नीति में भी कोई बदलाव नहीं आएगा। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब श्रीलंका में दिसानायके की जीत की आहट सुनाई दे रही थी तो भारत ने तुरंत उन्हें आमंत्रित किया और वे भारत आए भी। इस दौरान उनकी भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल सहित अन्य अधिकारियों से मुलाकात हुई थी। हालांकि कुछ मोर्चों पर दिसानायके भारत के हितों के लिए चुनौती पेश कर सकते हैं। दिसानायके ने अपने देश के संविधान के 13वें संशोधन के क्रियान्वयन का समर्थन नहीं किया है जो देश के तमिल अल्पसंख्यकों को शक्तियां प्रदान करता है। यही नहीं चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने श्रीलंका में अडानी की 450 मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजना को रद्द करने की भी बात कही थी।
नए राष्ट्रपति की चुनौतियां
जेवीपी पार्टी के नेता अनुरा दिसानायके के सामने राष्ट्रपति पद संभालने के बाद कई बड़ी चुनौतियां हैं। खासकर देश की आर्थिक स्थिति ठीक करने की सबसे पहली और बड़ी चुनौती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के 2.9 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेट और कठोर शर्तों के बाद भले ही श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में सुधार दिखने लगा है। लेकिन इस चुनाव में लोगों के लिए जीवन-यापन की उच्च लागत एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। लाखों लोग गरीबी रेखा के नीचे जा पहुंचे हैं। यही वजह है कि नए राष्ट्रपति पर देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर विकास पथ पर लाने, बाजारों को आश्वस्त करने, देश पर चढ़ा कर्ज चुकाने, निवेशकों को आकर्षित करने और अपने एक चौथाई लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की चुनौती है। इसके लिए उन्हें 2027 तक आईएमएफ से जुड़कर काम करना होगा। अनुरा कुमारा दिसानायके ने श्रीलंका की जनता से टैक्स कम करने का भी वादा किया है, जो राजकोषीय लक्ष्यों को प्रभावित करेगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि कोई भी बदलाव आईएमएफ के परामर्श से ही किया जाएगा और वह कर्ज का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके अलावा छात्रों और श्रमिक वर्ग के वादे पर भी दिसानायके को खरा उतरना होगा, जिनका उन्हें जोरदार समर्थन मिला है।
देश की इसी आर्थिक मंदी ने ‘अरागालय’ (संघर्ष) विद्रोह को हवा दी थी, जिसने साल 2022 में राजपक्षे को राष्ट्रपति के पद से हटा दिया था। उस समय श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार ख़त्म हो चुका था। जिससे देश ईंधन जैसी जरूरी चीजों का आयात करने में असमर्थ हो गया था। देश का सार्वजनिक कर्ज बढ़कर 83 अरब डॉलर हो गया था, जबकि मुद्रास्फीति 70 फीसदी तक बढ़ गई थी। इससे देश में भोजन और दवा जैसी बुनियादी चीजें आम लोगों की पहुंच से दूर हो गईं। देश की इस आर्थिक बदहाली के लिए बड़ी नीतिगत गलतियों, कमजोर निर्यात और सालों से कम टैक्स दरों को जिम्मेदार ठहराया गया है। ऐसे में श्रीलंकाई जनता का राजपक्षे और उनके परिवार के खिलाफ गुस्सा बढ़ा है।
2022 के आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका में गोटबाया सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर जन विद्रोह हुआ था। गंभीर वित्तीय संकट के कारण व्यापक विरोध-प्रदर्शन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश से भागने और इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। गोटबाया राजपक्षे सरकार के पतन के बाद श्रीलंका में पहला राष्ट्रपति चुनाव हुआ। जिसमें महिंद्र राजपक्षे एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव में अपनी किस्मत आजमाना चाहते थे। लेकिन जनता के विरोध ने उन्हें कदम पीछे लेने के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि उनके बेटे नमल राजपक्षे ने इस चुनावी रेस में भाग लिया था। राजपक्षे परिवार का हर उम्मीदवार बहुसंख्यक सिंहली वोटरों के दम पर चुनाव में भारी अंतर से जीत दर्ज कराता रहा है। लेकिन राजपक्षे परिवार के खिलाफ हालात इतने बुरे हैं कि पूर्व खेल और युवा मंत्री नमल राजपक्षे को श्रीलंकाई राष्ट्रपति चुनाव में सिर्फ 3 प्रतिशत ही मत मिले।

